किस्मत वाली – सीमा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

अनु का पालन-पोषण एक ऐसे पारिवारिक परिवेश में हुआ था, जहाँ बेटों को सिर चढ़ाया जाता और बेटियों पर सख्त नियम थोपे जाते थे। बेटे देर रात तक आवारगी करते, लेकिन बेटियों के कॉलेज जाने पर भी प्रतिबंध था। मां, चाची और भाभी, सभी को रिश्तों के अनुसार पुरुष वर्ग के सामने घूंघट में रहने की हिदायत थी। सब अपने पतियों के जीमने के बाद ही भोजन करतीं… और इसी तरह की ढेरों परंपराएँ थीं, जिनका पालन करना उनके लिए अनिवार्य था। लेकिन अनु एक स्वतंत्र विचारों वाली लड़की थी, जिसने बचपन से ही इन सीमाओं से खुद को बाहर रखा था।

समयानुसार अनु की भाभी ने एक बेटी को जन्म दिया, तो उसने जो दृश्य देखा, उसे भीतर तक झकझोर गया। परिवार के लोग, जिनका ध्यान हमेशा लड़कों पर केंद्रित था, भाभी को लेकर नाराजगी व्यक्त कर रहे थे। “अरे लड़की?” यह वाक्यांश अनु के दिल में गूंज उठा। उसे यह समझ में नहीं आया कि एक बच्ची को जन्म देने के लिए किसी महिला को इस तरह दोषी क्यों ठहराया जाता है? यह दृश्य अनु के मन में गहरे दर्द और असंतोष की वजह बना, और उसने निश्चय किया कि वह कभी ऐसी स्थिति का शिकार नहीं होगी।

अनु ने प्रण लिया कि वह किसी पर निर्भर नहीं रहेगी और अपने पैरों पर खड़ी होगी। इसके लिए वह शिक्षा को अपनी ताकत बनाएगी। उसने परिवार के विरोध के बावजूद उच्च शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय लिया और सह-शैक्षणिक महाविद्यालय में प्रवेश लिया। हर बंदिश को दरकिनार कर मजबूत इरादों से उसने अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाए और यह साबित कर दिया कि उसकी पहचान उसकी शिक्षा और सोच से होगी, न कि परंपराओं और सीमाओं से।

कॉलेज के दौरान, अनु की मुलाकात अजय से हुई, जो उसके दृष्टिकोण से पूरी तरह मेल खाता था। अजय भी पारंपरिक सोच से मुक्त था और अनु के जीवन के उद्देश्यों और महत्वाकांक्षाओं की सराहना करता था। धीरे-धीरे दोनों के बीच एक गहरी दोस्ती पनपी और फिर प्यार। अजय ने अनु को न केवल समझा, बल्कि उसे अपने सपनों के लिए पूरा समर्थन भी दिया। एक-दूसरे को जानने के बाद, दोनों ने शादी करने का निर्णय लिया। अनु की जिद और बाग़ी रवैये के कारण परिवार ने इस रिश्ते को स्वीकार किया, पर यह साफ था कि यह सहमति दिल से नहीं थी।

शादी के बाद, अनु ने खुशी से नए जीवन में कदम रखा। ससुराल में उसका गर्मजोशी से स्वागत हुआ। लेकिन जल्द ही उसने महसूस किया कि यह नया घर भी उसकी पुरानी दुनिया से बहुत अलग नहीं था। उसकी सास बहुत सख्त और अनुशासनप्रिय थी। “साड़ी पहनना चाहिए, सुबह जल्दी उठो, नहाने के बाद ही रसोई में आओ, पहले गाय को रोटी दो, रात को जल्दी सोओ,” ये सारी हिदायतें अनु के लिए असहज हो रही थीं। उसे लगता था कि उसकी स्वतंत्रता पर एक अनदेखा दबाव बनाया जा रहा है। उसके लिए यह सब चुनौती भरा था।

अनु ने अपनी शादी के पहले वर्ष में ही एक बेटी को जन्म दिया। सास ने पोती और अनु, दोनों की बहुत देखभाल की। वह अनु को हर पल यह बताती रहतीं कि क्या खाना चाहिए, बच्चे की संभाल कैसे करनी चाहिए, और किस प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान करने चाहिएं। अनु को यह सब बहुत बोझिल और निराशाजनक लगता था, क्योंकि वह चाहती थी कि वह अपनी बेटी की देखभाल अपने तरीके से करे, न कि सास के ढेर सारे निर्देशों के तहत।

