रीना जानती है कि बड़े पापा के यहां नहीं जाना है, बाजू में बहुत रौनक और चहल पहल हो रही थी।सब रिश्ते दार आ रहे थे। सब चाचा चाची के बारे में पूछ रहे थे कि वे नहीं आयेंगे क्या?
क्योंकि रमा दीदी की शादी थी।रमा दीदी से हमेशा बात होती रहती थी। रीना जानती थी कि बड़े पापा पापा को मनाने जरुर आयेंगे।
वे चाहते थे बिटिया को आशीर्वाद चाचा का मिल जाए। पर कहा जाता है बीता हुआ कल यदि कड़वाहट बढ़ा दें तो दूरियां ही अच्छी हैं।
कुछ समय पहले की बात है ,जब दोनों भाइयों के बीच मकान और जमीन जायदाद का बंटवारा हो रहा था। तब दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था। इसी कारण दोनों के बीच बातचीत बंद थी। वो दोनों नहीं चाहते थे कि बात और बढ़े इसलिए आजूबाजू घर होने के बावजूद मतलब रखना बंद कर दिया। हमेशा रमा और रीना चाहती थी दोनों भाइयों में पहले जैसे प्यार और अपनापन बढ़ जाए।
दोनों खिड़कियों से बात करती थीं। उनका एक दूसरे के घर आना जाना बंद था। पर अब तो इतनी बड़ी खुशी की बात थी कि बिना बात करें चल ही नहीं सकता था। प्यार अभी भी वैसा ही था। लेकिन उनके पिता बंटवारे से संतुष्ट न होने के कारण बच्चों को भी मिलने से मना करते थे। और कहते उनसे हमें कोई मतलब नहीं रखना है!
पर जब कोई अपना कोई रुठा हो खुशी कैसे मनाई जा सकती है ।रमा ने साफ- साफ अपने पापा से कह दिया- “जब तक चाचा चाची मुझे आशीर्वाद नहीं देंगे तो मैं शादी नहीं करुंगी। चाहे कुछ हो जाए उन्होंने बचपन से बड़े तक इतना लाड़ प्यार दिया। उनके बिना शादी कैसे कर सकती हूं?आप अपनी अकड़ में रहे तो मत सोचना कि मेरी शादी भी होगी।”
अब क्या था रमा के पापा कहने लगे “छोटे ने भी कितने अपशब्द कहे मैं ही क्यों झुकूं। उसने भी तो बहस की।”
फिर रमा बोली – “घर में अपने भाई से बात करने में अगर झुकना होता है, तब आप व्यापारियों के आगे कितनी बार झुकते हैं। कि हमारा सामान दुकान से बिक जाए। पर आप भी•••!थोड़ा सा ज्यादा हिस्सा चाचा के हिस्से में चला गया तो आपने उन्हें अपना शत्रु ही समझ लिया।”
रमा के समझाने पर उसके पापा को अपनी गलती का अहसास हुआ•••••
फिर क्या था बड़े भाई होने के नाते सोचा चलो छोटे से बात कर लेते हैं परिवार में थोड़ा कम या ज्यादा हुआ तो क्या!
आज रीना के पापा भी बहुत बैचेन हो रहे थे और घर में चहल कदमी कर रहे थे।उनका मन भी शांत नहीं था।पर वो भी बड़े भैया के बुलावे के लिए व्याकुल हो रहे थे। कहते हैं न, खून का रिश्ता तोड़े नहीं टूटता। आपसी मतभेद से खत्म नहीं होता।वैसा ही हुआ•••
रमा और रीना की कोशिश आखिर रंग ही लाई।
आज दोनों भाइयों में गुस्से का गुब्बार जो भरा हुआ था वो जैसे आंखों में आंसुओं के साथ निकलने ही वाला था।
रीना से उसके पापा ने कहा -“जा चाचा को कहना कि पापा ने बुलाया है।”
इतना ही सुनना था।कि वह चाचा को बुलाने चली गई और चाचा से गले लग कर रोते हुए कहने लगी -“पापा और आपकी लड़ाई में हम बच्चों का क्या कसूर आपने तो मेरे सिर पर हाथ भी नहीं रखा । आपका गुस्सा हम लोगों के प्यार पर ज्यादा भारी पड़ गया!आपको चलो पापा ने बुलाया है।”
इतना सुनते ही चाचा की आंखों में आंसू भर आए और बोले सच में भैया ने मुझे बुलाया है••••
इस तरह रमा और रीना की कोशिश रंग लाई दोनों भाइयों के बीच जो दूरी बन गई थी। दूरी खत्म हुई और दोनों ने एक होकर अपनी बेटी को शादी में आशीर्वाद दिया। इस तरह दूरियां नजदीकियां में बदल गई।
सखियों- मनमुटाव कितना ही बड़ा क्यों न हो पर कोशिश रंग लाती ही है। इसलिए हमारे परिवारों में भी यदि मतभेद हो तो दूर करना चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी में भी एकता बनीं रहे।
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धन्यवाद 🙏❤️
आपकी अपनी सखी ✍️
अमिता कुचया