खुशकिस्मत – श्वेता सोनी : Moral Stories in Hindi

आज शुभ्रा से फोन पर देर तक बतियाती रही नीलू.शुभ्रा उसकी छोटी बहन है,दो बरस पहले उसी लड़के से उसकी शादी हुई थी जिसे उसने बहुत चाहा था और जिसे उसने नीलू से छीना था.

 अंकुर का रिश्ता आया तो था नीलू के लिए ही मगर अंकुर,,शुभ्रा को इतना पसंद आ गया कि उसने ज़िद ठान ली.

….मैं शादी करूँगी तो इसी लड़के से अदरवाइज नहीं करूँगी…

पापा उसकी हर जिद पूरी करते आए थे. छोटी थी और फिर माँ भी तो बचपन में ही उन्हें छोड़ चल बसी थीं. ऐसे में केवल पापा ही तो थे जीवन का सही गलत समझाने के लिए.

 मगर बेटियों के लिए माँ का होना उतना ही आवश्यक है जितना जीने के लिए साँस लेना.

बेटी और माँ एक ही आबो हवा में सींचे गए पौधे होते हैं, जो माँ ने सहा है,वही बेटी सहती है तभी अक्सर बेटियाँ,, बेटों से ज्यादा करीब होती है माँ के. पापा बिचारे क्या करते,शुभ्रा  समझने को तैयार न थी, तब नीलू ने ही कहा था….

पापा आप शुभ्रा की शादी, अगर अंकुर तैयार हो तो, कर दीजिए क्योंकि आप उसे जानते हैं, वह समझौता नहीं करती और अगर करती भी है

तो जीवन भर उसकी भरपाई दूसरों से करवाती है. पापा ने हथियार रख दिए. शुभ्रा की शादी अंकुर से हो गई.अंकुर इसलिए तैयार हो गया शायद क्योंकि सच में शुभ्रा,, नीलू से रूप रंग में इक्कीस ही थी.

 पापा तो चाहते थे कि नीलू के लिए भी कोई अच्छा रिश्ता मिल जाए तो दोनों बेटियों को एक ही मंडप से विदा कर दें मगर भाग्य को यह स्वीकार न था, नीलू के लिए नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था.

 शुभ्रा अपने मनपसंद वर के साथ विदा हो गई.. कई रिश्तों ने नीलू को अस्वीकार कर दिया..अवसाद ग्रस्त हो गई थी नीलू.

किताबों के बीच अपना समय व्यतीत करते हुए एक दिन  अचानक किसी किताब की एक पंक्ति ने उसका पूरा जीवन बदल दिया.

 ऐसा अक्सर होता है,,कई बातों से हम रोज ही रूबरू होते हैं मगर उनकी गहराई हमें तभी महसूस होती है जब हम उसी मानसिक अवस्था से गुजर रहे होते हैं जिसके लिए यह बात कही गई हो.. लिखा था..

आपका जीवन अँधेरों से घिर जाए तब आप दूसरों के लिए दिया जलाएँ.. दिमाग में घर कर गई यह बात और निकल पड़ी अपने उद्देश्यहीन जीवन को दिशा देने,, नीलू.

ईश्वर की कृपा से पापा के पास अपना घर था.पापा को जब नीलू की योजना के विषय में पता चला तो उन्होंने भी इसकी खूब सराहना की..

… मुझे तुम पर गर्व है बेटा…

 पापा ने कहा था..

 और यही वाक्य नीलू के मन में इतना साहस भर गया कि उसे किसी बात की परवाह न रही.माता-पिता जब हौसलों की पतवार बनकर बच्चों के साथ हो लेते हैं तब कोई तूफान उनकी नाव को डुबा नहीं सकती.

 घर से ही शुरुआत की नीलू ने..गरीब और अनाथ बच्चों के लिए निःशुल्क स्कूल खोला और यह छोटी सी शुरुआत उसका वृहत् आकाश बन गई.

नीलू  समाज सेवा के कार्यों में ऐसी तल्लीन हुई कि उसे कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि वह अकेला जीवन जी रही है.

 वास्तव में उसने अपना मनुष्य होना सार्थक कर लिया था.

आज शुभ्रा की बातों से अनमनी इसलिए थी नीलू क्योंकि उसका वैवाहिक जीवन पिछले दो बरस से किच-किच में चल रहा था,,

उसका समझौता न करने वाला स्वभाव और अंकुर का अपनी बात मनवाने की प्रवृत्ति ने.. दोनों के बीच प्रेम की जगह कलह का स्वरूप ले लिया था.

 अंकुर भी एक तानाशाह पति था यह बात धीरे-धीरे पता चली थी.

आज फोन पर पता नहीं क्यों शुभ्रा उसे ही कोसे जा रही थी..

,,,,दीदी तुम्हारे हिस्से की अशांति मेरे जीवन में आ गई,तुम्हारी वजह से ही आज मैं इस नर्क में हूँ. तुम तो बड़ा खुश हो रही होगी ना अपनी किस्मत पर ….

 फोन रखने के बाद नीलू मन हीं मन मुस्कुरा उठी..और सोचने लगी..

.. बहन,, मेरे हिस्से का दुःख तो तुमने अपने स्वार्थ वश मुझसे छीन लिया था. तब लगा था,,तुम कितनी खुशकिस्मत हो..

 आज सोचती हूँ..क्यों ना नाज़ करूँ, मैं अपनी किस्मत पर. 

# क्यों ना नाज करूँ मैं अपनी किस्मत पर.

श्वेता सोनी

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