उम्मीद की किरण: लेडी सिंघम किरण सेठी

लिंग-भेद हमारे समाज का एक ऐसा चलन है,जो इस 21वी सदी में भी समाप्त नहीं हो रहा, आज भी लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियां

 लगाई जाती हैं। उनको घर से शाम ढलते ही कहीं जाना हो तो बोला जाता है कि अकेले मत जाओ,पापा या भाई में से किसी को साथ लेकर जाओ। अब जब किसी लड़की ने बचपन से ये सब सुना हो तो वो दब्बू और डरपोक किस्म की हो जाती है। मनोविज्ञान में भी बताया गया है कि अगर किसी को एक ही बात बार-बार बोलते रहो तो उसकी मानसिकता और सोच वैसे ही हो जाती है। बस ऐसा ही लड़कियों के साथ भी होता है,वो घर से अकेले निकलने से पहले दस बार सोचती हैं। ऐसे में अगर हम एक सशक्त समाज चाहते हैं

तो हमें लड़कियों का खोया विश्वास वापिस लाना होगा। लड़कियों को सेल्फ डिफेंस का प्रशिक्षण देना होगा जिससे वो अपनी रक्षा कर सकें साथ ही साथ अगर कभी उनके पापा और भाई घर से रात को अकेले निकल रहे हैं तो उनको बोला जाए कि अपनी सुरक्षा के लिए बेटी या बहन को भी साथ ले जाओ। ऐसे ही सोच है लेडी सिंघम के नाम से प्रसिद्ध किरण सेठी जी की जो दिल्ली पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं और अभी तक कम से कम साढ़े आठ लाख से ऊपर अधिक महिलाओं और लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। इसके लिए इनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल है।

यह स्कूल, कॉलेज के अलावा दिल्ली के सभी बड़े बड़े अस्पताल, एमएनसी, सीबीआई और दिल्ली पुलिस जवानों के बच्चों को भी ट्रेनिंग दे चुकी हैं। यह रोजाना सेक्स वर्कर के बच्चों को पढ़ाती हैं।इनकी बातें और इनके जीवन से जुड़ी कुछ घटनाएं प्रत्येक महिला के लिए प्रेरणा का और गर्व का विषय हैं।



किरण सेठी जी ने आत्मरक्षा के गुर सिखाते हुए लाखों लड़कियों को ट्रेनिंग दी है और उन्हें इस तरह तैयार किया है कि हर परिस्थिति में वो अपनी सुरक्षा खुद कर सकें। किरण सेठी ने प्रारंभिक जीवन में उन्होंने अपनी मां का बहुत संघर्ष देखा और बहुत कुछ सीखा। उनके पिता को संपत्ति विवाद में किसी ने जहर दे दिया था, जिससे वो कुछ भी करने में लाचार थे तब मां ने ढाबा चलाकर उन्हें और उनके भाई बहन को पाला। ढाबे पर हर तरह के लोग आते थे,कुछ ऐसे भी थे जिनकी नीयत ठीक नहीं होती थी। एक अकेली औरत को देख वो उसके साथ बदसुलूकी करना चाहते थे

पर ऐसे में उनकी मां बिना डरे चूल्हे की आग में से गरम सलाखें निकाल उनकी आखों की तरफ दिखा देती थी बस पहली निडर बनने की शिक्षा यहीं से मिली। उन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान जूडो सीखना शुरू किया था। जब उन्होंने जूडो में अपनी दिलचस्पी दिखाई तो उनके मां-बाप ने बहुत समर्थन नहीं किया था क्योंकि बचपन में वो बहुत शरारती थी,इसी शरारत में स्टोव पर रखा हुआ उबलता हुआ गरम पानी उनके हाथ पर गिर गया था। पहना हुआ स्वेटर हाथ से ही चिपक गया था, बड़ी मुश्किल से काफी समय बाद वो हाथ ठीक हुआ था। इसी वजह से उनके माता पिता को डर कि कहीं इससे किरण के हाथ-पैर टूट गए तो क्या होगा क्योंकि एक हाथ में अभी भी थोड़ी समस्या थी। उनकी शादी कैसे होगी?

