किसी के दिए के मोहताज नहीं है हम…… भाविनी केतन उपाध्याय 

 

” बहू,ये साड़ी तो हम ने दीपू बिटिया को दी थी फिर यह तुम्हारे पास कैसे ? कितनी बार कहा है कि बेटियों को दिया हुआ वापस नहीं लेते ” सुमन जी ने अपनी बहू हेतल से कहा।

 

” मांजी,यह मैंने खुद से वापस नहीं मांगा है…. वो खुद वापस कर के गई है कि ऐसी साड़ी तो हमारे घर की कामवाली बाई भी नहीं पहनती बोल कर..” हेतल ने बात बताते हुए कहा ।

 

” सच ही तो कह रही है…. परंतु उसे यह बता कर हमारे साथ साथ खुद का अपमान भी किया है…. मायके की इज्जत बनाए रखने का काम खुद बेटी का ही होता है….. पर हम कर भी क्या सकते हैं…. क्या दीपू को यहां की परिस्थितियों के बारे में पता नहीं है ? ग़रीबी में पली बढ़ी है फिर कैसे भूल सकती है अपनी स्थिति को ?

 

क्या ससुराल पैसे वाला मिल गया तो मायके की इज्जत मिट्टी में मिलाएगी ? बहू, तुम रहने दो उसकी साड़ी पहनने की…. हम गरीब जरुर है पर जानते हैं कि बहू को कैसा पहनाए…. किसी के दिए के मोहताज नहीं है हम…. सुमन जी ने गुस्से में कहा।

 

” पर मांजी, मैं नहीं पहनूंगी तो दीदी बुरा मान जाएगी…” हेतल ने डरते डरते कहा ।

 




” वो बुरा क्यों मानेगी ? उसने साड़ी नहीं रख कर हमारा अपमान नहीं किया ? और उसने साड़ी वापस कर दी है तो उसे हम पहने या दूसरे को दे दे उससे उसका क्या मतलब ? हमारी साड़ी हमारे पास वापस आ गई है तो उसका जो करना है हम करेंगे वो कुछ कहने वाली कौन होती है ? ” सुमन जी ने कहा।

 

” पर मांजी, उन्होंने अब तक हम ने जो जो कपड़े उन्हें करें है वो बैग भरकर वापस कर गए हैं, आप जब मौसी जी के यहां गए थे तब…. यह कहकर कि ये सब मेरे काम की नहीं है अब…” हेतल ने कहा।

 

” कोई बात नहीं बहू, चिंता मत करो हम कुछ ना कुछ उसका उपाय करेंगे पर तुम पहनना मत…. क्योंकि उसके ससुराल वाले कहीं से भी तुम्हें देख लेंगे तो हमारे बारे में क्या सोचेंगे कि बेटी को देकर हम ने वापस लें लिया और हम नहीं चाहते कि हमारी इज्जत पर कोई मिट्टी उछालें ? तुम्हें चाहिए तो मैं एक दो जोड़ी कपड़े नए लाकर दे दूंगी….. बेटी तो मुझे नहीं समझी पर तुम तो समझती हो ना कि माता पिता की इज्जत क्या मायने रखती है ?

 

बेटी को थोड़ा सा घमंड आ गया है पर तुम तो….. वाक्य अधूरा छोड़ते हुए भरी आंखों से सुमन जी ने हेतल की ओर देखा।

 

हेतल ने सुमन जी का हाथ थामे हुए कहा,” मांजी, भरोसा रखिए,इस घर कि इज्जत में मेरी भी इज्जत समाई हुई है…. मैं उसे चीर चीर नहीं होने दूंगी।”

 

” मुझे तुम से यहीं उम्मीद है” कहते हुए सुमन जी ने हेतल को गले लगा लिया।

 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

भाविनी केतन उपाध्याय 

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