किराएदार – करुणा मलिक  : Moral Stories in Hindi

स्नेहा! आज अपने अंकल के लिए भी रोटी ऊपर से ही दे जाना, देख मेरा तो व्रत है , अब एक जने के ऊपर कहाँ तवा- परात उठाऊँगी ।

ठीक है आँटी जी ! जिस टाइम अंकल जी  को रोटी खानी होगी, दस मिनट पहले बता दियो, सब्ज़ी गर्म करके रोटी सेक दूँगी । 

श्यामाजी ने अपने घर में ऊपर रहने वाली स्नेहा से कहा । जब से बेटे का तबादला हुआ तब से ऊपर वाला हिस्सा किराए पर दे दिया था । बेटे के जाने के बाद तक़रीबन दो साल मकान ख़ाली पड़ा रहा पर इन दो सालों में बेटा- बहू जब भी आए , ऊपर वाले कमरे में सोने के बदले नीचे ही रहना पसंद करते थे।

—- वेदिका, तुम्हारा कमरा साफ़ करवा दिया था । 

—- नहीं माँ, हम तो नीचे ही रहेंगे । वहाँ तो अकेले रहते ही हैं यहाँ आकर भी अगर ऊपर अपने कमरे में चले गए तो घर आने का क्या फ़ायदा?  मैं तो आपके साथ ही सोऊँगी, रात में बिस्तर पर लेटकर बातें करने का अलग ही मज़ा होता है ।

श्यामा जी बहू की बातें सुन कर निहाल हो जाती । बेटी – दामाद तो  पहले से ही हॉल में ही गद्दे डालकर पूरे परिवार के साथ सोना पसंद करते थे । 

—गीता , राजन जी को तो बेडरूम में सुला दे बेटा ।जगह या बिस्तर की कमी थोड़े ही हैं ?  अच्छा नहीं लगता , हैं तो घर के दामाद ही । तू बच्चों के साथ मेरे और अपने पापा के साथ सो जा । 

—- माँ, आप तो इस तरह से कह रही हो जैसे मैंने कहा है राजन को । ये तो इनके घर का रिवाज है । बहने , बुआ, मामा , मौसी जब भी आते हैं, तब पूरा परिवार ज़मीन में गद्दे डालकर शादी- ब्याह की सी रौनक़ कर देता है । 

अक्सर  श्यामाजी  ऐसे दामाद और बहू को पाकर  ईश्वर का धन्यवाद करती वरना आजकल आधे से ज़्यादा लोगों के बच्चे अपने माता-पिता की कद्र नहीं करते फिर सास- ससुर तो भला लगते ही क्या है? 

खुद वेदिका ने भी ननद गीता की ही ससुराल में ये चलन देखा था और वापस आकर श्यामा जी से कहा था—-

माँ!  बड़ा ही मज़ा आया कल रात गीता दीदी के घर । पहले तो मौसा जी के सामने हिचकिचाहट सी थी पर फिर अंताक्षरी खेलते- खेलते सारी हिचक दूर हो गई । 

—- हाँ , राजन तो यहाँ आकर भी मुझे और तेरे पापा को सबको हॉल में खींच लाता है ।  

बेटे के जाने के बाद कोई एक दिन भी ऊपर नहीं सोया । जब बच्चों ने कहा कि किसी को किराए पर दे दो तो श्यामा जी और उनके पति ने भी सोचा कि साफ़ सफ़ाई भी होती रहेगी और किसी परिवार के आ जाने से मन भी लगा रहेगा । बस ‘ ख़ाली है ‘ का बोर्ड लगाते ही अगले दिन किसी शोरूम में काम करने वाला सेल्समैन सुमित अपनी पत्नी स्नेहा और छोटी सी बेटी के साथ मकान देखने आ गया । 

मकान तो देखते ही पसंद आ गया पर किराया पूछने पर श्यामा जी और उनके पति उलझन में पड़ गए क्योंकि उन्होंने  तो आस- पड़ोस में किसी से कभी नहीं पूछा कि क्या रेट चल रहा है? फिर वे पैसा कमाने के हिसाब से तो मकान किराए पर नहीं दे रहे थे तो सुमित से ही पूछ लिया—-

अभी कितना दे रहे हो?

