ये कहानी है रत्ना जी की। जिनके पास धन तो ज्यादा नहीं है पर जमीन और घर की मालकिन जरूर है। दो गबरू जवान बेटे और एक बेटी की माँ। सब शादीशुदा और अपने में मस्त।
पर क्या हुआ जो एक दिन अचानक से दोनों बेटे माँ के पास आए और बड़े बेटे नवल बोले,‘‘ माँ हम दोनों भाई इतने सालों से एक साथ हँसी खुशी रह रहे थे पर अब चाहते हैं कि आप घर , ज़मीन जायदाद सब हम दोनों में बराबर से बॉंट दें।‘‘
छोटे बेटे धवल ने भी भाई की हाँ में हाँ मिला दिया।
‘‘ ऐसा क्या हुआ जो तुम दोनों को लग रहा है अब अलग हो जाना चाहिए….कोई मनमुटाव है तो दूर कर लो, अभी बँटवारे की बात मत करो….मेरे जीते जी क्यों अलग होना चाहते हो?’’रत्ना जी ने पूछा
‘‘ माँ अब हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं, उनकी शादी होगी, हमने तो निभा लिया, पर जो आने वाली पीढ़ी होगी पता नहीं पूरे परिवार को सँभाल सकेंगी और नहीं? फिर सबकी अपनी-अपनी ख्वाहिशें होती हैं….अलग पकवान खाने का मन करता है….पर पूरे परिवार के साथ एक जैसा ही खाना बनता और वही बेमन से खा लेते हैं….बच्चों को देखकर ही हमने ये सब सोचा है ।”नवल ने कहा
माँ बेचारी सोच में डूब गई।
‘‘ बेटा अब तुम दोनों यही चाहते हो तो मैं बुढ़िया क्या बोलूँ….पर कल तेरी बहन भी आने वाली उससे भी एक बार पूछ लें….अब तो बेटियों को भी हक मिलता है….उसके साथ नाइंसाफ़ी तो नहीं कर सकते हैं ।”रत्ना जी दुःखी हो कर बोली
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‘‘ दीदी से क्या पूछना माँ? अरे उसके हिस्से का तो दे ही दिया ना उसके ब्याह में, अब काहे का उसका हिस्सा….ना ना अब तो जो भी बँटेगा हम दोनों भाईयों में ही ।”छोटे धवल ने थोड़ा खुन्दक खाते हुए बोला
‘‘ फिर भी कल रज्जो आवे उसके बाद ही कुछ फैसला करूँगी….तुम दोनों को आपत्ति हो तो भी कल तक का इंतज़ार करो।” कहकर रत्ना जी बैठक से उठ कर अपने कमरे में चली गईं
कमरे में जाकर लाचार हो कर बिस्तर पर पड़ गई।
पति की बड़ी सी तस्वीर को निहारते हुए सोचने लगी,इन बच्चों के लालन पालन में कभी कोई कोताही न बरती। उनकी शिक्षा दीक्षा में कोई कमी नहीं कि इस उम्मीद में कि ये अपनी विरासत में और जोड़ पाएंगे पर ये दोनों तो छोटा सा दुकान खोलकर ही बैठ गए।
कभी कुछ तरक्की करने की ना सोची,आज जमीन जायदाद में अपना अपना हिस्सा माँगने चले आए। ये सब क्या हमने इसी दिन के लिए जोड़े थे? पहले से ही कामचोर थे ये ,अब पता नहीं कोई जमीन बचेगी भी कि नहीं। पति से दिल की बात करती रत्ना जी कब सो गई पता ही नहीं चला।
दूसरे दिन रज्जो आ गई। भाई भाभी ने जमकर खातिरदारी की।
चाय नाश्ता करके रज्जो माँ के पास बैठ घर बतियाने चली गईं पीछे पीछे दोनों भाई भी पहुंच गए।
किसी तरह बड़े भाई ने रज्जो के सामने मन की बात रख दी।
रज्जो माँ की ओर देखे कभी भाईयों की ओर।
माँ की लाचारी देख उससे रहा न गया।
