मैं लैब में हूं, मम्मी…( मतलब, अभी बात नहीं कर पाऊंगी..)
आद्या ने जवाब दिया
पूनम ने इत्मीनान के भाव के साथ फोन रख दिया….
ज्यादा बात ही नहीं हो पाई
आज ही क्या… लगभग अक्सर ही मां बेटी के बीच ( बस) इतनी ही बात हो पाती है।
और ये बस इतनी सी बात पूनम के संतोष के लिए बहुत होती!
बिटिया, स्वस्थ, ठीक ठाक है और अपना काम कर रही है लैब में।
ये वो जादुई शब्द हैं… जिन्हें सुनने के बाद पूनम फिर अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाती है!
इतनी दूर जाते हैं बच्चे, अपनी पढ़ाई.. कैरियर के लिए.. और जरूरी भी है
फिर पहले वाला वो जमाना गया जब लड़कियों को बहुत पढ़ाने वाले( अधिकांश.. अपवाद नहीं) माता पिता चाहते थे कि उनकी बेटियां सर्वप्रथम उन्हीं शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करें जो उनके अपने शहर में हैं.. इसके अधिक अपने रिश्तेदारों के शहर में चली जाएं.. जहां वो उनके घर ( मतलब उनके संरक्षण) में रह कर पढ़ाई कर लें।
हालांकि किसी बड़े शहर में रहने वाली लड़कियों को इसका एहसास कम होता था, परंतु छोटे जगहों पर रहने वाली लड़कियों की कमोबेश यही स्थिति होती थी ।
आद्या को रिसर्च वर्क की ओर मुड़ना था और वो पढ़ाई और परीक्षाओं के विभिन्न सोपान पार करते हुए उस ओर बढ़ती जा रही थी ।
ऐसे में विवाह की सोचें या कैरियर की ओर आगे बढ़े?
ये किसी भी माता पिता की तरह पूनम और उसके पति के मन में एक स्वाभाविक सी उथल पुथल रहती थी।
लड़की को अपने पैरों पर खड़ा करना भी जरूरी है
और योग्य वर भी मिलना आवश्यक.. जिससे जीवन की राह पर साथ चलने वाला जीवन साथी मिल जाए!
तभी अनमोल की ओर से विवाह प्रस्ताव आया !
दोनों घर वालों ने मिलजुल कर विवाह तय किया।
आद्या शायद अभी विवाह के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी।
क्योंकि उसकी रिसर्च करने की अभिरुचि… उसे पढ़ाई की ओर ज्यादा मोड़ रही थी ना कि विवाह के लिए मानसिक रूप से तैयार कर पा रही थी।
फिर सभी बड़ों की सहमति से विवाह हुआ।
आद्या भी अपनी पढ़ाई को आगे ले जाने के लिए कृत संकल्प थी।
उसकी इच्छा, मेहनत और जुझारूपन में कोई कमी ना थी!
और फिर दोनों परिवार और जीवनसाथी भी उसके साथ थे तो फिर क्या बात थी
विवाह के बाद विदाई की बेला आई
मम्मी पापा ने खुशी खुशी गरिमा के साथ सहज भाव से विदाई की रस्म निभाई!
कोई चिंता नहीं…. ना हृदय में कोई बोझ
कैसे हंसी खुशी.. सब सम्पन्न हुआ?
वरना तो माता पिता, रो रो कर हलकान हुए जाते हैं
कहां जा रही है मेरी बेटी?… ना जाने कैसे लोग हों?… जीवनसाथी भी साथ निभाएगा या नहीं?
आखिर पूनम की सहेली ने पूछ ही लिया… पूनम कैसे इतनी निश्चिंतता के साथ तुमने बिटिया की विदाई की… कोई रोना धोना क्यों नहीं मचा…
पूनम ने खिलखिलाते हुए कहा
अरे बिटिया इतनी दूर पढ़ाई कर रही थी.. अब एक से दो लोग हो गए साथ रहने को.. एक दूसरे का साथ निभाने को,.. सुख दुःख कहने सुनने, समझने को.. अब तो चिंता दूर हो कर निश्चिंत होने की बात थी….शायद वही निश्चिंतता, प्रसन्नता तुम्हें मेरे चेहरे पर दिखाई पड़ रही थी!!
