” सुनो सौरभ मिट्ठू का पहला जन्मदिन है सब पूछ रहे है कहाँ मना रहे है हम अपनी बेटी का पहला जन्मदिन !” खाने के बाद जब सौरभ टीवी खोलकर बैठा तो उसकी पत्नी मानसी रसोई का काम निपटा उसके पास आकर बोली।
” मानसी तुम्हे तो सब हालात पता है तो तुम सबसे बोल देती नही मना रहे हम जन्मदिन !” सौरभ झुंझला कर बोला।
” पर सौरभ यहाँ सोसाइटी मे सब अपनी छोटी से छोटी खुशी भी सबके साथ मनाते है और फिर सबको पता है हमारी बेटी तो शादी के पांच साल बाद हुई है । हमने उसके होने पर भी कोई पार्टी नही की थी तो अब तो सब पूछेंगे ही ना !” मानसी बोली।
” मानसी दिखावे की जिंदगी है ये । ये लोग खुशी नही मनाते बल्कि दिखावा करते है एक दूसरे को दिखाने को कि देख तूने इतना पैसा खर्च किया मैने इतना ! तुम जानती हो हमारी स्थिति अभी दिखावे की नही है । अभी छह महीने हुए है मुझे दुबारा नौकरी मिले सारा पैसा किश्तों मे ही चला जाता है अब मिट्ठू के जन्मदिन के दिखावे के लिए मै फिर कर्ज लूं ये मुझसे नही होगा !” सौरभ बोला।
मानसी सौरभ की बात सुन चुप रह गई सौरभ गलत भी नही कह रहा था दिखावे के चककर मे 50-60 हजार फूंक देना समझदारी तो थी नही वो भी तब जब पैसो की तंगी पहले से है उन्हे। कितना अच्छा था आज से करीब दो साल पहले जब उसे पता लगा था चार साल के इंतज़ार के बाद वो माँ बनने वाली है ।
सौरभ और उसने कितने सपने देख लिए थे एक ही रात मे कि बच्चा होने पर वो ये करेंगे वो करेंगे । पर अचानक उनकी खुशी को ग्रहण लग गया जब दो दिन बाद सौरभ ऑफिस से लौटा । पता लगा उनकी कम्पनी घाटे मे चल रही है जिससे कम्पनी मे छटनी की जा रही है और निकाले गये कर्मचारियों मे सौरभ का भी नाम है । मध्यम वर्गीय नौकरी पेशा इंसान के लिए नौकरी जाना मानो सपनो के टूट जाने सा होता है । घर की किस्त , अपने खर्चे , आने वाले बच्चे के खर्चे कैसे होंगे ये सोचकर ही सौरभ और मानसी परेशान हो उठे ।
उस वक्त उनका सहारा बने मानसी के गहने हालाँकि सौरभ को उम्मीद थी वो जल्द दूसरी नौकरी ढूंढ लेगा पर उसे नौकरी मिली पूरे डेढ़ साल बाद तब तक मानसी के गहने तो बिके ही कर्ज भी चढ़ गया क्योकि मिट्ठू के होने पर भी अस्पताल का काफी खर्च आया था । तब उन्होंने मिट्ठू का नामकरण
बहुत साधारण किया था ये सोचकर की नौकरी मिल जाएगी तो पहला जन्मदिन धूमधाम से करेंगे। हालाँकि इस बीच सौरभ ने तो छोटी मोटी नौकरी की भी कोशिश की पर वो भी सम्भव ना हो पाया अब भी उसे पहले से कम तनख्वाह पर नौकरी मिली थी जिससे कर्ज की किस्त और खर्च ही निकल पाते थे ऐसे मे जन्मदिन का खर्च वो नही निकाल सकता था।
इंसान छोटी छोटी खुशियां मनाने को भी कितना मजबूर हो जाता है कभी कभी । ये सब सोचते सोचते मानसी मिट्ठू के पास आ गई उसे सुलाने।
क्या खुशियां सिर्फ दिखावे से ही मिलती है क्या थोड़ा सा दिमाग़ लगा छोटे पैमाने पर खुशी नही मनाई जा सकती ? यही सब सोचते सोचते मानसी के दिमाग़ मे एक आईडिया आया ।
” सौरभ हम मिट्ठू का जन्मदिन मना रहे है तुम्हे अपने जो दोस्त बुलाने हो उन्हे न्योता दे देना !” अगली सुबह मानसी सौरभ से बोली।
” मानसी फिर वही बात !!! बोला ना मैं इतना खर्च नही कर सकता तुम्हारे दिखावे के चककर मे !” सौरभ बोला ।
