सुहासिनी की ज़िंदगी में जैसे विधाता ने उसके लिए ठोकरें और अपमान ही लिखा था । ग़रीब पिता विवाह में अपेक्षित दहेज़ नहीं दे पाए थे इसलिए ससुराल में हमेशा सास-ससुर से उपेक्षा और अपमान ही मिला लेकिन पति का व्यवहार उसके प्रति अच्छा था क्योंकि राजीव ने स्वयँ उससे अपनी मर्जी से विवाह किया था । यहाँ तक कि इसके लिए उन्होंने अपने माता-पिता की नाराज़गी की भी परवाह नहीं कि थी । सुहासिनी राजीव के गुरु जी की बेटी थी जिन्होंने उन्हें हाइस्कूल और इंटर में गणित पढ़ाया था ।
सुहासिनी के पिता मास्टर भागवत स्वरूप अलीगढ़ शहर के गणित के जाने माने शिक्षक थे । वे अपने आदर्शों और मूल्यों के पक्के थे । स्कूल में कभी क्लास मिस नहीं करते और ट्यूशन कभी पढ़ाते नहीं थे । उनके पढ़ाए छात्र बिना किसी कोचिंग के आईआईटी जैसी परीक्षा निकाल लेते थे । आदर्शों और मूल्यों पर चलने का परिणाम यह हुआ था कि आर्थिक स्थिति हमेशा जर्जर ही रही । सुहासिनी की माँ की मृत्यु के बाद उन्होंने दूसरी शादी भी नहीं की । सुहासिनी और उसके छोटे भाई की स्वयँ ही अकेले परिवरिश की ।
कभी अपने पेशे से बेईमानी नहीं की जिसका परिणाम यह रहा कि गणित के धुरंधर विद्वान होने के बावज़ूद कभी गुज़र-बसर से ज़्यादा नहीं कमा पाए । यहाँ तक कि बेटी की शादी में देने के लिए इतना धन भी नहीं जोड़ पाए कि अच्छी नोकरी वाले लड़के से और अच्छे घर-बार में उसका ब्याह कर सकें । बिन माँ की बच्ची सुहासिनी में अपने पिता जैसे ही संस्कार और गुण थे । राजीव अपनी शिक्षा और आईआईटी में सेलेक्शन का पूरा-पूरा श्रेय भागवत स्वरूप सर को ही देते थे जिन्होंने उन्हें हमेशा बिना किसी लोभ के गणित के कठिन से कठिन फार्मूलों को हल करना सिखाया ।
इंजीनियरिंग में एम टेक और फिर पीएचडी करके राजीव जब आईआईटी में प्रोफ़ेसर हो गए थे तो अपनी इस सफ़लता के लिए वे अपने गुरु के शुक्रगुज़ार थे । सुहासिनी को वह छुटपन से जानते और पसंद करते थे । इसी कारण उन्होंने गुरु जी से सुहासिनी का हाथ माँग कर उससे शादी कर ली थी ।राजीव एक नेकदिल इंसान थे किंतु अपने माता-पिता के लालची स्वभाव को तो बदल नहीं सकते थे…..!