लेकिन वो भी पूरी जिद्दी थी,उन्होंने एक्सट्रा क्लासेज का बहाना बनाकर स्कूल के बाद जूडो सीखना जारी रखा। किरण के पेरेंट्स को इसकी जानकारी तब हुई जब वो दिल्ली राज्य स्तर पर जूडो में स्वर्ण पदक जीत कर लौटीं और अगले दिन के अखबारों में किरण का नाम आया था। इस पर किरण के अभिभावक बहुत खुश हुए और फिर खुलकर उनका समर्थन करने लगे। उन्होंने उनको ट्रेनिंग के लिए कोच शिवकुमार कोहली के पास भी भेजा।  मार्गदर्शन को भी श्रेय देती हैं। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने मार्शल आर्ट और ताइक्वांडो जैसे क्षेत्र में खुद को आजमाना चाहा

तो कई लोगों ने इन्हें लड़कों वाले खेल बताकर उनका हौसला तोड़ने की भी कोशिश की, लेकिन किरण हार नहीं मानीं। वो बताती हैं कि उन्होंने अपने क्लब के लड़कों से भी ट्रेनिंग के दौरान बहुत कुछ सीखा। ट्रेनिंग के दौरान वो काफी पुलिस बल के लोगों से मिली और उनसे उन्होंने पुलिस में भर्ती की मंशा व्यक्त की तब उन लोगों ने बताया कि हो जाओगी भर्ती बस थोड़ा दौड़ लगाओ, परीक्षा निकालो। बस ऐसे उनका पुलिस का सफर शुरू हुआ। प्रारंभ में भर्ती कांस्टेबल पद पर हुई।



1987 में वह दिल्ली पुलिस में आ गईं और फिर खुद को इस समाज की सेवा से जोड़ दिया। दिल्ली में पली-बढ़ी हुई किरण ने 19 साल की उम्र में 12वीं पास की और उसके बाद दिल्ली पुलिस में बतौर सिपाही भर्ती हुईं। किरण ने दिल्ली के जीसस एंड मैरी कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद एमएसडब्ल्यू किया। इसके अलावा ह्यूमन राइट्स में पीजी करने के साथ ब्रांड कास्टिंग में डिप्लोमा और वाईएमसीए से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की।1994 में किरण सेठी को सिपाही से हेड कांस्टेबल बनाया गया। वहीं 1999 में एएसआई और साल 2020 में एसआई के लिए उनको प्रमोट किया गया।आज वो श्रधानंद मार्ग, कमला मार्केट एरिया में पिंक वूमेन पुलिस चौकी की इंचार्ज हैं।

1987 में दिल्ली पुलिस में भर्ती होने के बाद जब किरण को ट्रेनिंग देने के लिए भेजा गया तो उनके कैंप में केवल लड़के ही थे। वह दिल्ली पुलिस की पहली महिला हैं जो पुरुषों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देती हैं। किरण बताती हैं कि वो पल बेहद गौरव का क्षण होता था। उनका मानना है कि दिल्ली पुलिस का जो लोगो है शांति,सेवा और न्याय, उसमें से सेवा अपनेआप ही आपको दूसरे के लिए कुछ करने को प्रेरित करता है।

किरण के साथ ऐसी कई घटनाएं हुई,जिसके बाद उन्होंने महिलाओं को सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग देने की आवश्यकता और भी ज्यादा प्रबल हो गई। वो एक बार बस में जा रही थी तब उस बस में कुछ मनचले लड़के आती जाती लड़कियों और महिलाओं पर फब्ती कस रहे थे,उन्हें तंग कर रहे थे पर भीड़ में कोई कुछ नहीं कह रहा था, सब तमाशबीन बने हुए थे, जैसे ही एक लड़के ने किरण के साथ बदतमीजी करनी चाही किरण ने उसको कोहनी से खूब मारा। उसका हाल देखकर बाकी लड़के तो भाग गए

पर उस लड़के को किरण ने पुलिस थाने ले जाकर ही दम लिया। ऐसा ही सबक उन्होंने एक आदमी को सिखाया था जो पार्क में औरतों और बच्चों के सामने अपने प्राइवेट पार्ट को दिखा कर अश्लील हरकत कर रहा था। इसी तरह की कई घटनाओं ने किरण को प्रेरित किया कि वो लड़कियों को स्वयं की रक्षा के लिए प्रेरित करें क्योंकि भीड़ कभी किसी का साथ नहीं देती, लोग तमाशबीन बनकर खड़े तो हो जाते हैं पर कभी आगे नहीं आते।

एक बार किरण गंगाराम हॉस्पिटल के पास से कहीं जा रही थी तब वो सिविल ड्रेस में थी,उन्होंने देखा एक नेत्रहीन लड़की को एक आदमी जबरदस्ती कहीं ले जा रहा था उन्हें कुछ गड़बड़ लगी उन्होंने लड़की से पूछा तो लड़की ने डरते हुए कहा कि वो उस आदमी को नहीं जानती। वो आदमी पूरी बदतमीजी से बोला कि ये हमारा आपस का मामला है तुम जाओ पर किरण कहां रुकने वाली थी, उस आदमी ने उनके एक हाथ पर ब्लेड से हमला भी किया पर किरण ने हिम्मत दिखाते हुए दूसरे हाथ से 100 नंबर डायल किया

