मालती जी के फोटो पर हार चढ़ा था और उनकी शोक सभा में सभी आए थे। राधे और उसकी पत्नी बहुत जोर – जोर से रो रहें थे और एक कहानी सबको सुना रहे थे कि अम्मा अपनी सहेलियों के साथ तीर्थ यात्रा पर गईं थीं और बस खाई में गिर गई थी। किसी का अता-पता नहीं है, हमें तो अम्मा के दर्शन भी नसीब नहीं हुए थे।”
शोभा ने जैसे खबर सुनी, तुरंत ही पहली फ्लाइट ली और दिल्ली पहुंची।
भइया!”आपने हमें बताया तक नहीं की अम्मा तीर्थ यात्रा पर जा रहीं हैं? पिछले हफ्ते तो अम्मा से बात हुई थी। उन्होंने ऐसी कोई योजना के बारे में जिक्र भी नहीं किया था” शोभा
हैरान थी कि अम्मा तो ऐसा कभी नहीं करतीं हैं। हां थोड़ी बेचैन सी ज़रूर लग रहीं थीं।
अम्मा को कितनी भी तकलीफ़ हो पर वो कभी भी किसी की ना तो शिकायत करतीं थीं और अपना दुखड़ा सुनाया करतीं थीं। इसीलिए सबकुछ सही से पता नहीं चलता था कि वो खुश हैं भी की नहीं। हमेशा एक ही बात मुंह में रहती कि
‘ जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए ‘ ।अब इस उम्र में दो वक्त की रोटी मिल जाए और ईश्वर का स्मरण। इसके सिवा कोई लोभ नहीं है। बिटिया हमारे शौक – शान तो तुम्हारे बाबूजी के साथ ही चले गए थे।
राधे बहन शोभा की बात को टाल मटोल करके बस रोना शुरू कर देता। शोभा को ना जाने क्यूं सबकुछ सही नहीं लग रहा था और भईया – भाभी को इतना रोना आ रहा है? जिन्होंने मां की कभी ज्यादा कदर ही नहीं की थी।
शोभा ने कई बार अम्मा से जिद्द की थी कि,” अम्मा मेरे साथ चलो।हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे।”पुराने विचारों वाली अम्मा थीं,उनको मौत मंजूर थी पर बिटिया के घर जाकर रहना बिलकुल नहीं पसंद था। दुनिया समाज और रीति रिवाज की कहानियां सुना कर हर बार बात टाल जातीं थीं।
सबकुछ शांति से निपट गया और शोभा को भी लगा कि वो फालतू के प्रश्न भइया से कर रही है,ये कोई वक्त नहीं है इन बातों का और मां के बाद भाई – भाभी से तो मायका है।
भइया – भाभी भी तो कितने दुखी हैं। धीरे धीरे सभी लोग जा चुके थे और शोभा भी दूसरे दिन चली गई। अफसोस इतना था कि अम्मा के अंतिम दर्शन भी नहीं हो पाए। भइया ने कहा था कि वो पता कर रहें हैं जहां बस गिरी थी कि अगर कुछ भी मिलता है तो जरूर बताएंगे।
इस बात को दो वर्ष बीत गए थे। शोभा किसी काम से अजमेर जा रही थी कि उसकी मुलाकात अम्मा की एक पुरानी सहेली कांता मौसी से हो गई जो अब अजमेर में रहतीं थीं।
अरे!” शोभा बिटिया तुम कैसी हो? और मालती कैसी है?
