लिव इन – भगवती सक्सेना गौड़

रामेश्वर जी रिटायरमेंट के बाद अपने तिमंजले घर मे सबसे नीचे पत्नी के साथ ही रहते थे। दोनो बेटे बड़े शहरों में व्यवस्थित हो चुके थे। 

एक दिन सुबह उठकर उनकी पत्नी सारंगी गार्डन में घूम रही थी, तभी गेट खोलकर कोई लड़के लड़की ने अंदर प्रवेश किया।

“सुनिये, किसी ने बताया, आपके घर मे कमरा खाली है, किराए पर मिलेगा क्या।”

सारंगी ने ध्यान से मुआयना किया, सिर्फ छोटी सी एक अटैची के साथ ये युवा जोड़ा कहाँ से अचानक आ गया।

“आपलोग कहाँ से आये हैं, कौन कौन है घर पर।”

लड़की के मुँह से अचानक निकल गया, हम दोनों पास के शहर से आये हैं, जल्द ही शादी करने वाले हैं।

सारंगी को सारा माजरा समझ मे आ गया।

“तुमने अपने माता पिता को बताया या नही। जिन्होंने तुमको इतना बड़ा किया, शिक्षा और नौकरी के लायक बनाया, उनका तिरस्कार कर एक अनजान लड़के की आंखों में झांक कर मर्यादा को ताक पर रखकर आ गई।”

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“विदेशी कल्चर को अपनाना चाहते हो, , हम लिव इन वालो को घर नही देते।”

तभी अंदर से रामेश्वर जी बाहर आये, क्या बात है, कौन है।

“अरे कुछ नही, ये हमारे देश और अपने घर की मर्यादा को बेचना चाहते हैं, हमे नही खरीदना।”

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

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