अनुराधा बार-बार घड़ी देख रही थी, ऑफिस टाइम ख़तम होने के इंतजार में, आज उसे पहली बार लग रहा था, कि वक़्त कितना धीरे धीरे चल रहा है, जैसे ही शाम के 6 बजे उसने कुमार सर की तरफ देखा, जो कि अभी भी किसी फाइल में खोए हुए थे, उसने खीझते हुए कहा, सर क्या यह फ़ाइल हम कल नहीं देख सकते?
कुमार सर ने पहले अनुराधा कि और देखा, फिर ऑफिस की दीवाल पर टंगी बड़ी सी घड़ी कि तऱफ देखा, उसमें अभी छह बजकर पांच मिनट हो चुके थे। मुस्कुराकर उस फाइल के एक पेज को फोल्ड करके सारी फाइल्स अनुराधा को दराज़ में रखने को बोल दिया।
रोज़ की तरह आज भी कुमार सर उस गेस्ट हाउस तक ड्रॉप करने कार से आए, और उसके उतरते ही बोले तुम 8 बजे रेडी रहना मै आता हूं, अनुराधा ने कुमार सर से कहा सर आज चाय नहीं पियेंगे क्या?
कुमार सर ने कहा, नहीं आज रुका तो लेट हो जाऊंगा।
उनके जाते ही अनुराधा ने वहीं लॉबी में चाय पी, आज उसे अकेले में चाय पीना बहुत बोर लग रहा था।
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अनुराधा रूम में जाकर थोड़ा रेस्ट करने के बाद, अनुराधा इत्मीनान से अच्छे से तैयार हुई।
अपना मन पसन्द पिंक कलर का घेर वाला सलवार सूट, पर्ल नेकलेस और इयर रिंग, मैचिंग सैंडल्स, लिपस्टिक आदि, अनुराधा तो खुद को देख कर ही शर्मा सी उठी थी।
लॉबी में आकर अनुराधा ने देखा कि अभी थोड़ा वक्त है तो पिताजी से बात की, सुलक्षणा आंटी से भी जल्दी में ही संक्षिप्त बात की, इसलिए उन्होंने पूछ ही लिया क्या हुआ बेटी तेरी तबियत तो ठीक है न।
अनुराधा ने कहा, नहीं आंटी दरअसल कुमार सर आ रहें हैं, उनके साथ मुझे अभी डिनर पर जाना है।
अनुराधा कि बात सुनकर जाने अनजाने में सुलक्षणा को बुरा ही लग रहा था, क्यूंकि वह अनुराधा को अपनी बहू के रूप में पसंद कर चुकी थी, यदि अरविंद के बारे में उस कुछ भी पता चलता तो शायद वह ये बाद अनुराधा के पिता वीरेश्वर मिश्रा से भी कह चुकी होती।
हमेशा टाइम पर चलने वाले कुमार सर आज 15 मिनट देर से आए, एकदम सूट पैंट चमकीले जूते पहनकर मानो किसी ऑफिस की पार्टी को अटेंड करना हो।
कुमार सर के इस लिबास को देखकर अनुराधा को हंसी आ गई, फिर भी उसने कुमार सर से कहा, क्या बात है सर एकदम हीरो की तरह लग रहें है आप तो?
कुमार सर ने मुस्कुराकर स्टाइल से थैंक्स कहा, और अनुराधा के लिए कार का दरवाजा खोल दिया।
अनुराधा कुमार सर के साथ आगे की सीट पर बैठ कर आशा भरी नज़र से कुमार को देख रही थी, तभी कुमार ने कहा चलो हम आज गाजियाबाद के सबसे अच्छे रेस्टोरेंट चलेंगे, कुमार की कार तेज गति से सड़क पर दौड़ने लगी, और इधर अनुराधा मन ही मन सोचने लगी, कितना नीरस इंसान हैं ये कुमार सर उसके इतने सजे धजे रूप को देखकर कम से कम प्यार भरे दो शब्द तो बोल देते पर महाशय जी सिर्फ अपनी तारीफ़ सुनकर पता नहीं किस खुशफहमी में जी रहा है, आखिर किस के लिए उसने घंटा भर बैठकर इतना श्रृंगार किया था?
