क्या सच मे भारतीय नारी कमजोर है – संगीता अग्रवाल 

” हैलो मिसेस नमिता जी मैं सिया की क्लास टीचर रेनू बोल रही हूँ !” नमिता के फोन की घंटी बजने पर जब उसने फोन उठाया तो सामने से आवाज़ आई।

” जी मेम बोलिये !” नमिता ने आदर पूर्वक कहा।

” क्या आप अभी स्कूल आ सकती है मुझे कुछ जरूरी बात करनी है आपसे !” रेनू मेम बोली।

” सब ठीक तो है मेम रिया ने कुछ किया क्या ?” नमिता परेशान हो बोली।

” हांजी बस आप आ जाइएगा तभी बात करते है !” रेनू मेम ने ये बोल फोन रख दिया उनकी बातो से नमिता बहुत परेशान हो  गई और फटाफट तैयार होकर बेटी के स्कूल पहुंची । 

” जी मेम बताइये क्या हुआ !” स्टॉफ रूम मे पहुँच नमिता बोली। क्योकि मेम नमिता से अकेले मे बात करना चाहती थी इसलिए उन्होंने स्टाफ रूम मे आने को बोला था।

” मैं कुछ कहूं उससे पहले ये देखिये !” मेम ने एक कॉपी नमिता के सामने कर दी।

वो कॉपी रिया की थी जिसमे एक निबंध लिखा था जिसका टॉपिक था भारतीय नारी उसने लिखा था।



” भारतीय नारी अबला होती है । भले कितनी पढ़ी लिखी हो पर हमेशा से नर के आगे झुकती आई है । इतिहास गवाह है भारतीय नारी का वजूद बस अपने पति से होता है पति के ना रहने पर उसे भी जलना होता था । उसके बाद कुछ सुधार हुआ और नारी को जीने दिया गया पर वो जीना कोई जीना नही क्योकि पति के मरने के बाद उससे सारे रंग छीन लिए गये। आज की भारतीय नारी सीरियल की तरह बस सजी धजी रहती है और रोती धोती रहती है सारे परिवार की जिम्मेदारी उस पर होती है किन्तु उसे कोई हक नही मिले होते या फिर उन्हे बहुत ज्यादा गलत दिखाया जाता है बस साजिशे करते हुए। भारतीय नारी को देवी का दर्जा दे बहला दिया जाता है । वैसे उसे इंसान भी नही समझा जाता। भारतीय नारी बेहद कमजोर है वो सिर्फ रिश्ते बचाने के लिए समझौते करती आई है ।”

और आखिर मे लिखा था ” मैं कभी भारतीय नारी की तरह कमजोर नही बनूंगी मैं भले शादी नही करूंगी पर अपनी मम्मी की तरह सबकी सुनकर और रोकर जिंदगी नही काटूंगी। मैं शादी के लिए अपनी आजादी से समझौता कभी नही करूंगी ।”

नमिता ने कॉपी से निगाह उठा मेम की तरफ देखा।

” देखा आपने एक चौदह साल की बच्ची के कैसे विचार है और क्यो है ये यक़ीनन इसकी शुरुआत घर से हुई है ।” रेनू मेम ने कहा।

” मेम मैं खुद नही जानती सिया के मन मे ये सब क्यो , कैसे ?” नमिता हैरान , परेशान थी।

” देखिये नमिता जी मेरे हिसाब से बच्ची ने जो देखा वही लिखा है । क्या आप इस टाइप के सीरियल देखती है , क्या आपके घर का मोहोल ऐसा है जैसा सिया ने लिखा ?” अगर हां तो आपको बहुत कुछ सोचने की जरूरत है रही इतिहास की बात वो उसने किताबों से जो ज्ञान लिया उसका मतलब जैसे निकाला निकाला पर आपको अपने घर का मोहोल सही करने की जरूरत है वरना सिया उम्र के जिस पड़ाव पर है उसका मन बागी हो सकता है !” मेम ने कहा।

” सही कह रही है आप मेम मैं सिया से बात करुँगी इस बारे मे किन्तु अपने तरीके से आप बस उसे इस कॉपी मे साइन करवाने को बोल दीजियेगा मेरे उसे ये नही पता लगना चाहिए कि मैं यहां आई थी !” नमिता उठते हुए बोली और मेम से विदा ली।

सारे रास्ते नमिता सोचती रही हम अपने बच्चो को क्या दिखा रहे टीवी और अपने घर के मोहोल मे। सच तो कहा उसने सारी जिंदगी उसने टीवी पर सजी धजी नारी देखी और घर मे बेचारी । ऐसे मे उसके मन मस्तिष्क पर ओर क्या छाप पड़ती पर नही अब मुझे ये छाप मिटानी होगी। यही सोचते सोचते नमिता घर आ गई और सिया की पसंद का खाना बनाने लगी।

” मम्मा इस पर साइन कर दो टीचर ने कहा है !” शाम को सिया कॉपी दिखाती नमिता से बोली।

” बेटा क्या लिखा है ये तुमने ?” नमिता कॉपी देख बोली।

” मम्मा सच तो है मम्मा !” सिया सोफे पर बैठती हुई बोली।


” बेटा ये सच अधूरा है…माना टीवी सीरियल मे ऐसा दिखाया जाता है पर वो सिर्फ एक काल्पनिक दुनिया है मनोरंजन के लिए , और रही औरतों के समझौता करने की बात घर परिवार , बच्चो के लिए करती है वो समझौता लेकिन इसका मतलब वो कमजोर नही है। इतिहास मे औरतों के सती होने की वजह तुमने पढ़ी ही है !” नमिता ने उसे समझाया।

” मम्मा क्यो ये सीरियल किसी आदमी को गलत दिखाते साजिशे औरत ही क्यो करती , रोती भी वही क्यो इससे क्या मनोरंजन , और असलियत मे भी तो यही होता है ना ? क्यो औरत को देवी बोला जाता है आदमी को देवता क्यो नही ये सिर्फ उसे भ्रम मे रखने को होता है जबकि घर मे चलती पुरषो की है । समझौते औरत करती है फिर भी नाम आदमी का आता हर जगह घर की तख्ती हो या बच्चो के सर्टिफिकेट्स पर मम्मा मुझे ये सब अजीब लगता है। और खुद को देखो सारा घर आपसे चलता है दादी दादा का ख्याल आप रखती , हमारा ख्याल आप रखती फिर भी नाम होता हमारा बेटा बहुत अच्छा है कभी वो ये नही कहते हमारी बहु बहुत अच्छी । पापा भी जरा सी गलती पर आप पर चिल्ला देते और आप रोती रह जाती हो । मुझे ऐसा नही बनना इसलिए मेरी कभी शादी मत करना आप !” सिया गुस्से और दुख से बोली।

” बेटा औरत समझौते भी एक हद तक करती है जब वो थक जाती है तो यही औरतें चंडी भी बन जाती है। और कौन कहता है औरतें सिर्फ सजी संवरी होती है । औरते प्रेरणादायक भी होती है । हां मैं मानती हूँ मेरी गलती है मैं तुम्हारे सामने ऐसा कोई एक्साम्प्ल नही रख पाई पर अब ऐसा नही होगा मेरी बच्ची !” नमिता उसे गले लगा बोली। 

अगले दिन से नमिता ने सास बहु के रोते सीरियल की जगह प्रेरणादायक महिलाओ बारे मे आते कार्यक्रम देखने शुरु किये । खुद मे आत्मविश्वास जगाया। 


” नमिता मेरा कोई सामान ठिकाने क्यो नही मिलता क्या करती हो तुम सारा दिन !” हमेशा की तरह आज भी पति बेवजह चिल्लाये।

” आप बेफिक्र अपने माँ बाप , बच्चो, और घर की जिम्मेदारी छोड़ जो जॉब करते हो बस इतना करती हूँ मैं सारा दिन आपके घर को घर बनाती हूँ मैं सारा दिन । आपकी इतनी बाते सुनने के बाद समझौते करती हूँ बस यही है मेरा इस घर मे योगदान । लेकिन अब अगर दुबारा ये सवाल मुझसे पूछा गया कि मैं करती क्या हूँ सारा दिन तो हो सकता है मेरा योगदान खत्म हो जाये !” नमिता आत्मविश्वास के साथ बोली। पहली बार उसे इस तरह बोलता देख पति सकते मे आ गया । 

सिया जिसने अभी तक माँ को रोते देखा था बस वो अपनी माँ को अपने लिए बोलते देख एक सुकून सा महसूस कर रही थी।

दोस्तों हो सकता है नमिता के पति मे कोई बदलाव ना भी आये पर आज उसने बेटी के मन से ये धारना मिटाने की कोशिश तो कि के औरते बस रोती है। 

आपमें से कुछ लोग शायद मेरी कहानी पसंद ना करे कुछ लोग मुझपर सवाल भी उठा सकते है। पर एक बार सोचियेगा जरूर क्या हर सीरियल मे औरत के दो रूप नही होते एक बेचारी के एक साजिशे रचते हुए। उसे देवी बनाया पर क्या उसे घर मे हक भी दिया। हर जगह औरत की गलत सलत छवि को भुनाने की कोशिश भर हो रही है । हम मे से कितनो के घर मे भी तो औरत की यही छवि बनी है एक बार सोचियेगा जरूर क्या औरत का बस यही वजूद है । हमारे बेटा बेटी इससे क्या सीख रहे एक बार विचार जरूर कीजियेगा।

आपकी दोस्त

#समझौता 

संगीता अग्रवाल

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