Moral stories in hindi :
सेठ दीनानाथ के आंखों से नींद कोसों दूर थी सोंचते सोंचते वे अपने जीवन में लिए गए फैसलों पर शर्मिंदा हो रहे थे । दीनानाथ और उनकी पत्नी पांच बेटियों और दो बेटों का भरा पूरा परिवार था। बेटे दोनों बड़े थे और बेटियां बेटों से छोटी थी । बेटों की शादी हो चुकी थी बड़े बेटे को तीन बेटे थे और छोटे बेटे को एक बेटी और एक बेटा था। पांच पांच बेटियों की वजह से सेठ दीनानाथ थोड़ा परेशान रहते थे।
वे बेटियों पर बहुत सख्ती करते थे कहीं जाने आने नहीं देते थे ऐसे कपड़े मत पहनो वैसे मत पहनो ।पांच पांच बेटियों की शादी करनी है लेकिन बेटियों को कोसने से क्या होगा उनको दुनिया में लाने वाले तो आप लोग ही हो न।सेठ दीनानाथ को अपने खानदान की बहुत चिंता रहती थी। बात बात में खानदान की नाक कट जाती थी । लड़कियों के लिए अपनी पत्नी से बोलते कि इंटर तक पढ़ाई कर ली बस अब शादी करो और अपने घर जाएं।बड़ी बेटी की शादी तो दीनानाथ ने इंटर के बाद ही कर दी थी । लेकिन दूसरे की लड़का ढूंढने में वक्त लग गया तो उसने बीए कर लिया और अब उसे एम ए भी करना था पढ़ने में होशियार थी । लेकिन एम ए के लिए केवल लड़कियों का कालेज नहीं था सो जहां लड़के और लड़कियां दोनों पढ़ा करते थे वहां जाना था । लेकिन सेठ दीनानाथ तैयार नहीं थे ।बड़ी मुश्किल में दूसरी बेटी ने प्राइवेट फार्म भर कर एम ए किया था।सेठ दीनानाथ बोलते खानदान की नाक कट जाएगी लड़कों के स्कूल में पढ़ने से ।
दूसरी तरफ बड़े बेटे के तीनों बेटों को यानी अपने पोतो को बहुत प्यार करते थे सेठ दीनानाथ कहते थे बेटियों की शादी में जितना दहेज दिया है सब पोतों की शादी में वसूल करूंगा ।मैं अपने तीनों पोतों में एक को वकील एक को डाक्टर और एक को इंजिनियर बनाऊंगा ।घर में अच्छा पैसा था लेकिन बेटियों के लिए नहीं उनकी तो शादी ब्याह करो जाए अपने घर बस यही उनका मकसद था।
बहरहाल सभी बेटियों की शादी हो गई सभी ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया एक को छोड़कर और सभी अपने अपने घरों में सुखी है ।और इधर दीनानाथ के पोतों का पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था बड़ी मुश्किल से इंटर भी कर पाए पैसा था घर में और खुले हाथों से खर्च करने को उनको दिया जाता था सो पढ़ लिखकर क्या करना है। बड़े बेटे ने तो किसी तरह इंटर करके पढ़ाई ही छोड़ दी और आवारा गर्दी करता रहा और फालतू दोस्तों के चक्कर में पड़कर ड्रग एडिक्ट बन गया । दूसरे को वकालत करने के लिए दाखिला करवाया इलाहाबाद में तो वो महाशय वहां प्यार में पड़ गए एक लड़की के साथ फिर मां बाप से जबरदस्ती करा के शादी करवा ली बस धरी रह गई वकालत और बन गए वकील।और तीसरे ने भी बड़ी मुश्किल से इंटर पास किया । दीनानाथ के सारे सपने धरे के धरे रह गए ।जिन बेटियों से उनके खानदान को कलंक लगने का डर था वो तो सब शराफत से पढ़-लिख कर अपने घर चली गई और जिन पोतों पर नाज था उनने खानदान की नाक कटवा दी ।जिस दहेज की आशा थी पोतों की शादी में मिलने की वो भी सब खत्म हो गया ।
बेटियां कहती हैं अब कहां गया बाबूजी का खानदान का रोना हम लोगों ने तो इतनी सख्ती के बावजूद पढ़ लिया और जिनको पूरी आजादी मिली और पैसा पानी की तरह बहाया गया वो कुछ न कर पाए । दीनानाथ भी आज सोचते हैं बेटियों के साथ दुर्व्यवहार करके हमने अच्छा नहीं किया ।जिस पर नाज़ किया था उनने तो खानदान का नाम डुबो दिया ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
1 जनवरी