खुश रहने को एक वजह काफी है । – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” क्या बात है पल्लवी आजकल बड़ी सुस्त सी रहती है तू ऑफिस में ….सब ठीक तो है ना?” चाहत ने पूछा।

“हां चाहत बस सब ठीक ही है!” पल्लवी फीकी हंसी हंसते हुए बोली।

” चल कैंटीन में चलकर एक एक कप काफी पीकर आते है!” चाहत उसका हाथ पकड़ कर बोली।

” नहीं यार…!” पल्लवी की बात पूरी होने से पहले ही चाहत उसे लगभग खींच कर बाहर ले आई।

” अब बता क्या बात है?” कैंटीन में कॉफी का ऑर्डर दे कुर्सी पर बैठते हुए चाहत बोली।

” बस यार जिंदगी बोझ सी हो गई है ऐसा लगता है सब ख़तम सा हो गया हो….पता नहीं मेरी ही किस्मत में ये सब क्यों लिखा था मैने कभी नहीं चाहा था ऐसा हो..!” पल्लवी नम आंखों से बोली।

असल में पल्लवी की अभी तीन साल पहले रितेश से शादी हुई थी शादी के बाद पल्लवी ने महसूस किया रितेश उससे खींचा खींचा रहता है। कहने को उनका रिश्ता नया है जिसमे एक ताजगी होनी चाहिए पर उनके रिश्ते मे तो वो दूरियाँ है जो भर नही रही ।  एक रोज कारण पूछने पर रितेश ने बताया वो किसी और से प्यार करता है ।

कुछ वक़्त पल्लवी ने रितेश के बदलने का इंतजार किया पर कब तक बिन गलती की सजा भुगतती। उससे तलाक ले आ गई इस अनजान शहर में । मां बाप थे नहीं भाई भाभी पर वो बोझ नहीं बनना चाहती थी। उसने अपने जेवर बेच कर कुछ पैसे इकठ्ठा किए फिर वुमन हॉस्टल में एक कमरा ले रहने लगी ।

पढ़ी लिखी थी ही तो थोड़ी भाग दौड़ के बाद नौकरी लग गई। छह महीने हो गए उसे नौकरी करते चाहत उसकी अच्छी दोस्त बन गई है जो उसे समझती है।

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“पल्लवी चाहते हम बहुत कुछ नहीं है जिंदगी में कि ना हो पर हो जाता है ना। पर उससे जिंदगी तो नहीं रुकती तू आगे बढ़ पीछे मत देख जिंदगी इतनी भी बदसूरत नहीं है यार ।” चाहत ने समझाया।

” पर चाहत ऑफिस से घर घर से ऑफिस यही जिंदगी है बस। यहां काम में मन लगा रहता है पर घर जाओ तो वहां अकेलापन खाने को दौड़ता है जब साथ में रहने वाली लड़कियों के परिवार को देखती हूं मिलने आते तो यूं लगता है जैसे सब खुश हैं सिवा मेरे !” पल्लवी उदास हो बोली।

” तू मेरे साथ चल!” अचानक चाहत खड़ी होते हुए बोली!

“पर कहां?” पल्लवी ने पूछा पर कोई जवाब ना दे चाहत ने दोनों की आधी छुट्टी का मेल किया और उसे अपनी स्कूटी पर बैठाया और चल पड़ी रास्ते में पल्लवी ने बहुत पूछा पर चाहत चुपचाप स्कूटी चलाती रही।उसकी स्कूटी आकर रुकी एक अनाथाश्रम के बाहर।

” तू मुझे यहां क्यों लाई है !” पल्लवी हैरानी से बोली।

“तू चल तो अंदर !” चाहत स्कूटी खड़ी कर पल्लवी का हाथ पकड़ अंदर ले गई।

” दीदी आ गई दीदी आ गई !” चाहत को देखते ही वहां के कुछ बच्चे अपना खेल छोड़ भागे चले आए।

