खुद के लिए जिऊंगी – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

पिता की मृत्यु के बाद सभी भाई – बहनों में वर्षा ही थी जो घर को सहारा देकर परिवार की बागडोर सम्भाल सकती थी । चार भाई बहनों में वर्षा दूसरे नम्बर पर थी उससे बड़ी निशा थी फिर दो छोटे भाई  महेश और मनीष । पिताजी  ट्यूशन पढ़ाकर अपना गुजारा करते थे ।उससे ही वो बच्चों को पढ़ा रहे थे फिर अचानक बीमार हुए और चले गए ।

वर्षा पढ़ने में बहुत अच्छी थी ।जी – जान झोंककर तैयारी में लगी रहती थी, बाकी सबका उद्देश्य बस किसी तरह पास करना था । पिताजी के गुजरने के बाद सबका मन इधर – उधर भटकने लगा लेकिन सिर्फ वर्षा ने अपने मन को नियंत्रण में रखा और मेहनत से बैंक  पी. ओ की परीक्षा निकाल ली । घर का माहौल जैसे बदल सा गया । बैंक की नौकरी, एक अच्छा घर सब कुछ तो मिल गया वर्षा को । अब घर के किराए भी बच गए । जॉइन करने के बाद उसने जल्दी ही पंडित जी को मुहूर्त दिखाकर अपने परिवार के साथ शिफ्ट कर लिया । शान – ओ – शौकत, सुख – सुविधा किसे नहीं अच्छी लगती ? पर सुख सुविधा तो बाकी लोग ले पाते थे । वर्षा का पूरा दिन बैंक में ही बीत जाता । जल्दी सुबह उठकर कभी खाकर कभी बिन खाए भागती और फिर रात को सोने समय आती ।

छःमहीने बाद…

एक दिन वर्षा की मम्मी प्रभा जी ने कहा..”बेटा ! निशा के लिए बुआ जी ने लड़का बताया है,अभय नाम है, अच्छा बिजनेस है कपड़ों का । हम उसे देखना चाह रहे थे । वर्षा ने कहा..”ठीक है मम्मी, आपलोग जाकर देख आइए । अगले दिन वर्षा के जाने के बाद सबने लड़का देखा और निशा अभय ने एक दूसरे को पसन्द भी कर लिया । 

घर आकर जब वर्षा ने पूछा..”कैसा रहा सब मम्मी ? तो प्रभा जी ने कहा..”बहुत अच्छा है बेटा ! मैंने बात पक्की कर दी है , अपना घर, गाड़ी सब है उन्होंने दस लाख दहेज की मांग की है , मैंने हाँ कर दिया है । “इतनी जल्दी हाँ क्यों कर दी मम्मी ? थोड़ा समय तो देती, इतने पैसे कहाँ से आएँगे । चौंकते हुए प्रभा जी ने कहा..”क्यों बेटा ? तुम्हारे भरोसे ही तो हैं हम तुम बात कर के देखो बैंक में । वर्षा ने कहा..”छः महीने की नौकरी में क्या कैसे करूँ मम्मी ? सोचने की बात है, कभी किसी का एडमिशन कराना है, किसी को शादी के लिए पैसे देने हैं , किसी को घर के खर्च देने हैं । कैसे होगा एक बार मे सब ?

तभी मनीष ने आकर कहा…”वर्षा दीदी ! मेरे दोस्त मनाली ट्रिप पर जा रहे हैं । मुझे आठ हजार रुपए दे दो । वर्षा ने झुंझलाते हुए कहा..”इतना नहीं हो पाएगा मेरे से, तुम अपने खर्च पर नियंत्रण रखो । प्रभा जी ने नाराजगी दिखाते हुए कहा..”उसे शौक है बहुत , करने दे न शौक पूरे । “शौक है तो खुद कमाए न मम्मी ! दूसरों के पैसे पर शौक नहीं होता । जरूरी खर्चे पूरे करना चाहिए शौक का तो कोई अंत नहीं । प्रभा जी ने वर्षा को चाय का कप पकड़ाते हुए कहा..”थोड़ा पैसे क्या कमाने लग गयी , तू अब समझती नहीं किसी  को । वर्षा उदास हो गयी माँ की बातें सुनकर और उसे थकान भी महसूस हो रही थी । उसने सोचा थोड़ा आराम कर लेती हूँ फिर उठकर खाऊँगी दस बजे तक और वो सो गई ।

आँखें खुली तो सुबह के छः बजे थे । झट से बिस्तर से उठी और सबको सोया देख माँ के बगल में दो मिनट लेटते हुए बोली..”मम्मी ! मुझे खाने क्यों नहीं उठाई ? मैं तो चाय पीने के बाद थकान से सो गई थी ।

