“क्यों ना करूँ मैं अपनी किस्मत पर नाज – स्वाती जितेश राठी : Moral Stories in Hindi

आज कोरियर से वेदा के लिए एक पार्सल आया। उसमें एक कार्ड था जिसपर धन्यवाद लिखा था, एक खूबसूरत सा पैन, एक कोरी किताब और एक पैकेट चाय का मसाला था।

वेदा समझ ही नही पा रही थी कि ये किसने भेजा होगा। चाय के मसाले की खुशबू पहचानी सी थी। किताब में सिर्फ  इतना ही लिखा था  कि
“क्यों ना करूँ मैं अपनी किस्मत  पर नाज

,धन्यवाद  किस्मत  का कि आपसे मिलाया और धन्यवाद  आपका कि आपने मेरा हाथ थाम मुझे सही रास्ता दिखाया।”

वेदा सोच में डूबी थी कि तभी फोन की घंटी बजी।
फोन उठाया  तो आवाज़ आई   -पहचाना मुझे?

आवाज जानी पहचानी सी थी पर याद नहीं आ रहा था वेदा को कि कहाँ सुनी है यह आवाज़।
उधर से आवाज़ आई  मैम  मैं श श श शरण।

ये  सुनते ही वेदा चौंक उठी  शरण तुम इतने सालों बाद ,
मेरा नम्बर  कहाँ से मिला?

कल आ रहा हूँ आपसे मिलने सब बताऊँगा फिर और हाँ नम्बर  आपकी मम्मी ने दिया मुझे।
वेदा ने चहकते हुए  कहा कल इन्तजार  करूँगी तुम्हारा।

फोन कट गया और वेदा  पार्सल  हाथ में लिए  यादों के गलियारे में खो गई थी।

22साल की वेदा जिसका अभी एम.ए.  फाइनल  का रिजल्ट  आना बाकी था, उसने   अनुभव  के लिए एक आवासीय बालक विद्यालय  में  अध्यापन  हेतु साक्षात्कार  दिया था । उसे उम्मीद  ही नहीं थी चयन की पर उसका चयन हो गया था।

जब पहले दिन वेदा 11thक्लास में गई  तो बच्चे और वेदा खुद हैरान थे। लम्बे लम्बे लड़कों के आगे वेदा टीचर  नहीं खुद छात्रा लग रही थी।
खैर सामान्य  जान पहचान  के बाद वेदा ने पढ़ाना शुरू किया और धीरे धीरे बच्चों में लोकप्रिय  होती गई।

बाकी टीचर  की तुलना में वेदा उम्र  में छोटी थी और इतना दुनियादारी का ज्ञान भी नहीं था।
कुछ टीचर्स को वेदा का बच्चों से इतना मिलनसार  होना रास नहीं आ रहा था।

चूंकि आवासीय विद्यालय था तो टीचर्स  को कह रखा था कि छात्र कभी भी कुछ परेशानी लेकर  आए  तो उन्हें बताया जाए मना ना किया जाए वेदा सहित  अधिकतर  टीचर्स  छात्रों को शाम में या रात को रूम पर बैठकर भी पढ़ाते थे।

एक दिन 12thक्लास  में पढ़ाते समय  वेदा ने ध्यान  दिया कि शरण नामक एक छात्र  मेज पर सर झुकाए  रो रहा था। पूछने पर उसने बताया कि आज उसके पापा की बरसी है। वेदा को दुख हुआ सुनकर पर बच्चे हँसने लगे कयोंकि शरण बोलते वक्त थोड़ा हकलाता था  खासकर खुद का नाम।

बच्चों को चुप करवाने के बाद वेदा ने जब पूरी बात जाननी चाही तब शरण के दोस्त  राहुल  ने बताया कि शरण पहले बहुत होशियार था पर उसके पापा की मौत के बाद वो एकदम  कमजोर पड़ गया।उसके पापा ने खुदकुशी की थी। और इस बात को लेकर बच्चे उसका मज़ाक बनाते थे और  टीचर्स  भी उसका अपमान  करते थे।

धीरे धीरे उसने अपना आत्मविश्वास  खो दिया था इतना कि अब वो अपना नाम बताने में भी हकलाने लगा था।
सब सुन कर वेदा को बुरा लगा और उसने शरण को शाम को अपने रूम पर आने को कहा।

शाम को शरण के आने पर वेदा ने चाय बनाई  और शरण से बातें करने लगी।
इधर उधर की बातें करने और समझाने के बाद वेदा ने उसे  एक कोरी नोटबुक  और एक पैन दिया और  कहा ये तुम्हारे लिए  मेरी तरफ से उपहार है।
शरण नासमझी से उसे देख रहा था। तब वेदा ने कहा-

कि जिस तरह से यह नोटबुक  कोरी हैऔर इस पैन से तुम इस इस पर जो चाहे लिख सकते हो वैसे ही तुम्हारा जीवन अभी कोरा कागज  है और ये तुम पर है कि तुम इस पर क्या लिखते हो।
दुनिया कुछ भी कहे पर तुम्हारा आज और आने वाला कल तुम्हें ही लिखना है।

अब ये तुम पर है कि तुम लोगों की बातों से परेशान होकर अपना भविष्य  बर्बाद  करते हो या खुद पर भरोसा कर दुनिया को जीतना चाहते हो।

ऐसे ही धीरे धीरे करके वेदा उसकी हौसलाअफजाई  करती रही और शरण भी  धीरे धीरे संभलने लगा
उसका हकलाना भी अब काफी कम हो गया था।

बोर्ड  परीक्षा अच्छे नम्बर से पास कर अब शरण कालेज  जाने लगा और वेदा की भी शादी हो गई  थी।
आज 6साल बाद  शरण का फोन आने से सारी यादें ताजा हो गई  थी।

अगले दिन शरण ने उसके घर आते ही उसके पैर छुए और उसके गले लगकर  रो पड़ा।
सबसे मिलने के बाद  उसने बताया  कि  कुछ सालों पहले का वो  हकलाने वाला शरण आज एक बड़ी कम्पनी में ऊँची  पोस्ट पर काम कर रहा था और यहाँ तक आने का श्रेय उसने वेदा को दिया था जिसने उसे बड़ी बहन की तरह संभाला था।

आज वेदा और शरण की आँखों में फिर आँसु थे पर ये आँसु खुशी के थे।

स्वरचित
स्वाती जितेश राठी

#क्यूं ना करूं अपनी किस्मत पर नाज़

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