माँ का त्याग – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

     ” डाॅक्टर साहब-डाॅक्टर- साहब … जल्दी से चलकर मेरी माँ को देखिये…उन्हें साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है और…।”कहते हुए चाँदनी डाॅक्टर प्रमोद के चेम्बर में घुसने लगी तो वहाँ बैठा चपरासी उसे रोकते हुए बोला,” अरे..अरे.., कहाँ घुसी चली आ रही हो..देख नहीं रही कि कितनी भीड़ है..चलो लाइन में…।”

  ” देख नहीं सकती लेकिन भीड़ को सुन सकती हूँ… परन्तु मेरी माँ की हालत ज़्यादा खराब है तो..।” चाँदनी की बात सुनकर डाॅक्टर प्रमोद ने उसकी तरफ़ देखा तो दंग रह गये।वह सचमुच देख नहीं सकती थी।प्रमोद उसे एक मिनट रुकने के लिये बोले और वहाँ बैठे मरीज़ को दवा की पर्ची देकर चाँदनी से बोले,” अब बताओ..कहाँ है तुम्हारी माँ और उनको क्या हुआ है।”

    बेंच पर बैठी असहाय महिला का हाथ पकड़कर चाँदनी बोली,” ये मेरी माँ है..बहुत बीमार रहती हैं..खाना भी ठीक से नहीं खाती हैं..।”

” ठीक है, मैं देखता हूँ।” डाॅक्टर प्रमोद उसकी माँ को चेंबर में ले गये..नब्ज़ टटोली..आँखें देखी..पेट-पीठ देखकर चाँदनी से बोले,” तुम्हारी माँ को कुछ नहीं हुआ है..ये चिंता-फ़िक्र छोड़ दे…ठीक से खाना खायें तो जल्दी ही ठीक हो जाएँगी..एक दवा लिखकर दे रहा हूँ..एक-एक चम्मच दिन में दो बार पिला देना..।”

     चाँदनी ने ‘जी डाॅक्टर साहब’ कहते हुए अपना सिर हिलाया…माँ की दवा ली और उन्हें लेकर घर आ गई।

       चाँदनी जब पैदा हुई तो सब उसकी माँ देविका को कहने लगे कि इसकी आँखें बहुत सुंदर है..इसे हमेशा काजल का टीका लगाकर रखना ताकि बुरी नज़रों से बची रहे लेकिन होनी-अनहोनी पर तो किसी का वश चलता नहीं।

         दीपावली की वो काली-अंधेरी रात थी…रंग-बिरंगी बल्बों और दीयों से पूरा शहर जगमगा रहा था..दस वर्ष की चाँदनी अपने मोहल्ले के बच्चों के साथ फुलझड़ी चला रही थी कि तभी उसके हाथ की फुलझड़ी फट गई और बारूद के टुकड़ों से उसकी दोनों आँखों में जलन होने लगी।अपने दोनों हाथ आँखों पर रखकर वो दर्द से चीख पड़ी।बेटी की चीख सुनकर उसके माता-पिता बाहर आये और उसे लेकर अस्पताल दौड़े।

इस कहानी को भी पढ़ें:

उधार – डॉ. पारुल अग्रवाल,  : Moral Stories in Hindi

      दवा देने से चाँदनी की आँखों की जलन तो कम हो गई लेकिन जब उसने कहा कि मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है तब डाॅक्टर ने उसकी आँखों की फिर से जाँच की और उसके माता-पिता को बताया कि पटाखों के अंगारों से उसकी आँखों की रोशनी चली गई है।छोटी-सी चाँदनी के लिये यह बहुत बड़ा सदमा था।उसके माता-पिता बेटी के साथ कदम से कदम मिलाकर साथ चलते रहे।धीरे-धीरे चाँदनी ने भी अपनी कमी को स्वीकार कर लिया और अपना काम स्वयं करने का अभ्यास करने लगी।उसके माता-पिता अपना दुख कभी भी चाँदनी पर ज़ाहिर नहीं करते…दोनों अकेले में रोकर अपना जी हल्का कर लेते थे।

       समय के साथ चाँदनी बड़ी होने लगी।तब उसके पिता ने ब्रेल लिपि स्कूल में उसका दाखिला करा दिया, साथ ही उसे संगीत की शिक्षा भी दिलानी शुरु कर दी।चाँदनी ने जब पहली बार चाय बनाकर अपने पिता को दी वो खुशी-से रो पड़े थे।

       चाँदनी ने अपनी मेहनत से ब्रेल लिपि की शिक्षा पूरी की और वो ब्लाइंड स्कूल में पढ़ाने लगी।साथ ही, वह अपने घर पर ही बच्चों को गाना भी सिखाने लगी।इसी बीच उसके पिता की मृत्यु हो गई तब वो अपनी माँ का सहारा बन गई।कल तक जो लोग उसे अंधी-बेचारी कहते थे..आज उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते थें।फिर भी  देविका को यह चिंता खाये जाती थी कि मेरे बाद चाँदनी का क्या होगा…वो अकेले कैसे रहेगी..यही चिंता उनका रोग बन गया था।एक रात उन्हें नींद नहीं आई तो अगले दिन उनकी बेचैनी बढ़ गई।माँ की हालत देखकर चाँदनी घबरा गयी और उन्हें लेकर अस्पताल चली गई।

      डाॅक्टर प्रमोद की दवा से चाँदनी की माँ को बहुत आराम मिला लेकिन उनकी चिंता बनी रही।इसीलिए जब भी उनकी तबीयत बिगड़ जाती तो चाँदनी उन्हें लेकर डाॅक्टर प्रमोद के पास चली जाती थी।