और उस आदमी को पुलिस के हवाले किया।इस घटना के बाद किरण को दिव्यांग लड़कियों की सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग करवाने की जरूरत महसूस हुई जिसको भी उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। बस यहीं से उनको लेडी सिंघम का नाम मिला।



किरण की कार्य क्षमता को देखते हुए डीसीपी संजय भाटिया जी ने उनको जीटी रोड के रेड लाइट एरिया की महिलाओं को सक्षम बनाने की ज़िम्मेदारी दी।उन्होंने इसको सहर्ष स्वीकार किया। उनको ये भी देखना था कि किसी नाबालिग लड़की को वहां बेचा तो नहीं जा रहा या किसी से जबरदस्ती देह व्यापार तो नहीं करवाया जा रहा। इसी कड़ी में उन्होंने इस एरिया की 250 लड़कियों की 15 दिन की योगा वर्कशॉप कराई जिसके बाद उन्होंने उन लड़कियों को बताया कि उन्हें दिल्ली पुलिस से सम्मानित किया जाएगा।

सम्मानित शब्द उन लड़कियों की जिंदगी में एक नई सूरज की किरण लेकर आया क्योंकि अभी तक तो उन्होंने सिर्फ अवेहलना ही झेली थी।किरण उनके लिए हकीकत में उम्मीद की किरण बनकर आयी थी। पर जो औरत इन लड़कियों से ये देह व्यापार कराती थी उसको लगा कहीं किरण के संपर्क में आकार ये लड़कियां अपनी जीने की राह ना बदल लें तो इस तरह की परेशानी भी आती रही पर कहते हैं ना जहां चाह वहां राह। किरण की इस लड़ाई में उनको अपने कोच शिव प्रकाश कोहली जी की बेटी लक्ष्मी कोहली का साथ मिला

जो की आर्ट टीचर थी और सिर्फ 19-20 साल की थी। उसने इन महिलाओं को दिया बनाना और क्राफ्ट का काम सिखाया। जब दिवाली की प्रदर्शनी लगी तब जो भी कमाई हुई, इन महिलाओं में बराबर बांट दी गई। इस तरह इन महिलाओं ने एक नई जिंदगी की तरफ कदम बढ़ाया।

आज की तारीख में किरण के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज हैं।किरण सेठी का नाम गृह मंत्री रहे राजनाथ सिंह की मौजूदगी में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में साल 2015 में दर्ज किया गया था।किरण सेठी को साल 2016 में दिल्ली महिला आयोग के द्वारा “लाइफ टाइम अचीवमेंट”, साल 2018 में “आई वूमेन ग्लोबल अवार्ड”, साल 2019 में “रक्षक अवार्ड”, साल 2020 में राष्ट्रपति पुलिस पदक और इससे पहले साल 1999 में दिल्ली पुलिस की तरफ से असाधारण कार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

किरण सेठी किक बॉक्सिंग के खिलाड़ी भी रह चुकी हैं। उन्होंने 1999 में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। प्रतियोगिता में उनको दूसरा स्थान मिला था। किरण का बताना है कि समाज सेवा ही उनकी जिंदगी का लक्ष्य है। वह चाहती हैं कि मरते दम तक लोगों की सेवा करें।

तो ये थी हमारी लेडी सिंघम किरण सेठी जी के जीवन की कुछ झलकियां जिनसे हम सभी महिलाओं को सीखने की जरूरत है। अपने अंदर के दुर्गा रूप को जगाने की जरूरत है। कुछ भी कहीं गलत होता दिखे तो पुलिस को बताने की और साहस दिखाने की जरूरत है। ये सोचकर नहीं बैठना है कि कहीं भी कुछ गलत होगा तो लोग और भीड़ हमें बचा लेंगे।

भीड़ सिर्फ तमाशा देखती है,अपनी रक्षा के लिए खुद से आगे आना होगा। सेल्फ डिफेंस सीखना होगा। माता पिता को भी लड़के और लड़की में फर्क बंद करना होगा। जहां लड़कियों को सशक्त बनाना होगा वहीं लड़कों को भी उचित संस्कार भी देने होंगे।

“कम नहीं ये किसी से, साबित कर दिखलाएंगी,

 खोल दो बन्धन,ये लड़कियां हर मंजिल पा जाएंगी।”

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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