चाहत वापिस बाहर गई और अपनी स्कूटी से एक पैकेट निकाल लाई जिसमें चिप्स और बिस्किट्स थे उसने बच्चों में वो बांट दिए बच्चे बहुत खुश हो गए। उन्हें खुश देख पल्लवी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।

” चाहत कितने प्यारे बच्चे हैं ये बेचारों का कोई नहीं अपना कहने को फिर भी कैसे खुश हैं ये जरा सी चीज पाकर !” पल्लवी चाहत से बोली।

“हां पल्लवी और एक हम बड़े लोग होते जो इतना कुछ होते हुए भी दुखी रहते … आज में जीने की जगह अतीत और भविष्य की चिंता में घुलते रहते। इन बच्चों को ना अपना अतीत याद है ना भविष्य का पता फिर भी ये आज में जी खुश रहते है!” चाहत बोली।

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” सच कहा तूने हमारे पास इतना कुछ होते हुए भी हम खुश नहीं रहते !” पल्लवी बोली।

” पल्लवी “खुशी खुद से नहीं आती बल्कि छोटी छोटी चीजों से हासिल की जाती है” जैसे ये बच्चे आज में जी हासिल कर रहे इनके चेहरे की निश्छल मुस्कान देख क्या तुझे नहीं लगता जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं जितनी हम समझ लेते !” चाहत बोली।

” सही कहा तूने तेरा बहुत शुक्रिया मुझे यहां लाने के लिए और खुशी के सही मायने समझाने के लिए …!” पल्लवी चाहत के गले लग कर बोली।

” दीदी दीदी चलो ना फुटबॉल खेलते हैं!” तभी एक बच्चा चाहत के पास आकर बोला।

” हां चलो !” चाहत उत्साहित हो बोली।

” दीदी आप नहीं खेलोगे हमारे साथ !” तभी एक नन्ही बच्ची पल्लवी का हाथ पकड़ कर अपनी गोल गोल आंख मटका कर बोली।

” क्यों नहीं खेलूंगी आप जैसे प्यारे बच्चों के साथ !” पल्लवी बच्ची को गोद में उठाती हुई बोली।

पल्लवी बच्चों के साथ बच्ची बनी खेल रही थी , चहक रही थी शायद इतनी खुश वो आज से पहले नहीं हुई थी क्योंकि आज उसे खुशी के नए मायने जो मिल गए थे अब उसकी सारी शिकायतें ख़तम हो गई थी । क्योंकि वो खुशी हासिल करना सीख गई थी।

अब पल्लवी रोज शाम को ऑफिस के बाद थोड़ा वक़्त इन बच्चों के साथ बिताने लगी थी चाहत वहां पहले से आती थी और पल्लवी उसकी दोस्त थी तो उसे भी स्टाफ ने बे – रोक टोक आने की अनुमति दे दी थी। अब उसे ना अतीत की याद दर्द देती थी ना भविष्य की चिंता का वक्त था उसके पास । ऑफिस के बाद बच्चो के साथ हंस खेलकर वो सब भुला चैन की नींद सो जाती थी और अगले दिन खिली खिली रहती थी ।

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दोस्तों मुश्किलें जिंदगी का हिस्सा हैं पर उनका रोना रोकर क्या होगा जिंदगी तो तब भी जीनी ही है तो क्यों ना हंस कर जी जाए। खुशी खुद से नहीं आती उसे छोटी छोटी चीजों से हासिल किया जाता है। रोने के बहाने हजार हैं और हंसने को एक वजह काफी है तो उस वजह को तलाशिए खुल का मुस्कुराइए और अपनी खुशी हांसिल कीजिए।

इतना सा सार है जिंदगी का जो समझ गया वो जिंदगी जी गया बाकी गुजर तो सबकी ही रही है

उम्मीद है रचना पसंद आएगी आपको और आप भी अपनी खुशी हासिल करेंगे अपने विचार मुझसे जरूर शेयर कीजिएगा।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#रिश्तो मे दूरियाँ

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