मां के आंसू – खुशी : Moral Stories in Hindi

राधा और मोहन दोनो पति पत्नी थे।घर में सास शीला देवरानी गीता,देवर महेश थे।मोहन एक छोटी सी नौकरी करता था और  महेश बैंक में तो महेश की माली हालत महेश से अच्छी थी।इसी बात का गीता को घमंड भी था।राधा और मोहन का एक बेटा था नितिन और महेश और गीता के दो बच्चे थे।अमन और शामली उनके पिता की अच्छी नौकरी के कारण उनके पास सब सुख सुविधाएं थी।

पर मोहन की तनख्वाह से गुजर बसर होती। पर फिर भी वो खुश थे।नितिन भी समझदार था वो भी जिद ना करता।सास का झुकाव भी अपने अमीर बेटे के प्रति ज्यादा था।क्योंकि वो उनकी हर जरूरत पूरी करता और मोहन करता पर मुंह से निकलते ही नहीं।एक दिन राधा पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा मोहन का दफ्तर से आते हुए एक्सीडेंट हो गया और वो अपना दाहिना पैर गवां बैठा

और उसकी नौकरी छूट गई वो बिस्तर पर लेट गया। सास शीला सारा दिन राधा को ताने मारती।और घर में पैसे की कमी थी मोहन के इलाज का खर्च घर का खर्च नितिन की पढ़ाई इसलिए शीला ने एक दो घर में खाना बनाने का काम पकड़ लिया।कुछ पैसे आने लगे पर वो पूरे नहीं थे इसलिए शीला ने और लोगों को भी बोल कर रखा था कही काम हो तो बताए।

शीला की मेहनत देख उसकी मालकिन रेणु ने उसे एक जगह डब्बे सप्लाई करने का काम दिलवा दिया। सुबह वो दूसरों के घर खाना बनाती फिर वो डब्बे बना कर सप्लाई करती इस वजह से वो पूरा दिन बाहर रहती।सास और देवरानी उसे आवारा बदचलन कहती।नितिन देख रहा था मां कितनी मेहनत करती है वो और पढ़ाई में मेहनत करता दूसरे बच्चों से पुस्तके ले  पड़ता।

मोहन ये सब देख उकता चुका था उसकी वजह से राधा और नितिन का  ये हाल है।एक दिन शाम को जब राधा घर आई तो उसे बुखार था उससे खाना नहीं बना वो लेट गई।नितिन भूखा था और मोहन भी उससे उठा ही नहीं जा रहा था।मोहन ने नितिन से कहा बेटा  जाओ चाची से बोल दो कि आज खाना आप दे दो।नितिन गया सब खाना खा रहे थे

नितिन बोला दादी मां को बुखार है कुछ खाने को दे दीजिए। शीला बोली बाहर आवारा गर्दी करते हुए वो सही रहतीं हैं घर आते ही ड्रामे मेरे बेटे को इस हालत में पहुंचा दिया।शीला ने अपने बेटे के लिए खाना लिया और उसे खिलाने ले गई और नितिन को बचा खुचा दे दिया

पर राधा को पूछा भी नहीं।मोहन ने कहा भी मां उसकी तबियत ठीक नहीं पर शीला उसे गालियां देती रही।मोहन का इलाज महंगा होता जा रहा था जो राधा को उठाना मुश्किल था। पर फिर भी वो जैसे तैसे कर

के वो कर रही थीं।मोहन अपनी लाचारी पर बेबस था और एक दिन उसने कुछ खा कर अपने प्राण त्याग दिए।नितिन स्कूल गया था और राधा खाना बनाने।दिन में शीला उसके कमरे में झांकने आई तो देखा खाना वैसा ही पड़ा है उसने मोहन को आवाज लगाई हिलाया तो वो जा चुका था।शाम को नितिन और राधा घर आए तो कोहराम मचा हुआ था।

राधा तो बुत बन गई।शीला उसे मारने लगी़ बोली मेरे बेटे को खा गई आवारा औरत नितिन मां को बचाने आया तो उसे भी मारा।जैसे तैसे दिन पूरे हुए। देवरानी  बोली मां ये लोग यहां रहेंगे तो बच्चों पर अच्छे संस्कार नहीं होंगे।इन्हें यहां से निक।लो।राधा गिड़गिड़ाती रही पर किसी ने ना सुनी। रात को ही निकाल दिया वो घर के बाहर ही बैठी रही चौकीदार बोला बहु यहां क्यों बैठी हो।