” तुम्हे कौन कह रहा है ज्यादा खर्च करने को क्या खुशियां बड़े होटल मे पार्टी करने से ही हांसिल होती है !” मानसी मुस्कुराते हुए बोली । फिर उसने सौरभ को अपना आईडिया बताया।
” पर क्या तुम ये कर पाओगी ?” सौरभ बोला।
” हां बस तुम्हारा थोड़ा साथ चाहिए !” मानसी मुस्कुराते हुए बोली तो सौरभ भी मुस्कुरा दिया।
” लेकिन सबको रिटर्न गिफ्ट भी तो देने होंगे ? अब जब सबके यहाँ से हमें मिले है गिफ्ट तो हम यूँही तो नही भेज सकते सबको !” सौरभ कुछ सोचता हुआ बोला।
” तुम उसकी चिंता मत करो और ऑफिस जाओ ये सब चिंता मुझपर छोड़ दो !” मानसी बोली।
सौरभ के जाने के बाद मानसी ने सामान की लिस्ट बनाई , फिर सबको फोन कर दिये । जन्मदिन मे अभी चार दिन थे मानसी को इसी बीच तैयारी करनी थी ।
मिट्ठू के जन्मदिन से एक दिन पहले मानसी की बहन , भाभी और ननद आ गई । उन्होंने रात से ही तैयारी शुरु कर दी। सुबह होते ही सौरभ , मानसी का भाई और उसके दोस्त अपने काम पर लग गये और मानसी सब औरतों के साथ अपने काम पर ।
शाम मे सोसाइटी की छत पर अलग ही रौनक थी । दीवाली की बची हुई लाइट और गुब्बारों से छत जगमगा रही थी एक तरफ खाने की तैयारी की गई थी दूसरी तरफ केक काटने की । सामने स्पीकर पर गाने बज रहे थे और नन्हे नन्हे बच्चे थिरक रहे थे।
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” वाह मानसी तुमने तो अलग ही समा बाँध दिया । हमने तो सोचा भी नही था ऐसे भी जन्मदिन मनाया जा सकता है !” मानसी की एक पड़ोसन बोली।
” हां रेखा हमने सोचा होटल मे पार्टी कर करके सब बोर हो गये होंगे क्यो ना कुछ अलग किया जाये । ऐसा जिससे हमारा बचपन भी जिंदा हो जाये ।” मानसी हंस कर बोली।
” सच मे हम लोगो के जन्मदिन तो घर पर मना करते थे । वैसे तुमने तो होटलों को फेल कर दिया लग ही नही रहा ये हमारी सोसाइटी की वही छत है जो बेजार सी पड़ी रहती थी !” एक और पड़ोसन बोली।
थोड़ी देर बाद मानसी ने सबको शरबत और कोल्ड ड्रिंक परोसी साथ मे घर के बने समोसे छोटे छोटे बर्गर और बाहर से मंगाये ढोकला , चिप्स और रसगुल्ले । सबने नाश्ते का लुत्फ़ उठाया। फिर आई केक कटिंग की बारी । मिट्ठू भी आज गुलाबी फ्रॉक मे खुशी से फुदकती फिर रही थी।
केक के बाद मानसी खाने का इंतज़ाम देखने नीचे आ गई क्योकि उसका फ्लैट लास्ट फ्लोर पर था तो ज्यादा दिक्क़त भी नही थी उपर से लिफ्ट तो थी ही। मानसी के भाई और उसके दोस्तों ने सारा खाना उपर पहुंचा दिया । मानसी को खाना बनाने का शौक तो था ही उसने अपनी भाभी , बहन और नंद की मदद से छोले चावल , मटर पनीर , गोभी आलू , दही भल्ले और पूड़ी बनाई थी मीठे मे उसने मूंग डाल हलवा बना दिया था । पूड़ी बनाने का काम उसने अपनी घरेलू सहायिका को सौंप दिया था वो अपनी देवरानी को साथ ले आई थी दोनो मिलकर पूड़ी उतार रही थी ।
मानसी नीचे की व्यवस्था देख वापिस ऊपर मेहमानों का ध्यान रखने आ गई । सबने खाने की बहुत तारीफ की वैसे भी आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी मे सब अपनी सालगिरह या बच्चो के जन्मदिन होटलों मे ही मनाने लगे है तो इस तरह का जन्मदिन नया अनुभव था सबके लिए ।
” सौरभ आज की ये पार्टी यादगार बन गई तुम्हारी वाइफ के हाथों मे तो जादू है सच मे बहुत अच्छा खाना बना था मजा आ गया !” सौरभ के बॉस ने जब ये कहा तो सौरभ प्रशंसा की दृष्टि से मानसी को देखने लगा ।
