सुनैना जी – ” सुमन.., तू कब आ रही है यहाँ बेटा..?? ??,,
सुमन – ” माँ अभी कुछ दिनों तक तो आ नहीं पाऊंगी। राघव पर काम का बहुत लोड है इस वक्त ….. ।,,
” ओ हो सुमन ……. सावन आने वाला है..तेरी भाभी के लिए और अपने लिए कुछ साड़ियां भी लानी थीं । और मैंने सोचा था कि तूं आएगी तो इस बार घर के लिए पर्दे और चादरें भी ले आते। सब पुराने दिखने लगे हैं….।तुझे तो पता ही है कि मुझसे अकेले से शापिंग नहीं होती । ,, लम्बी सांस भरते हुए सुनैना जी बोलीं ।
” अरे माँ…. क्या आप भी… अब तो घर में भाभी आ गई है… उनके साथ क्यों नहीं चली जाती शापिंग पर । मैं तो इस महीने आ नहीं पाऊंगी ।,, निधि ने हंसते हुए कहा।
” रश्मि के साथ !!! बेटा उसे अभी कहाँ मेरी पसंद- नापसंद का पता है… शुरू से तूं ही तो सबकुछ लाती है। शादी की सारी खरीदारी भी तो तूने ही की थी । ,,
” माँ…. मानती हूँ पहले मैं ही लाती थी लेकिन अब उस घर को भाभी को अपनी पसंद से सजाने दो जिससे उसे भी वहाँ अपनेपन का एहसास हो और वो खुश रहे। ….और मां जब भाभी के लिए साड़ियां लेनी हैं तो उसकी पसंद की ही होनी चाहिए ना …. । माँ मैं नहीं चाहती कि भाभी को भी ससुराल में इतनी घुटन हो कि वो भी खुद की अलग दुनिया बसाने के बारे सोचने लगे ।
माँ , हर बेटी की तरह मैं भी यही चाहती हूँ कि मेरी भाभी मेरे मम्मी- पापा की खूब सेवा करे । और ये तभी होगा जब उसे उस घर में कर्तव्य के साथ साथ उसके हिस्से के अधिकार भी दिए जाएंगे । ,,
” तूं क्या बोल रही है सुमन… मैं कुछ समझी नहीं???? उसे मैं थोड़े ही कोई तकलीफ देती हूँ। ,,
” माँ….. मैं जानती हूँ आप भाभी को कोई तकलीफ नहीं देतीं लेकिन घर के मुद्दों पर उनकी राय भी तो नहीं लेतीं….. क्या आपने कभी भाभी से पूछा कि तुम्हें कौन सा रंग पसंद है या फिर खाने में आज तुम अपनी पसंद की सब्जी बना लो…..
माँ.,.. वो मेरे ससुराल में अब बंटवारा हो रहा है। मैं और राघव ऊपर के हिस्से में सिफ्ट हो रहे हैं । लेकिन आपके दिए संस्कार मेरे पास हैं माँ ..इसलिए मैं हमेशा अपने सास- ससुर का ध्यान भी रखूंगी… बस अब मेरा दम घुटने लगा है सबके साथ। शादी के इन दस सालों के बाद भी मैं आज तक अपनी पसंद के कपड़े भी नहीं पहन पाती हूँ…. । अब यही व्यवहार मेरे बच्चों के साथ भी हो रहा है जो मुझसे बर्दाश्त नहीं होता ।
मेरा भी मन करता है मैं घर को अपनी पसंद के अनुसार सजाऊँ.. लेकिन यहाँ तो खुद के गहने – कपड़े भी मुझे सास और ननदों की पसंद के पहनने पड़ते हैं । .. मैंने बहुत एडजस्ट करने की कोशिश की माँ लेकिन अब एक बात समझ में आ गई है कि जिंदगी को भरपूर जी लेने में ही समझदारी है…… क्योंकि ये जिंदगी लगती तो लम्बी है लेकिन दिन ब दिन छोटी होती जाती है…. । आज के जमाने में जब कोई आपकी भावनाओं को ना समझे तो अपना वक्त जाया नहीं करना चाहिए…। ,,
माँ अगर मैं भाभी से कहूंगी की मेरे मम्मी- पापा का ध्यान रखना तो शायद भाभी यही सोंचेगी कि खुद तो सास- ससुर से अलग हो गई और मुझे नसीहत दे रही है । इसलिए माँ तुम्हें खुद ही अपने मान- सम्मान को बनाए रखना होगा….।,,
” बेटा , शायद तूं सही कह रही है… मैंने भी अपने समय में ये सब सहा है लेकिन अब जब इस घर की बागडोर मेरे हाथों में है तो शायद मैं डरती हूँ कि कोई मुझसे मेरा ये अधिकार छीन ना ले……। लेकिन यही समाज का नियम है कि आने वाली पीढ़ी को हम अपनी विरासत सौंप देते हैं ।…. ठीक है बेटा मैं इस चीज का ध्यान रखूंगी… ।
हाँ अब ये भी बता दे कि तेरे लिए कौन से रंग की साड़ी लानी है?? कुछ भी हो लेकिन तेरा अधिकार भी मैं नहीं छीन सकती … ।,, मुस्कुराते हुए सुनैना जी बोलीं ।
” माँ वो तो जब मैं अगले महीने आऊंगी तो खुद ही ले लूंगी । मैं भी कहाँ अपना अधिकार छोड़ने वाली हूँ ।,,
दोनों माँ बेटी खिलखिलाकर हंस पड़ीं…..
सुनैना जी की समझ में आ गया था कि उनकी बेटी सचमुच पराई हो गई है और एक पराई बेटी को उन्हें भी अपना बनाना है ।
सविता गोयल