कुछ बुजुर्ग भी गलत होते है – संगीता अग्रवाल

” रीमा ओ रीमा बहु मेरी चाय नही आई अब तक !” किशोरीलाल जी अपने कमरे से चिल्लाए।

” अभी लाई बाबूजी दो मिनट बस !” रीमा ने रसोई से ही आवाज दी।

” तुम करती क्या हो पता नही जो एक चाय भी समय से नही दे सकती हो …तुम्हारी सास थी तो मुझे मेरे जागने से पहले चाय की खुशबू आ जाती थी !” चाय का गिलास लेते हुए किशोरिलाल जी बोले। रीमा ने नजरे नीची कर ली अब वो कैसे कहती की मुझे बच्चों पति और आपको सबको देखना पड़ता है बच्चे स्कूल जाते और पति ऑफिस तो उनको लेट ना हो ये ख्याल रखना पड़ता है । कहती भी तो व्यर्थ का बवाल ही होता।

किशोरीलाल जी एक दबंग किस्म की शख्सियत जिन्हे अपने आगे कोई दिखाई नहीं देता जब तक पत्नी जीवित थी उसे एक पल चैन ना लेने दिया अब बहु के साथ भी वही सब। सब कुछ उन्हे समय से चाहिए जरा एक मिनट भी इधर से उधर हुआ तो बस समझो सबकी शामत आ जाती थी।पत्नी पर हाथ उठाने से भी नही चूकते थे वो। बेटा केशव बचपन से ही उनसे डरता था आज एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता है कितने लोग उसके नीचे काम करते हैं पर घर में आज भी वो पापा की तेज आवाज से खौफ खाता है। जब केशव ही उन्हें कुछ बोलने की हिम्मत नही रखता था तो रीमा बेचारी क्या कहती। यहां तक की अब तो किशोरीलाल जी के पोता पोती भी उनसे खौफ खाने लगे थे जिससे उन्हें लगता घर में उनका सिक्का आज भी चलता है।




” ये नाश्ता बनाया है तुमने कौन खायेगा ऐसा नाश्ता !” नाश्ते की मेज पर किशोरीलाल जी फिर चिलाये !

” बाबूजी आपने ही रात कहा था मुझे हल्का नाश्ता दिया करो खाली बैठे हजम नही होता !” रीमा सहमती हुई बोली।

” हां तो हल्के से मतलब ये थोड़ी तुम सुखा पोहा रख दो सामने इतने साल हो गए इस घर में आए अभी तक कोई काम ठीक से नहीं सीखी हो मत भूलो ये घर मेरा है जब चाहे तुम सबको घर से बाहर खड़ा कर सकता हूं  !” चिल्लाते हुए किशोरीलाल जी बोले और नाश्ते की प्लेट फैंक दी। रीमा की आंख से आंसू निकल आए उसने केशव की तरफ देखा पर उसने लाचारी से गर्दन झुका ली।

रोज रोज अपमान के घूंट पीना रीमा के लिए असहनीय हो गया था जब तक सास थी वो उसे बचा लेती थी पर अब एक साल से वो नही तो सारा गुस्सा किशोरीलाल जी का रीमा पर ही निकलता है। उन्हे अपने घर का बहुत गुमान है जबकि मामूली सी प्राइवेट नौकरी में होने के कारण उनकी पेंशन नही आती तो घर का खर्च केशव ही करता है।

” सुनो अब मुझसे बाबूजी का गुस्सा नही झेला जाता माना पिता है हमारे मैं इज्जत करती हूं उनकी उनके काम करने में भी मुझे हर्ज नहीं पर ये तानाशाह रवैया अब बर्दाश्त के बाहर है मेरी !” एक दिन रीमा केशव से बोली।

” रीमा इस उम्र में पिता को अकेले बेसहारा छोड़ भी तो नही सकते हम और उनसे बदलने की उम्मीद करना बेकार है इसलिए हमें ही सब सहन करना होगा !” केशव बेचारगी से बोला।




