मां का दिल (भाग 1) – लतिका श्रीवास्तव

…..अचानक शहर से खबर मिली कैलाश को पुलिस पकड़ ले गई है …..शहर में जिन लोगो के साथ उसका उठना बैठना था उन्हीं लोगों ने उसे जालसाजी में फंसा दिया था….मां तो रोने ही लग गई मेरा लाड़ो पला बेटा जेल में रहेगा कसाई होते हैं ये पुलिस वाले मार मार के मार ही डालेंगे उसे तू जल्दी जा सरजू कुछ कर उसे छुड़ा ला….

भुगतने दे मां…. उसे बहुत घमंड हो गया था अपने पैसे अपनी नौकरी शहर में रहने का …घर वाले तो गंवार हैं गरीब हैं बोझ हैं अब जाए उन्हीं शहराती लोगों के पास जिनके साथ उठता बैठता है पैसे लुटाता है मैं कहीं नहीं जा रहा तुम भी ऐसे नालायक बेटे के लिए बिल्कुल दुखी मत हो मां …तुम तैयार हो जाओ  आज ही हमें सरकारी अस्पताल चलना है तुम्हारे ऑपरेशन के लिए मैंने सारी बात कर ली है….कहकर तेजी से सरजू बाहर चला गया।

मां पर तो उफन आया लेकिन अंदर से हिल गया था वो…छोटा भाई जिसे अपने कलेजे का टुकड़ा माना वो पुलिस की गिरफ्त में सोच कर ही कलेजा हिल गया था उसका….फिर …ठीक हुआ बढ़िया है सबक मिलना ही चाहिए उसे …समझाया था मैंने संभल के रहना ये शहर के लोग हैं लेकिन मैं तो अनर्गल ज्ञान बांटता हूं ना ..बड़े भाई का कोई महत्व ही नहीं है….जाए भुगते..!!मन ही मन भुनभुना उठा था वो।

इतना अभिमान ठीक नहीं कैलाश …देवर्षि नारदजी और लंकापति रावण का अभिमान भी छिन्न भिन्न हो गया था याद रख लेना फिर हम मानुष मात्र हैं एक बार फिर सोच ले इन स्वार्थी शहर के लोगों के बहकावे में अपनी सगी मां की उपेक्षा मत कर …बड़े भाई सरजू ने छोटे भाई को समझाना चाहा था परंतु नौकरी और धन के नशे में चूर कैलाश के दिल और आंखों पर जैसे अभिमान की पट्टियां बंध गईं थीं…अरे भैया जाओ जाओ अब ये सब उपदेश अपने को सुनाओ बचपन से लेकर अभी तक मैं तुम्हारा सम्मान इसलिए करता रहा कि तुम मेरे बड़े भाई हो ना चाहते हुए भी तुम्हारी कई अनुचित बातें मानता रहा …पर अब नहीं सहूंगा तुमको…देख लिया तुम्हारी हैसियत क्या है जाओ उसी गांव में अपने दड़बे में घुसे रहो और सबको ज्ञान बांटो मुझे नहीं..!गांव से तो यहां के लोग लाख गुना बेहतर है।




भाई अब तू शहर में रहता है तो मां को अपने साथ ले जा उसके मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाना बहुत जरूरी हो गया है शहर के डॉक्टर भी अच्छे है फिर तेरा घर भी है साथ रह भी लेंगी पूरी जिंदगी तो उसी गांव में बीता दी है उसने …..बस इतना सुनते ही छोटे भाई कैलाश ने क्या कुछ अनर्गल नही सुना दिया था बड़े भाई को।

परिवार परिवार का करते रहो बस मैं अब बस अपने लिए अपने मन की जिंदगी जीना चाहता हूं गांव में पड़े पड़े सड़ गया थोड़ा सुकून तो लेने दो यहां की खुली स्वंतत्र हवा में….नौकरी मिलते ही आ गए काम बताने ….बहुत करते हो ना परिवार के लिए तुम …..मां हमेशा तुम्हारा ही तो गुणगान करती रहती हैं मैं तो पैसा उड़ाता रहा ना तुम्हारे हक का पैसा मेरी पढ़ाई में कुर्बान हो गया …बहुत महान हो भैया तुम पर मुझे नही बनना महान….!अब मेरी नौकरी लगते ही मैं वो सारा कर्जा चुका दूं यही सोचने लगे हो ना??

सरजू इस अप्रत्याशित आरोपों और व्यंग्य बाणों से अधमरा सा हो गया मुंह से एक शब्द नहीं निकल सका ….उल्टे पैर घर लौट आया..!

अगला भाग 

मां का दिल (भाग 2) – लतिका श्रीवास्तव

लतिका श्रीवास्तव 

 

#अभिमान

(V M)

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