राकेश आज थका मारा घर आया था।सुबह से ही दुकान पर बहुत भीड़ थी और आज उसके दो कर्मचारी भी छुट्टी कर गए थे इस वजह से दोपहर को खाना भी वह ठीक ढंग से नहीं खा पाया और रात तक आते-आते उसकी हालत पस्त हो गई थी।घर आते ही उसने अपनी पत्नी माला को एक कप चाय बनाने के लिए कहा और खुद फ्रेश होकर सोफे पर बैठ गया।
माला जानती थी कि उसका पति दिन-रात घर चलाने के लिए कितनी मेहनत कर रहा है।राकेश की अपनी दुकान थी…काम तो उसका अच्छा था लेकिन उसको इसके लिए मेहनत भी खूब करनी पड़ती थी।राकेश की अपनी तीन बहनें थी जिसमें दो बड़ी बहनों का ब्याह हो चुका था और छोटी बहन अभी पढ़ाई कर रही थी।उसके अपने दो बच्चे थे…बेटा दसवीं क्लास में था और बेटी सातवीं कक्षा में। माता-पिता की ज़िम्मेदारी भी राकेश बखूबी निभा रहा था।
माला ने राकेश को बताया कि कल उसे पिताजी को डॉक्टर के पास लेकर जाना है उनके रूटीन चेकअप के लिए..जिसके लिए उसे कुछ पैसे चाहिए…डॉक्टर हो सकता है वहां कुछ टेस्ट भी करवा ले।
राकेश बोला,”हां, ठीक है,सुबह दुकान जाने से पहले मैं तुम्हें पैसे पकड़ा दूंगा”।
रात को राकेश ने सबके साथ खाना खाया और बच्चों को और अपनी बहन को उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा।राकेश हंसमुख स्वभाव का व्यक्ति था और अपने घर में खुशहाली और शांति बनाए रखता।बच्चे भी अपने पिता के बहुत करीब थे और उसे दिलो जान से प्यार करते।माता-पिता तो राकेश को दुआएं देते नहीं थकते थे उनके अनुसार राकेश उनका श्रवण बेटा था जो कि उनकी हर इच्छा को उनके कहने से पहले ही पूरा कर देता था।बहनें भी राकेश और माला को खूब मान देती थी।
इन सब ज़िम्मेदारियों को निभाने में माला राकेश का पूरा साथ देती थी।उसने आज तक राकेश को किसी बात की शिकायत नहीं होने दी और ना ही घर की छोटी मोटी बातों को लेकर कभी उसके कान भरे।वो खुद अपने सास-ससुर की लाड़ली और दुलारी बहू थी। खैर रात को सोते समय माला ने राकेश को बताया कि उनका बेटा सौरभ अगले साल 11वीं में साइंस विषय लेने के बारे में सोच रहा है।
“यह तो बहुत अच्छी बात है..बच्चा अगर अच्छा पढ़ जाएगा तो उसकी ज़िंदगी संवर जाएगी।हमें इससे अधिक और क्या चाहिए”,राकेश मुस्कुराते हुए बोला।
“लेकिन इसके लिए उसे कोचिंग क्लास ज्वाइन करनी पड़ेगी और इसका खर्चा भी कितना हो जाएगा”, माला ने थोड़े परेशानी में कहा।
“चिंता मत करो..मैं खुद संभाल लूंगा..वो पढ़ना चाहता है तो खर्चे की वजह से उसकी पढ़ाई में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए”।
माला ने कहा,”अभी हमें छोटी बहन प्रीति की भी शादी करनी है…उसके लिए भी तो पैसे जमा करने हैं।हां, मैं जानती हूं कि हम लोग जमा कर रहे हैं लेकिन फिर भी तुम तो जानते ही हो कि आजकल शादी में कितना खर्चा हो जाता है”।
माला की बात सच्ची थी…यह बात सोचकर राकेश थोड़ी देर तो सोच में पड़ गया लेकिन फिर उसने कुछ सोचकर माला से कहा,”कोई बात नहीं दुकान को सुबह एक घंटा जल्दी और शाम को एक घंटा लेट बंद कर लिया करूंगा.. थोड़ी मेहनत और करनी पड़ेगी पर सब खर्चा निकल आएगा…तुम निश्चिंत होकर सो जाओ”।
