आज जब सोचतीं हूं तो लगता है कि क्या ही पागलपन करती थी मैं?
पर उस वक्त तो मैं जुनूनी थी ।
एक बात है घर का लाड़ला बच्चा ही ज़िद्दी होता है यह हकीकत है। क्योंकि उसकी जिद गाहे-बगाहे पूरी जो होती रहती हैं।
हालांकि आजकल तो बच्चा एक ही होता है तो लाड़ला भी होता है और जिद्दी भी ,पर मैं अपने जमाने की बात कह रही थी।
मैं दो बड़े भाइयों की छोटी बहिन थी उस पर मम्मी की भी लाड़ली।
भाई बड़े हों तो बस बहिनें राजकुमारियों तरह पलेंगी ही यह तय है ।
मुझे हर वो काम करना होता था जो भाई करते थे ।
चाहे मैगजीन पढ़नी हो, फोटोग्राफी करनी हो म्यूजिक सुनना हो , कहीं घूमने जाना हो या कि ड्राइविंग ही करनी हो , मैं उनसे बहुत छोटी हूं यह मैंने कभी नहीं माना।
हर वो काम जो भैया करते हैं मुझे भी करना है की रट लगाए रखती थी जब तक कि मुझे उस काम को करने नहीं दिया जाता था।
मुझे रोका इसलिए जाता था कि मैं भाइयों से बहुत छोटी थी पर मुझे उम्र के इस अंतर से कोई लेना-देना न होता।
अच्छा बड़े भैया तो मुझे हर वो काम कराते जो मैं कहती पर छोटे भैया से रहता था छत्तीस का आंकड़ा,तो वो हर काम को कराने से पहले बहुत खिझाते थे।
अब बड़े भैया तो जॉब के लिए चले गये थे गुजरात तो, अब सारा दारोमदार था छोटे भैया पर जो कोई काम मुझे रुलाए बिना न करते।
जब मुझे ड्राइविंग का जुनून हुआ तो यह तो छोटे भैया पर निर्भर करता था कि वो मुझे सिखाएं या नहीं भी सिखाएं।
पर वो मुझे बाइक या स्कूटर भी इतनी आसानी से कैसे सिखा देते?
जब मैं 9 स्टैंडर्ड में ही थी तो मुझे जिद हुई ड्राइविंग सीखने की,पर भैया मुझे सिखाने को तैयार नहीं।
अब हम गुस्से में कुछ खास तो कर न पाते पर घर में खड़ी हीरो होंडा बाइक को स्टैंड पर खड़ी रखकर ही स्टार्ट करते और गियर डालने की प्रैक्टिस करते। बीच-बीच में भैया से मनुहार ,पर वही जबाब मिलता अपने आप ले जा, मुझे हाथ पैर नहीं तुड़वाने ,हम मन मसोसकर रह जाते।
पर जैसे आजकल छोटे बच्चे गाड़ी से खेलते हैं हम भी वैसे ही घूम फिरकर बाइक के पास ही मंडराते रहते जितनी देर वह घर में रहती है।
इस का एक फायदा यह हुआ कि हम बाइक को एक ही किक में स्टार्ट कर लेते और यह हमारे लिए बड़ी उपलब्धि थी ।
बस इसी में खुश हो जाते और फिर भैया को धमकाते भी कि देखो एक बार में स्टार्ट कर लेते हैं,चला भी लेंगे एक दिन,देख लेना।
वो कहते हां देख लेंगे। जब चलाए तब बोलना अभी से क्यों सिर खा रही है?
हमारी अब तक की उपलब्धि बस यही थी कि हम घर में खड़ी बाइक और स्कूटर को एक किक में स्टार्ट कर लेते थे और गियर डालना सीख चुके थे । इसके आगे वही ढाक के तीन पात । हम गाड़ी को स्टैंड से उतारने की हिम्मत न कर पाते ऊपर से भैया डराते रहते जानबूझकर।
हालांकि उस समय लूना, टीवीएस, काइनेटिक जैसी स्कूटी भी हुआ करतीं थीं,पर हमने न चलाई थीं।
बस उस प्रिया स्कूटर जो कि भैया के दोस्त का था ,के ही कान उमेठते रहते।
उसे देखते और सोचते कि यार यहां पर हाइट का कोई इश्यू नहीं है चल जाएगा आराम से ही।
हम फिर भैया से मनुहार करते,इसे तो चलवा दो प्लीज़,पर वह नहीं सुनते।
एक दिन सुबह दस बजे के करीब मनोज भैया( प्रिया वाले)आए और हम भैया से शुरू,वो बोले खुद ही चला ले न तुझे तो गियर डालना आता ही है ( मैं गुस्से में यह धौंस दे चुकी थी उन्हें)
ले चाबी ले जा ।
अब पता नहीं कौन सा तत्व एक्टिवेट हुआ कि मैंने स्कूटर की चाबी उठा ली,ये सोचकर कि गेट तक पहुंचते ही ये खुद ही आ जाएंगे सिखाने के लिए पर जो सोचो वो हमेशा सही नहीं होता।
भैया आए नहीं और अगर अब वापस चाबी रख दी तो घनघोर बेइज्जती तय थी , भैया को हम जानते थे वह कैसे -कैसे और कब तक चिढ़ाएंगे, इसलिए अब वापसी संभव नहीं थी।
इधर हम असमंजस में थे उधर भैया डेड श्योर कि हम स्कूटर बस स्टार्ट करेंगे जो हम बहुत बार कर चुके थे।
अब हमने आब देखा न ताव स्कूटर किया स्टार्ट और फर्स्ट गियर के साथ स्पीड दी और ये क्या मैं तो स्कूटर चला रही थी। जब स्कूटर आगे बढ़ने की आवाज भैया तक पहुंची तो वो बाहर की तरफ़ दौड़े,अरे रुक रुक,रुक जा मैं आ रहा हूं।
पर अब किसे परवाह थी , स्कूटर पर मैं आगे आगे और दौड़ते हुए भैया पीछे पीछे । लगभग 500 मीटर तक दौड़ाने के बाद ब्रेक लिए और पूछा अब क्या है?? अब जब चला ही लिया तो क्यों आए हो?
वो चिल्लाने लगे पागल है गिर जाती तो?
ये तुम्हें पहले सोचना चाहिए था समझे, अब मैं वापस पहले वाले रौब में आ चुकी थी।
बैठना है तो बताओ नहीं तो अभी और आगे जाना है मुझे?
अरे चल …
और इस तरह पहले दिन करीब दो किलोमीटर तक स्कूटर चलाया ।
घर पहुंचकर देखा कि गेट पर बाहर ही स्कूटर के मालिक साहब खड़े हैं ,बेचारे सोच रहे होंगे कि आज स्कूटर न जाने किस हाल में लौटेगा?
बड़ी तसल्ली हुई होगी उन्हें सबकुछ ठीकठाक देखकर बोले, क्या हुआ तुम तो चला लेती हो स्कूटर ?
हां अब से मैं ये कह सकती हूं, लेकिन जब स्टार्ट किया था तब तक नहीं चलाना आता था।
इस तरह जीवन में पहली बार प्रिया स्कूटर चलाया।
फिर लगभग दो साल बाद चलाया वेस्पा जो कि बड़ा और भारी स्कूटर था और उस दिन बस पैर टूटते टूटते ही बचा था।
पूनम सारस्वत