पता नहीं यह मुझे बर्थडे का कोई फूल वगैरह भी देगा या यूँ ही रूखा सूखा व्यवहार करके बर्थडे का पूरा प्लान चौपट कर देगा।
कुछ देर बाद कार गाजियाबाद के एक शानदार रेस्टोरेंट के सामने रुकी, कार पार्क करके अनुराधा, कुमार सर के साथ उस रेस्टोरेंट में प्रवेश करने लगी, उन दोनों को साथ आते देख कर कोई भी उनको प्रेमी युगल ही समझ सकता था, भीतर प्रवेश करते ही अनुराधा ने देखा कि वह एक महंगा सा रेस्टोरेंट है, शायद इसलिए वहां पर लोगों की आवाजाही बहुत कम है, बहुत शालीन तरीके से एक वेटर ने उन दोनों को एक जगह पर बैठने को कहा, पानी देने के बाद उसने मीनू कार्ड कुमार और अनुराधा के सामने रख दिया।
अनुराधा ने कुमार से कहा, आज का डिनर मेरी तरफ़ से है, इसलिए आज आपको अपनी पसंद का खाना बताना है, और हाँ यहां पर प्लीज़ “दाल चावल सब्जी रोटी” का ऑर्डर मत करना।
उसकी बात सुनकर कुमार सर खिलखिलाकर हंस दिये, बहुत दिन बाद अनुराधा ने कुमार सर कि ऐसी उन्मुक्त हंसी देखी थी। उसने कुमार सर से कहा कि सर आप हँसते हुए बहुत प्यारे लगते है।
कुमार ने प्यार भरी नज़र से अनुराधा को देखा और मानो कुछ कहना चाह रहा हो, पर तभी वेटर आ गया खाने का आर्डर लेने ले लिए।
कुमार ने पहले सूप का ऑर्डर किया, उसके बाद चाइनीज़ फूड का ऑर्डर किया।
वेटर के खाना लाने तक अनुराधा सोच रही थी कि कुमार सर से क्या आज वह अपने मन की बात कह दे, पर क्या पता कुमार सर के मन में कोई और हो तो..
उधर कुमार सर कुछ बोलने की कोशिश करते हुए बोले अनुराधा तुम..
अनुराधा ने आशा भरी नज़र से कुमार सर की और देखा बोला जी सर, मै क्या?
कुमार सर ने हड़बड़ाहट में बात घूमा दी, बोले तुम्हें चाइनीज़ डिश तो पसंद है न, मैंने तुमसे बिना पूछे ऑर्डर कर दिया था इसलिए पूछा?
अनुराधा झुंझला उठी वो क्या सोच रही थी और कुमार सर तो..
खैर इसी कशमकश में कि क्या बोले क्या नहीं, खाना आ भी गया, और इधर उधर की बातें करते हुए दोनों ने खाना खत्म किया।
जब वेटर दुबारा पूछने आया तो अनुराधा ने कहा, सर आज मेरा “जन्म दिवस” है, कम से कम कुछ मीठा तो ऑर्डर कर देते, कुमार सर ने कहा कि हा मुझे गुलाब जामुन बहुत पसंद हैं, क्या यहां मिल जाएंगे?
वेटर ने कहा जी बिल्कुल और ऑर्डर नोट करके चला गया।
उसके जाने के बाद कुमार सर ने अनुराधा से कहा, तुम बैठो मै “पांच मिनट” में आता हूं, कहकर कुमार सर उस अकेला छोड़कर रेस्टोरेंट के बाहर निकल गए..
उनके जाते ही अनुराधा सोचने लगी, अब क्या काम याद आ गया कुमार सर को?
तभी कुमार सर एक हाथ में गिफ्ट बॉक्स, और एक प्यारा सा गुलदस्ता लाते हुए दिखे।
अनुराधा मन ही मन बहुत खुश हो रही थी, पर उसने अपनी खुशी छुपाते हुए कुमार सर से कहा- अरे सर इसकी क्या जरूरत थी, मुझे तो आपने सुबह ही विश कर दिया था न।
कुमार सर ने कहा, कि यह गुलदस्ता और गिफ्ट मै कार में लेकर ही आया था, पर तुम्हें देने के लिए सही अवसर नहीं मिल पा रहा था, आज का ये दिन मै आपके साथ साथ अपने लिए भी स्पेशल बनाना चाहता हूं इसलिए मेरी यह भेट स्वीकार करो , कुमार सर ने अनुराधा को गुलदस्ता पकड़ाते हुए कहा, जन्म दिवस की ढेर सारी बधाइयां, ईश्वर आपकी हर मनकामना पूर्ण करे।
अनुराधा ने खुश होकर, गुलदस्ता स्वीकार किया, और कहा कि सच में सर आपके मेरे साथ आने से ही मेरा जन्म दिवस स्पेशल बन गया है।
तभी कुमार सर ने साथ में लाया छोटा सा गिफ्ट बॉक्स अनुराधा को देते हुए कहा, कि अपने जन्म दिवस के उपलक्ष्य में आपको मेरी तरफ से यह छोटी सी भेट!!