तब तक निशा ने बोला..”हमें लगा शायद तुम्हें नींद आ रही है खाने का मन नहीं है इसलिए नहीं उठाया । वर्षा के दिमाग मे चलने लगा..कमाने से पहले तो सब ज़िद करके उठाते थे , पुचकारते थे अब किसी ने ये तक नहीं सोचा मुझे भी भूख लगी होगी या नहीं ।

वो तैयार होकर सुबह बैंक गयी । उस दिन वो लंच लेकर नहीं गयी थी और जब बाहर कैंटीन में खाने गयी तो झटके से उसकी नज़र महेश पर पड़ी । महेश सामने वाले रेस्टोरेंट में खाना खा रहा था । वर्षा ने कॉल करके पूछा महेश से..कहाँ है तू ? उसने सफाई देते हुए कहा..”दोस्तों के साथ फॉर्म भरने आया हूँ । उसका झूठ तुरंत वर्षा ने पकड़ते हुए कहा..”इसी लिए तुम्हें पैसे देने का मन नहीं करता सिर्फ बर्बाद करते हो । मुझे दिख रहा है तुम कहाँ हो ।ऐसे दोस्तों के साथ क्यों रहते हो जो तुम्हारे बराबरी के नहीं हैं । महेश वहाँ से रिक्शा किया और घर चला आया । जब वापस घर लौटी वर्षा तो उसने माँ के सामने महेश की आवारगी का पिटारा खोला और फिर प्रभा जी ने यही कहा..”कितना रोक टोक करेगी, जीने दे न मन से थोड़ा फिर बाद में कहाँ ये मौज कर पाएगा । 

एक महीने बाद मम्मी ने वर्षा से बोला..”वर्षा एक बाइक खरीदवा दे न ! सबके पास है सिर्फ तेरा भाई बिना बाइक के है । अंदर अंदर अब वर्षा को घुटन महसूस हो रही थी पर उसे लग रहा था माँ को समझा के अब कोई फायदा नहीं । 

थोड़ी देर चुप रहने के बाद फिर चुप्पी तोड़ते हुए वर्षा ने बोला..”सबकी स्थिति अलग  होती है माँ इतना बोझ मुझ पर मत लादो । कुछ महीने बाद.. माँ ने निशा के उसी रिश्ते के लिए ज़िद करके पैसे की व्यवस्था वर्षा से कराई और उसने बैंक से लोन, दोस्तों से उधार करके निशा की शादी को सफल बनाया ।

देखते- देखते साल भर बीत गए । प्रभा जी ने फिर कहा..”मनीष के लिए बाइक ला दे वर्षा । अब वर्षा इतने कम उम्र में सबके लिए करके थक रही थी बहुत चिड़चिड़ी हो रही थी ।  एक दिन ऑफिस पार्टी के लिए सुंदर सी पिस्ता ग्रीन साड़ी पहनकर वर्षा को तैयार होते देख निशा ने कहा…”ये साड़ी बहुत महँगी दिखती है, कितने की है ? वर्षा ने मुस्कुराते हुए कहा…”पहली बार बहुत हिम्मत से सात हजार की ली है । निशा ने वर्षा से कहा…”खुद के लिए ली तो एक मेरे लिए भी ले सकती थी । प्रभा जी ने कहा..”अब कि ऐसी साड़ी दिखे तो ले लेना निशा के लिए भी । वर्षा चुपचाप हम्म करके चली गयी ।शादी के बाद निशा भी बार – बार लगभग दस दिन में आ जाती और माँ उसे टोकरी भर भर के सामान और साड़ी देती ।बहुत मन दुःखी होता था वर्षा का, पर माँ किसी की सुनती नहीं थी ।

देखते देखते पाँच साल बीत गए । महेश ट्यूशन पढ़ाने लगा । मनीष ने कॉल सेंटर में जॉब कर रहा था । मनीष, महेश , निशा सब शादीशुदा थे अब । 

एक छुट्टी वाले दिन सब घर पर थे । वर्षा ने अपनी बात रखते हुए कहा..मम्मी ! अब मैं भी अपनी गृहस्थी बसा कर स्थिर होना चाहती हूं । निशा के पति अभय ने बिना बात पूरी हुए ही कहना शुरू कर दिया..”पहले तो हमें ही हमारे पूरे पैसे नहीं मिले । आपकी शादी में तो खर्च होगा ही पहले हमारे पैसे तो दे दीजिए । वर्षा ने कहा..”आपको तो हमें समझना चाहिए, क्या स्थिति है । जितना बन रहा है हम कर ही रहे हैं, आधे दिन तो इधर ही रहते हैं, धीरे धीरे पूरे कर देंगे पैसे ।आप दीदी को लेकर किसी दूसरे घर खोज के क्यों नहीं चले जाते ? निशा ने भी बोला..”हाँ वर्षा ! मेरी सासु माँ भी बोलती हैं  अभी पचास हजार बाकी हैं वो पूरे नहीं  हुए , मुझे ताने सुनने पड़ते हैं । “ताने क्यों सुनने पड़ते हैं ? 

