गेस्ट हाऊस पंहुच कर, अनुराधा कपड़े बदलकर बिस्तर में लेट गई और आज की एक एक घटना का स्मरण करने लगी।
उफ्फ़ कितना सुखद अनुभव था… आज उसका “जन्म दिवस” था, और आज ही कुमार ने उसे “प्रेम प्रस्ताव” भी दिया। तभी उसे कुमार के दिए गिफ्ट मोबाइल की याद आई, उसने पैकेट से निकाल कर मोबाइल देखा, बहुत प्यारा और बेशकीमती उपहार था उसके लिए, कल एक “सिमकार्ड” लेना पड़ेगा इस मोबाइल के लिए। एक बार मोबाइल शुरू हो जाएगा तो वह पहला फ़ोन कुमार को ही करेगी, यह सोचते सोचते अनुराधा कब सो गई पता ही नहीं चला।
सुबह उठकर ऑफिस जाने से पहले उसने अपने पिता को फ़ोन किया, उन्हें कल शाम कुमार के साथ की गई पार्टी के बारे में बताया और कहा कि कुमार ने उसे बेशकीमती उपहार मोबाइल फोन दिया है।
अनुभवी वीरेश्वर मिश्रा समझ गए थे, कि कुमार और अनुराधा में नजदीकियां बढ़ रही थी, इसलिए उन्होंने अनुराधा से पूछा कि बेटा कुमार से उसके “परिवार और खानदान” के बारे में पूछना, फिर हम उससे बात करेंगे।अनुराधा ने कहा कि ठीक है, मै उनसे पूछकर आपको खबर कर दूंगी।
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ऑफिस पहुंच कर अनुराधा ने सबसे पहले इंस्पेक्टर विनोद कुशवाहा को फ़ोन करके अपनी आईडी देते हुए एक सिमकार्ड अपने नाम पर मंगवाने के लिए भेज दिया।
फ़िर चाय का ऑर्डर देकर कुमार का इंतजार करने लगी, आज उसका यहां पर आखिरी वर्किंग डे है, सोच कर अनुराधा थोड़ा दुखी थी, उसने सोचा कि आज की शाम वो कुमार के साथ बिताएगी, पर कुमार आज बहुत ही व्यस्त थे, ज़रूरी ब्रीफिंग निपटाकर, कुमार अन्य सहयोगियों से मथुरा के बारे में जानकारियां एकत्रित कर रहें थे, तभी इंस्पेक्टर विनोद अनुराधा की सिम कार्ड और एक फार्म लेकर आ गया, अनुराधा के दस्तखत के बाद, उस फार्म को इंस्पेक्टर विनोद ने एक हवलदार के साथ सिम को जल्दी चालू करवाने कि हिदायत देकर टेलीकॉम कंपनी के ऑफिस में भेज दिया।
लंच के लिए कुमार का इंतजार करते करते तीन बज गया था, पर अभी भी वह अपने सहयोगियों के साथ चर्चा में मस्त था, मानो उसे खाने का याद ही न हो, तभी अनुराधा ने चपरासी के मार्फत कुमार को संदेश भिजवाया कि उन्हें कुछ डीटेल्स चाहिए।
कुमार अपने साथियों से विदा लेकर अनुराधा के पास आकर बोला की बोलो क्या जानकारी चाहिए थी?
अनुराधा ने कुमार से पूछा यही कि हम आज लंच कितने बजे करेगें?
कुमार मन ही मन दुविधा में पड़ गया, उसे जब लंच के वक़्त सहयोगियों ने कुमार के साथ अपना टिफिन शेयर किया, तो कुमार ने उनके साथ भरपेट खाना खा लिया था, उसे अनुराधा का तो ध्यान ही नहीं रहा, कुमार ने अपनी झेप मिटाते हुए अनुराधा से कहा कि, हाँ तो बताओ क्या ऑर्डर करू?