अनुराधा हर्ष मिश्रित आश्चर्य से बोली अब यह क्या है सर? यह गुलदस्ता और आपका आना ही बहुत था मेरे लिए, फिर यह गिफ्ट कि “औेपचारिकता’ क्यों?
कुमार सर ने कहा, क्योंकि “तुम बहुत खास हो मेरे लिए!”
अब गिफ्ट खोल कर देखो तो सही,
अनुराधा तो कुमार सर के इन शब्दों से ही अभिभूत हो गई थी, उसने सहमते हुए गिफ्ट बॉक्स खोला तो उसमें एक सैमसंग का महंगा सा मोबाइल था।
अनुराधा घबराकर बोली अरे सर मै किसी से भी इतना महंगा गिफ्ट नहीं लेती, प्लीज़ आप इसे वापस रख लीजिए। कहकर अनुराधा ने मोबाइल फोन गिफ्ट बॉक्स सहित कुमार सर की तरफ वापस सरकाया..
कुमार सर ने शांति से अनुराधा के हाथों को पकड़ते हुए रोका और कहा, अनुराधा उस दिन तुमने मुझसे कार में पूछा था न कि मैंने अब तक शादी क्यों नहीं की, और मुझे कैसी लड़की पसंद है, तो उसका जवाब है, मुझे कोई लड़की तुम जैसी मिली ही नहीं, मुझे तो बिल्कुल तुम्हारी ही तरह लड़की पसंद है, पर कोई आज तक मिली ही नहीं, ऐसा नहीं कि कोई तुमसे सुंदर लड़की मुझे कभी दिखी न हो, परन्तु मेरे पद और पोजिशन को देखकर मुझे जो लड़कियां नज़र आती भी थी मैं उनकी निगाहों में अपने लिए मौन आमंत्रण सा देखता था, मुझे समानता का रिश्ता पसन्द है।
मुझे नफ़रत सी हो चुकी थी उन निगाहों से, कोई अच्छी लड़की मिलती भी तो मेरे हिसाब से अच्छी पढ़ी लिखी नहीं थी, किसी में कुछ कमी दिखती तो किसी में कुछ.. पर तुम मेरे जीवन में आने वाली वो पहली लड़की हो जिसने मुझे पहली मुलाकात में जब ने तुमसे गलती से टकराया था तो तुमने मुझे झकझोर दिया था, वह भी मेरे पूरे स्टाफ के सामने ही, मेरा घमंड, मेरा रुतबा तुमने पल भर में गिरा कर साबित के दिया था कि “औरत की अस्मिता के सामने किसी भी पुरुष की हैसियत कुछ भी नहीं है।”
माना कि मै तुमसे गलती से टकराया था परन्तु एक रात पहले इतनी शराब क्यों पीना कि अगले दिन मुंह से उसकी बदबू भी न जाए? क्या था मै और क्या बन चला था, और शायद तुम मुझसे नहीं टकराती तो शायद कब तक ऐसा ही रहता, सोच भी नहीं सकता, तुमसे मिलने के बाद ही मैंने आत्ममंथन किया और अपनी बुराइयों को दूर करने का प्रयास करने लगा, जिस शराब को डॉक्टर्स और दोस्तो के बार बार मना करने के बाद भी नहीं छोड़ पाया था, तुमसे नज़र मिलाकर बात करने की हसरत में कैसे उस शराब को छोड़ दिया पता भी नहीं चला। तुम मेरी प्रेरणा हो.. मुझे बेहद पसंद हो.. और मै तुमसे प्यार करने लगा हूं..और अगर तुम्हे भी मेरा प्यार कबूल हो तो प्लीज़ यह मोबाइल कि भेट स्वीकार कर लो.. कहते कहते कुमार सर भावुक हो उठे..