बिटिया तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया जो दो – दो औलाद होने के बावजूद इस उम्र में वृद्धाश्रम में डाल दिया बेचारी को।”
मौसी ” आपको कुछ गलतफहमी हुई है। अम्मा को गुजरे दो वर्ष हो गए और वो तो तीर्थ यात्रा पर गईं थीं और एक बहुत बड़ी दुर्घटना का शिकार हो गईं। हमें तो उनके अंतिम दर्शन भी नहीं मिले” शोभा बिना रुके एक सांस में सारी बातें बताई।
ओह! ” तो तुम को सचमुच में कुछ नहीं पता है बिटिया।”
तुम्हारे भैया ने बड़ी अच्छी कहानी सुनाई है तुम को और तुम मान भी गई।”
शोभा का दिमाग पूरी तरह से हिल गया था। कांता मौसी क्या कहना चाह रहीं हैं? मौसी क्या बात है? कृपया मुझे बताइए । शोभा की बेचैनी बढ़ने लगी थी।
बिटिया तुम्हारी मां जिंदा हैं और एक वृद्धाश्रम में हैं। तुम्हारे भैया – भाभी ने उनको बहुत सताते थे।हद तो तब हो गई की जब तीर्थ यात्रा के नाम पर वृद्धाश्रम में उनको छोड़ आए। मुझे नहीं पता था कि उन्होंने सबसे क्या कहा है।
वो तो मैं किसी सामाजिक कार्य की वजह से पूने गई थी तो मेरी मुलाकात तुम्हारी मां यानी मेरी बचपन की सहेली मालती से हुई। पहले तो मैं पहचान पाती वो नजरें बचाकर कहीं चली गई। फिर मैंने आफिस में पता किया कि कोई मालती नाम की महिला है क्या यहां तो उन लोगों ने बताया कि उनके बेटे – बहू दो वर्ष पहले उनको छोड़ गएं हैं। मेरी जिज्ञासा कम नहीं हुई थी
तो मैं उसके कमरे में गई। पहले तो उसने पहचानने से इंकार कर दिया लेकिन थोड़ी देर बाद गले से लिपट कर बहुत रोई। मैंने पूछा भी की शोभा बिटिया को पता है क्या? बोली नहीं जानतीं हूं कि राधे ने उससे क्या कहा है?
मैंने बहुत जिद्द की कि मेरे साथ चलो,हम दोनों साथ-साथ रहेंगे। अच्छा खासा घर है मेरा… लेकिन बिल्कुल नहीं मानी।
उसका कहना था कि भगवान ने मेरे भाग्य में ये दिन लिखा है तो यही सही।
शोभा के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे कि कौन बेटा अपनी मां के साथ ऐसा व्यवहार करता है। भैया को दिक्कत थी तो मुझसे बात करते।हे भगवान इतना बड़ा धोखा…. “ईश्वर इसकी सजा जरूर देगा। मौसी मैं भी गुनाहगार हूं,” मुझे लगा तो था कि अम्मा बताईं भी नहीं एक बार।
बिटिया उसका फोन भी ले लिया था उन लोगों ने।किस को नंबर याद रहता है। लेकिन उसने एक बात कही थी मुझसे कि,” मेरी शोभा एक ना एक दिन मुझ तक जरूर पहुंच जाएगी कांता।”
“बिटिया मेरे पास भी तुम्हारा नंबर नहीं था नहीं तो मैं तुम्हें जरूर खबर करती।”
धन्यवाद मौसी,” ईश्वर ने ही मुझे आपसे मिलाया है और आप मुझे वृद्धाश्रम का पता दीजिए। मैं अजमेर उतरते ही सीधे मां के पास जाऊंगी।अब मेरी मां अपनी बेटी के रहते कभी भी ऐसी जिंदगी नहीं गुजारेंगी।”
शोभा दूसरे दिन ही वृद्धाश्रम में पहुंच गई और आफिस में बात करके सीधे मां से मिलने मां के कमरे में गई।
मालती जी माला जाप कर रहीं थीं। शोभा मां को देख कर अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि अम्मा जिंदा हैं और उसके सामने हैं।
