ये लड़की भी न बहुत जिद्दी हो गई है अपनी मन की करनी है इसे बस और कुछ नहीं, एक तो आपने भी ना इसको ज्यादा ही छूट दे रखी है । रमा देवी अपने पति सोमेश से बोली अब देखो, अच्छा भला लडका, सुन्दर है अच्छी नौकरी शिक्षित परिवार और क्या चाहिए ..? मैं तो कहती हूँ..हाँ, कर दीजिए अच्छे रिश्ते बार बार कहां मिलते हैं।
सबसे अच्छी बात रिश्तेदारी है और खुद उन्होंने ही अपनी नैना का रिश्ता मांगा है। हाँ, हाँ ठीक है न तुम भी बस हाथ धोकर पीछे ही पड़ जाती हो .. सुबह से एक ही राग अलाप रही हो..अरे पहले नैना को तो पसन्द आये ये रिश्ता उसकी मर्जी के खिलाफ नहीं करने वाला मैं कुछ भी, सोमेश थोड़ा क्रोधित अंदाज से बोले ।क्या बहस चल रही है
आज आप दोनों मे, कोई मुझे बतायेगा जरा मैं भी तो जानू…. ? तभी नैना ऑफिस से आ जाती है और बाहर से ही बड़बड़ाती अन्दर आती है। माँ बोली अरे वही तेरी ममेरी बहन के रिश्तेदार बार बार फोन कर रहे कह रहे उनकी तरफ से तो रिश्ते के लिए एकदम हाँ है । हमारा जवाब जानना चाहते हैं। अरेऽऽ ‘माँ, मैं कितनी बार कह चुकी हूँ आप से … पहले ठीक ठीक बताए घर में कितने लोग हैं मुझे ज्यादा बड़ी फैमली (संयुक्त परिवार) में शादी नहीं करनी।
अरे घर के सभी लोग हैं जो होते हैं। माँ रमा जी बोली-अब अड़ोस पड़ोस के लोग तो होंगे नहीं घर में…. दादा दादी, माता-पिता भाई भाभी बच्चे नन्द देवर । देखों माँ, नैना बोली- अगर लड़का अलग फ्लैट में रहता तो मैं तैयार हूँ, तब तो मुझे ये रिश्ता मंजूर है अगर सभी साथ रहते संयुक्त परिवार में तो मुझे नहीं जाना वहां आप जानती है भीड़ पसन्द नहीं मुझे।
ना अपनी पसंद का खा सकते, ना पहन सकते। बात बात पर खींचा खांची रोक टोक अलग अपनी कोई ज़िन्दगी नहीं दूसरों के हाथ में रहती बागडोर.. भई मुझसे उम्मीद मत रखों, मैं नहीं निभा पाऊंगी वहां। मेरी कई मित्र का हुआ संयुक्त परिवार में विवाह मैं तो सुन सुनकर हैरान हो जाती हूँ..लोग करते क्यों है बड़े परिवार में शादी।अरे अकेला धकेला ढूंढ़ो अपना एकल परिवार बसाओ ठाट से रहो मस्त जिंदगी जियो कोई जोर जबरदस्ती थोड़े न है। नैना सब एक सांस में कह वाशरूम में घुस गई।
नैना की बातें सुनकर रमा देवी बोली क्या करें…? इसे भी अजीब जिद चढ़ी है। बड़े परिवार में विवाह नहीं करूंगी . पचासों रिश्ते आये हर में ना-नुकर । .ये आजकल की लड़कियां जाने क्या हो गया इनको भी…? एक हमारा जमाना था जहां माँ बाप ने पसंद किया वहीं हां कर दी बड़ा परिवार छोटा परिवार सोचने की भी फुर्सत किसे ससुराल आकर ही पता चला कौन कौन घर में….?
रमा जी की बात पर सोमेश बाबू खिलखिला हँस पड़े…
हाँ सगाई पर मिले थे बस तभी ठीक से दो चार बातें हो गई थी
वो भी बड़ी भाभी की कोशिश से, हमारा जमाना और था ।
अरे भई अब जमाना बदल गया बच्चे पढ लिख गये अपने पैरो पर खड़े अपना भला बुरा अच्छे से जानते।सयाने बच्चे जिद जोर जबरदस्ती नहीं की जा सकती इन के साथ।
देखों रमा तुमको यह रिश्ता बहुत भा रहा है, तुम्हारा बहुत मन है तो ऐसा करो नैना को लेकर दो दिन उनके घर चलते हैं और नैना वहां सब अपनी आँखों के सामने सब देख लेगी ।उसको अच्छा लगेगा तो रिश्ता कर लेंगे नहीं तो रिश्ते दारी तो है ही मिलना जुलना हो जायेगा।
नैना वाशरूम से बाहर आते सब सुन लेती है वाह पापा ग्रेट् आइडिया..अगले सप्ताह दो छुट्टी आ रही है प्रोग्राम बना लेते हैं। रमा देवी बहुत खुश होती है जल्दी से फोन कर प्रोग्राम तय कर लेती हैं। उनको तो था कहीं नैना का मूड न बिगड़ जाये कहीं मना न कर दें.. अभी कम से कम थोड़ी आस तो थी रिश्ते के होने की, इतना अच्छा रिश्ता वो गंवाना नहीं चाहती थी।और फिर मायके की तरफ से आया रिश्ता।