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अनुराधा उनकी बात सुनकर खुद भी भावुक हो चली थी, बोली सर, कुछ बाते जाने अनजाने में हो जाती है, जैसे आप मुझसे अनजाने में टकराए और उसके बाद मैंने आपको जाने-अनजाने में कितना कुछ सुनाया, पर कुछ भी हो यदि उस सबसे आपकी शराब पीने की आदत छूट गई तो जान लीजिए कि यह ईश्वर की ही मर्जी थी।
तभी वेटर गर्मागर्म रसगुल्ले लेकर आ गया, रसगुल्ले की मिठास से भी ज्यादा मिठास कुमार सर और अनुराधा कि बातों मे हो रही थी।
अनुराधा ने कुमार सर कि भेट स्वीकार करते हुए कहा कि थैंक्स सर इस प्यारी सी भेंट और मेरा जन्म दिवस यादगार बनाने के लिए।
कुमार ने कहा, एक बात और कहना था!
अनुराधा ने सहमकर पूछा क्या?
कुमार ने कहा अब से तुम मुझे ‘सर’ नहीं बोलोगी।
अनुराधा ने कहा कि वो तो आप मेरे से सीनियर है इसलिए आपको सर बोलती हूं।
कुमार ने हँसकर कहा तो क्या शादी के बाद भी मुझे सर ही बोलोगी?
अनुराधा शर्माते हुए बोली, ठीक है, आज से मै आपको सिर्फ कुमार कहूंगी।
रेस्टोरेंट का बिल पेमेंट करके अनुराधा और कुमार एक दूसरे का हाथ पकड़े बाहर निकल कर कार में बैठे, कुमार का चेहरा बता रहा था कि वो कितना खुश है, अनुराधा भी खुशी से चहक रही थी, कुमार उसे गाजियाबाद के खूबसूरत इलाकों को दिखाते हुए वापस गेस्ट हाउस की तरफ जा रहा था, और अनुराधा का मन कह रहा था कि काश! यह सफ़र कभी न छूटे, और हम यूंही सारी रात सड़क पर एकदुसरे के बाहों में बाहें डाले चलते रहें।
परन्तु उन दोनों को अपनी मर्यादा का भी ध्यान था, गेस्ट हाउस से पहले कुमार सर ने कार रोककर अनुराधा से कहां, अनुराधा कितनी अजीब बात है न, आज ही हमने प्यार इकरार किया, और कल मेरा गाजियाबाद में आखिरी वर्किंग डे है, जिस क्वार्टर को छोड़कर में परसों मथुरा चला जाऊंगा, मेरे जाने के बाद तुम ही वहां पर शिफ्ट होगी। अभी मिलते ही जुदाई का ग़म..
अनुराधा ने संयत होते हुए कहा, अभी भले ही मैंने प्यार का कबूलनामा किया है, परन्तु इस फ़ैसले पर फाइनल मुँहर तो मेरे पिताजी ही लगाएंगे। उनसे बिना अनुमति लिए मै शादी जैसा अपने जीवन का अहम फैसला खुद नहीं कर सकती, इसलिए आप अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखो, मेरा पिता से मेरा विधिवत हाथ मांगना, फिर शादी की बात सोचना।
कुमार ने अधीर होते हुए कहा, मै मेरठ जाकर इसी रविवार को लखनउ चला जाता हूं।
इस पर अनुराधा हंस पड़ी बोली अरे कहां तो आप शाम तक जाते जाते प्यार का इजहार ही नहीं कर रहे थे, और अब इजहार करने के साथ ही सीधा डोली में के जाने की तैयारी है, कुमार जी प्यार का मजा तो इंतजार में ही आता है, थोड़ा सब्र करिये, पिताजी के लखनउ से यहां शिफ्ट हो जाने पर, मै खुद उनसे सारी बाते कहूंगी, और उनकी अनुमति मिलने पर आपको बुलाऊंगी।
कुमार ने उदास मन से अनुराधा को गेस्ट हाउस में ड्रॉप करने के लिए कार रोकी, तो अनुराधा, कुमार के पास आकर उसके कंधे में सर रख कर कहा कि मुझे भी तुम्हारे बिना यहां अच्छा नहीं लगेगा, पर क्या करें ..
कुमार ने अनुराधा का माथा चूम कर उसे आश्वासन दिया कि उसे लखनऊ शिफ्ट होने पर वह अनुराधा के पिता से मिलने जरूर आएगा। अनुराधा कार से उतर कर कुमार कि कार ओझल होने तक उस बाय करती रही, फिर भारी कदमों से “गेस्ट हाउस’ में अपने रूम की और चल पड़ी।
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कुटील चाल (भाग-12) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
स्वलिखित
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अविनाश स आठल्ये