हालांकि अजय एक सहायक और समझदार पति था, वह अपनी मां की छवि को आदर्श मानता था। वह हमेशा अनु से कहता, “मां घर की धुरी हैं। उनके जीने का तरीका अनुकरणीय है।” यह अनु के लिए और भी अधिक कष्टप्रद होता, क्योंकि वह चाहती थी कि अजय उसकी स्वतंत्रता और विचारों की सराहना करे। लेकिन उसकी मां के प्रति श्रद्धा को देखकर, वह अपनी किस्मत को कोसती और परिस्थिति से समझौता कर लेती।

कुछ सालों बाद, अनु फिर से गर्भवती हुई। इस बार सबको बेटे की चाह थी। सास भी अक्सर भगवान से प्रार्थना करती, “हे प्रभु! इस बार मुझे एक पोते का आशीर्वाद दें।” यह सब देखकर अनु को डर था कि यदि इस बार भी लड़की हुई तो सास का क्या रुख होगा? उसने भाभी के साथ हुई अनदेखी को याद किया और सोचा कि क्या वही सब उसके साथ भी होगा?

होनी तो होकर ही रहती है! अनु ने फिर से बेटी को जन्म दिया! प्रसव की पीड़ा से अधिक उसे यह बात पीड़ित कर रही थी कि सास की क्या प्रतिक्रिया होगी? अनु को एक अप्रत्याशित सुकून मिला जब उसकी सास ने न तो कोई अप्रसन्नता व्यक्त की, न कोई नकारात्मक टिप्पणी की। उल्टे, उसने अपनी नन्ही पोती को उसी स्नेह से गले लगाया जैसे पहले पोती को लगाया था। अनु के सिर पर भी प्यार से हाथ फेरा। अनु को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ और वह खुद को गहरे आत्मविश्लेषण में डुबोने लगी।

अब अनु को अहसास होने लगा कि उसकी सास की सख्ती और अनुशासन के पीछे एक गहरी भावना थी – प्रेम और परवाह। वह समझने लगी कि उनके निर्देशों का कारण केवल अनु को सही मार्ग पर चलाने की इच्छा थी। वह अब महसूस कर रही थी कि उसकी सास का दिल हमेशा प्यार से भरा हुआ था, और उनका अनुशासन केवल एक संरक्षक के रूप में था, ताकि परिवार के सदस्य आदर्शों, परंपराओं और जिम्मेदारियों का पालन करें।

सबसे बड़ा मोड़ उस दिन आया जब नामकरण संस्कार के दौरान रिश्तेदार और पड़ोसी खुसर-पुसर करने लगे, “बहू अभागी है जो लड़का नहीं हुआ।” अनु की सास ने अचानक माइक अपने हाथ में लिया और सबको सख्त चेतावनी दी, “मैं किसी को भी यह हक नहीं देती कि वह मेरी बहू या पोती के बारे में कुछ भी गलत कहे। मेरी पोती भगवान का आशीर्वाद है और हम सब की जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी है। मुझे पोते की इच्छा थी ताकि भाई-बहन की जोड़ी हो जाए। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि लड़की होना कोई दोष है। मेरी बहू और पोतियां मेरे लिए अनमोल हैं।”

अनु को यह सुनकर एक नई उम्मीद और प्यार का अहसास हुआ। उसने अब महसूस किया कि वह ‘किस्मत वाली’ है कि उसे ‘स्वर्ग सा ससुराल’ मिला। उसकी सास के अनुशासन में गहरी चिंता और अपनत्व छिपा हुआ था। अनु ने इस पल में समझा कि परिवार की परंपराओं और नियमों का पालन करने का मतलब यह नहीं कि स्वतंत्रता छिन रही है। कभी-कभी, ये सीमाएँ हमारा सच्चे प्रेम और समर्थन की ओर मार्गदर्शन करती हैं।

अनु की आंखों में अपनी सास के प्रति आदर और कृतज्ञता के भाव उमड़ पड़े। उसने सास के हाथ से माइक लेकर कहा, “मैं इस दुनिया की सबसे किस्मत वाली बहू हूं जिसे सास के रूप में एक ममतामई मां और सच्ची मार्गदर्शिका मिली हैं। मैं हमेशा इनकी ऋणी रहूंगी क्योंकि इन्होंने मुझे संस्कारी पति और स्वर्ग सा ससुराल देकर मुझे किस्मत वाली बनाया है।”

स्वरचित,  सीमा गुप्ता

गुड़गांव।

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