अभी तो अंकल जी, मैं तीन हज़ार दे रहा हूँ एक कमरे का …. पर मैं तीन हज़ार से ज़्यादा दे नहीं पाऊँगा । कुल पंद्रह हज़ार रुपये मिलते हैं मुझे । आपका मकान तो ज़्यादा का है । कोई और देखना पड़ेगा मुझे तो ।  

 

—-आँटी जी , पहले अंकलजी के लिए रोटी बना दूँ या कपड़े धो लूँ ? 

स्नेहा की आवाज़ सुनकर वे अपने ख़्यालों से बाहर आई । 

—— कपड़े धो लें , अभी ग्यारह बजे से पहले ना खाएँगे । 

कहकर श्यामा जी फिर ख़्यालों में खो गई । उस दिन तो सुमित और स्नेहा  को यह कहकर भेज दिया कि घर में बात करके फ़ोन कर देंगे । शाम को जब बच्चों से बात की तो उन्होंने कहा—

“माँ , इतना क्यों सोच रही हो ? ख़ाली पड़े रहने से तो अच्छा है कि दे दो , आपका भी मन लगा रहेगा । ज़्यादा बड़ा परिवार भी नहीं । “  बस अगले ही दिन सुमित को फ़ोन कर दिया । सुमित ने उसी दिन शाम को आने की बात पूछी —-

पर अभी तो हमारी बहू का सामान कमरे में है ….

कोई बात नहीं आँटी जी, आपको जब मौक़ा मिले , उतरवा लेना । अगर आपको एतराज़ न हो तो हम आज ही आ जाएँ ?

पर बेटा , हम अपना सामान बाहर छत पर खुले में नहीं डालेंगे…

नहीं- नहीं आँटी जी , भाभी का सामान खुले में क्यों रहेगा ? जब तक आप नीचे उतरवाओगी, हम केवल ज़रूरत का सामान खोलेंगे ।

और उसी शाम सुमित गिने- चुने सामान के साथ आ गया । 

अजी ! इनके पास तो कुल चार डिब्बे हैं । दो फोल्डिंग हैं , चार प्लास्टिक की कुर्सियाँ…. बहू का बेड , ड्रेसिंग टेबल और टी० वी० ऊपर  ही रहने दूँ क्या? क्या घिसता है ? वेदिका ने आज तक तो कभी तेर-मेर की नहीं, फिर नीचे चारों कमरों में बेड पड़े हैं, कहाँ रखवाएँगें ? 

देख लो, एक बार बात कर लेना बहू से , उसके मायके का सामान है , नहीं तो  ऐसा करो कि अपना पुराना बेड ऊपर रखवाकर ये नीचे उतरवा लो  और सुनो , पुराना फ्रिज भी ऊपर ही रखवा देंगे, हम कहाँ बरतते हैं ? पानी की दो- चार बोतलें पड़ी है । 

बहू- बेटे से बात करके श्यामा जी ने बहू का सामान वहीं छोड़ते हुए कहा——

देखो बेटा , बहू के मायके का सामान है । अपना मानकर इस्तेमाल करना , और दो/ तीन मज़दूर बुलाकर फ्रिज भी चढ़वा  लो । जब बच्चे आते हैं तो छोटा पड़ता था इसलिए बड़ा फ्रिज लेना पड़ा । 

जी आँटीजी , आपको कोई शिकायत का मौक़ा नहीं मिलेगा । 

इस तरह सुमित और स्नेहा के आ जाने से से घर में रौनक़ के साथ- साथ श्यामा जी को उनका सहारा भी हो गया । 

—- आँटी जी, बाज़ार जा रहा हूँ । कुछ मँगवाना है क्या ? 

