खोए हुए रिश्तों की तलाश – विमल भारतीय ‘शुक्ल’ : Moral Stories in Hindi

एक सर्द सुबह थी। कोहरे से लिपटी हुई सड़कें, ठंड में सिकुड़ती ज़िंदगी और हवा में अजीब सी खामोशी। उसने अपनी गाड़ी घर के सामने रोकी। पिछली सीट पर एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठे थे। उनका चेहरा थका हुआ और उदास था। आँखों में एक गहरी चोट थी, जो समय और हालात ने दी थी। यह उसके बचपन के दोस्त रमन के पिता थे।

दरवाज़ा खोलते हुए उसने कहा, “पिता जी, घर आ गया। अंदर चलिए।”

बुजुर्ग ने अपने कंधे पर रखे अँगोछे से अपनी आँखों के कोनों पर आए आँसुओं को पोंछा और गहरी साँस लेकर बाहर आए। उनका शरीर कमजोर था। चलने में मुश्किल हो रही थी। उसने उनकी बांह पकड़ी और सहारा देते हुए घर के अंदर ले गया।

रमन और वह, दोनों बचपन के दोस्त थे। एक ही स्कूल, एक ही मोहल्ला। उनकी दोस्ती ऐसी थी कि मोहल्ले वाले उन्हें भाई मानते थे। पर बड़े होकर जिंदगी की राहें अलग हो गईं। रमन नौकरी के सिलसिले में बड़े शहर चला गया और उसने अपना छोटा सा व्यवसाय शुरू कर लिया।

कुछ सालों बाद, जब रमन ने अपने पिता को गाँव में अकेला छोड़ दिया और उनसे बातचीत भी कम कर दी, तो वह यह बात हज़म नहीं कर पाया। उसने रमन से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन हर बार रमन का जवाब टालमटोल भरा होता।

उस दिन वह अपने किसी काम से गाँव गया था। वह जब रमन के घर पहुंचा, तो दरवाज़ा बंद पाया। लेकिन आँगन में, एक कोने में बैठे, रमन के पिता को देखा।

“पिता जी, यहाँ क्या कर रहे हैं? इतनी ठंड में बाहर क्यों बैठे हैं?” उसने पूछा।

रमन के पिता ने सिर झुकाए हुए जवाब दिया, “क्या कहूँ बेटा, उम्र और अकेलापन, दोनों भारी पड़ रहे हैं। रमन को मुझसे कोई मतलब नहीं रहा। वह अपनी दुनिया में खुश है। मैं तो बस वक्त काट रहा हूँ।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

रिश्तों की कॉम्प्लिकेशन – निशा रावल : Moral Stories in Hindi

उनकी आवाज़ में दर्द था। वह यह सुनकर खुद को रोक नहीं सका। उसने तुरंत उन्हें अपने साथ चलने का प्रस्ताव दिया।

घर पहुंचने पर, उसकी पत्नी ने रमन के पिता के चरण स्पर्श किए। बुजुर्ग की आँखों से आँसू बह निकले। उन्होंने अपनी बहू को आशीर्वाद देते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारी ममता ने मुझे मेरा घर वापस दे दिया।”

वह इस पल को देखता रहा। उसे लग रहा था जैसे वह कोई अधूरा रिश्ता पूरा कर रहा हो।

उसने अपने कमरे से रमन के साथ बचपन की एक तस्वीर निकाली और पिता जी को दिखाई। उनकी आँखें भर आईं।

“बचपन में रमन कितना भोला था,” पिता जी ने कांपती आवाज़ में कहा।

“हाँ, पिता जी। वह पढ़ाई में भी सबसे आगे रहता था।”

“पर बेटा, अब मत बताना उसे कि मैं यहाँ हूँ। वह अपने जीवन में व्यस्त है। मुझे उससे कोई शिकायत नहीं।”

उसने उस दिन रमन का नंबर अपने फोन से हटा दिया। उसके मन में एक अजीब सा सुकून था। उसे लगा, जैसे उसे अपने खोए हुए पिता मिल गए हों।

