Moral Stories in Hindi : दिल्ली से अपनी बेटी और पिता जी के साथ मैं अपने घर वापस आई। करोना काल में फंसने के कारण हम कई महीनों बाद लौट रहे थे। मैंने अपने किरायेदार को फोन कर बता दिया था कि हम अमुक तारीख को सुबह पहुंच जाएंगे।
किरायेदार का परिवार वहीं पास के एक गांव में रहता था।वह और उसका बेटा हमारे घर में रहते थे।
जब हम घर पहुंचे तो वो लोग वहां नहीं थे। घर के अंदर जाने पर जब हाथ मुंह धोने के लिए नल चलाया तो पानी की एक भी बूंद नहीं निकली। ऊपर टंकी में जाकर देखा टंकी खाली पड़ी थी।
इतना लंबा सफर, और पानी नहीं। गुस्से में मैंने फोन किया तो वो बोले, पानी बहुत कम आता था,पर थोड़ा भरकर मैं पूना चला गया। हमारे यहां सरकारी नल से सुबह-शाम तय समय पर पानी आधे घंटे के लिए ही आता है।
अब हम सब भुन्नाए बड़ बड़ करते शाम का इंतजार कर रहे थे।
इतने में ही गांव से किरायेदार की पत्नी आई, दीदी प्रणाम। मैं उसे देखते ही भड़क उठी उसको अनाप-शनाप बकने लगी। पानी नहीं रहने का सारा दोष उसके ही सिर पर मढ़ दिया। मेरा मकान आज ही खाली कर दो।
वो बेचारी हक्की-बक्की सी मुझे देखने लगी। पर मैं तो दीदी यहां नहीं रहती हूं। मैंने कहा,मैं कुछ नहीं जानती,बस जो कह दिया सो कह दिया।
उसने धीरे से मेरी तरफ मिठाई का डब्बा पकड़ाते हुए कहा। बधाई हो दीदी आप दादी बन गई। बहू को बेटा हुआ है आज ही।
मैं क्रोध में इतना आपा खो चुकी थी कि गुस्से से मैंने उसका डिब्बा उठा कर रख दिया। कुछ बोली नहीं। अपने घर में आ गई।
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वह वापस अस्पताल चली गई। मैंने भी कोई खोज-खबर नहीं ली। मैं एक जगह पार्टी में गई थी,इतने में मोबाइल पर मैसेज आया, जो किरायेदार के छोटे बेटे का था। आंटी, संजय का बेटा खतम हो गया। यानि उसके बड़े भाई का। मैं मैसेज देखकर सन्न रह गई। वहां से तुरंत भाग कर घर आई। मुझे अपनी बातें याद कर बड़ी ही आत्मग्लानि हो रही थी।
आज तो उसकी छठ पूजा थी।हे भगवान,पहला बच्चा वो भी मात्र छः दिन का।
गांव में वैसे भी लड़का होने की अलग ही खुशी होती है।सब जगह बधावा, मिठाई भेजी जा रही थी। पूरे गांव में छठ का न्यौता दिया गया था। मुझे भी आया पर मैं नहीं गई थी और आज ही।
हिम्मत करके मैं अपनी बेटी के साथ वहां गई, आत्मग्लानि से मेरा सिर झुका जा रहा था। मुझे अपने दुर्व्यवहार पर पछतावा हो रहा था। बहू को तो तुरंत सुबह ही उसके मायके वाले ले गए। संजय की मम्मी मुझसे लिपट कर रोने लगी। मेरे दुःख का पारावार नहीं था। चारों तरफ सजावट थी। आंगन घर लिपा पुता हमें मुंह चिढ़ा रहा था। एक तो संजय के पिता बाहर थे दूसरे स्वयं बच्चे का पिता दूसरे प्रदेश में नौकरी करता था। ओह, अनजाने में मुझसे कितना बड़ा अपराध हो गया।
मैं अपनी ही नज़रों में गिर गई थी।
वो बेचारी, पोते की खुशी में मिठाई लेकर आई और मैं….
हम बहू के मायके भी गए, मैंने उसे रोते हुए धीरज बंधाया,बेटा रोओ मत, तुम्हारी गोद शीघ्र ही भरेगी। आज जब मुझे उसके मां बनने की खुशखबरी मिली तो मैं ह्रदय से प्रभू से प्रार्थना करतीं हूं, भगवान उसकी खाली झोली भर देना, बच्चे को स्वस्थ और दीर्घजीवी करना।
मैं उसे गोद में खिला लूं तो शायद मेरी आत्मग्लानि कुछ कम हो जाए।
सुषमा यादव पेरिस
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
#आत्मग्लानि