पढ़ने वाले इंसान के लिए तो सारी उम्र पड़ी है पढ़ने को.. कैरियर में नए मुकाम हासिल करने को….. इसमें कोई समझदार, सुयोग्य इंसान मिल जाए तो, विवाह कर देना चाहिए… बहुत अधिक दिनों तक विवाह ना करने ( मतलब लेट विवाह करने से) बच्चे अकेलापन, अवसाद जैसी स्थितियों में भी आ जाते हैं…. इसके बजाय दो प्राणी मिलकर अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कैरियर की राह पर भी अग्रसर हों और जीवन की भी….!!
दोनों मिलकर बहुत सी चीजें स्वयं तय कर लेंगे… बगैर किसी की चिंता के.. फिर बड़े ( अभिभावक) तो अपने स्थान पर हैं ही!
सच!! कितने सौ टके की बात कही थी पूनम ने
पूनम की सहेली भी मन में कुछ तय करते हुए अपने घर की ओर बढ़ गई
उसके कंपटीशन की तैयारी में रत दोनों बच्चों की उम्र बढ़ती जा रही थी.. दोनों उसके समझाने पर एक सर्विस कर रहे थे जिसे भी वो पढ़ाई के चक्कर में नहीं करना चाह रहे थे… परंतु कुछ अच्छे की आस में जो मिल रहा है उसे छोड़ना नासमझी है,…
पूनम को भी अपने साथ पढ़ने वाली नमिता की याद आ गई.. जो कई वर्षों की तैयारी के बाद मेडिकल में सेलेक्ट हुई.. फिर पढ़ाई के दौरान माता पिता के लाए विवाह के प्रस्तावों को सिरे से नकारती रही कि अभी बहुत पढ़ना है….. अभी विवाह की बात मत कीजिए.. समय के साथ विवाह के प्रस्तावों में भी कमी आने लगती है… माता पिता के समक्ष सीमित आप्शन बचते हैं… और अब अपने लंबे कैरियर के बावजूद एकाकी जीवन के लिए अपने माता पिता को ही जिम्मेदार ठहराती है कि
उन्होंने सही समय पर प्रयास नहीं किया,.. मतलब मुझे समझा बुझाकर विवाह के लिए तैयार किया होता तो आज मैं यूं एकाकी जीवन ना बिता रही होती…
अब क्या कहा जा सकता है?
यह सच है कि सबकी पढ़ाई की रिक्वायरमेंट और अवधि अलग अलग होती है.. और सभी के लिए कोई नियत विवाह की आयु नहीं तय कर सकते..
जीवन दो पहियों की गाड़ी है एक, लड़की का अपना कैरियर और दूसरा ( सुखद) वैवाहिक जीवन… दोनों के बिना वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जीवन असंतुलित है।
इसमें संतुलन साधने में माता पिता का उचित मार्गदर्शन, सहयोग महती आवश्यकता है।
किसी एक के बिना दूसरा अधूरा है।
और दोनों के सम्यक संतुलन के साथ ही… आपकी बिटिया
राज करेगी… अपने जीवन के सभी संदर्भों में
आज लड़कियों को अपने सिर का ताज स्वयं बनाना है.. और उसे संभालना भी सीखना है!
समाज में इस योग्य स्थान बनाना कि आप पर आपके माता-पिता और समाज गुरुर / गर्व करे, परंतु जीवन के सहज सुखों/ आवश्यकताओं से मुंह मोड़ कर नहीं।
हालांकि पहले ससुराल में सुखी लडक़ी की ही कामना करते थे.. परंतु अब विपरीत परिस्थितियों से निपटने में सक्षम बनाया जाता है। फिर परिस्थितियां विपरीत हों या पक्ष में अब लड़का, लड़की दोनों को एक समान आत्मनिर्भर बनाना अति आवश्यक है।
विषय निश्चित तौर पर लंबी बहस मांगता है फिर भी.. सभी को
पूनम की ही तरह अपनी बेटी को कैरियर और वैवाहिक जीवन दोनों को सामंजस्य से चलाते हुए देखना.. क्या सुखद और अच्छी बात नहीं होगी। अपनी बेटी को अपना गुरुर बनाएं, कुंठित व्यक्तित्व नहीं। निश्चित रूप में स्त्रियों पर घर समाज सभी की महती जिम्मेदारी है वो सक्षम भी हैं सभी को मजबूती से निभाने में!
शेष फिर कभी…. किसी और विषय पर चर्चा करुंगी आपके साथ!!
आपकी सखि
पूर्णिमा सोनी
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
# गुरुर, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक — कि रानी बेटी राज करेगी