सुधा,गीता राधा तीन बहने थी उनका इकलौता भाई था राघव।मां शीला और पिता नारायण जी जो एक स्कूल में अध्यापक थे।
शीला एक महत्वाकांक्षी महिला थी उसे ठाठ बाट में रहना अच्छा लगता है।पर नारायण जी की इतनी कम सैलरी में 4 बच्चों को पढ़।ना बहुत मुश्किल था।
नारायण जी घर में ट्यूशन लेते पर इतना खर्च नहीं उठा पाते थे।सुधा सबसे बड़ी थी तो उसी पर घर की जिम्मेदारी आन पड़ी थी वो कम उमर में ही पढ़ाई के साथ साथ नौकरी भी करने लगी।
अपनी मेहनत से वो सरकारी कॉलेज में नौकरी पर लग गई।छोटी गीता भी लाइब्रेरी का कोर्स कर लाइब्रेरियन लग गई और दोनों बहनों की बदौलत घर सही दिशा से दौड़ने लगा।
घर में सुख सुविधा की चीजें आने लगी। इसी बीच छोटी बहन राधा की शादी हो गई राधा के पति सुरेश कॉलेज में प्राध्यापक थे।राघव ने bsc तक पढ़ाई पूरी की।
और वो एक कंपनी में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव लग गया।राघव की शादी नंदिनी से हुई नंदिनी भी दो बहनों और एक भाई आदर्श की बहन थी। नंदिनी के पिता का देहांत हो गया था
और दोनों बहनों प्रीति और राधा की भी शादी हो चुकी थी इसलिए जब राघव का रिश्ता आया तो आदर्श ने नंदिनी की भी शादी कर दी।नंदिनी की शादी हो रही थी
या बुरे दिन शुरू हो रहे थे किसे पता नंदिनी की दोनो नंदे सुधा और गीता उसे कुछ न कुछ बोलती रहती।शीला भी जब बेटियां ना होती तो सूत की तरह सीधी रहती पर जैसे ही वो दोनों आती
उनके सुर बदल जाते। कभी खाने को लेकर सुनाना कभी कपड़ों को कभी बच्चे के दूध को हर चीज में इज्जत उतारना उनका शगल था इसी कारण राघव अलग घर ले रहने लगा।
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राघव के पास कम पैसा था नंदिनी और वो दोनों मेहनत करके काम रहे थे । एक बार नंदिनी की ससुराल में कुछ फंक्शन था सबको बुलाया गया सिर्फ राघव और नंदिनी को नहीं बुलाया गया।
नंदिनी बोली पैसों में बहुत गर्मी होती है ये धन संपति अच्छे अच्छों का दिमाग खराब कर देती है।वही हाल तुम्हारी बहनों का भी है उन्हें भी पैसे का गुरुर है।
राघव को किसी खास जरूरत के लिए पैसों की जरूरत थी तो उसने सुधा से पैसे मांगे सुधा ने उससे अपना पूरा प्लॉट साफ करवाया । तब राघव को पैसे दिए।
उस दिन तो अत हो गई नंदिनी बोली इतना पैसे का घमंड अच्छा नहीं उन्हें लगता है ना कि हमें किसी की जरूरत नहीं इस पैसे के दम पर वो दुनिया खरीद सकती हैं
पर ऐसा नहीं होता रिश्ते रिश्ते ही होते है।इंसान की कमी।पैसा पूरी नहीं कर सकता।राघव और नंदिनी ने अपने दम पर अपने बच्चों को पढ़ाया और बच्चों ने भी उन्हें सूख दिया ।
पर शीला और नारायण के देहांत के बाद सुधा और गीता अकेली रह गई दोनो की शादी भी ना हुई और एक दिन यही पैसा उनकी मृत्यु का कारण बना घरवालों को कभी पूछा नहीं
सिर्फ पैसे का घमंड। दो दिन तक तो किसी को उनके मरने की खबर तक ना थी।जब पता चला तो सब करने के लिए राघव के बच्चे ही पहुंचे बाकी जिन लोगों के लिए कभी सुधा और गीता ने अपने भाई को पराया कर
दिया था कोई पूछने भी नहीं आया कि कही हम ही ना फंस जाए।दोस्तो पैसा कम हो चलेगा पर अपने परिवार से संबंध मधुर होने चाहिए ।
पैसे का गुरुर अच्छा नहीं हाय का मेल है पर इंसान को अपने संबंध मजबूत रखने चाहिए।
स्वरचित कहानी
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