कुछ तो लोग कहेगे – रीतू गुप्ता

आज ऐसे लग रहा था घर की दीवारे भी रो रही हो ।

 हर किसी की आँख में आंसू थे , आखिर भगवान ऐसे कैसे इतना  निर्दयी हो सकते है, जो अंकुश को असमय मौत दे दी।

 मीता अंकुश की पत्नी २ छोटे छोटे बच्चो  और बुढ़ी सास के साथ कैसे वक़्त गुजरेगी?

 कैसे घर का गुजारा होगा ?

अंकुश की एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गयी ।

वो अकेला कमाने वाला और खाने वाले चार।

सबसे बड़ा पहाड मीता पर गिरा था। वो बेसुध पड़ी थी।  

हमेशा बच्चों  को सीने से लगा कर रखने वाली मीता को आज बच्चों की कोई परवाह नहीं थी।

“अपना दर्द छुपा कर सास बार बार उसे उठा रही थी।

मीता उठ बच्चे भूखे है, रो रहे है,  उठ उनको खाना तो दे ।

उनका क्या कसूर?”

मीता कुछ नहीं बोल रही थी । बस आँखे लगातार बरस रही थी ।

बच्चेे  रिद्धि 6 साल और मिंकू 4 साल कोने में बैठे अपलक कभी अपनी माँ , कभी दादी कभी लोगो को देख रहे थे।

मिंकू रिद्धि से सवाल कर रहा था ..

,”दी,  पापा ज़मीं पे क्यों सो रहे हैं ?

ममा रो क्यों रही है ?”

 रिद्धि खुद कुछ समझ नहीं पा रही थी।

 जो भी उनकी बाते सुन रहा था .. हर कोई कहता .. भगवान इन मासुमों का क्या कसूर ?

तभी आवाजें आने लगी …

गाडी आ गयी… गाडी आ गयी…. बॉडी को उठाओ…

यह सुनते ही मीता उठ लिपट गयी अंकुश से और दहाड़े मार मार रोने लगी ।

मीता का भाई-    “उठ बहिन, जाने दे जीजा जी को।”

“ना भाई कैसे जी पाउगी मैं,

कैसे मेरे बच्चे … पलेगे,

मां जी का क्या होगा?” 

भाई .. “तेरा भाई अभी ज़िंदा है ।

मैं सब संभल लूंगा बहिन।” 

तभी मीता के जेठ .. “मीता जाने दो .. शाम का समय हो रहा है ।”

नहीं  भैया .. “थोड़ा इंतज़ार कर लो .. क्या पता उठ जाये।”

मीता का विलाप सबका दिल चीरने वाला था।

तभी सासु मां

 जिसकी खुद की हालत खराब थी पर जवान बहु को उठाने आ गयी ..

“मीता ,बिटिया तेरी माँ है न सब देख लेगी जाने दे बटा अंकुश को ।”

इतना कहते ही लिपट गयी मां से मीता और वो करुण रुदन पत्थर को  भी रुला गया। 

आखिर सब क्रियाा -कर्म हो गया, उठाला  भी हो गया ।

अब जेठ, भाई, घर के बाकी लोग .. आपस में बात करते हुए..

क्या किया जाये ..

जेठ- “मैं  हर महीने 2000 खाते में डाल दुंगा।”

भाई-  “मैं भी जितना मुझसे बन पड़ा .. करता रहुंगा ।”

सब यह बोल पल्ला झाड़ अपने अपने घर चल दिए। 

1 महीना गुजर गया ।

5000 दोनों की तरफ से अकाउंट में आ गया।

लेकिन 5000 से घर कहाँ  चलता है ।

राशन-पानी,  बिजली का बिल, स्कूल फीस सब 5000 में होते है भला … मीता की सास बुदबुदा रही थी। 

मीता चुप थी ।

सास – “मीता मैं सोच रही थी कि मैं आचार पापड़ का काम शुरू कर  दूं।”

मीता – मां क्या कह रही हो ?

सास ने कहा-  “उसे बेच थोड़ी तो  कमाई होगी ना।”

“माँ मेरे होते आप काम करेगी ,

कभी नहीं।”  

मैं ढुंढ रही हुं काम, जल्दी ही मिल जायेगा ।

“बिटिया जब तक नहीं मिलता तब तक सही।” सास बोली

“1 महीना और देखते है माँ .. अभी कुछ बचत पड़ी है उस से काम चला लगे। 

आप फ़िक्र न करो ।”

मीता यह बोल कमरे में आ गयी , उसको समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ?

उसने अपनी सहेलियों, रिश्तेदारों सब को बोल रखा था कोई काम हो तो बताये। 

पर कहते है ना अपनों का पता मुसीबत में ही  चलता है।

बैड पर आँखे बंद केर लेटी अंकुश को याद कर आंसू बहा रही थी.. क्यों चले गए अंकुश यूँ मझधार में छोड़ कर …

किसके भरोसे छोड़ कर …

अपनों के..

