फेंसिंग होने के बावजूद भी दो-तीन दिन से घर के बाहर गार्डन में लगी गुलाब और गेंदें की क्यारियों में से खिले-खिले सारे फूल गायब हो रहे थे। रह जाते बस अधखिले फूल और कलियाँ।
“अभी रिकॉर्डिंग चेक करती हूँ तभी कुछ पता चलेगा।” बड़बड़ाते हुए अनु घर के अंदर आई और तीन दिन पहले की रिकॉर्डिंग खंगालने लगी। माऊस को ड्रैग करते हुए तीन दिन पीछे वाला सुबह का वीडियो चलाया तो देखा साढ़े पांच से पौने छ: के बीच लाल कमीज़ पहने दस-बारह साल का बच्चा उचक-उचक के सारे फूल तोड़ कर अपने थैले में डाल रहा था। उस दिन से आज सुबह तक की सारी वीडियो जस की तस थीं। सुबह के साढ़े पांच ……लाल कमीज़……और फूलों का तोड़े जाना।
अब तो अनु को अगली सुबह का इन्तजार था बस। गुस्से में उबलती अनु रसोई में गैस पर दूध उबालने को धर ही रही थी कि बाहर गेट पर घंटी बजी। बाहर निकली देखा एक छोटा सा बच्चा अपनी कोहनी तक फूल की मालाएं लटकाये हुए खड़ा था। देखते ही बोला,”माला ले लो आंटी।”
“नहीं लेनी।”
“ले लो आंटी सबको बीस की देता हूँ आपको दस की लगाऊंगा।”
” मुझे दस की क्यों देगा? बची-खुची है इसलिये।”
“सच्ची बोलूं…..इनमें से कुछ फूल आपकी बगिया के हैं।”
“क्या! तू सच कह रहा है?”
“हाँ “
“यहाँ के सारे फूल तूने ही तोड़े हैं?”
“हाँ”
“वो कैमरे में लाल कमीज़ वाला बच्चा तू ही है?” उपर लगे कैमरे की तरफ़ इशारा करते हुए बोली।
“हाँ “
“हे भगवान! शर्म नहीं आती ना डर लगता है तुझे।”
“नहीं भूख लगती है। माँ-बाबा नहीं हैं…..रोज़-रोज़ कोई खाना नहीं खिलाता…….ले लो ना आंटी।”
ये सुनते ही जैसे अनु को सुलगते हुए अंगारे पिघलते से महसूस हुए। बोली,” एक शर्त पर लूँगी तू आगे से यूँ फूल नहीं तोड़ेगा। बोल?”
“नहीं तोड़ूंगा।” बच्चा बड़ा मायूस सा हो कर बोला।
” चल एक माला दे और ये ले पैसे।” दो सौ रुपये का नोट देते हुए बोली।
“खुल्ले तो नहीं हैं मेरे पास।”
“पता है ये पैसे तेरी माला के ही हैं इनसे फूल ले लियो। पानी की टंकी के पीछे जो मंडी है वहाँ से।……..सुन तू हमेशा यही लाल कमीज़ पहनता है। “
“नहीं स्कूल जाते हुए नीली।” कहते हुए वो उछलते-कूदते वहाँ से चला गया।
कॉलोनी में तो जरूर पर कैमरे में फिर कभी वो लाल कमीज़ नज़र नहीं आई।
मीनाक्षी चौहान