      चाँदनी की सुंदरता और उसके आत्मविश्वास ने डाॅक्टर प्रमोद के दिल में एक विशेष जगह बना ली थी।अस्पताल और चाँदनी के घर के बीच में ही उनका क्वाटर था।शुरु-शुरु में वो देविका जी को देखने के बहाने चाँदनी के घर आने लगे और फिर उससे मिलने..।चाँदनी को भी डाॅक्टर प्रमोद का साथ अच्छा लगने लगा था।

     एक दिन चाँदनी ने उनसे पूछ लिया,” आपका घर कहाँ है..परिवार में कौन-कौन..।” तब उन्होंने बताया कि अनाथालय के दरवाज़े पर कोई उन्हें छोड़ गया था।वहीं पर वो बड़े हुए..तभी उन्होंने निश्चय कर लिया था कि डाॅक्टर बनकर वो मरीज़ों का इलाज़ करेंगे।”

       प्रमोद अपने मरीजों में व्यस्त रहते और चाँदनी अपने स्कूल में लेकिन जब मिलते तो घंटों बातें करते।एक दिन प्रमोद ने चाँदनी से कहा,” मेरे एक परिचित नेत्र-विशेषज्ञ हैं.. एक बार उनसे चेकअप कराने में क्या हर्ज़ है।” पहले तो चाँदनी ने मना कर दिया लेकिन जब प्रमोद बोले कि तुम्हारी माँ अपनी बेटी की आँखों में रोशनी देखना चाहती है..,तब वो तैयार हो गई।

       नेत्र विशेषज्ञ डाॅक्टर सिद्धार्थ चाँदनी की आँखों की जाँच करके बोले,” प्रमोद..चाँदनी की आँखें ठीक तो नहीं हो सकती लेकिन यदि कोई अपनी आँखे दान कर दे तो..वो फिर से देख सकती है।”

इस कहानी को भी पढ़ें:

किस्मत – कविता भड़ाना : Moral Stories in Hindi

        दरवाज़े के बाहर खड़ी देविका जी ने डाॅक्टर सिद्धार्थ की बात को सुन लिया था।उनकी बेटी फिर से देख सकती है..उसके अंधेरे जीवन में फिर से रोशनी के दीये जल उठेंगे..यह सोचकर वो खुशी-से फूली नहीं समा रही थी।लेकिन एक चिंता फिर भी थी कि उनकी बेटी के लिये नेत्रदान कौन करेगा…रुपयों की व्यवस्था कैसे होगी।

      माँ के मन में चल रहे सवालों से चाँदनी और प्रमोद अनजान थे।एक दिन जब चाँदनी स्कूल से घर आई तो आदतन उसने माँ को पुकारा।जवाब न मिलने पर उसने बाथरूम का दरवाज़ा टटोला..फिर बिस्तर पर…।बिस्तर पर उसने माँ के चेहरे को छुआ तो सोचने लगी कि इस समय माँ क्यों सो रही है।फिर उसने माँ के हाथ को स्पर्श किया तो ठंडा महसूस हुआ।वह घबराकर चीख पड़ी।उसने तुरंत डाॅक्टर प्रमोद को फ़ोन किया।प्रमोद को माँ के तकिये के नीचे एक खाली शीशी मिली तो वो सब समझ गये।देविका जी के तकिये के नीचे एक चिट्ठी रखी थी जो प्रमोद के नाम थी- प्रमोद बेटे..मैं अपनी चाँदनी की आँखों में रोशनी देखना चाहती हूँ..मेरी आँखें उसे दे देना।अपने जेवर बेचकर रुपये अलमारी में रख दिये हैं।डाॅक्टर साहब को फ़ीस देना।

         चाँदनी बेटी, मुझे क्षमा करना..डाॅक्टर प्रमोद मुझे भी पसंद है।उनसे विवाह कर लेना..मैं हमेशा तुम्हारे आसपास ही रहूँगी।- तुम्हारी माँ

         प्रमोद ने तुरंत डाॅक्टर सिद्धार्थ को फ़ोन किया, एंबुलेंस बुलाया और माँ-चाँदनी को लेकर डाॅक्टर सिद्धार्थ के नर्सिंग होम पहुँच गये।

       चाँदनी की आँखों का ऑपरेशन सफल रहा।उसकी आँखों में रोशनी के #दीये जल उठे।अब वह अपनी माँ की आँखों से संपूर्ण संसार को देख सकती थी।

       घर आकर उसने अपनी माँ का खाली बिस्तर देखा तो उसकी आँखें छलक उठी।कुछ महीनों के बाद चाँदनी ने डाॅक्टर प्रमोद से विवाह कर लिया।विवाह के बाद भी वह ब्लाइंड स्कूल जाती रही, बच्चों को पढ़ाती रही और उन्हें संगीत भी सिखाती रही।अब तो वो अन्य पुस्तकों को भी ब्रेल(Braille)लिपि में अनुवाद करने लगी ताकि सभी का जीवन ज्ञान के प्रकाश से जगमगा उठे।

      विवाह के बाद की पहली दीवाली पर चाँदनी पति के साथ अपने घर आई…रोशनी की…अपने माता-पिता की तस्वीर को प्रणाम  किया तो उसके घर के बुझे दीये जल उठे।

                                  विभा गुप्ता 

# दीये जल उठे        स्वरचित, बैंगलुरु 

           एक माँ ने अपने जीवन का त्याग करके अपनी बेटी के जीवन में छाये अंधेरे को हमेशा के लिये दूर कर दिया था।ऐसी माँ को सलाम!

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!