* लाली का प्रतिकार* –   बालेश्वर गुप्ता

 लाली मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर दे,बेटी तुझे सब पता तो है तुझे कैसे बी एड, करा पाया हूँ।मुझ पर अब कुछ भी नही बचा है, तेरे हाथ कैसे पीले करूँ बच्ची?एक बाप की मजबूरी समझ बेटी,बड़े सेठ का बेटा है, थोड़ी उम्र अधिक है,पर परिवार धनवान है,तू जिंदगी भर सुखी रहेगी।तेरी सुंदरता से प्रभावित हो,खुद रिश्ता मांगा है।बेटी हां कर दे,मेरी बच्ची हां कर दे,मेरा बोझ हल्का कर दे बेटी।

     बापू,कितने भोले हैं आप,उन्होंने रिश्ता नही भेजा है,मेरी सुंदरता का सौदा किया है, अपने  बुढऊ होते बेटे के साथ मुझे बांधने का षड्यंत्र रचा है,बापू।आपकी गरीबी का उपहास उड़ाया है उन्होंने।बापू आपने अपनी लाली को पढ़ाया है तो उसको समझ भी दी है।मैं इस षड्यंतकारी प्रस्ताव का घोर विरोध करती हूं।बापू मैं यह शादी नही कर सकती।अब इस घर को मैं संभालूंगी,बापू।आप उस सेठ को स्पष्ट रूप से मना कर दे।

        ललिया ने अपनी एक मात्र पुत्री लाली को खूब पढाया, बी.एड.,कराया।अब उसकी शादी के बारे में सेठ का अपने उम्र दराज बेटे से आये प्रस्ताव पर बाप बेटी का उक्त वार्तालाप चल रहा था, लाली की माँ झुमरी एक ओर खड़ी बाप बेटी का संवाद सुन रही थी। ललिया और झुमरी करे तो क्या करे गरीबी में जिये प्राणी अपने आत्म सम्मान को,बड़े लोगो के षडयंत्रो को भला क्या समझे?उनके लिये तो जिंदगी का सबसे बड़ा यही सम्मान था कि गावँ का सेठ अपने बेटे के लिये उनकी लाली का हाथ मांगने आया था वो भी बिना दान दहेज के,इतना ही नही शादी का सब खर्च भी सेठ को ही करना था।बस लड़का जरूर लाली से 10-12साल बड़ा था।इससे क्या होता है,है तो सेठ,लाली हवेली में रानी की तरह रहेगी,यह सपना क्या कम था?

     पर ये लाली विरोध क्यूँ कर रही है,ये न ललिया समझ पा रहा था और न ही झुमरी।दीनता में रहे बढ़े ललिया झुमरी की समझ एक पढ़ी लिखी लाली की समझ एक हो ही नहीं सकती थी।लाली इस प्रस्ताव के मंतव्य को समझ रही थी जबकि ललिया झुमरी सेठ की अमीरी और लाली के सुखद भविष्य की कल्पना के ग्लैमर से मंत्रमुग्ध थे,उनके लिये लाली की भावनाये के कोई मायने नही थे जबकि लाली के लिये अपनी भावनाएं और अपनी तरह से जीना महत्वपूर्ण था।सोने के पिंजरे में बंद मैना जैसी जिन्दगी को लाली खूब समझ रही थी इसीलिये उसे यह प्रस्ताव अस्वीकार्य था।




         कई दिन तक घर मे यही विवाद चलता रहा।ललिया और झुमरी अपनी बेटी लाली को मनाने में असफल होते जा रहे थे,अब तो उनकी कठोरता भी लाली पर कोई प्रभाव नही डाल पा रही थी।

      संयोगवश इसी बीच लाली का गांव के पास के ही एक विद्यालय से अध्यापिका पद हेतु नियुक्तिपत्र आ गया।लाली और उसके माता पिता की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा।लाली ने तीसरे दिन ही जॉइन कर लिया।अब उसके पास घर के लिये समय कम रहता था।सेठ का प्रस्ताव भी फिलहाल ठंडे बस्ते में पड़ गया था।

       तीन माह बीत गये, घर मे लाली का अच्छा खासा वेतन आने लगा था,घर से दारिद्र्य की विदाई होने लगी थी।लाली अपने माता पिता का पूरा ध्यान रखती।अब ललिया और झुमरी को भी लगने लगा था कि सेठ का लड़का उनकी लाली के लायक नही है,पर अभी भी सेठ की अमीरी और सेठ को मना करने का संकोच उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर रहा था।

      अचानक एक दिन गावँ में कोलाहल मचा, ललिया भी चौपाल की तरफ गया जानने को कि माजरा क्या है?पता चला सेठ जी का लड़का पिछली रात्रि में एक वेश्या के कोठे पर छापे के दौरान पकड़ा गया है और वो जेल में बंद है।गावँ वाले सेठ और उसके लड़के के बारे में पूरे मनोयोग से उनके संस्कारविहीन आचरण पर टीका टिप्पणी कर रहे थे।

      ललिया सब सुन समझ कर जैसे सपने से जागा, वह पसीने से तरबतर था,उसे लगा कि खाई में गिरने ही वाला था कि किसी ने उसे गिरने से बचा लिया। ललिया घर की ओर दौड़ लिया सामने ही दरवाजे पर खड़ी थी लाली।लपककर ललिया ने लाली को अपने सीने से चिपका लिया।आँसुओ से सरोबार ललिया मानो लाली से क्षमा मांग रहा था और लाली तथा झुमरी आश्चर्य मिश्रित निगाहों से देख रहे थे ललिया को—–।

           बालेश्वर गुप्ता

                 पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक एवम अप्रकाशित

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