दो दिन छुट्टी का सदुपयोग दोनों परिवारों के सदस्यों ने किया नैना माता-पिता के साथ लडके वालों के घर पहुँच जाती हैं.. उनका परिवार खुशी से स्वागत करता है शुरूआत चाय पानी का दौर हंसी ख़ुशी मजाक से गूंजता उनका पुस्तैनी घर, और परिवार का नैतृत्व करते बड़े बुजुर्ग दादा दादी का प्यार देखभाल देख नैना बहुत प्रभावित होती है।
उसको उन बुजुर्ग सदस्यों के चेहरे पर पड़ी झुर्रियों में ज्ञान के स्पष्ट दर्शन होते हैं । शाम के समय सभी बड़ी छोटी महिलाएं मिलजुल किचन में व्यंजनों को बनाने में लगीं साथ ही अपने अपने किस्सों का आदान-प्रदान करती नजर आई।पूरा रसोईघर मसालों की महक से सुगंधित हो रहा था । छोटे सभी बच्चे आँगन में दौड़ते मस्त फूलों से लहरा रहे।और बुजुर्ग दम्पति की नजर पल भर भी उनसे दूर नहीं होती ।
रात को खाने पर सभी एक साथ बैठे अपनी दिनचर्या को ताजा करते दिखे। कोई चुटकुले सुना रहा, कोई बहस में मशगूल, कोई अपने दुख सुख कोई हार-जीत के दौर का विवरण करता नैना को सब बहुत अच्छा लगता है। सोचती है ऐसे तो रिश्ते कितने मजबूत हो जाते होंगे। उसको वहां सुरक्षित और घर जैसा महसूस होता है। सोचती है मजबूती, आत्मसम्मान,और पहचान की भावना को बढ़ावा यहां मिलेगा ही ।
दूसरे दिन उसने देखा सभी पीढ़ियां साथ मिलकर रहने से बच्चे भी वही सीख रहे,कर रहे जो बड़े कर रहे कह रहे। मूल्य वान जीवन के सबक सीख रहे। परम्पराओं से परीचित हो रहे यानि सभी उम्र के लोगों में, सहानुभूति, सम्मान समझ खूब बढ़ रही है। बड़े, बच्चों के साथ साथी बन खेल रहे। परिवार को सम्भालने में सहयोग समझौता संघर्ष सामाजिक कौशल भी विकसित हो रहा है ।
नैना को महसूस होता है संयुक्त परिवार,साथ बांधने वाले बंधनों के प्रति गहरी सराहना प्रदान करने वाला है। परिवार के सभी सदस्य आपस में भावनाओं की डोर से बंधे, दुख सुख झगड़े अपने पन सभी का संयोग है जीवन की कठिनाइयों में हम खुद को कभी भी अकेला नहीं पायेंगे।
“ बिखरे परिवारों का कोई भी अस्तित्व नहीं होता और न ही जड़ों से जुड़ाव”!!
शाम को सभी मिलकर पार्क में घूमने निकले जहाँ सबकी बेहिचक हँसी गूँजती नैना को बहुत अच्छी लगती हैं। बिल्कुल वैसा वातावरण जैसा वो चाहती रही है।
वो सोचती है, वो कितनी गलत थी…जो बड़े परिवार संयुक्त परिवार के खिलाफ थी। लोगों की सुनी सुनाई बातों में आकर अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुली हुई थी।
दो दिन में उसे कोई बुराई नजर नहीं आई बल्कि ढेरों विशेषता ही दिखी यहां तो आर्थिक सुरक्षा भी है। कठिन समय में सभी एकजुट रहने में मदद रहेगी।सभी एक दूसरे के प्रति समाजिक दायित्वों को निभाते दिखे। सबसे अच्छा बच्चों की देखभाल या बुजुर्गो की देखभाल परिवार के सदस्यों के बीच प्यार समर्पण समर्थन जो आज के,समय में कितना जरूरी है सभी यहां मौजूद हैं।
“ संयुक्त परिवार दूर से देखों तो बन्धन सा लगता मगर,समझों तो सहज सुरक्षा कवच समान लगता है “।
यहां सब सम्भव है क्योंकि सबके हृदय में विवेक उदारता है। वाणी में मधुरता है, सहनशीलता है कहीं कोई आक्षेप कटाक्ष नहीं है। सहयोग की वात्सल्य भावना है। हर समस्या का समाधान शान्ति पूर्वक निकाला जा रहा है। सबमें त्याग समर्पण भाव है।
तभी लड़के के माता-पिता नैना के पास आकर पूछते हैं- बेटा कैसी लगी हमारी ‘बरगद की छाँव’ हमारा संयुक्त परिवार..?
समाज में व्यक्ति का परिवार ही उसका संसार उसकी पहली प्राथमिकता होती है बेटा…..
यहीं व्यक्ति को भावनात्मक सहयोग मिलता है। जीवन में कुछ प्राप्त करने की काबिलियत परिवार ही देता है नैना ।
नैना कहती हैं… “ मुझे माफ करना मैं कितनी गलत थी”। एकल परिवार को ही महत्वपूर्ण समझती रही । संयुक्त परिवार को पहली बार इतना करीब से जाना महसूस किया संयुक्त परिवार यानि खुशहाल जिंदगी….ये तो खुशियों की कुंजी है । मुझे रिश्ता मंजूर है। नैना के उत्तर को सुनकर उसकी स्वीकृति से दोनों परिवार खुशी से झूम उठते हैं।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया