“बोल मिताली, तुमने सारी तैयारी कर ली है ना? अगर कोई काम बचा -खुचा हो तो बता दे, मेरा मतलब यदि कोई खरीदारी छूट गई हो तो स्कूल से आते वक्त में लेते आती।” मिताली की दोस्त आकांक्षा ने कहा।
“नहीं रे ,सब कुछ तो हो ही गया। बस,तुम समय से आ जाना।”मिताली ने कह, फोन रख दिया और मन ही मन बुदबुदाई…..”हे भगवान! सब कुछ बढ़िया से हो जाए,
किसी को शिकायत का मौका ना मिले। मेरी बेटी पसंद आ जाए। मिताली की बेटी रिया को लड़की वाले देखने आ रहे थे। रिया अपनी मां-बाप की इकलौती दुलारी बेटी थी।
रिया के पापा के कपड़े की रेडीमेड की छोटी सी दुकान थी। कमी में होने के बावजूद भी बेटी को उन्होंने बहुत अच्छी शिक्षा दी थी
और वह बैंक में क्लर्क के पोस्ट पर थी। नौकरी के साथ-साथ हर काम में निपुण। मिताली की दोस्त आकांक्षा बोलती थी यदि मुझे बेटा होता तो मैं तुम्हारी बेटी को अपना बहू बनाती। बहुत प्यारी है तुम्हारी बेटी!
उस दिन पूरा घर सजा -धजा था। आकांक्षा ने आज छुट्टी ले रखी थी। मिताली ,आकांक्षा के साथ सारे काम निपटा चुकी थी।
लड़के वाले आ गए थे। आने वालों में लड़का, उसके मां-बाप और एक छोटी बहन थी। लड़का भी संजोग से बैंक में क्लर्क ही था।
नाश्ता -चाय की औपचारिकताएं पूरी होने के बाद रिया को बुलाया गया। बहुत ही सिंपल ढंग से तैयार हुई थी लेकिन बहुत ही खूबसूरत दिख रही थी।
बातचीत के दरमियान लड़के वाले कुछ ना कुछ सवालों से रिया को दागे जा रहे थे और वह बहुत ही सलीके से उनके सवालों को निपटा रही थी।
सबसे ज्यादा तो लड़के की मां के बेतुके सवालों से रिया अंदर ही अंदर झल्ला रही थी। इधर मिताली की सांसें अटकी हुई थी कि पता नहीं क्या होगा!
आकांक्षा को भी उनके सवालों से बहुत खींज हो रही थी लेकिन वह कुछ बोल नहीं पा रही थी। वह तब भड़क उठी जब लड़के की मां ने कहा,”अच्छा, जरा मेरे बेटे के बगल में खड़ी तो हो जा जिससे पता चले, उसके लायक तुम लग रही हो कि नहीं। मेरा मतलब……।
“उनका इतना कहना था कि आकांक्षा का खून खौल गया। चिल्ला कर खोलने खून को उन लोगों पर उढेलते हुए कहा,”बहुत हो गई आप लोगों की नजाकत! अब एक शब्द नहीं! नहीं ब्याही जाएगी तुम्हारे बेटे से मेरी रिया! इतनी घटिया लोगों के बीच मेरी कोमल से बिटिया नहीं रह पाएगी।
मिताली, आकांक्षा को रोकने का प्रयास कर रही थी लेकिन उसका खून खौल जो चुका था जिसे अपने शब्दों से उन लोगों पर उढेल रही थी और लड़के वाले आकांक्षा के खौलते खून के जलन से बीच -बचाव कर अपना -सा मुंह लिए बाहर के दरवाजे का रुख लिए…..।
संगीता श्रीवास्तव
लखनऊ
स्वरचित, अप्रकाशित।