पिता जी के साथ बिताए शुरुआती दिन थोड़े अनमने थे। लेकिन धीरे-धीरे, वह उनके साथ घुलने-मिलने लगे। वह उनकी पसंद का खाना बनवाता, उन्हें शाम की सैर पर ले जाता, और उनके साथ पुराने दिनों की बातें करता।

पिता जी के साथ बिताए इन लम्हों ने उसकी ज़िंदगी में एक नई रोशनी ला दी थी।

पिता जी अक्सर रमन की बात करते। उनके पास रमन के बचपन की ढेर सारी कहानियाँ थीं।

“तुम्हें पता है,” एक दिन पिता जी ने कहा, “रमन जब छोटा था, तो मुझे देखकर स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाता था। कभी-कभी तो मैं उसे अपनी साइकिल पर बिठाकर खेतों तक ले जाता था। वह कहता था, ‘पापा, आपसे दूर नहीं जाऊँगा।’ पर देखो, वक्त के साथ सब बदल गया।”

उनकी आवाज़ में दर्द था, लेकिन कोई शिकायत नहीं।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

जीत – पूर्णिमा सोनी : Moral Stories in Hindi

एक दिन, जब पिता जी अपने कमरे में आराम कर रहे थे, उसने उनकी अलमारी में कुछ कागज़ देखे। यह रमन को लिखे गए पत्र थे, जो कभी भेजे नहीं गए। हर पत्र में पिता जी ने अपने बेटे के प्रति अपना प्यार और तड़प जाहिर की थी।

उसने उन पत्रों को पढ़ा और उसकी आँखें भर आईं। उसने महसूस किया कि पिता जी का अकेलापन केवल उनके बेटे की गैरमौजूदगी से नहीं, बल्कि उनके रिश्ते में आई दूरी से भी उपजा था।

पिता जी अब उसके परिवार का हिस्सा बन चुके थे। उसकी पत्नी और बच्चे उनसे बेहद घुल-मिल गए थे। बच्चे उन्हें “दादाजी” कहकर बुलाते और उनके साथ वक्त बिताते।

लेकिन एक दिन, पिता जी की तबीयत अचानक बिगड़ गई। डॉक्टर ने बताया कि उनकी हालत नाजुक है और ज्यादा दिन नहीं बचेंगे।

उसने रमन को इस बारे में बताने का फैसला किया।

रमन को यह खबर सुनकर झटका लगा। वह तुरंत गाँव आया।

जब उसने अपने पिता को देखा, तो उनकी आँखों में पछतावा और प्रेम का समंदर था।

“पापा, मैं माफी चाहता हूँ। मैंने आपको अकेला छोड़ दिया।” रमन फूट-फूट कर रोने लगा।

पिता जी ने उसका हाथ थामते हुए कहा, “बेटा, मैं तुझसे नाराज नहीं हूँ। मैं बस चाहता था कि तू खुश रहे।”

उनके आखिरी दिनों में, पिता जी के पास वह सब था, जो उन्होंने खो दिया था—अपना बेटा, बहू, पोते और एक सच्चा परिवार।

उनकी मृत्यु के बाद, रमन ने अपने पिता की सारी यादों को सहेज कर रखा। उसने अपने दोस्त को गले लगाते हुए कहा, “भाई, तुमने मेरे पिता को वह प्यार दिया, जो मैं नहीं दे सका। मैं हमेशा तुम्हारा शुक्रगुजार रहूँगा।”

रिश्ते खून से नहीं, भावनाओं से बनते हैं। जीवन में कोई रिश्ता इतना कमजोर नहीं होता कि उसे सुधारा न जा सके। बस जरूरत होती है समय, समझ और प्यार की।

यह कहानी हमें सिखाती है कि माता-पिता हमारी सबसे बड़ी संपत्ति हैं। उनका सम्मान और उनकी देखभाल हमारा कर्तव्य है। रिश्तों में दूरी आने से पहले उन्हें संभालना जरूरी है, क्योंकि वक्त हमेशा हमारा साथ नहीं देता।

लेखक : विमल भारतीय ‘शुक्ल’

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!