माँ जी संस्कारों की बात आप तो कीजिये ही मत – (पार्ट – 2 एवं अंतिम भाग)  – मीनाक्षी सिंह 

जैसा कि अभी तक आपने पढ़ा बबिता जी की बीटिया बिन्दू रात के 9 बजे रोते हुए अपने मायके आयी ! उसकी भाभी संगीता ने दरवाजा खोला ! बबिता जी पूछती हैं – बिन्दू री क्या हुआ ,,तू इतनी घबरायी हुई क्यूँ हैं ?? सब ठीक तो हैं ,,दामाद जी नहीं आये क्या ! अब आगे ……..

बिन्दू – माँ अनर्थ हो गया ?? आपकी बेटी  को उसकी सास और पति ने मिलकर धक्का मारकर घर से भगा दिया और कहा-  जा अपने मायके ,,हमें अपनी मनहुस शक्ल मत दिखाना आज के बाद ! 

बबिता जी – इतनी हिम्मत उन दो कौड़ी के लोगों की ! मुझे तो पहले ही पता था वो ऐसे ही हैं ,,पर अंकित के बापू कहाँ मानने को तैयार थे ! कहते बहुत संस्कारी लोग हैं ,,दिख गए उनके संस्कार ! तू रो मत बीटिया ! आने दे अंकित ,,और उसके बापू को ,,फिर देखती हूँ इन लोगों को ! 

संगीता – माँ जी किसी भी फैसले पर पहुँचने से पहले दीदी से पूछ तो लिजिये कि बात क्या हुई ! दीदी बताईये ना ,,क्या हुआ ,,जीजा ज़ी तो काफी सुलझे हुए ,सरल स्वभाव के हैं ! मुझे नहीं लगता कि वो बेवजह इस तरह बत्तमीजी से बात करेंगे आपसे ! 

बबिता जी – हाँ हाँ ,,तुझे तो मेरी बिन्दू ही गलत लगेगी ,,जब से आयी हैं बस हम माँ बेटी के ही पीछे पड़ी रहती हैं ! 

संगीता – माँ जी, मैं दीदी से बात कर रही हूँ ,,आपसे नहीं ! तो बोलिये दीदी क्या बात हुई ! 

बिन्दू – ( फफ़क कर  रोने लगी ) भाभी मेरी कोई गलती नहीं ! आप ही बताईये ,,किटी पार्टी जाने में भला क्या बुराई हैं ! आज कल सभी लेडीज जाती हैं ! मैने बस इतना कहा ,,मैं किटी जा रही हूँ ,,मम्मी का खाना शीला ( नौकरानी ) बना देगी ! कोई ज़रूरत हो बता देना ! आपके जीजा जी बरस पड़े ! कहते ,,दिखता नहीं ,,,माँ की तबियत कितनी खराब है ! तुम्हारा ये रोज रोज का बाहर जाकर पैसा खर्च करना मुझे पसंद नहीं ! अब आप ही बताईये ,,उनकी माँ तो हमेशा से ही बिमार रहती हैं ! तो क्या मैं अपनी ज़िन्दगी जीना छोड़ दूँ ! बोलते तुम जबसे आयी हो ,घर में नौकरानी का खर्चा ,,तुम्हारे अनाप शनाप खर्चे इतने हो गए हैं ! मुझे छोटी की शादी भी करनी हैं ! इन सब चीजों के लिए पैसा नहीं हैं मेरे पास ! मुझे भी गुस्सा आ गया ! मैने भी कह दिया भाभी ,,कंगालों के घर शादी हुई हैं मेरी ,मेरे तो कर्म फूट गए ! एक बिमार औरत ,एक कंजूस पति  ,कुंवारी ननद के बीच पीस कर रह  गयी हूँ मैं ! मैं ऐसे ही रहूँगी ,नौकरी कर लूँगी पर अपने शौक नहीं छोडूँगी ! बस इसी बात पर इतना सुनाया भाभी ! नौकरी करनी हैं तो अपने मायके जाके कर ! यहाँ माँ की सेवा करनी होगी ! मैं आ गयी इसलिये ! अब मैं उस घर में कभी नहीं जाऊंगी भाभी ! कोई वहाँ मुझसे प्यार नहीं करता ! 




संगीता – ( बिन्दू के आंसू पोंछते हुए ) – ऐसा नहीं हैं दीदी की कोई  आपसे प्यार नहीं करता ! गलती आपकी भी हैं ! 

बबिता जी – ये क्या  बोल रही हैं तू ,एक तो वो इतनी परेशान हैं तू उसी को गलत बोल रही है ! यहीं संस्कार दिये हैं तेरे माँ बाप ने तुझे  कि अपनी ननद को उल्टा जवाब दे ! 

संगीता – संस्कारों की बात आप तो कीजिये ही मत माँ जी ! ये आपके ही संस्कार हैं जिस कारण दीदी अपना स्वर्ग जैसा ससुराल छोड़कर लड़ झगड़ कर यहाँ आयी हैं ! इन्हे मैने कभी अपनी ननद नहीं बेटी माना हैं ,जब इस घर में आयी थी दस साल की थी बिन्दू दीदी ! मैने इनसे कहा  कितनी छोटी हैं मुझसे ,,इन्हे मैं दीदी नहीं बिन्दू बोलूँगी ! ये मेरी बेटी जैसी हैं ! कहते माँ को बुरा लगेगा ,,हमारे यहाँ ननद कितनी भी छोटी हो ,,दीदी ही कहा जाता हैं ! मैं मन से इन्हे बेटी मानती थी ! 