” पर कब तक केशव !” रीमा ने पूछा।

” नही जानता रीमा अभी सो जाओ प्लीज फिर सुबह लेट हुआ उठने में तो बेवजह बवाल होगा !” ये बोल केशव लेट गया।

” ये क्या बहु तुमने मेरी सफेद कमीज नही धोई ?” सुबह नहाने के बाद किशोरीलाल जी चिल्लाए।

” वो बाबूजी मशीन खराब हो गई थी कल ही ठीक हुई है आज धो दूंगी !” रीमा बोली।

” मशीन खराब हो गई थी तो हाथ तो थे या वो भी टूट गए पहले कौन सा मशीन हुआ करती थी तब भी कपड़े धुलते थे ना पर आज कल की बहुओं से तो कोई काम नही होता हाथ से सारा दिन बस आराम करवा लो !” किशोरीलाल जी दहाड़े।

” बाबूजी सारा दिन काम ही करती हूं एक पैर पर खड़ी रहती आपकी सेवा में फिर भी सिर्फ सुनने को ही मिलता है। आप दूसरी कमीज भी तो पहन सकते हैं आज !” रीमा जाने आज कैसे बोल बैठी पर रीमा के इतना बोलते ही केशव और बच्चे भी खौफ में आ गए।

” मुझसे जुबान लड़ाती है जानती नही जिस घर में तुम रह रहे हो वो मेरा है !” ये बोल किशोरलाल जी रीमा पर हाथ उठाने को हुए।

” बस पिताजी बहुत हुआ अब। अब तक आपकी इज्जत के कारण चुप था पर अब हद हो गई वो बेचारी सारा दिन बाबूजी बाबूजी करके आपका हर काम करती है और बदले में उसे क्या मिलता है । मां को मैने सारी उम्र घुटते देखा है आपसे पिटने के बाद रोते देखा है पर मैं रीमा के साथ ये नही होने दूंगा !” केशव बाप का हाथ पकड़ते हुए बोला।

” तेरी ये मजाल ..मेरे सहारे जीने वाले मुझे ही आँख दिखा रहे है आज निकल जाओ सब मेरे घर से मुझे किसी की जरूरत नही यहां निकलो !” किशोरीलाल जी केशव को धक्के देते हुए बोले।

” पिता जी अब हम यहां रहना भी नही चाहते । घर तो मैने भी बहुत पहले खरीद लिया था बस आपके कारण जाना नही चाहते थे कि बुढ़ापे में आप बिना अपनो के सहारे कैसे रहोगे। पर अब आपके लिए एक नौकर का इंतजाम कर दूंगा मैं जो आपके सारे काम कर देगा आप रहिए अपने इस घर में अकेले और हां बहू को आपने इंसान नही समझा नौकर को समझ लेना वरना वो इतना सहन नही करेगा !” ये बोल केशव पत्नी और बच्चों को ले सामान बांधने चल दिया अपना।

दोस्तो ये कहानी मैने अपने कुछ पाठकों की डिमांड पर लिखी है जिनका ये कहना है आप हमेशा बेटे बहु की गलती लिखते पर जो माता पिता बहु बेटों का जीना मुहाल करते उनका क्या । तो दोस्तों  हर सिक्के के दो पहलू है कुछ घरों में मां बाप को बेटे बहुओं के कारण सहना पड़ता है पर आज भी कुछ घरों में मां या बाप अपने आगे बेटे बहु को कुछ नही समझते सबसे ज्यादा बहु को बेटा तो फिर भी बाहर रहता पर बहु जिसे सब काम देखने पड़ते उसे सब झेलना पड़ता है खासकर जब ससुर ऐसे हो और सास स्वर्गवासी हो गई हो। ऐसे में बेटे बहु के पास अलग होने के सिवा कोई चारा नहीं होता। ऐसे बुजुर्ग खुद ही खुद को बेसहारा करते है अपने बुढ़ापे के सहारे अपने परिवार को अलग कर।

क्या आप मुझसे इत्तेफाक रखते है।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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