” मानसी आप इतना अच्छा खाना बनाती है आप अपने घर से क्लाउड किचन क्यो नही शुरु करती । हम जैसे खाना बनाने से बचने वाले लोगो को इससे बहुत मदद मिलेगी !” बॉस की पत्नी हँसते हुए बोली।
” मेम ये बहुत अच्छा आईडिया दिया आपने मैं जरूर इस बारे मे सोचूंगी । कब से कुछ करने की सोच रही थी पर मिट्ठू की देखभाल के साथ कुछ सूझ ही नही रहा था !” मानसी खुशी से बोली।
” तुम्हारी पहली कस्टमर मैं बन जाऊंगी !” बॉस की पत्नी हँसते हुए बोली तो सब हंस दिये।
अब पार्टी अपने अंतिम पड़ाव पर भी सबके जाने का समय हो रहा था तो सौरभ मानसी को देखने लगा मानसी उसे देख मुस्कुरा दी ।
तभी मानसी का भाई और उसके दोस्त हाथों मे थेले ले वहाँ आये । मानसी ने उसमे से एक – एक पौधा निकाल सबको रिटर्न गिफ्ट मे दिया । सब अलग अलग तरह के पौधे पा बहुत खुश हुए ।
” सच मे मिट्ठू का ये जन्मदिन हमें हमेशा याद रहेगा । ये पौधे इस अनोखे और शानदार जन्मदिन के साक्षी रहेगे !” कुछ मेहमानों ने कहा सबने उनकी हां मे हां मिलाई।
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सब मेहमानों को विदा कर वहाँ का काम समेटा जाने लगा। सौरभ ने मानसी को धन्यवाद बोला और मानसी ने अपनी ननद , बहन, भाभी , भाई उसके दोस्तों को धन्यवाद कहा क्योकि उनकी मदद बिना ये संभव नही था। साथ ही उसने अपनी सहायिका और उसकी देवरानी को भी खाना तथा पैसे देते हुए धन्यवाद कहा ।
कुछ दिन तक सोचने के बाद मानसी ने क्लाउड किचन शुरु करने की सोची । जिसके लिए उसने फ़ूड लाइसेंस के लिए अप्लाई भी कर दिया । दो महीने की भागदौड़ के बाद आज मानसी ने क्लाउड किचन शुरु कर दी । उसे अपनी सोसाइटी से ही ऑर्डर मिलने शुरु हो गये । वैसे भी अपनी बेटी के जन्मदिन पर मानसी ने एक किस्म से लोगो को नई राह दिखाई थी छोटे पैमाने पर कम खर्च कर अपनी खुशियां मनाने की । धीरे धीरे मानसी का काम बढ़ने लगा तो उसने अपनी सहायिका को पूरा दिन के लिए अपने यहाँ काम पर रख लिया वो उसकी मदद कर देती थी । आज मानसी का एक नाम है । मजबूरी मे इस तरह से मनाया बेटी का जन्मदिन मानसी के लिए नई राह खोल देगा इसका उसे अंदाजा भी नही था ।
मानसी ने पति के साथ कंधे से कंधा मिला उसका कर्ज उतार दिया पर हां वो अब भी अपनी बेटी का जन्मदिन और अपनी सालगिरह सोसाइटी की छत पर ही करती है । बाकी लोग भी वहाँ जन्मदिन मनाने लगे है अपने बच्चो का। सोसाइटी की वो छत जो कभी उपेक्षित सी रहती थी वो भी अब चमक जाती है और मानो मानसी को धन्यवाद कहती है ।
दोस्तों आजकल दिखावे की दुनिया मे रह हम सब कही ना कही दिखावे की जिंदगी जीने लगे है । जबकि पहले लोग घर मे रह कर ही खुशियां मना लेते थे । यहाँ मानसी का आईडिया कोई नया नही था हमने आपने ऐसे ही अपने जन्मदिन मनाये होंगे कभी ना कभी । बस उसने मजबूरी मे ही सही उन्ही दिनों की याद ताजा कर दी। खुश रहने को जरूरी तो नही लाखो रुपए खर्च किये जाये खुशियां पैसों की मोहताज तो नही । यहाँ मानसी अपनी समझदारी से ना केवल सबकी नज़र मे प्रशंसा की पात्र बनी बल्कि अब वो एक बिज़नेस वीमेन भी है ।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
#दिखावे की जिंदगी