‘‘ भाई आप दोनों अपने अपने हिस्से की माँग कर रहे हो पर माँ का क्या?उसका हिस्सा किधर है?‘‘ रज्जो ने पूछा
‘‘ माँ का हिस्सा? उसको हिस्से की क्या जरूरत है, हम दोनों है ना। ‘‘ दोनों ने एक सुर में कहा
‘‘ घर के भी दो हिस्से कर लोगों ये बताओ माँ किधर रहेगी? तुम दोनों माँ को उसी आराम से रहने दोगे जैसे वो अब तक रहती आई है….नही होता है भाई, माँ को दो हिस्सों में तो नहीं बाँट सकते ना? अगर आपको हिस्सा करना है तो माँ को लिए भी बराबर हिस्सा होगा। जब तक वो है चैन से अपने हिसाब से रहेगी।
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कल को तुम दोनों माँ की देखभाल ना करो तो? माँ अपने हिस्से का जो करना चाहे करे पर उसका भी हिस्सा उसको मिलेगा। उसके पास पैसे होंगे जो उसकी सेवा करेगा माँ उसको अपनी मर्जी से जो देना चाहे दे सकती।मैँ माँ के हक की बात कर रही हूं
जो आज तक दूसरों को दाना पानी दे रही कल की वो किसी की मोहताज क्यों बने। आप दोनों सोच लो फिर तीन बराबर हिस्से कर लेना।‘‘ कहकर रज्जो माँ के चेहरे पर आए मायूसी को दूर करने उसे बाहर ले गई
‘‘ माँ मुझे तेरी फ़िक्र हो रही, पता नहीं भाई क्या फैसला करें पर अच्छा किया तुमने मुझे बता दिया था। तुम चाहती हो ना अभी बँटवारा नहीं हो । बस देखना तीन हिस्से की बात सुन शायद भाई हिस्से की माँग ना करें। पर अब सहूलियत के हिसाब से बच्चों को जैसे रहना चाहे रहने दो। जो मन करे बनावे खावे बस घर में खुशहाली बनी रहे मैं भी यही कामना करती हूँ।‘‘ रज्जो माँ के दिल की हाल समझते हुए बोली
‘‘ अब जो फैसला करे पर बेटा मैं कभी इधर कभी उधर वाली जिन्दगी नहीं जी सकती। कभी किसी से कोई कहा सुनी नहीं हुई ना जाने किसने इनके कान भर दिए हैं… मैं औरों की तरह किसी की मोहताज होकर नही रह सकती….चल अब घर चलते हैं ।‘‘ कहकर दोनों घर आ गई
दरवाजे पर ही दोनों बेटे बहू खड़े थे।
‘‘ माँ आप जब तक चाहे हम हिस्से की माँग नहीं करेंगे। बस इतना तो कर सकते हैं ना जब जो मन करे हम अपने हिसाब से कर सके। बच्चों के लिए जो जरूरत हो वो कर पाए नहीं तो सोचते रहते हैं कुछ अलग करेंगे तो कहीं किसी को बुरा न लग जाए….बस इसलिए हम अपने अपने हिस्से की माँग कर रहे थे।” नवल ने कहा
‘‘ जैसे मर्जी करो बच्चों पर जीते जी घर में दीवार ना खींचो, मरने के बाद बराबर हिस्सा कर लेना अभी काहे तीन हिस्से में अपना नुकसान कर रहे हो।‘‘ रत्ना जी बेटों के मन को भलीभांति समझ चुकी थी
माँ को किसी ने कभी कोई हिस्सा दिया है भला जो वो देते। कुछ सालों बाद रत्ना जी चल बसी। पर पहले से ही वो तीन हिस्से कर गई थी। बेटी भी तो उनकी अपनी ही थी ….पर रज्जो ने सब अपने भाईयों को ही दे दिया, ताकि मायके के दरवाजे हमेशा के लिए बंद ना हो।
भाईयों ने रज्जो की दरियादिली पर खूब आशीर्वाद दिए और घर आती रहना बहना कहकर निमंत्रण भी ।
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रश्मि प्रकाश
# मोहताज
VM