राधा की आँखें एक बार फिर डरावने सपने से खुलीं। वह चिल्ला रही थी—“मत मारो, मत मारो मेरी माँ को!” उसकी माँ पास ही सोई हुई थीं। घबराकर उठीं और राधा को हिलाते हुए बोलीं, “क्या हुआ बेटा? मैं तो तेरे पास ही हूँ, मैं ठीक हूँ।” लेकिन वह समझ गईं कि राधा को फिर वही सपना आया है, जो बचपन से उसका पीछा करता आ रहा था। यह सपना कोई कल्पना नहीं, उसका बीता हुआ जीवन था।
राधा अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी। उसके पिता वैसे बुरे इंसान नहीं थे, पर शराब पीते ही उनका चेहरा बदल जाता। नशे में वह राक्षस बन जाते। उन्हें इस बात का भी ग़म था कि उनका कोई बेटा नहीं, जो वंश बढ़ा सके। वे रात को शराब पीकर घर आते और राधा की माँ से झगड़ा करते, मारते और पैसे माँगते। उसकी माँ सब सह लेतीं, लेकिन पैसे नहीं देतीं। उनके मन में यह दृढ़ निश्चय था कि राधा को पढ़ाकर इस नरक से बाहर निकालेंगी।
राधा रोज़ अपनी माँ को पिटते हुए देखती। वह पिता से घृणा करने लगी। कभी-कभी सुबह होते ही पिता अपनी करतूतों के लिए माफी माँगते, मगर रात में फिर वही हाल। राधा की बचपन की नींदें डर और आँसुओं में डूबी रहतीं।
समय के साथ राधा बड़ी हुई। उसकी माँ ने जैसे भी किया, उसकी पढ़ाई नहीं रुकने दी। माँ की सिखाई हिम्मत और अपनी मेहनत से राधा ने पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन किया। उसका सपना था—एक दिन बड़ी होकर नौकरी करेगी और माँ को इस दुख से दूर ले जाएगी। और अपनी मां के आंसुओं का हिसाब लेगी
अंततः उसकी पढ़ाई पूरी हुई और उसे एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी मिल गई। नौकरी का पहला ही दिन राधा के जीवन की सबसे बड़ी खुशी बन गया। वह दौड़ती हुई घर पहुँची।मां मां करते हुए मां को उठाकर नाचने लगी माँ को बाजार घुमाने ले गई। लौटते समय उसने माँ का हाथ पकड़ा और कहा, “माँ, अब तुम्हारे आँसुओं का हिसाब चुकाने का समय आ गया है। अब हम यहाँ नहीं रहेंगे। चलो मेरे साथ, हम नई जगह रहेंगे जहाँ कोई तुम्हें चोट नहीं पहुँचा सकेगा।”
माँ की आँखें भर आईं। वह बोलीं, “नहीं बेटी, मैं तुम्हारे पापा को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।” राधा हैरान रह गई। “माँ, इतने दुख दिए पापा ने, फिर भी तुम…?”
माँ ने ठंडी आवाज़ में कहा, “बेटा, हमें बचपन से सिखाया गया—पति चाहे जैसे हों, वही परमेश्वर हैं। मैं उन्हें इस हाल में अकेला नहीं छोड़ सकती। अब वह बूढ़े हो गए हैं, शराब भी कम हो गई है। अगर यह लत छूट जाए, तो वह अच्छे इंसान हैं।”
राधा को कुछ समझ नहीं आया। माँ पापा के बिना नहीं जाना चाहती थीं, लेकिन उसे माँ को सुरक्षित रखना था। सोच-विचार के बाद राधा ने दोनों को मुंबई ले जाने का निर्णय किया। पिता को उसने शराब छुड़ाने वाले केंद्र में भर्ती कराया। धीरे-धीरे उनकी आदत छूटी और वे सुधर गए।
आज वही पिता हर दिन अपनी बेटी से माफी माँगते रहते हैं। पत्नी और बेटी दोनों से। अब तीनों एक साथ प्रेम और सम्मान से रहते हैं। पिता के मन में यह कसक हमेशा रहती कि जिस बेटी को कभी प्यार न दिया, वही उनके जीवन की सबसे बड़ी सहारा बनी लेखिका रेनू अग्रवाल
राधा की कहानी मां के आंसुओं का हिसाब