देखो भाग्यवान …..अब तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती , निर्जला व्रत रखने की आवश्यकता नहीं है , कुछ फलाहारी वगैरह ले लेना । मैं तो कहता हूं अब व्रत रखना ही बंद कर दो । मुंगेरीलाल ने पत्नी विधि से कहा।
अच्छा , तो अब तुम मुझसे वो अधिकार भी छिनना चाहते हो , जो और औरतों को मिला हुआ है….. जिससे वो फक्र से कह सकती हैं… आपकी जिंदगी भी मेरे व्रत (त्याग ) की बदौलत ही चल रही है ….नाराज होते हुए विधि ने अपनी बात कही ।
क्या ? तुम औरतें हम पर उपवास कर एहसान करती हो ? और धौंस जमाना चाहती हो…… मन ही मन मुंगेरीलाल सोच रहे थे , पर उन्हें तो ये ” पछतावा ” हो रहा था कि मैंने व्रत ना रखने की सलाह ही क्यों दी ।
खैर ! विधि ने व्रत पुरी की , दूसरे दिन पारण (व्रत तोड़ने ) की तैयारी शुरू हुई , हल्की-फुल्की बारिश हो रही थी…. विधि चुपचाप मौन बैठी थी विधि को चुप देखकर मुंगेरीलाल ने पूछा ….क्या बात है विधि ?
विधि ने शायराना अंदाज में कुछ इस तरह जवाब दिया…
“कैसे बोलूं तुमसे दिल की बात…. काश अनकहे समझ जाते तुम मेरे जज्बात….”
देखो विधि , ये शायराना अंदाज छोड़ो और ठेठ अपनी बोली में बताओ ..क्या बात है..
तो सुन..”मोके भजिया अऊ चाय खाए के मन करत है बना अऊ खिला”
( मेरे को भजिया और चाय खाने का मन कर रहा है बनाओ और खिलाओ ) मुंगेरीलाल बेचारा सोच रहा था , वो शायराना अंदाज ही ठीक था… अब उसे ये “पछतावा “हो रहा था कि मैंने ठेठ भाषा में अर्थ जानने की कोशिश ही क्यों की , चलो अब कोशिश की है तो खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा और लग गए प्याज वाली पकौड़ी बनाने में ।
विधि की फरमाइश पूरी होने पर उसने सोचा , आज पतिदेव ने स्वादिष्ट पकौड़ी बनाकर खिलाया है …..चलो प्यार भरी दो लाइनें उनके लिए लिख दूँ….
गुड मॉर्निंग मैसेज के साथ दो सुंदर सी प्रेरक खूबसूरत सी लाइन विधि ने मुंगेरीलाल के व्हाट्सएप पर लिखकर भेजी..
मुंगेरीलाल ने वो मैसेज सभी दोस्तों , फैमिली ग्रुप में डाल दिया । विधि ने जैसे ही वो मैसेज देखा , सोचने लगी… जमाना बहुत फास्ट है , पर इतना…? पल भर पहले ही तो मैंने इन्हें वो खूबसूरत मैसेज भेजा था… मैं कहीं दूसरे जगह भी भेजती, इससे पहले ही इन्होंने सारे ग्रुप्स, दोस्तों… यहां तक की अपनी स्टेटस पर भी लगाकर,
वाह वाही ले चुके थे….. जब विधि ने कड़े स्वर में पूछा ..दूसरों के लिखे मैसेज भेजने में शर्म नहीं आती….. मेहनत कोई करें और नाम किसी का हो…अब मुंगेरीलाल को फिर पछतावा होने लगा.. ओह… मैंने जल्दीबाजी की ही क्यों….तब मुंगेरीलाल ने लज्जित होते हुए सभी मैसेज के नीचे लिखा..
विधि द्वारा लिखा ये खूबसूरत मैसेज.. और अब विधि द्वारा एहसास दिलाने के बाद मुंगेरीलाल ने “पश्चाताप ” कर भविष्य में दोबारा ऐसी गलती न करने की ठानी ।
आज छुट्टी का दिन है तबीयत भी ठीक नहीं लग रही है विधि के ये कहते ही मुंगेरीलाल ने तुरंत कहा , आज नाश्ता खाना …अलग-अलग बनाने की जरूरत नहीं है तुम आराम करो विधि , मैं ही ब्रंच बना लेता हूं ।
तभी मुंगेरी लाल के घर गांव की चाची जी पधारी …..का हो लल्ला का करत हव्वा … चाची जी ने मुंगेरी लाल को रसोई में देखते ही पूछा ।
ब्रंच बना रहा हूँ चाची जी …ब्रंच …ई ब्रंच का होत ह ?
ये नाश्ता और खाना दोनों का विकल्प होता है । अच्छा तो ई बतावा …खाएल कब जात ह ? नाश्ता के समय में या खाना के समय में…?
दोनों के बीच के समय में चाची जी …..
आप नहीं समझेंगी….ये मार्डन ज़माने का स्मार्ट वर्क है ।
अरे लल्ला तुँहु कँहा मार्डन ज़माने के चक्कर में फंस गए…..हमरे गांव में अईसन खान-पान के …कामचोर, आलसी, कोढ़ी मेहरारू के काम कही जात ह । चाची जी की बात सुनकर मुंगेरीलाल फिर पछताने लगे । इन्हें ब्रंच का नाम ही क्यों बताया , सीधे-सीधे इडली बना रहा हूं… बता दिया होता ।
मुंगेरीलाल ने चाची जी के आने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा , अच्छा हुआ आप आ गईं , कल अम्मा का जन्मदिन भी है । बगल में विधि खड़ी थी… वो कुछ बोलना चाह रही थी… मुंगेरीलाल ने कहा , हां विधि बोलो ना …विधि ने मुस्कुराते हुए कहा…
क्या कहूँ , कैसे कहूं ,कुछ कह ना पाऊं ….
अजीब सी बेचैनी , बिन कहे चुप रह ना पाऊँ ….
अपने ऊपर ये सितम शायद सह ना पाँऊ …
अरे संकोच कर पहेली ना बुझाओ.. बात क्या है सीधे-सीधे बताओ ..
मुंगेरीलाल ने भी शायराना अंदाज में बोलने की कोशिश की….
याद नहीं आज सासुमाँ के साथ मेरा भी जन्मदिन है …
बस फिर क्या था एक तरफ गड्ढा दूसरी तरफ खाई …
इधर बीवी तो उधर माई…
मैं जबर्दस्ती ढूंढ ढूंढ कर जहमत मोल लेता हूं , मुंगेरीलाल एक बार फिर अपनी करनी पर पछता रहे थे ।
अब तो मुंगेरीलाल के पछतावे की भी हद हो गई थी अपनी ही करनी के चलते उनकी आंखों से आंसू निकल गए…”पछतावे के आंसू” ।
पर हर बार मुंगेरीलाल के पछतावे बड़े ही खूबसूरत थे…. इस खूबसूरत पश्चाताप में हर बार परिवार के लिए प्यार अपनापन समाया होता था और सभी के चेहरे पर एक मुस्कान आ ही जाती थी…!
( स्वरचित ,मौलिक रचना)
नोट :— ये हास्य कहानी मेरी कुछ समय पहले लिखी हुई है..।
साप्ताहिक विषय # पछतावे के आंसू
संध्या त्रिपाठी