अनुराधा ने कुमार की पसंद कि ध्यान में रखते हुए सादा खाना ऑर्डर कर दिया, इधर कुमार के जाने के गम में अनुराधा को खाना नहीं खाया जा रहा था, और उधर कुमार भी पेट पहले से ही भरा होने के कारण खा नहीं पा रहा था।
खाना खाते खाते ही अनुराधा ने कुमार से कहा कि, आज शाम का काम जल्दी निपटा कर, हम रात तक साथ रहेंगे, और डिनर भी साथ ही करेंगे।
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लगभग चार बजे करीब कमिश्नर सर का अनुराधा के टेबल पर फ़ोन आया, उन्होंने उसे और कुमार दोनों को ही तुरंत अपने ऑफिस में बुलाया था। अनुराधा ने कुमार को कमिश्नर सर का संदेश दिया और वो दोनों तुरंत ही कार से कमिश्नर सर के ऑफिस पहंचे।
कमिश्नर सर ने कुमार के औपचारिक विदाई समारोह का प्रबंध कर रखा था, उन्होंने कुमार को एक स्मृति चिन्ह, प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया, कुमार से एक केक करवाई गई, उसके बाद सारे स्टाफ को चाय, और स्नेक्स और केक दिया गया। इसके बाद कमिश्नर सर ने कुमार को रात के डिनर के लिए आमंत्रित कर दिया।
कुमार पशोपेश में पड़ गया, वह कमिश्नर सर को मना नहीं कर सकता था, और अनुराधा को नाराज़ भी नहीं करना चाहता था। उसे लगा कि शायद कमिश्नर सर उसके साथ अनुराधा को भी इनवाइट कर दें, परन्तु कमिश्नर सर ने अनुराधा को कुछ नहीं कहा, बल्कि उसे यह कहकर ऑफिस वापस जाने को बोल दिया, कि उन्हें कुमार से कुछ जरूरी काम है, तब तक तुम अपने ऑफिस में जाकर अपना काम निपटा सकती हो।
अनमने ढंग से अनुराधा ऑफिस लौट आईं, शाम होते ही उसे लगा कि रोज की तरह शायद कुमार आज भी उसके साथ गेस्ट हाउस आएंगे। पर कुमार नहीं आए।
गेस्ट हाउस पहुंचकर फ्रेश होकर, अनुराधा ने खुद के लिए चाय मंगवाई, उसे अकेले चाय पीते हुए बहुत दुख हो रहा था। चाय पीकर जब वापस रूम में आकर अनुराधा टीवी देख रही थी, कि तभी उसके मोबाइल पर फोन एक्टिवेशन का मैसेज आया। अनुराधा ने खुशी से डायरी में लिखा कुमार का फोन नंबर निकाल कर लगाया, पर उस तरफ से किसी ने फोन नहीं उठाया, अनुराधा रह रह कर 15-20 मिनट में कुमार फ़ोन लगा रही थी, पर उस तरफ से कोई फोन ही नहीं उठा रहा था, वह किसी अनहोनी की आशंका से भी चिंतित हो रही थी। तभी उसे याद आया कि उसने अपने पिता से बात नहीं की है, इसलिए तुरंत उसने अपने पिता को फ़ोन लगाकर अपना मोबाइल नंबर दिया और उन सबका कुशलक्षेम पूछा।
रात 9 बजे करीब अनुराधा लॉबी में जाकर खाना खाने लगी, उसकी नज़र बार बार मोबाइल पर ही थी कि, शायद उसके मिस कॉल देख कर कुमार कोई फोन करे, पर कुमार का कोई फ़ोन नहीं आया था। खाना खाकर अनुराधा वापस रूम में जाकर टीवी देखने लगी, रात 11 बजे तक जब कुमार का कोई फोन नहीं आया तो अनुराधा ने आखिरी बार हिम्मत करके फ़िर फोन लगाया, तो दूसरी तरफ़ से आवाज आई कि “जी आप कौन बोल रहीं है?”
तब अनुराधा को याद आया कि कुमार के पास तो उसका नंबर तो है ही नहीं, शायद इसलिए वह फोन नहीं उठा रहा होगा।
अनुराधा ने अपना परिचय दिया, मै अनुराधा बोल रही हूं, मेरा मोबाइल नंबर सेव कर लो।
अनुराधा कि आवाज़ सुनकर कुमार खुशी से चहक उठा, बोला यार बहुत मिस कर रहा था तुम्हें, कमिश्नर सर ने डिनर में नहीं बुलाया होता तो आज की शाम हम साथ साथ गुजारते, अभी लौट ही रहा हूं उनकी डिनर पार्टी से, मेरा तो मन ही नहीं लग रहा था वहां पर..
