बाहर हल्की हल्की बूंदाबांदी पड़नी शुरू हो गई थी।समीर सोफे पर चुपचाप बैठा निशा को उसका सामान इकट्ठा करते हुए देख रहा था।समीर की आंखें बता रही थी कि वह सारी रात सोया नहीं था..सोता भी कैसे रात को ही निशा ने उसे अपना फैसला सुना दिया था।वह जा रही थी उससे अलग हो रही थी..सदा के लिए।
समीर ने कनखियों से निशा की तरफ देखा।वह अपना सामान कमरे से बाहर लाकर दरवाज़े के पास रख रही थी।एक पल समीर को लगा जैसे निशा नहीं बल्कि उसकी ज़िंदगी उससे दूर जा रही हो।हां..ज़िंदगी ही तो थी निशा उसकी।कॉलेज में जब उसने पहली बार निशा को देखा तो देखता ही रह गया था।उसे से दो साल जूनियर थी वो।
इतनी मासूम खूबसूरती शायद उसने पहले अपने जीवन में कभी नहीं देखी थी।दिन रात अब उसके मन में निशा के विचार आते रहते।वह सोचता कब उसे मौका मिलेगा उससे बात करने का और जल्दी ही वह मौका उसे मिला अपने ही घर में जब उसकी छोटी बहन दीपाली ने निशा को अपनी सहेली के तौर पर उससे मिलवाया था।धीरे-धीरे निशा का आना जाना उसके घर में बढ़ता गया। वह भी कभी-कभी दीपाली को उसके घर छोड़ने और लेने चला जाता।दोनों अब आपस में खुलने लगे थे..धीरे-धीरे इस बातचीत ने प्यार का रूप ले लिया था।
वक्त बीतता रहा..समीर का कॉलेज खत्म हो गया था और उसने एक जगह नौकरी के साथ ही एमबीए की तैयारी भी शुरू कर दी थी। निशा का घर पर आना जाना जारी था वह उसे जानने लगा था…समझने लगा था।
“निशा, मैं कुछ बन जाऊं तो घर पर हम दोनों के बारे में बात करूंगा”, वो अक्सर निशा को कहता।
“उस दिन का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा”, निशा उसके हाथों को थाम कर कहती।
समय अपनी रफ्तार से गुज़र रहा था। पिछले साल के कैट के इम्तिहान में अच्छी परसेंटाइल ना आने पर समीर इस साल जी जान से मेहनत कर रहा था।निशा और दीपाली की भी ग्रेजुएशन पूरी होने वाली थी। निशा उसका हौसला बढ़ाती..आखिर उसकी मेहनत रंग लाई और उसे एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।
निशा ने पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू कर दी थी और दीपाली ने बीऐड में दाखिला ले लिया था। एमबीए के लिए समीर को बेंगलुरु जाना था।जाने से एक दिन पहले वो निशा से मिलने गया था।उस दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी।
निशा को उदास देखकर वह बोला,” निशा, तुम उदास मत हो..यह हमारी मंज़िल की तरफ मेरा पहला कदम है।यह बारिश हमारे प्यार का की गवाह है.. दो साल यूं ही गुज़र जाएंगे और फिर नौकरी मिलते ही मैं घर पर हमारे बारे में बात कर लूंगा”।
निशा ने उसे आंसुओं भरी आंखों से विदा किया।वक्त बीत रहा था।दो साल गुज़रने वाले थे…निशा ने भी नौकरी शुरू कर दी थी और दीपाली ने एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया था।समीर ने अपना वादा निभाया.. उसके और निशा के घर वालों को उनके रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था।दीपाली भी अपनी सहेली को अपनी भाभी के रूप में पाकर बहुत खुश थी।
देखते ही देखते दोनों का ब्याह हो गया और निशा दुल्हन बन समीर के जीवन में प्रवेश कर गई।दोनों के मित्रों के लिए उनका प्यार एक मिसाल बन गया था।समीर की नौकरी के चलते निशा उसके साथ बेंगलुरु आ गई थी। यहां आकर निशा ने भी नौकरी कर ली थी।सब सामान्य चल रहा था..दोनों दफ्तर के बाद घूमने निकल जाते।दोनों के वहां अच्छे मित्र बन चुके थे।बारिश के मौसम का भी दोनों खूब लुत्फ उठाते..गरम गरम पकौड़ों और चाय का साथ मौसम का मज़ा और बढ़ा देता।