—- अंकलजी , आइंदा आप गाड़ी नहीं धोएँगे, मुझे बता दिया करें । मैं टाइम निकाल कर अपने आप धो दूँगा । 

—- स्नेहा, अंकलजी आज किसी समारोह में जा रहे हैं तो आँटी जी को खाना ऊपर ही बनाकर खिला देना । 

दोनों इस तरह घुलमिल गए कि श्यामा जी और उनके पति को अहसास तक नहीं होता था कि बच्चे बाहर है । यहाँ तक कि बहू- बेटे या बेटी- दामाद के आने पर भी सुमित और स्नेहा भाभी- भैया तथा दीदी- जीजू कहते नहीं थकते थे । जब साल में एक बार छठ के पर्व पर सुमित अपने बीवी बच्चे के साथ तक़रीबन एक महीने के लिए अपने घर जाता तो अपने बच्चों की उपस्थिति में भी , श्यामा जी और उनके पति को सुमित- स्नेहा की कमी खलती । 

—- माँ, मैं तो सोच रहा कि किसी तरह अपना ट्रांसफ़र यहीं करवा लूँ ? मुझे तो इस सुमित से जलन होने लगी है , ये तो मेरी माँ छीन रहा है । 

—- पगला , माँ भी कभी छीनी जा सकती है भला ?

इसी तरह हँसी- मज़ाक़ में कब छह साल बीत गए, पता ही नहीं चला । इस बीच दो ऐसे मौक़े पड़े जब सुमित और स्नेहा ने केवल श्यामा जी और उनके पति को ही नहीं बल्कि गौतम- वेदिका तथा गीता- राजन के मन में भी छोटे भाई का स्थान बना लिया । एक बार जब वेदिका की डिलीवरी हुई और दूसरा जब श्यामा जी बाथरूम में फिसल गई तथा फ्रैक्चर होने के बाद 48 दिन का प्लास्टर लग गया था । 

—-गीता की मम्मी! मैंने सुना कि आपने तो अपना सारा सामान भी किराएदारों को बरतने के लिए दिया हुआ है? सच्ची है क्या ये बात? 

एक दिन पड़ोसन की बात सुनकर श्यामा जी को याद आया कि सचमुच सुमित और स्नेहा तो किराएदार हैं । 

—-हाँ, वो नीचे जगह ही नहीं थी बेड रखने की, और फ्रिज तो पुराना है, टी० वी० दीवार पर पहले से ही टँगा था । ना तो देखो हमने कभी किराएदार माना और ना ही इन्होंने । परदेश में दो वक़्त की रोटी के लिए आता है आदमी , हमारे बच्चे भी बाहर रहते हैं । इनके रहते गौतम और वेदिका भी हमारी ओर से निश्चित हैं । 

— क्या दे रहे दो कमरों के सेट का ? 

श्यामा जी ने बात पलटने के इरादे से कहा—-

अभी तो बताया कि यहाँ किराएदार वाला हिसाब नहीं….

—- पर हैं तो किराएदार ही ।आपने तो रेट ख़राब कर दिया । आपको तो चलो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता पर इस मोहल्ले में ऐसे भी तो लोग हैं जिनकी कमाई का ज़रिया किराए से होने वाली आमदनी है । 

—- हाँ तो होगी , मुझे क्यों बता रही । सबकी अपनी इच्छा है। 

—- आपने घर के साथ पूरा सामान भी दिया है । शहर की सबसे अच्छी लोकेशन पर है। दो कमरों के मकान का आठ/ दस हज़ार रेट चल रहा है और सामान के साथ तो चौदह/ पंद्रह हज़ार प्रति माह मिलेगा तुम्हारे मकान का । 

पड़ोसन की बातों से श्यामा जी के मन में भी लालच आ गया । दो दिन तो वे मन ही मन इस बारे में सोचती रही । तीसरे दिन उन्होंने अपने पति को पड़ोसन की सारी बातें बता दी । 

— हद हो गई श्यामा! कोई भी कुछ कह दें और तुम पर उसका ही रंग चढ़ जाता है । याद रखें हमने पैसा कमाने के लिए घर किराए पर नहीं दिया था । ये तो हमारी क़िस्मत अच्छी है कि जिस उद्देश्य के लिए सुमित और स्नेहा को घर दिया था वे आशा से भी बढ़कर निकले । लोगों की बातें सुनकर दिमाग़ ख़राब मत किया करो । 

—- पर वो कह रही थी कि हमने मोहल्ले का रेट बिगाड़ दिया । घर किराए पर देखने आने वाले हमारा उदाहरण देते हैं …..

—— तुमने सुना ,  हमारा उदाहरण देते हैं या नहीं ?