चिड़चिड़ाते हुए वर्षा ने निशा से पूछा ..”क्यों ताने सुनने पड़ते हैं दीदी ? किस किस का बोझ उठाऊँ ? ट्यूशन पढ़ा के भी तो खर्च निकाल सकते हो । थक  गयी मैं सबकी माँग पूरी करते करते । आप भी अपने ससुराल जाकर रहो न ! क्यों इतनी जल्दी जल्दी आ जाते हो । और मम्मी आप..हर बार इतनी खरीदारी करोगे तो मैं कैसे करूँगी ? पिछली बार महेश की तबियत खराब हुई तो उसमें कितने पैसे खर्च हुए ? बहुत बोझ बढ़ रहा मुझ पर !सब लोग खुद से पैसे व्यवस्था करो और अपनी अपनी जगह रहो । तब तक प्रभा जी ने वर्षा के हाथों में चाय का कप थमाते हुए कहा…”तू परेशान मत हो , मैं भी तुम्हारे लिए चिंतित हूँ । कल तुम ऑफिस जाओगी तो बुआ से कहूँगी कोई अच्छा लड़का बताने  । वर्षा ने कहा..”आपलोगों ने एक बार भी मेरे लिए पहल करने को नहीं सोची मम्मी ! देखते देखते कितने साल हो गए, मेरी सभी सहेलियों के पास परिवार और बच्चे हैं ।पर्स से छोटा सा सोने का लॉकेट निकालकर  वर्षा ने मम्मी को दिया । बहुत खुश हुई मम्मी देखकर ।

अगले दिन जब बैंक जाकर वापस घर लौट रही थी वर्षा तो उसने सोच रखा था मम्मी से पूछेगी बुआ से बात हुई या नहीं । लेकिन जैसे ही दरवाज़े पर वो पहुँची ..मम्मी, दीदी और जीजा जी की बातें सुनकर वो ठिठक गयी । उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था । पर हिम्मत नहीं हो रहा था कि वो दरवाजा खोले ।

अभय जीजा जी और मम्मी बोल रहे थे..”शादी के लिए अभी कोई लड़का मत ढूंढो और उसे झूठ बोल दो की ढूंढ रहे हैं अगर वर्षा की शादी हो गयी तो वो इधर पैसे देना बंद कर देगी । पैसों की जरूरत है हम सबको । अभय ने भी बोला बिजनेस और बढ़ाने के लिए जरूरत है । महेश और मनीष  ने भी अपने अपने पैसों की जरूरत बताई । निशा ने भी कहा..”अगर वर्षा चली जाएगी शादी करके ससुराल तो मम्मी इधर हमलोग को तो कुछ नहीं मिलेगा । उसको कुछ बताने की बिल्कुल कोई जरूरत नहीं । वर्षा सुनकर बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और न चाहते हुए भी उसने दरवाजा खोल दिया…सबके चेहरे के रंग जैसे उड़े हुए , चोरी पकड़ी गई हो मानो उनकी । वर्षा ने बिना कुछ जताए खाने के बाद बात छेड़ी तो प्रभा जी ने कहा…”तू चले जाएगी तो हमारा घर कैसे चलेगा । सबकी स्थिति देख रही है न  ! किसी के पास मजबूती नहीं , तू शादी करके ससुराल चली जाएगी तो सबके लिए मुश्किल हो जाएगा । तेरे लिए भी सोचेंगे इंतज़ार कर ।

बहुत ही सख्ती से पेश आते हुए वर्षा ने आखिरकार कहा..”कितने सालों से इस घर की जिम्मेदारी मैं निभा रही हूँ, मुझसे नहीं होगा अब । मैं भी एक दुल्हन, पत्नी बन के अब नई ज़िन्दगी जीना चाहती हूँ  । मुझे अब किसी का नहीं सोचना । बहुत जी ली दूसरों के हिसाब से ..अब सिर्फ खुद के लिए जिऊंगी । मनीष और उसकी पत्नी ने कुछ समझाने की कोशिश करना चाहा तो वर्षा ने हाथ जोड़ते हुए कहा..”आप सब अपना अपना रास्ता ढूंढ लो, सिर्फ माँ को मैं यहाँ रखूँगी । 

सब अपना रास्ता अब समझ चुके थे इसलिए चुप रहने में सबने भलाई समझा । किसी की हिम्मत नहीं हुई वर्षा के फैसले के आगे कुछ कहने की । स्वच्छन्दता से अपने विचारों के साथ वह मजबूती और तरोताज़ा महसूस कर रही थी ।

मौलिक , स्वरचित

(अर्चना सिंह).

VM

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