माला जानती थी कि राकेश कितना मेहनती है और जो बात उसने कही है वह उसे ज़रुर पूरी करेगा।अगले दिन माला पिताजी को लेकर डॉक्टर के पास चली गई।डॉक्टर ने उनका स्वास्थ्य ठीक बताया और उन्हें नियमित सैैर और अपनी दवाइयां लेते रहने के लिए कहा।माला ने घर आकर दुकान पर राकेश को फोन कर इस बारे में सब बता दिया। राकेश ने भी राहत की सांस ली।
उस दिन भी रोज़ाना की तरह राकेश शाम को जब घर आया तो उसने चाय पीते हुए टीवी लगा लिया।टीवी पर एक कार्यक्रम आ रहा था जिसे वह ध्यान से देखने लगा जिसमें कुछ महिलाओं को सम्मानित किया जा रहा था और बताया जा रहा था कि कैसे एक महिला अपने घर बार के लिए और अपने रिश्ते निभाने के लिए कितना त्याग करती है।
इतनी देर में ही राकेश का मित्र उससे मिलने आ गया और राकेश उसके साथ चाय पीते हुए बातें करने लग पड़ा। रात को उसी तरह खाना खाने के बाद जब राकेश लेटा तो ना जाने क्यों टीवी में देखा कार्यक्रम उसके दिमाग में चलता रहा और वह दृश्य उसकी आंखों के सामने आ गया।
राकेश सोचने लग पड़ा कि क्या महिला ही सिर्फ त्याग करती है..क्या पुरुष त्याग देने में कभी पीछे रहे हैं।हां, यह बात सच है कि एक मकान को घर एक औरत ही बनाती है पर उस मकान बनाने की नींव रखने के लिए ही एक पुरुष को कितना संघर्ष करना पड़ता है…
कितना खून पसीना बहाना पड़ता है।यह ठीक है कि एक औरत अपना घर-बार छोड़कर ससुराल आती है तो क्या पुरुष उसे दिलो जान से अपनाता नहीं है।महिला अगर बच्चों को जन्म देती है तो क्या पुरुष उन बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाने में कभी पीछे रहता है…
क्या वह अपने भाई-बहनों को भी भरपूर प्यार नहीं देता और उनके साथ-साथ माता-पिता की भी ज़िम्मेदारी पूरी शिद्दत से निभाता है और इन सब ज़िम्मेदारियों को निभाने में कितनी बार अपनी मन की इच्छाएं मार देता है शायद कभी इसका लेखा-जोखा भी नहीं रख पाता और ना ही कभी किसी से शिकायत करता है और ना ही कभी अपने त्याग का गुणगान करता फिरता है कि उसने अपने घर के लिए कितना त्याग किया है।
कितना संघर्षपूर्ण जीवन रहता है एक पुरुष का..एक बेटे के रूप में..एक भाई के रूप में..एक पति के रूप में और एक पिता के रूप में और इन सब रूपों को निभाने के लिए वह ना जाने कितने अनगिनत त्याग देता है तो फिर क्यों सिर्फ औरतों को ही त्याग की देवी कहा जाता है क्यों पुरुष के त्याग की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
राकेश किसी सम्मान की इच्छा नहीं रखता था लेकिन सच तो यह है कि औरत और पुरुष दोनों ही मिलकर और त्याग कर इस घर रूपी गाड़ी को चलाते हैं और अपने जीवन में दोनों ही अपने-अपने हिस्से का त्याग करते हैं। यही सोचते-सोचते कब रकेश की आंख लग गई उसे पता नहीं चला।
सुबह राकेश उसी तरह उठा और तैयार होकर अपने काम पर निकल पड़ा।रात की बात शायद उसके जे़हन से हट गई थी लेकिन शायद कहीं ना कहीं उसके मन में दबी रह गई हो यह तो वह खुद भी नहीं जानता था।
स्वरचित।
#त्याग
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।