परिस्थिति जन्य सुख और दुख तो सबके जीवन में ही घटित होते हैं लेकिन यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि किस परिस्थिति में उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी ।इस संदर्भ को मैं प्रमाणित नहीं कर पाती, अगर मैं सौभाग्य से मालती जी से ना मिली होती तो।
मेरे इस नए घर से कुछ ही दूरी पर उनका दो मंजिला मकान था उनके पति की मृत्यु हो चुकी थी, और उनका एक बेटा हैदराबाद में नौकरी करता था। दूसरा बेटा दूसरे शहर से इंजीनियरिंग कर रहा था। घर की दूसरी मंजिल को उन्होंने किराए पर दे रखा था।
और नीचे वह स्वयं अकेली रहती थीं। देखने में वह अत्यंत संपन्न सुसंस्कृत और संभ्रांत मालूम होती थीं।मानव कल्याण समिति, देहदान समिति एवं अनेक परोपकारी समितियों में वह बढ़-चढ़कर योगदान करतीं थी ।सवेरे और शाम अक्सर हम लोग पार्क में मिलते थे।
वह और औरतों से बिल्कुल अलग थी, वह ना कभी किसी की निंदा करती और अगर कोई कर भी रहा होता तो ज्यादातर तो वह सुनती ही नहीं थी,
अगर सुन भी लें, तो बात बदलने की चेष्टा करतीं थी, हां” अगर उन्हें लगता था कि वह किसी की भावनात्मक आर्थिक या किसी भी और तरह की मदद कर सकती हैं” —–तो वह ऐसा जरूर करतीं थी ।काफी लोगों की नजर में वह बहुत सम्माननीय थीं।
पता नहीं कब कब मे हम दोनों में बहुत प्रगाढ़ता हो गई, और एक दूसरे के घर भी आना जाना शुरू हो गया था। वहां जाने पर मुझे पता पड़ा कि पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने दोनों बेटों को संभाला और उनका कैरियर बनाने में योगदान दिया।
दोनों बेटे उन्हें छोड़कर जाना नहीं चाहते थे ,लेकिन बड़े बेटे को कैरियर का और छोटे को पढ़ाई का वास्ता देकर उन्होंने उन्हें विश्वास दिला कर भेजा, कि वह खाली समय दुखी हो कर बर्बाद नहीं करेंगी, बल्कि वह उन्हें एक प्रेरणा स्रोत के रूप में ही पाएंगे।
बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि उनके पति को उनका कमजोर होना कभी भी अच्छा नहीं लगता था। उनके जाने के बाद में भी वह यही महसूस करती है कि उनके पति उनके साथ आज भी है और हर असंभव काम को संभव करने में उनकी मदद करते हैं।
उनके बेटे की पढ़ाई पूरी हो गई थी, और उसका कैंपस सिलेक्शन भी दिल्ली में ही हो गया था।हम अक्सर हंसते हुए यही बात करते थे कि बेटे के आने के बाद इसकी शादी कर देते हैं ताकि घर में थोड़ी रौनक तो आए।
उस दिन वर्मा जी का फोन आते ही ऐसा लगा मानो जमीन पैरों के नीचे से सरक गई हो, वर्मा जी ने बतलाया मालती जी का बेटा जब पढ़ाई पूरी कर के रास्ते में आ रहा था, तो एक्सीडेंट के कारण उसकी रास्ते में ही मृत्यु हो गई। भागकर मालती जी के घर गए तो देखा
वह बेटे का क्रियाकर्म करने के लिए अपने गांव जा रही थी उनकी हालत असहनीय थी। परमात्मा उन्हें इस असीम दुख को सहन करने की शक्ति दे, इसी दुआ के साथ मैं उनके आने का इंतजार कर रही थी ।
लगभग 1 महीने के बाद वह घर वापस आईं। उनके घर गई तो वहां उनसे मिलने वालों का तांता लगा हुआ था।उनके चेहरे की शांति बरकरार थी और वह अपनी कामवाली से कह रहीं थी, कि सबको चाय पिलाकर भेजना, और वह खुद भी सब से आग्रह कर रहीं थीं
कि आप सब मिलने के लिए दूर से आए हैं ,कृपया चाय पी करके ही जाइए। उनको शांत देख कर मन को बहुत तसल्ली मिली। इतने बड़े हादसे के बाद कोई मां अपने आपको इतना संयत कैसे कर सकती है, अकल्पनीय था। उनके इस व्यवहार ने मन को बहुत भीतर तक प्रभावित किया था।
उनसे मिलने पर वह अब भी कोई दुख की ,तकलीफ की, निंदा की, किसी तरह की शिकायत की ,कोई बात नहीं करतीं थी ।उन्हें पूरा विश्वास था कि उनके दो बेटे थे, एक बेटा पति के पास सुरक्षित है ,और दूसरा हैदराबाद से दिल्ली स्थानांतरण हो कर उनके पास आ चुका था।
वह पूर्णतया समाज के प्रति समर्पित थी कोई उन्हें कुछ भी कहे वह तो औरों को भी यही समझती थी कि कुछ तो लोग कहेंगे तुम केवल अपनी आत्मा को जवाब दो। वह अब भी परोपकार के कामों में ही व्यस्त थीं। अपने एक रिश्तेदार के आग्रह पर उन्होंने अपने बेटे की शादी भी कर ली थी,
और उनके एक पोता भी हो गया था। मालती जी ने अपने बेटे को ऊपर की मंजिल में शिफ्ट कर दिया था ताकि बच्चे अपनी जिंदगी अपनी तरह से गुजारें। जो चाहे जैसे चाहे बनाए खाऐं। मालती जी ने तीसरी मंजिल पर एक बड़ा हॉल बनवाया है,
जिसमें कि अक्सर समितियों की मीटिंग होती रहती थी या कभी अमृतवाणी या और कोई पाठ जो भी मालती जी की इच्छा होती थी वह करवातीं थी। साल में एक या दो बार वह अपनी साथियों के साथ पर्यटन के लिए चली जाती थीं। उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं थी।
पाठकगण परिस्थितियों पर हमारा वश नहीं है परंतु परिस्थितियों में हम कैसा व्यवहार करेंगे, इसका ध्यान रखना अति आवश्यक है। आपका क्या ख्याल है? कॉमेंट्स द्वारा सूचित करें।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।