मालती जी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि शोभा सामने खड़ी है। उन्होंने चश्मा निकाल कर साड़ी के पल्लू से साफ किया और फिर से पहचानने की कोशिश करने लगी।
शोभा अम्मा से लिपट कर रोने लगी। अम्मा भी रोए जा रहीं थीं।
बिटिया,” तुम यहां कैसे पहुंची? राधे ने तो नहीं बताया होगा।”
अम्मा! ” तुमने मुझे इतना पराया कर दिया की कुछ कहने की जरूरत ही नहीं समझी। कभी तो कुछ बताया होता कि भैया – भाभी का कैसा व्यवहार है तुम्हारे प्रति।”अगर कांता मौसी नहीं मिलतीं तो मुझे पता ही नहीं चलता तुम्हारे बारे में।”
बिटिया,” क्या कहती तुमसे… तुम बिना मतलब के परेशान होती। तुम्हारी भी तो घर गृहस्थी है।हम नहीं जानते थे बिटिया की हमारी औलाद इतनी नालायक निकलेगी की बूढ़ी मां के लिए दो वक्त की रोटी और घर का एक कोना उसको भारी पड़ जाएगा। धोखे से लाकर दोनों यहां छोड़ गए कहा कि अम्मा आते रहेंगे मिलने और वापस नहीं आए आजतक।”
“चलो अम्मा मेरे साथ मेरे घर और अम्मा तुम्हारे एक – एक आंसू का बदला मैं उन दोनों से लूंगी और हां अब कुछ भी नहीं सुनुंगी तुम्हारी बात। अगर मैं पहले ही तुम्हारी बात को नहीं सुनती तो तुम यहां कभी भी नहीं पहुंचती तुम।”
शोभा ने वृद्धाश्रम में ये बात बताने से मना कर दिया था कि अगर राधे का फोन आए तो उसको पता नहीं चलना चाहिए कि मां को मैं ले गई हूं।
शोभा अम्मा को अपने घर लिवा लाई और उनका बहुत ध्यान रखने लगी। अम्मा अब स्वस्थ भी हो गईं थीं और थोड़ा हंसने – बोलने भी लगी थी।
शोभा ने अपने घर सभी को बोला था कि कोई कहीं भी नहीं बताएगा कि अम्मा जिंदा हैं और उसके साथ हैं।
कुछ दिनों के बाद शोभा ने भैया को फ़ोन किया कि घर अम्मा के नाम था, इसलिए उसको अब हिस्सा चाहिए उस घर में। भैया ने कभी सोचा ही नहीं था कि शोभा कभी हिस्सा मांगेगी। उसके पास तो दो- दो घर है और अचानक ये ख्याल क्यों आया शोभा के मन में।
शोभा,” ये घर तो हमारा है और तेरे पास तो खुद का घर है फिर तुझे क्यों हिस्सा चाहिए?”भैया ने कहा।
भाभी ने झट से फोन छीन लिया और बोली”कौन सा घर दीदी? हम कोई घर बेच थोड़े ही रहें हैं जो आपको हिस्सा देंगे और हां क्यों अपना मायका खत्म करना चाहतीं हैं। अगर आज अम्मा होती तो कितना दुखी होती आपके इस व्यवहार से।”
भाभी! ” अम्मा से ही मेरा मायका था,वो नहीं तो कोई भी रिश्ता मायने नहीं रखता मेरे लिए और हां जल्दी ही सोच कर बताइए वरना मैं कोर्ट तक खींच कर ले जाऊंगी आप दोनों को।”
राधे ने फोन रख दिया और सोचने लगा कि शोभा ने तो आज तक उससे ऊंची आवाज में भी बात नहीं की है आज क्या हुआ आखिर और उसको कुछ – कुछ समझ में आने लगा कि कहीं अम्मा के बारे में कुछ पता तो नहीं चल गया शोभा को।
उसने तुरंत ही वृद्धाश्रम में फोन लगाया और मालती जी के बारे में जानकारी लेनी चाही। वहां की केयर टेकर ने बताया सब ठीक है तो चुपचाप फोन रख दिया।
शोभा ने कसम खाई थी कि ‘ मां के आंसुओं का हिसाब ‘
जरूर लेगी।वो भैया – भाभी को भी सड़क पर लाएगी।
कैसी औलाद हैं भैया की अपनी मां के जीते जी उनका श्राद्ध कर दिया और उनको बेसहारा कर दिया। सबकुछ तो अम्मा – बाबू जी का ही तो था।