भगवान के…

हां भगवान ही कुछ करेंगे अब।

कान्हा जी आप ही कुछ करो… 

हम पर रहम करो कान्हा जी …

मन ही मन रोतेरोते…. भजन गुनगुनाने लगती है..

 *ओ पालनहारे,निर्गुण और न्यारे 

तुम बिन हमरा कोनो नही

हमरी उलझन सुलझाओ भगवान 

तुम बिन हमरा कोनो नही..* 

तभी फ़ोन की घंटी बजती  है …

उसकी बहुत पुरानी सहेली राधिका का फ़ोन आता है ।

हेलो मीता .. 

जी बोल रही हूँ ।

तूने पहचाना नहीं, तेरी सखी राधिका ..

 साथ पढते थे, खेलते थे..  सब भूल गयी क्या ?

मीता- “ओह राधिका तुम!

आज इतने सालों बाद।”

“आज पुरानी डायरी में तेरा नंबर मिला .. 

सोचा मिला कर देख लेती हुं, 

और देख सच में मिल गया।”- राधिका बोली 

मीता-  हम्म ।

राधिका- “क्या हुआ इतना ठंडा जवाब .?

तुझे ख़ुशी नहीं हो रही  मुझसे बात कर के।”

मीता- नहीं, खुश हूँ मैं।

राधिका- “क्या हुआ,  उदास क्यों है?

 कोई बात है क्या, मुझे बता  क्या पता मैं कुछ मदद  कर पाउ।

हमदर्दी के शब्द सुन मीता टूट गयी .. खूब रोई .. सारी कहानी बता दी .. 

राधिका तु ही बता क्या करू.. कहाँ जाऊ .. मर भी नहीं सकती .. 3 जान की ज़िम्मेदारी जो छोड़ गए अंकुश। 

राधिका'” तु चिंता न कर … मैं तेरे इस दुःख में तेरे साथ हूँ ,

मैं  करती हूँ कुछ ।”

दो दिन बाद राधिका अपने पति शाम के साथ मीता के घर पर थी…

दोनों सहेली मिल कर खूब रोई।

शाम ने रोती मीता के सर पर हाथ रखा और बोला-  “तुम आज से मेरी बहिन हो .. 

राधिका तुम्हारी खूब बाते करती है .. हम दोनों तुम्हारे साथ है। 

हम हर तरह से तुम्हारी सहायता करेंगे।”

मीता –  “शुक्रिया शाम जी, 

लेकिन मुझे पैसो की कोई हेल्प नहीं चहिये 

क्या आप मुझे कोई काम दिलवा सकते है ।

कहीं भी … नौकरी लगवा दे ..या कोई छोटा मोटा काम करवा दे ।”

शाम कुछ सोचते हुए.. 

आपको ड्राइविंग आती है।

मीता जी .. थोड़ी थोड़ी ।

शाम फ़ोन पर किसी से बात करते है ।

मीता कल सुबह और शाम आप ड्रॉविंग स्कूल ज्वाइन कर रही है ।

जैसे ही आप कार चलाने में एक्सपर्ट हो जाएगी मेरा एक दोस्त है  जो आप को ड्राइवर के तौर पर काम देगा ।

 शाम जी ..  पर लोग क्या कहेगे ..

एक औरत ड्राइवर …

ओर तरह तरह की लांछन भी लगायेगे ।

तभी मीता की सास – ” *लोगो की परवाह मत करो, वो तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे 

कुछ करोगी… तब भी, ना करोगी .. तब भी,

और अभी यह लोग आ रहे है क्या हमारी  तकलीफ बांटने ..नहीं ना 

क्युकी उनका काम सिर्फ कहना है, साथ देना* नहीं ।

लोगो को छोडो और अपने बच्चो के बारे में सोचो ।

मैं तुम्हारे साथ हूँ मीता।”

“जी माँ, सही कह रही हो आप” .. मीता बोली

शाम जी.. मैं तैयार हूँ,  आप कल से क्लासेज शुरू करवा दीजिये।

कुछ ही हफ़्तों में मीता  टैक्सी ड्राइवर बन गयी ।

धीरे धीरे उसकी कमाई बढ़ने लगी।

उनकी ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर आने लगी

धीरे धीरे मीता ने अपना ड्राइविंग स्कूल भी खोल लिया और अपने जैसी जरूरतमंद औरतों को गाड़ी सीखाना शरू कर दिया।

मीता ने अपनी सखी राधिका के साथ पार्टनरशिप में 3-4 गाडी ले ली, जिनकी ड्राइवर केवल उसके जैसी जरूरतमंद औरते ही होती थी ।

 आज मीता अपने सारे खर्चे खुद उठा रही थी, बिना किसा बाहरी मदद के ।

दोस्तों..

कभी भी मुसीबत आये, अपने भगवन पर भरोसा रखे, जब सब साथ छोड़ देते है फिर भगवान किसी ना किसी रूप में हाथ पकड़ ऊंचाइयों पर ले जाते है ।

दोस्तों कहानी कैसी लगी बताये जरूर ..

रीतू गुप्ता 

स्वरचित

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