जब बेटा चला गया तो मै कहा बहु रही और रोने लगी। रात गुजरी सुबह काम वाली सुनंदा आई तो वो बोली बहुरानी तुम यहां बाहर क्यों बैठी हो। नितिन बोला दादी ने हमे घर से निकाल दिया।सुनंदा बोली मांजी है ही तेज चलो तुम मेरे साथ चलो।सुनंदा उन्हें अपनी बस्ती ले गई और अपने साथ का कमरा दिलवा दिया।अब वही से नितिन स्कूल और राधा काम पर जाती।

नितिन ने दसवीं में स्कूल में टॉप किया पेपर में उसका नाम आया।स्कॉलर शिप पर वो आगे पढ़ा और आज वो पूरे 6 साल बाद अमेरिका से लौट रहा था।न्यूरो सर्जन की डिग्री के कर वो प्लेन में सीट बेल्ट कसने की अनाउंसमेंट से ही वर्तमान में वापस आया। एयरपोर्ट पर उतार कर वो सीधा अपनी सोसाइटी पहुंचा जहां अब राधा और सुनंदा रहती थी।

राधा बाहर ही बैठी थीं नितिन को देख उसकी आरती उतारी और गले से लगाया। नितिन बोला मां तुम्हारी दुआ के कारण ही आज मै यहां पहुंचा हु।तुमने जितने आंसू बहाए है ना सबको उनका हिसाब देना होगा।राधा बोली जाने दे जो जैसा करेगा वैसा भरेगा।नहीं मा यहां बात आपके चरित्र की है।सुनंदा ने खाना बनाया।सब ने खाना खा कर आराम किया

और शाम को नितिन अपनी मां को के अपने दादी के घर पहुंचा। घर में सब थे दादी मंदिर में पाठ पढ़ रही थी 75 की होगी शायद चाचा चाय पी रहे थे।चाची रसोई में थी अमन और शामली दिखाई नहीं दिए।दरवाजा बजा महेश ने दरवाजा खोला बोला भाभी आप और तुम नितिन हो ।नितिन बोला जी चाचाजी अंदर आने को नहीं कहेंगे।महेश बोला हा आओ ना मा  गीता देखो कौन आया है?

कौन है शीला और गीता आई।शीला बोली ए मनहूस तू फिर आ गई कहा भाग गई थी मुंह काला करने।नितिन बोला दादी चुप और नहीं नहीं तो मैं अपनी मर्यादा भूल जाऊंगा।मैं ये शहर छोड़ने से पहले आप से अपनी मां के आंसुओं का हिसाब लेने आया हूँ।वो मां जो रात दिन मेहनत करती मेरे और पिताजी के लिए आपने उसे आवारा बदचलन का नाम दे दिया।

वो सुबह दूसरों के यहां खाना बनाती फिर घर आ खाना बना उसे कंपनी में पहुंच।ती रिक्शा किया तो किया नहीं तो पैदल जाती की पैसा बचेगा। पिताजी का एक्सीडेंट हुआ उसमें मां का क्या दोष पर आपने मां को दोषी माना चाचा चाची आप तो भाई भाभी थे आपको भी कभी हम पर तरस नहीं आया।हमारे जाने के बाद आपके बच्चे सुधरे होंगे

हमारा साया नहीं था उन पर । महेश बोला नितिन तुम कहा नौकरी कर रहे हों घर ना हो तो यहां अपने कमरे में रह लो क्या कमाते हो।नितिन बोला i am डॉक्टर नितिन शर्मा न्यूरो सर्जन और अगले हफ्ते मुझे बंगलौर के मैक्स अस्पताल में सीनियर डॉक्टर ज्वाइन करना है।दादी बोली मेरा पोता आ मेरे पास नितिन बोला मै सिर्फ अपनी मां का बेटा हूं

जिसने मुझे पाला संस्कार दिए आज मै जो ही इसी की वजह से हूँ  आप से मेरा कोई संबंध नहीं मै तो सिर्फ अपनी मां के आसू का हिसाब लेने आया था।मां अब तुम खुश रहोगी बहुत रो चुकी अब खुश रहो हंसती रहो।नितिन राधा का हाथ पकड़ कर चल पड़ा और पीछे शीला और महेश पुकारते रहे।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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