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माँ और पापा की हमेशा से यही सोच रही कि इकलौते बेटे की पढ़ाई-लिखाई में जो भी खर्चा आया है उसे उसकी शादी में दहेज़ से वसूल करेंगे । किंतु राजीव ने जब अपने गुरु जी की बेटी सुहासिनी से बिना किसी दहेज़ और रुपये-पैसे के विवाह कर लिया तो उनकी आशाओं पर तो जैसे तुसारपात ही हो गया । ‘कैसे-कैसे सपने सजाए थे अपने आईआईटियन-प्रोफ़ेसर बेटे को लेकर और सब व्यर्थ हो गए ।’
“कम से कम बीस लाख रुपया नकद, बढ़िया कार और हर सामान लेंगे राजीव की शादी में । आखिर आईआईटी की पढ़ाई कराई है हमने । यूँ ही मुफ़्त में थोड़े ही दे देंगे अपना लड़का ।” राजीव की माँ यशोदा देवी अक्सर कहतीं और पिता भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते । किंतु राजीव ने अपने निर्धन गुरु की सुंदर-सुशील बेटी सुहासिनी से बिना किसी दान-दहेज़ के कोर्ट मैरिज कर ली तो यशोदा देवी के सारे सपने चूर-चूर हो गए ।
उनके सारे गुस्से की शिकार बेचारी सुहासिनी होती जिसने उनके अनुसार उनके बेटे के पद और प्रतिष्ठा देखकर अपने जाल में फँसा लिया था । घर में कामवाली होते हुए भी हर छोटा-बड़ा काम सुहासिनी से कराया जाता फ़िर उसके हर काम में कमी निकाली जाती और ताने कसे जाते । किंतु सुहासिनी कभी ज़वाब न देती । ‘एक तो अपने पिता के संस्कार और दूसरे पति का सम्मान….!’ सुहासिनी सास-ससुर के व्यवहार की कभी राजीव से शिकायत भी न करती किंतु राजीव की पारखी नज़रों से कुछ न छुपा रहता ।
“तुम इस घर में दिन-रात खटती रहती हो और ऊपर से माँ की जली-कटी भी सुनती हो । इस सबसे निकलने का कोई उपाय क्यों नहीं करतीं ?” राजीव ने उससे कहा ।
“क्या करूँ ? आप ही बताइए । मुझे तो कुछ समझ नहीं आता है । और मुझसे शादी करके आपने माँजी के सपनों को भी तो तोड़ दिया । इसी कारण वे मुझसे नाराज़ रहती हैं ।” सुहासिनी ने कहा ।
“तुमने बी.ए.कर रखा है । आगे पढ़ाई क्यों नहीं करती हो । कुछ बन जाओगी तो तुम्हारा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और घर के इस दमघोंटू माहौल से बाहर भी निकल सकोगी ।” राजीव ने उसे सलाह दी ।
“माँजी मुझे ऐसा करने देंगी ?” माँजी का ख़ौफ़ उसके दिलोदिमाग़ पर छाया हुआ था ।
“माँजी अभी भी कौन सी तुम्हें बड़ा दुलार जता रहीं हैं जो इतनी चिंता कर रही हो ।” राजीव ने कहा ।
सुहासिनी शुरू से ही पढ़ाई में होशियार थी किंतु ज़ल्दी शादी हो जाने के कारण पढ़ाई छूट गई और किसी ने आगे पढ़ाई को प्रोत्साहित भी नहीं किया । घर की बहू पढ़ाई करने लगेगी तो घर के काम कौन करेगा !
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सुबह उठ कर घर की सफ़ाई करना,नाश्ता-खाना बनाना,कपड़े धोना,बर्तन माँजना, शाम को समय पर सबको चाय हाज़िर करना और फिर रात का खाना बनाना…….! फ़ुल टाइम वर्किंग थी सुहासिनी जिसमें कोई छुट्टी नहीं थी । ऊपर से हर काम में सास की मीन-मेख फिर भी
पति के प्रोत्साहन और प्रेरणा से सुहासिनी का बी.एड.का एंट्रेंस टेस्ट क्लीयर हो गया और वह कॉलेज जाने लगी । राजीव ने किसी की न चलने दी । न माँ की और न पिता की….! किंतु उनका व्यवहार और भी कठोर होता गया सुहासिनी के प्रति । उसने भी कमर कस ली । ‘सारा काम निपटा कर कॉलेज जाना । लौट कर आ कर सब काम करना । अपनी पढ़ाई करना और सास की अपमानजनक बातों को अनदेखा करना ।’
खूब अच्छे नंबरों से बी.एड.पास कर लिया और फ़िर एम.एड और फिर पीएचडी ! उच्च शिक्षित, सहृदय पति के प्रोत्साहन और अपनी इच्छाशक्ति से एक बार आगे बढ़ी तो फ़िर पीछे मुड़कर नहीं देखा सुहासिनी ने । शिक्षा पूरी करने के बाद बी.एड.कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर चयन हुआ तो लगा जैसे जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति हो गई ।
नोकरी जॉईन करने के बाद पहली तनख़्वाह उसने अपनी सास के हाथ में ही सौंपी और उनके पाँव छुए । आख़िर उनके अपमानजनक व्यवहार ने ही तो सुहासिनी को और ज़्यादा मेहनत करने के लिए प्रेरित किया था ताकि जैसा कि राजीव ने कहा था कि वह उस माहौल से निकल सके और आत्मनिर्भर बन कर आत्मसम्मान के साथ जी सके । अपमान भी उसके लिए तो वरदान ही बन गया था ।
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लेखिका-गीता यादवेन्दु
पूर्णतः मौलिक/अप्रकाशित कहानी
#अपमान बना वरदान