पर नारी स्वभाव, बात को इतनी आसानी से कैसे छोड़ती ? घूमती – फिरती ऊपर गई । छत पर रखा एक बड़ा  और महँगा गमला गिरा पड़ा था । उसे देखते ही आग बबूला हो उठी ——

स्नेहा, तू ज़रा ध्यान नहीं देती हमारे सामान पर ….

क्या हुआ आँटी जी? 

देखिए, कितना महँगा गमला टूटा पड़ा । ये तो हमारी भलमनसाहत है कि पूरा घर सामान समेत तीन हज़ार रुपल्ली में दे रखा । तुम्हें तो पता भी नहीं कि मकान मालिक क्या-क्या रोकटोक लगाते हैं । यही रवैया रहा तो ज़्यादा दिन ना निभेगी ।

माफ़ करना आँटी जी! आपको तो पता है कि एक हफ़्ते से गुड़िया बीमार है और कल बहुत बंदर थे , शायद उनमें से किसी ने डाल दिया है । 

श्यामा! नीचे तो आओ ज़रा जल्दी….

सीढ़ियों से उतरती श्यामा जी ने देखा कि उनके पति अंतिम सीढ़ी पर खड़े उनका ही इंतज़ार कर रहे थे ——

चुप नहीं रहा गया तुमसे । अपने एहसान तो गिना आई और अगर स्नेहा बिटिया अपने एहसान गिनाने बैठ गई तो तुम सहन कर  जाओगी । बहुत एहसान फ़रामोश निकली तुम तो । जब तुम्हारा पैर टूट गया था ना , तो सुमित की तो छोड़ो , स्नेहा ने चार महीने तुम्हारी सेवा की थी । जाड़े के दिनों में ठीक पाँच बजे हमारी चाय बनाने के लिए नीचे रसोई में पहुँच जाती थी । पूरा दिन खड़ी रहती थी । 

शायद तुम्हारी बहू भी इतना ध्यान न रखती । अपने नहाने से पहले तुम्हें नहला- धुलाकर धूप में बैठा जाती थी । मुँह माँगे दाम देने के बाद भी सुबह से शाम तक के लिए कोई कामवाली नहीं मिली थी । और वेदिका की डिलीवरी के समय , शाम को उसी से कहूँगा  , अपनी सास को तुम्हारी बहू खुद याद करवाएगी । आई बड़ी मोलभाव करने वाली । 

बस करो जी ! 

श्यामा जी रुआँसी होकर बोली । सचमुच उन्हें अफ़सोस  हो रहा था कि सुमित और स्नेहा के लिए पड़ोसन द्वारा इस्तेमाल किए किराएदार शब्द को उन्होंने कैसे सहन कर लिया ? 

वे तुरंत ऊपर गई और स्नेहा को आवाज़ लगाकर बोली —-

स्नेहा, इस बार जब माली आएगा तो सारे गमले दीवार के पास से हटवा देना । ये मरे बंदर , बहुत नुक़सान करने लगे ।

ठीक है आँटी जी, याद दिलवा दूँगी आपको ।

क्यूँ तू नहीं कह सकती ? 

आँटी जी, मकान मालिक तो आप ही है, मैं किस अधिकार से माली को कहूँगी? 

नहीं स्नेहा, तुम दोनों किराएदार नहीं, किसी जन्म के बच्चे हो हमारे । बेटा ! कभी-कभी हमारी बुद्धि भ्रमित हो जाती है और हम दूसरों की बातों के प्रभाव में आ जाते हैं । और सुन , ये तेरे- मेरे बीच की बात थी जो सुलझ चुकी । ख़बरदार! सुमित को बीच में लाने की ज़रूरत नहीं । कुछ बातों पर मिट्टी डालने में ही अक़्लमंदी होती है वरना बाद में अफ़सोस करने के अलावा कुछ हाथ नहीं आता ।  

मैं गैस पर चाय चढ़ाती हूँ, तू गुड़िया को लेकर नीचे आ जा । वहीं बैठ कर बात करेंगे । 

और हमेशा की तरह  “जी आँटी जी “ कहकर स्नेहा गुड़िया को लेकर सीढ़ियाँ उतरने लगी ।

करुणा मलिक 

# अफ़सोस

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