मालती जी ने शोभा को मना किया कि,”जाने दो बिटिया। मैं तो अपनी औलाद का स्वप्न में भी बुरा नहीं चाहूंगी उसको तकलीफ़ दे कर मुझे कभी भी शांति नहीं मिलेगी।
मेरे ही संस्कार में कमी रह गई होगी जो ऐसी औलाद हुई मेरी।”
” अम्मा आप कुछ नहीं कहोगी , आपको मेरी कसम है। मैं इतनी खुशनसीब हूं कि आपको अपने पास रख कर आपकी सेवा का अवसर मिला है मुझे, वरना मुझे ये बात तो कभी पता नहीं चलती की आपके साथ क्या – क्या हुआ था।”
भैया का फोन आया तो शोभा को फुसलाने लगे कि उनके पास यही घर ही तो है।
“भैया अम्मा – पापा की लाखों की एफडी और अम्मा के जेवर कहां हैं?”शोभा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी।
“शोभा क्या फालतू की बात कर रही हो? जो कुछ अम्मा का था वो मेरा है और मेरे पास ही तो रहतीं थीं अम्मा ।उनका खाना और दवाइयां कहां से आती थी।” भइया अब भड़क गए थे।
“कोई बात नहीं भैया कोर्ट में मिलेंगे” कह कर शोभा ने फोन रख दिया। वकील साहब से मिलकर अम्मा की सारी जमा-पूंजी और घर के लिए केस दर्ज कराया।
भैया के हांथ जब कोर्ट की नोटिस मिली तो उनको मजबूरी में हाजिर होना पड़ा।
सामने अम्मा को देखकर उनके होश उड़ गए लेकिन अपने आपको संभालते हुए कहा कि,” अरे अम्मा तुम जिंदा हो। हमें क्यों नहीं बताया?”
भैया!” आपको शर्म आनी चाहिए थी। आपने कैसे किया ये सब? अम्मा भले ही आपको माफ कर दें पर अम्मा ने जितनी तकलीफ़ उठाई है और जिल्लत की जिंदगी गुजारी है, उसके लिए मैं कभी भी माफ नहीं करूंगी आपको।आप नहीं रख सकते थे तो मुझे बताते। मैं अपने साथ ले आती अम्मा को।”
“अम्मा मुझे माफ कर दो ” भैया अम्मा के पैरों पर गिर कर क्षमा मांग रहे थे लेकिन अम्मा ने कुछ नहीं कहा।
न्याय अम्मा के पक्ष में हुआ था और जज साहब ने सजा
सुनाई थी लेकिन अम्मा ने घर राधे को देते हुए कहा कि” बेघर होने का दर्द हमसे ज्यादा कौन जानता है।हम नहीं चाहते कि राधे इस उम्र में सड़क पर मारा – मारा फिरे और जज साहब से सजा ना देने के लिए प्रार्थना भी की थी।
“ऐसी होती हैं मां भैया…वो कल भी आपके बारे में सोचतीं थी और आज भी आपको कितनी आसानी से माफ कर दिया लेकिन अम्मा जैसा बड़ा दिल मेरा नहीं है। मैं आपको कभी भी माफ नहीं करूंगी। ईश्वर से प्रार्थना करूंगी की आपके बच्चे आपके साथ ऐसा व्यवहार ना करें।”
भैया बहुत शर्मिन्दा थे लेकिन अम्मा ने जाते वक्त मुड़ कर भी नहीं देखा था उनको शोभा के साथ उसके घर आ गई थी।
कुछ वर्षों बाद अम्मा का इंतकाल हो गया था। शोभा ने भैया को अंतिम संस्कार की इजाजत नहीं दी थी।
शोभा ने अम्मा के जाने के बाद सारी धन राशि उसी वृद्धाश्रम को दान में दे दिया था और उनकी स्मृति में एक मूर्ति लगाई गई थी वहां। अम्मा ने पूरी उम्र दिया ही था कभी किसी से कुछ नहीं लिया था। सुनने में आया था कि भैया को बड़ा सदमा लगा था और अब वो पूरी तरह से बिस्तर पर थे। कर्म फल तो भुगतना ही पड़ता है इंसान को एक ना एक दिन।
प्रतिमा श्रीवास्तव नोएडा यूपी