मां बेटी का अटूट रिश्ता – मंजू ओमर : Moral stories in hindi

अटूट बंधन तो की हो सकते हैं जैसे पति पत्नी का,भाई बहन का,बहन बहन का भाई भाई का । लेकिन सबसे ज्यादा अटूट बंधन तो एक बच्चे का अपनी मां से होता है । जिसमें बेटा भी मां से करता होगा अटूट प्यार लेकिन जो एक अटूट बंधन बेटी का मां से होता है वैसा बंधन क्या कोई दूसरा हो सकता है क्या।

              मां जिसको समझना सबसे आसान भी है और सबसे मुश्किल भी दिल से दिल के तार जुड़े होते हैं बेटी के मां से । कैसे एक मां बेटी के मन का हाल बिना कहे ही सब जान लेती है ,ये सब बातें एक बेटी तब ही समझ पाती है जब वो खुद मां बन जाती है। मां का दर्द , मां की पीड़ा, मां की चिंता एक बेटी से बढ़कर कौन समझ सकता है। आखिर एक दिन बेटी भी तो उसी जगह पर पहुंचती है जहां पर पहले उसकी मां थी ।

                 मेरी मां, कितनी कमी महसूस करती हूं आज उसकी ,काश ॽ मां को पहले समझ पाती ।याद आ रही है शिद्दत से मां मुझे। मेरे पिताजी जो सिर्फ शारीरिक भूख मिटाने ही मां के नजदीक आते थे उसके बाद पिता जी को मां की कोई जरूरत नहीं रहती थी। इसी तरह हम पांच बहनों और दो भाइयों का जन्म हुआ।

समय बीतता रहा और पिता जी का मां के प्रति लापरवाह सा रवैया और कभी किसी बात पर या जरूरत पर मां पर कभी ध्यान न देना । पैसे होते हुए भी मां का हाथ हमेशा तंग ही रहता था। मां पैसे के लिए हमेशा परेशान रहती थी । कभी मां बीमार भी है तो कभी ध्यान न देना ।

इन्हीं अनदेखी और उपेक्षा के बीच मां अनियत माहवारी के चलते अंदरुनी बीमारी से ग्रस्त हो गई। कोई ढंग का इलाज न होने के कारण बीमारी बढ़ती गई। फिर किसी सहेली की मदद से इधर उधर से कुछ पैसे इकट्ठे करके आपरेशन करवाया । लेकिन घर आने पर आराम की जरूरत थी लेकिन सात सात बच्चों की जिम्मेदारी ने आराम न करने दिया।बस इसी तरह बीमारी को झेलते हुए दो भाइयों और तीन बहनों की शादी हो गई।

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                     बेटियां जब ससुराल से आती थी तो मां पिताजी से कुछ पैसे की मांग करती थी।जाते समय बेटी दामाद के हाथ में कुछ देना है । पिता जी कहते तुम्हारी बेटियां क्यों आती है बार-बार खर्चा बढ़ाने ,अब बताओ मां की बेटियां हैं पिता जी की नहीं।और मां मन मसोस कर रह जाती थी कहती बेटियों से तुम लोगों को कुछ नहीं दे पा रही हूं बिटिया और आंसुओं से भरा चेहरा आंचल में छुपा लेती थी ।मैं सोचती थी कितनी बेबस होती है न मांए।

                    कुछ समय बीतने के बाद हम तीनों बहनें भी मां बन गई ।दो बहनों की शादी अभी नहीं हुई थी।जब भी मायके हम बहनें जाती मां को अकेले बैठकर आंसू बहाते देखती तो पूछती क्या हुआ मां , मां बोलती कुछ नहीं बेटा।भाई लोग भी कुछ ध्यान नहीं देते थे वो सोचते थे कि पिताजी तो है

अभी तो हम लोगों को क्या ध्यान देना वो अपनी पत्नी और बच्चों में व्यस्त रहते । मां की तकलीफ़ का किसी को कोई आभास ही नहीं रहता था क्योंकि मां किसी को कुछ बताती नहीं थी । बड़ी धीरे गंभीर थी। कभी ज्यादा पूछो तो कहती जिसके साथ ब्याह कर आई जब वही ख्याल नहीं रखता , जिसके संग ईश्वर ने अटूट बंधन बांध कर भेजा है तो तुम बच्चों से क्या कहना।

                     बेटियों के ससुराल में कोई काम पड़ता तो मां अपने गहने तुड़वा कर कुछ सोने चांदी का सामान भेजती कहती इज्जत रखने को कुछ तो करना ही पड़ता है न । कुछ समय बाद जब हम तीनों मायके आते तो हम लोगों से जो बन पड़ता उनकी जरूरत का सामान ले आते और जाते जाते मां को कुछ पैसे दे जाते।

                इसी तरह अपमान और तिरस्कार के बीच मां ने माता रानी के चरणों में अपनी प्रीत लगा ली ।

कुछ न होते हुए भी उन्होंने बहुत कुछ पा लिया था । सिर्फ पांचवीं तक पढ़ी थी मां लेकिन हारमोनियम बजा कर ने ने भजनों को निकालना और उसको लयबद्ध तरीके से गाना उनका शौक बन गया था। धीरे-धीरे उनकी एक किर्तन मंडली बन गई और लोग उनको घर पर सत्संग करने को बुलाने लगे ।और लोग उनको इसका पैसा देने लगे । लेकिन संसार के मोह-माया से वो विरक्त हो चुकी थी।सो बस जरूरत भर का पैसा लेती थी और कोई जबरदस्ती करता तो ले लेती और उस पैसे को किसी जरूरतमंद पर खर्च कर देती थी ।

                एक अपार सुख और शांति उनके चेहरे पर छा गई थी।आत्म संतोष से भर गई थी वो ।अब न कोई शिक़ायत थी न शिकवा।उनको माता रानी की भक्ति का धन मिल गया थाऔर कुछ नहीं चाहिए था। सीमित संसाधनों से बस अपना जीवन व्यतीत करती थी।

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            एक अटूट बंधन में मां को उनकी मां ने बांधा था।और एक अटूट बंधन मां ने माता रानी से बांध लिया था और उसी अटूट बंधन का हिस्सा हम बेटियां हैं । किसी की तकलीफ़ में मां का हृदय करुणा से भर उठता था ।उसका कुछ अंश हम बहनों के अंदर भी है क्योंकि अपनी मां से बेटियों का अटूट बंधन जो होता है।

आज मां इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी पीड़ा उनकी तकलीफ़ आज भी महसूस कर सकती हूं । इसी लिए तो कहती हूं बच्चों का मां से अटूट बंधन होता है क्योंकि मां की नाल से बंधा होता है बच्चा। लेकिन बेटियों में ये रिश्ता ज्यादा मजबूती से बंधा होता है ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

11अपैल

दोस्तों आज इस विषय पर सभी ने बहुत तरह-तरह की कहानियां लिखी होगी , लेकिन मुझे तो मां के अटूट बंधन से बड़ा कोई बंधन ही नहीं नजर आया तो मैंने ये लिख दिया ।आप बताइए गा कैसी लगी आपको मेरी कहानी ।

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