उनकी शादी को दो साल हो चुके।घर वाले अब उनसे बच्चे की उम्मीद लगाए बैठे थे।समीर की मां ने निशा से कई बार बातों ही बातों में अपनी इच्छा ज़ाहिर कर दी थी पर आजकल निशा को समीर बदला बदला सा लगता था। अब वह उससे ढेरों सवाल पूछता..जैसे वह कितने बजे दफ्तर के लिए निकली…कितने बजे आई…किसके साथ आई।
निशा को उसके सवालों से अब चिढ़ सी होने लगी थी। “समीर, क्यों पूछते हो यह सब..क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं रहा”, वह चिढ़कर पूछती।
“मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था”, समीर नज़रें चुराता हुआ कहता।
कुछ दिन पहले जैसा हो जाता पर कुछ दिनों बाद फिर से समीर के सवाल खड़े हो जाते। समीर अब घर पर अपने मित्रों को नहीं बुलाता और ना ही निशा के साथ उनके पास जाता।दोनों का रिश्ता धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा था।निशा सोचती कि आखिर उसके समीर को क्या हो गया है..क्यों वह पहले जैसा नहीं रहा।वो खुद से ही सवाल करती..पर शायद उन सवालों के जवाब उसके पास भी नहीं थे।
निशा पूरे सब्र से काम ले रही थी।ऐसा लगता जैसे उन दोनों के मध्य कोई तीसरा आ गया था।समीर को भी ऐसा ही कुछ लगता था पर निशा जानती थी कि वह तीसरा कोई और नहीं है समीर का शक है जिसने उनके दांपत्य जीवन को तबाह कर रखा है। निशा अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी पर समीर का शक धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था।
निशा समझ नहीं पाई कि समीर को उस पर शक कैसे हो सकता है और पिछली रात तो समीर ने हद ही पार कर दी जब उसने निशा से उसके बॉस के बारे में पूछते हुए उस पर हाथ ही उठा दिया था।
पिछली रात बारिश होने की वजह से निशा को कोई कैब या ऑटो नहीं मिल रहा था। इसलिए उसके बाॅस सौरभ ने उसे घर छोड़ दिया।निशा ने उन्हें कॉफी के लिए घर पर आमंत्रित कर लिया था।उनके जाने के बाद समीर ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी और गुस्से में उस पर हाथ उठा दिया। निशा के सब्र का बांध अब टूट चुका था..आखिर उसके भी बर्दाश्त करने की कोई सीमा थी।इसलिए उसने समीर को छोड़कर जाने का फैसला सुना दिया था।
तभी कैब के हॉर्न की आवाज़ से समीर की तंद्रा टूटी। उसने देखा निशा अपना सामान कैब में रखवा रही थी। समीर को लगा कि वह आगे बढ़कर निशा को रोक ले पर किस मुंह से वह उसे रोकता..अपने शक के वजह से उसने सब कुछ बर्बाद कर दिया था।वह जानता था कि निशा उसे इतनी जल्दी माफ नहीं करेगी।फिर भी उसने आगे बढ़कर निशा को रोक लिया।
“समीर, इस वक्त मेरा जाना ही सही है.. तुम अकेले रहकर एक बार अपने मन में उपजे मेरे प्रति शक के बारे में सोचो और ढूंढो उस समीर को जिसके मन में मेरे लिए शक नहीं सिर्फ प्यार था”, कहते हुए निशा ने अपने कदम टैक्सी की तरफ बढ़ा दिए।
उसे जाते देख समीर निराश सा सोफे पर बैठ गया। बाहर बारिश तेज़ हो चुकी थी और अंदर बैठे समीर की आंखों में आंसुओं की बाढ़ आ गई थी।
#बरसात
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।
क्या कमेंट करें,सबको अधूरा छोड़ने की आदत हो गई है क्या इसी का नाम गृहस्थी है ।