दीदी क्या गलत कहाँ जीजा जी ने ! पता हैं आपको जब मैं ब्याह के आयी यहाँ तब आपके भईया ने साफ कह दिया मैं कोई खर्चा नहीं दूँगा तुम्हे फिजूल के खर्च के लिए ! मेरे सामने दो बड़ी ज़िम्मेदारियां हैं मेरे छोटे भाई बहन ! पिता जी बिमार रहते हैं ! आमदनी का जरिया सिर्फ मेरी छोटी सी नौकरी हैं ! आप लोगों की देखभाल के कारण ही हम लोगों ने कोई बच्चा नहीं सोचा ! पर रोज रोज के माँ जी के ताने कि  लगता हैं ,,बाँझ ही रहेगी ये ,,ज़रूर कोई कमी हैं इसमें तभी बच्चें नहीं हो रहे ! तब  मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुँची ! मैने कह दिया आपके भईया से समाज मुझे जीने नहीं दे रहा ! अपना फैसला बदल दो ! एक बच्चा कर लेते हैं ! आपके भाई बहन की कोई अनदेखी नहीं होगी ! तब जाकर डब्बू मेरी गोद  में आया ! दिनभर माँ जी के ताने घर के कामों में लगी रहती ! शायद ही कभी मैने बाजार का रुख किया हो ! मन मानकर रह जाती ! अगर मैं भी आपकी तरह घर छोड़कर चली जाती तो क्या जो स्थिति इस घर की हैं वो होती ! आप अच्छे से जानती होगी दीदी क्या मैने कभी आपको कुछ गलत समझाया ,प्यार में कोई कमी रखी ! आप बहुत किस्मत वाली हैं ,,जो जीजा जी के रुप में आपको बहुत  ही समझदार ,आपको बेइंतहा प्यार करने वाले पति मिले हैं ! आप यहाँ झगड़ा करके तो आ गयी पर वहाँ जीजा जी का क्या हाल हो रहा हैं क्या आप जानती हैं ! आपके घर से निकलते ही दौड़ते हुए आपके पीछे आये ! पर तब तक आप गाड़ी से निकल चुकी थी ! बता रहे थे संगीता जी ,बिन्दू शायद आपके पास आ रही हैं ,,बहुत गुस्से में हैं ! उस से कुछ मत पूछियेगा ! वैसे ही बहुत परेशान हैं ! गलती मेरी ही हैं अपनी प्यारी सी बीवी की छोटी छोटी ख्वाहिशें भी पूरी नहीं कर पाता ! बहुत असफल इंसान हूँ मैं ! बस माँ को खाना खिलाकर दवाई देकर आता हूँ बिन्दू को लेने ! 




बिन्दू – क्या भाभी ,,क्या आप सच कह रही हैं ! उन्होने आपको पहले ही बता दिया था ! फिर आप ने बताने में इतनी देर क्यूँ की !

संगीता – मैं बस आपको समझाना चाहती थी की रिश्ते खत्म करना बहुत आसान हैं पर उन्हे संजोकर रखना बहुत मुश्किल ! तो क्या फैसला किया हैं आपने ???? कमरे में सामान रखवा दूँ आपका ! आराम से यहीं रहिये ! किटी कीजिये ! 

बिन्दू – क्यूँ शर्मिन्दा कर रही हैं भाभी ! मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया हैं ! मैं भी कितनी नासमझ हूँ ,अपने पति को ही नहीं समझ पायी ! आप नहीं होती तो शायद आज मैं  अपने घमंड के आगे अपना सबसे अनमोल रिश्ता खो देती ! थैंक यू सो मच भाभी ! आप दुनिया की बेस्ट भाभी हो ! 

संगीता – अरे  बस बस दीदी ! आपकी इसी मासूमियत भरी बातों से तो जीजा जी आपकी हर गलती नजरंदाज कर देते हैं ! 

बिन्दू – अब कोई गलती नहीं करूँगी ! आपकी तरह अपनी सारी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाऊँगी ! 

संगीता – ये हुई ना बात ,,वो देखिये आपको कैसे निहार रहे हैं जीजा जी गेट पर खड़े ! 

बिन्दू झेंप गयी ! तब तक अनिल और उसके पिता जी भी आ गए ! 

पिता जी – अरे बबिता ये क्या हो रहा हैँ ,,दामाद जी आये और तुरंत चल दिये !

बबिता – कुछ नहीं बस आज कुछ रिश्ते पक्के हो चुके हैँ ! किसी के संस्कारों ने आज एक घर बर्बाद होने से बचा लिया !बबिता जी आज संगीता को पूर्ण रुप से अपना चुकी थी ! दोनों सास बहू एक दूसरे से लिपटकर सालों के अपने रिश्ते को प्रेम रूपी माला में पिरो चुकी थी ! 

बबिता जी के मुंह से बस इतना निकला – हे मुरली मनोहर ,मेरी संगीता जैसी बहू सबको देना ! संगीता भी अपनी सास को निहारती रह गयी !! 

#संस्कार 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह 

आगरा

 

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