माँ जाये –  दीप्ति सिंह

 

  सारा  कुनबा  एक  ही  शहर  में  बसा  होने  के कारण  बुआ जी  दोनों  ताऊओं  को  राखी  बाँध कर  आ  गयी  थीं।मैंने  भी  अपने  भाई  विजय  व भाभी  को  राखी  बाँधी  और  बुआ  जी  ने  पिताजी -माँ  को।

 कुछ  देर  बाद  बड़े  ताऊजी  के  बेटे  श्याम भईया अपनी  बहन  मीता दी  और  रमा भाभी  ,दोनों बच्चों  के  साथ  आये। मीता दी  ने  विजय भाई  के राखी  बाँधी,  श्याम  भईया  और  विजय भाई  गले मिल  कर  एक  दूसरे  की  कुशलक्षेम  ले  रहे  थे।

  भाभी  और  मैं  रसोई  से  सिवई ,  आलू  की कचौड़ियाँ , चाय  ले  आये ।हम  सबने  हँसते  , बतियाते  हुए  मिल  कर  नाश्ते  का लुत्फ  उठाया।

 सबको  उपहारों  सहित  विदा  करने  के  बाद  माँ और  भाभी  दोपहर  के  भोजन  बनाने  हेतु  रसोई में, भाई  और  पापा  भी  दूसरे  कमरे  में  आराम करने  चले  गये । अब  कमरे  में  सिर्फ  मैं  और बुआ जी  थे।

 “तूने  श्याम  के  राखी  क्यों  नही  बाँधी ” ?  बुआ जी  ने  प्रश्न  किया

“बुआजी!  जब  उनकी  कलाई  पर  मीता दी  की राखी  सजी  है  तो  फिर  मेरी  राखी  की  क्या जरूरत  है ? मैं बोली

” पर  मीता  तो  विजय  को  राखी  बाँधती  है”  बुआ जी  बोली।

 ” सबके  अपने -अपने  विचार  है।” मैंने  बात समेटनी  चाही।

 “गलत  बात  है.. तुझे  भी  राखी  बाँधनी  चाहिए।” बुआ जी  ने  कहा। 

 ”   अच्छा  बुआ  जी ! दो  साल  से  आप  श्रीपाल चाचा  (पिता के चचेरे भाई ) के  राखी  क्यों  नही बाँध  रही ?”

 “क्यो  बाँधूं ? तुझे  पता  नही  है   ,जरा  सी जमीन के पीछे मेरे  बड़े  भाई  से  लड़  पड़ा।” बुआ जी रोष भरे स्वर में बोली।



  ” हम  सबने  तो  ताऊजी  की  बात  पर  विश्वास किया  है ..गलती  किसकी  थी? यह  किसी  को नही  पता।”  

 ” मुझे  अपने  माँ जाये  भाई  पर  पूरा  भरोसा  है ” बुआ जी  अति  विश्वास  के  साथ  बोली।

  “बुआ जी ! अगर  भविष्य  में  श्याम भईया  और विजय भाई  के  बीच  कोई  अनबन  होती  है  तो  मैं भी  आपकी  तरह  अपने  भाई  का  साथ  दूँगी  न कि  श्याम भईया  का . ” 

बुआ जी  मेरी  बात  सुन  कर  सकपका  गयी  “ऐसे  मत  बोल.. भगवान  इनका  प्यार  बनाये  रखे .”

  “बुआ जी !  आप  ने  भी  सोचा  था  कि  कभी श्रीपाल  चाचा  के  राखी  नही  बांध  पाओगी .”

” न  ऐसा  तो  मैने  कभी  न  सोचा  था ” बुआ  जी  दुखी  हो  बोलीं।

 ” अच्छा!  एक  बात  बताओ  आप  कितने  भाई- बहन  हो?

” क्या  पहेली  सी  बुझा  रही  है  जैसे  तुझे  पता  ही न  है  चार  भाई  और  दो  बहन  ”  

 एक स्वर्गवासी  ताऊ जी  व  बुआ जी  को  गिनती  में शामिल  करके  बुआ जी  बोली

 बुआ जी  गिनती  करने  में  अपने  माँ  जाये  एक मृत  भाई  और  बहन  को  नही  भूलीं  लेकिन जितने  भी  रिश्ते  के  भाई  थे  उन्हें  भूल  गयीं।

तब  ही  माँ  आकर  बुआजी  से  बातें  करने लगी।

   मैं  सोच  रही  थी  राखी  के  रेशमी  धागे  प्यार , विश्वास  तथा  सम्मान  चाहते  है. ये  धागे  बहुत भारी  होते  जिनका  बोझ  रिश्ते  के  भाई , बहन नही  उठा  सकते।

#रक्षा

 

 दीप्ति सिंह (स्वरचित एवं मौलिक)

 

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