खुशियों के दीप – माधुरी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

सेठ मंगलदास की हबेली आज पूरी कॉलौनी में एकदम अलग से चमक रही थी ,दूर दूर से लोग इस अदभुत रौनक कोदेखने आरहे थे। सेठजी भी आज सही मायने में बहुत खुश नजर आ रहे थे।यह करिश्मा किया था उनकी सबसे छोटी बहू सलोनी ने।हबेली में दीपावली पर लाइटों की झालर न लगा कर पूरे चार हजार दिये लगाये थे।इतना ही नहीं दरबाजे पर सुन्दर सी रंगोली भी सजाई गई थी ।यह सब देखकर सच में सेठजी की आंखों में #खुशियें के दीप प्रज्वलित हो गये थे।

सेठ थी आज अपने बेटे सपन थी पसंद पर मन ही मन गर्व महसूस कररहे थे। सेठजी का मन आज खुद व खुद अतीत के गलियारे में चला गया।जब सपन ने अपने पापा के सामने सलोनी से शादी करने कीथी बावत बात कीथी तो सेठजी ने तुरंत ही न में जबाव दे दिया था ,।कितना समझाया था सपन को कि बेटा रिश्ते हमेशा अपने बराबर बालों थे साथ ही ठीक रहता है।कहां हम लोग व कहां यह मिडिल क्लास परिबार की थी लड़की।यह लड़की हमारे परिबार में मखमल में टाटा का पैबंद लगेगी।उनके रहन-सहन व हमारे रहन-सहन में जमीन आसमान का फर्क होता है।

लेकिन सपनभी जिद पर अड़गया कि शादी करेगा तो सिर्फ सलोनी से नहीं तो शादी ही नहीं करेगा।आखिर सेठजी कोअपने लाडले बेटे की जिद थे आगे झुकना ही पड़ा और सलोनी सेठजी के परिवार में बहू बन करआगई।

आगरा से मुंबई तक का सफर तय करके सलोनी सेठ जी की हबेली में बहू बन घर आ तो गई थी लेकिन दो दिन में ही यहां उसका दम घुटने लगा। कयों कि शादी के तीसरे दिन ही सपन कोखो बिजनैस केकिसी जरूरी काम सेबाहर जाना पड़ गया।बस एक सपन ही था जिससे वह भलीभांति परिचित थी परिवार के बाकी सदस्यों से तो मात्र परिचय ही हुआ थाउसकाअब तक।एक सप्ताह बाद जब सपन घर लौटा तो पहले सेठजी से व्यापारिक बातें करने के बाद जब अपने कमरे में लौटा तो उसे देखते ही सलोनी उससे लिपट कर हिचकियां लेकर रोने लगी।

क्या हुआ सलोनी क्या तुमसे किसी ने कुछ कहा है, मुझे बताओ कि तुम आखिर रोकयों रही हो।कहेगा तो कोई तब, जब कोई नजर आयेगा,यहां इस हबेली में तो सब लोग अपने अपने कमरों में ही बैठे रहते हैं। सुबह के नाश्ते से लेकर शाम केखाने तक महाराजजी ही सबके कमरों में उनकीपसंदका खाना नाश्ता पहुंचा देते हैं और बाद में बर्तन समेट करले आते हैं।लोगों कीशकलतक देखने को तरस गई मैं।

हमारा घर छोटा जरूर था लेकिन मां ,बावूजी वछोटे भाई सुबीर से किसी न किसी बिषय पर बातचीत होती ही रहती थी।समय का पता ही नहीं चलता था।जानते हो यह आठ दिन मैंने आठ साल की तरह गिन गिन कर काटे हैं कि कब तुम आओ और मैं अपना मुंह खोलूं।

सॉरी तुम्हारे आते ही मैं अपना दुखड़ा सुनाने बैठ गई‘तुम फ्रेश होजाओ तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय नाश्ता लेकर आती हूं।

अरे तुम क्यों जाओगी नाश्ता बनाने , अभी महाराज जी आते ही होंगें चाय नाश्ता लेकर। सपन के लाख मना करने के बावजूद भी सलोनी रसोई में जाकर स्वादिष्ट नाश्ता बना करलेआई। टेस्टी नाश्ता करके सपन के चेहरे पर त्रप्ति के भाव आगये अरे तुम्हारे हाथ के स्वादिष्ट नाश्ता ने आज बहुत दिनों के बाद मां के हाथ के स्वाद की याद दिलादी। अपनी तारीफ सुनकर सलोनी खुश हो गई।फिर एकाएक याद करते हुए बोली, तुम्हें याद है न दीपाली का त्योहार नजदीक आ रहा है हबेली में मेरी यह पहली दिबाली है मुझे तो दीपाली को लेकर मन में बहुत उत्साह है।देखना इस बार हबेली की दीबाली यादगार होने बाली है।

अरे हां , अच्छा बताओ कि हबेली में दीबाली कैसे मनाते हैं।तुम रुको तो मैं कुछ बोलूं सपन ने मुस्कराते हुए कहा , तुम्हें कुछ भी करने की जरूरत नही है। महाराज व दूसरे नौकर चाकर मिलकर घर की सफाई करते हैं,बिजलीबाला आकर पूरी हबेली में झालर लगा देता है।दोनों भाभियां पार्लर जाती हैं सजनेके लिए और ढेर सारी शौपिंग करती है। मार्केट से तरह तरह की मिठाई आजाती है,और पंडित जी आकर दीपाली की पूजा करवा देते हैं।बावूजी सभी नौकरों व बच्चों को रूपए देते हैं।बच्चे जी भर के पटाखे फोड़ते हैं।फिर रात होने पर सब अपने अपने कमरों में चले जाते हैं,बस हो गई दीबाली और क्या।

अरे वाह एैसेकैसे होगई दीबाली,दीबाली पर घर के हरेक कोने में दिया न जलाएं, द्वार पर रंगोली न सजे और रसोई से पकबानों की महक न आए तब तक थोड़े ही लगता है त्यौहार है।

हां कहती तो तुम ठीक हो लेकिन जब तक मां की तबियत ठीक थी,तब दीपाली पर भगवान का भोग मां ही बनाती थीं और अन्य कई तरह के पकवान भी बनते थे।लेकिन मां बीमारी के कारण यह सब कर नही पाती दादी और मां की उम्र नहीं है यह सब करने की।रही बात दोनो भाभियाो की सो दोनो में से एक को भी रसोई में जाकर पकाने का कोई शौक नहीं है।बैसे भीउन दोनो को किटी पार्टी जिम व पार्लर जाने से ही फुर्सत नही है।

अच्छा,जो भी करना है करलेना लेकिन कुछ नया करने से पहले दादी मां से परमीशन जरूर लें लेना।

फिर सलोनी ने दादी मां से सलाह करके,न केवल दिबाली परतरह तरह के पकवान घर में बनाएं,बिजली की झालर की जगह दिया सजाए और अपनी सासूमां को भी हाथ पकडं घर दिबाली की पूजा करने भी ले आई।यह सब देखकर ही सेठजी बहुत खुश हुए,और उनकी आंखों में # खुशियों के दीप # जगमगा उठे।सबके सामने सेठजी ने सलोनी की तारीफ की बहू सच में आज कितने दिनों के बाद यह महसूस होरहा है कि मैं किसी हबेली में नही घर में बैठा हूं।तुमने ही इस हबेली को घर बनाया है।मै तुम्हारी परबरिश व संस्कारों को प्रणाम करता हूं। तुम्हारे जैसीबहू हर घर में हो तो हर घर में खुशियों के दीप जलते रहें

स्वरचित व अप्रकाशित

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

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