कुमार की बात सुनकर अनुराधा को भी थोड़ी तसल्ली हुई, क़रीब आधा घंटा तक दोनों ने प्यार भरी बातें की, उसके बाद अनुराधा ने फ़ोन रख दिया, सोने से पहले कुमार ने अनुराधा को “गुड नाइट’ का मैसेज भी किया, अनुराधा ने भी उसका प्यार भरा रिप्लाई दिया।
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दूसरे दिन सुबह अनुराधा ऑफिस से आधा दिन की छुट्टी लेकर कुमार के क्वार्टर चली गई, वहां पर एक मिनी ट्रक में कुमार का सामान लोड हो रहा था, अनुराधा को अचानक आया देख कर कुमार चौक गया, फिर बोला देखो तुम मेरे यहां पहली बार आईं हो और मेरे पास तुम्हे चाय पिलाने के लिए भी इंतजाम नहीं है।
अनुराधा मुस्कुरा दी, बोली तो फिर क्यों न बाहर से मंगवा लेते हैं हम चाय, कुमार ने एक लड़के को भेज कर सभी लोगों के लिए पास के होटल से चाय मंगवाने को भेज दिया।
अनुराधा कुमार के क्वार्टर का जायजा ले रही थी, उसके जाने के बाद साफ सफ़ाई और मरम्मत हो जाने के बाद उसे यही क्वाटर मिलने वाला था।
कुमार का सामान सोफ़ा, अलमारी, फ्रिज, टीवी, गैस आदि पैक हो चुका था, कुछ थोड़े बहुत बरतन आदि किसी बैग में पैक कर दिए गए थे।
अब उस ख़ाली क्वार्टर में स्टोर रूम के पास बहुत सारी शराब कि खाली बोतले, सिगरेट के खाली पैक, बाथरूम और किचन के पास काई लगी हुई थी, और यहां वहां जाले लगे हुए थे। गार्डन में भी गिने चुने पौधे और कुछ पुराने वृक्ष लगे थे, वहां की सूखी घास दर्शा रही थी कि शायद महीनों से उधर पानी नहीं डाला गया होगा, कुल मिलाकर वह क्वाटर घर कम “भूत बंगला” ज्यादा लग रहा था।
तभी चाय आ गई, चाय पीते ही कुमार ने अनुराधा से कहा कि मैंने इंस्पेक्टर विनोद को कल ही कुछ लेबर भेजने को कह दिया है, जो यहां आकर साफ़ सफाई का काम करवा देंगें। कुमार की नज़र भी शराब की खाली बोतलों पर पड़ी, वह बोला यही मेरे खाली वक़्त कि साथी थी..
अनुराधा ने कुमार को हिदायत देकर कहा कि अब तुम्हारे ये साथी मथुरा में नहीं रहना चाहिए, कुमार ने आज्ञाकारी बालक की तरह सिर हिलाकर आश्वासन दिया।
सामन लोड होते ही, कुछ सूटकेस कुमार ने अपनी कार में रखी और अनुराधा से निकलने के लिए विदा मांगी, अनुराधा के दिल में था कि वह जाने से पहले एक बार कुमार से गले मिल ले। परन्तु वहां पर मौजूद व्यक्तियों और लेबर के कारण कुछ कह न सकी।
कार स्टार्ट करते ही, कुमार ने अनुराधा को बाय किया, तो अनुराधा बोली कि वहां पहुंचते ही मुझे फ़ोन करना।
कुमार हंसकर बोला अरे मथुरा है कि कितना दूर, तीन साढ़े तीन घंटे में तो हम उस घर में भी पहुंच जाएंगे।
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कुमार के जाते ही अनुराधा अपने कार्यालय आ गई, आज से उसका स्वतंत्र रूप कार्य प्रारंभ हो चुका था, इसलिए वह हर काम और विषय को अपनी मसूरी में मिली ट्रेंनिग और कुमार के दिए “इंडक्शन” के अनुभव के आधार पर धीरे-धीरे सूझबूझ के साथ करना प्रारम्भ कर चुकी थी।
लगभग चार घंटे बाद कुमार का फ़ोन आया कि वह और उसका सामान ठीक ठाक मथुरा में पहुंच गया है, उसके बाद अनुराधा अपने कार्य में व्यस्त हो गई, शाम होते ही वह अपने गेस्ट हाउस में आ गई डिनर आदि करके अनुराधा ने मोबाइल से पहले अपने पिता से बात की उसके बाद कुमार से बातें कि। फिर वही “गुड नाइट” का प्यार भरा मैसेज.. अब तो रोज़ की यही दिनचर्या हो गई थी।
दूसरे दिन कमिश्नर सर ने किसी “कॉन्ट्रैक्टर” को बुलाकर कुमार के क्वार्टर कि मरम्मत और साफ सफाई के काम में लगवा दिया, लगभग एक सफ्ताह में ही वह क्वार्टर पूरी तरह से रेडी हो जाने पर कमिश्नर सर ने अनुराधा को बुलाकर उस क्वार्टर को ऑफिशियल रूप से सौप दिया..
अनुराधा ने शाम को उस क्वार्टर में जाकर देखा और इंस्पेक्टर विनोद को फ़ोन करके दूसरे दिन कुछ लेबर वगैरह भेजने को कहा। उसे इस क्वार्टर को अपने अनुरूप सजाना था।
दूसरे दिन ऑफिस जाने से पहले अनुराधा उस क्वार्टर में पहुंच गई जंहा इंस्पेक्टर विनोद की भेजी हुई लेबर अनुराधा का पहले से ही इंतजार कर रही थी।
अनुराधा ने उन्हें, गार्डन में उगी हुई फालतू झाड़ियां, घांस आदि साफ करने को कहा, वहां लगे पुराने पेड़ो के चारों तरफ घेरे में खुदाई करवाई, नल की फिटिंग करने वाले को बुलाकर किचिन, बाथरूम और गार्डन में नल से पानी देने की पूरी व्यवस्था करने को कहकर वह ऑफिस निकल गई।
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लंच टाइम में अनुराधा ने ऑफिस के माली को बुलाकर उसे पैसे देते हुए कहा कि वह कल सुबह उसकी पसन्द के कुछ पौधे जैसे गुलाब, चमेली, मोगरा, गुडहल, तुलसी, गेंदा, और कुछ डेकोरेटिव प्लांट्स गमलों के साथ में ले आने को कहा। माली ने कुछ और पौधे ऑफिस से कलम करके भी निकाल लिए और शाम को ही जाकर उस क्वार्टर में रख दिए।
दूसरे दिन सुबह अनुराधा ने उस माली को पौधे कहां लगाना है, और फूल के गमले किधर रखने हैं आदि निर्देश करके ऑफिस आ गई।
अब उसका क्वार्टर पूरी तरह से तैयार हो गया था। अनुराधा ने अपने पिता को फ़ोन करके उन्हें अपने साथ में गाजियाबाद आने के लिए कहा, तो उन्होंने उसे कहा कि अब वह अकेले नहीं है, उनके साथ उनके मित्र भास्कर राव त्रिवेदी और उनकी पत्नी भी तो रह रहें है, इस दशा में यदि वो अनुराधा के साथ गाजियाबाद आ गए तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा। इसके अलावा “ओल्ड होम्स” कि जिम्मेदारी भी तो है उनके उपर।
परन्तु अनुराधा ने तो जिद ही पकड़ ली थी, उसने कहा कि पिताजी मेरा सपना था कि जब मै बड़ी होकर कुछ बन जाऊं तो हमेशा आप और मां को अपने साथ ही रखूंगी, अब मां तो है नहीं, इस दशा में आप मुझे अकेले मत छोड़िए, रहा सवाल आपके मित्र भास्कर अंकल और सुलक्षणा आंटी का तो उन्हें भी अपने साथ यहां के आईए, यह क्वार्टर बहुत बड़ा है, वो दोनों भी साथ में रहेंगे तो मेरे ऑफिस जाने के बाद आपको बोरियत भी नहीं होगी ।
इस बात पर वीरेश्वर मिश्रा ने खुश होकर भास्कर राव से आग्रह किया, तो भास्कर राव अनमने ढंग से राजी हो गए, क्योंकि उनका अपना नोयडा का घर तो किराए पर दिया हुआ है, और एग्रीमेंट के हिसाब से यदि उन्हें अपना घर खाली करना है, तो किरायेदार को दो महीने का वक्त देना होगा, इसी बीच अनुराधा ने भी फोन पर उन्हें अपने पिता के साथ आने का बहुत आग्रह किया जिसे वह मना नहीं कर सके।
लगभग सप्ताह भर में ही वीरेश्वर मिश्रा ने अपने ओल्ड होम कि जिम्मेदारी के लिए एक व्यक्ति नियुक्ति कर दिया।
फिर एक ट्रक में जरूरी सामान लोड करवाकर, वो तीनों ट्रेन से अनुराधा के पास गाजियाबाद चले आए।
अनुराधा स्वयं ही उन तीनों को लेने के लिए रेलवे स्टेशन गई थी, उसके साथ आए हवलदारों ने वीरेश्वर मिश्रा और भास्कर राव त्रिवेदी का सामान कुली की मदद से सीधा उनकी गाड़ी में रखवा कर आगे निकल गए, अनुराधा अपनी नीली बत्ती की गाड़ी में पिता, भास्कर अंकल और सुलक्षणा आंटी के साथ में अपने क्वार्टर की तरफ जा रही थी, वीरेश्वर मिश्रा अपनी बेटी की “वी आई पी” छवि देख कर बहुत खुश हो रहे थे।
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कुटील चाल (भाग-13) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
स्वलिखित
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अविनाश स आठल्ये