Moral stories in hindi : मिताली जब विवाह पश्चात विदा होकर अपनी ससुराल गई, तब उसकी सास हर बात पर बोलती थीं,,, “हम खानदानी लोग हैं, हमारे खानदान में ऐसा होता है या कभी कहतीं ऐसा नहीं होता!”
यह सुन-सुन कर तो, मिताली के जैसे कान ही पक गए थे।
मिताली की शादी के पाँच साल हो गए थे लेकिन उसकी सास का तकिया कलाम अभी भी नहीं बदला था। आज भी जस का तस ही था।
अब तो मिताली की देवरानी रूपल भी आ गई थी। लेकिन रूपल अभी नई-नई थी, इसलिए अपनी सास के कैच वर्ड से अभी अधिक वाकिफ नहीं थी।
वह अभी यह नहीं समझ पा रही थी कि उनकी सासू माँ उस शब्द को ताने के रूप में प्रयोग करती हैं या फिर सामान्यतः ऐसा बोलती हैं।
मिताली भी किसी तरह की चुगली नहीं करना चाहती थी ताकि घर में किसी प्रकार का क्लेश ना हो। वैसे भी रूपल घर पर रहकर तो एक दिन सब कुछ खुद भी देख-सुन ही लेगी।
एक रोज अपनी सास के मायके की किसी रिश्तेदारी में, कार्यक्रम का हिस्सा मिताली भी बनी, तब उसकी सास ने खूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखावा करने के लिए खर्च किया।
जबकि कुछ दिन पहले ही ससुराल वाले रिश्तेदारों के यहाँ, सामान्य रूप से ही खर्च किया था। यह बात मिताली को अच्छी नहीं लगी लेकिन फिर भी वह चुपचाप ही रही।
मिताली और रूपल से, उनकी सास हमेशा यही कहती रहती थीं कि “हम खानदानी लोग हैं, तो लोगों को दिखना भी तो चाहिए या नहीं? खानदान की नाक ना कटने पाए, इसलिए ये सब करना पड़ता है!”
फिर वापस घर पर आकर कुछ दिन बाद वही हमेशा की तरह रुपए-पैसों की तंगी का रोना-धोना चालू हो जाता!
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कुछ दिनों बाद रूपल को बेटा हुआ तब उसके मायके से कुछ सामान जो नेग के रूप में आया था, उसमें भी सासू माँ ने बहुत सारी कमियाँ गिनाई। फिर बताया कि हम खानदानी लोग हैं, इतने से कम कभी नहीं भेजते। अपनी इज्जत का भी तो सवाल रहता है!
यही बात उन्होंने मिताली के बच्चा होने पर भी उसके मायके वालों के लिए कही थी। तब तो मिताली चुप रह गई थी।
लेकिन आज मिताली को बहुत गुस्सा आया तब पहले तो वह चुपचाप सब कुछ सुनती रही।
उसके बाद मिताली ने किसी बात पर जब अपनी सास का वही घिसा पिटा डॉयलॉग फिर से सुना जो कि रूपल को ताने के रूप में सुना रहीं थी,,, “हम खानदानी लोग हैं। हम तो गैरों के घर भी अच्छा से अच्छा सामान लेकर जाते हैं। हम इतना सस्ता सामान, कभी ना तो उपयोग करते ना ही किसी को देते हैं!”
अब मिताली से नहीं सुना गया तो उसने जबाव दिया,,, “सही कहा माँ जी यहाँ तो सब नंगे भूखे घर से हैं, जिनका कोई खानदान ही नहीं है। बंजारे, घुमंतू जाति से हैं, जो आज यहाँ तो कल वहाँ घूमते रहते हैं! क्या जाने बेचारे खानदान का महत्व!
लेकिन मैं तो मानती हूँ ऐसा भी क्या खानदान जिसमें दिखावे के लिए घर का सारा पैसा खर्च हो जाए। जो सामर्थ्य से भी ऊपर हो। उसके बाद चाहे भले ही घर भर की भूखों मरने की नौबत ही क्यों ना आ जाए।
वह भी एक पक्ष की ओर। मैं तो इसे कतई उचित नहीं मानती कि मैं अपने बहन-भाई और मायके वालों पर बेशुमार पैसा लुटा दूँ और वाणी (मिताली की ननद) एवम बुआ जी लोगों के घर औपचारिकता के लिए सिर्फ रस्म निभाने जाऊं।
बेटियाँ जब दो कुल की लाज कहलाती हैं, तो क्यों ना हम संतुलन बनाकर, अपनी सामर्थ्य भर का दोनों पक्षों पर खर्च करें। इससे हमारे खानदान की मर्यादा पर भी आँच नहीं आएगी और घर पर भी कोई अधिक आर्थिक बोझ नहीं बढ़ेगा।
इस तरह के झूठे दिखावे से कोई खानदान का नाम रोशन नहीं हो जाता। खानदान का नाम रोशन होता है… उच्च संस्कारों से, बराबर के मीठे व्यवहार से, एक-दूसरे के मान-सम्मान से!”
कुछ अधिक बोल दिया हो तो मुझे माफ कीजिएगा माँ।
लेकिन मैं इतने दिनों से यह सब कुछ देखती आ रही हूँ, इसलिए आज मुझसे चुप नहीं रहा गया।
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इतने में ही मिताली के ससुर देवेंद्र जी, पति शैलेश और देवर विनीत भी आ गए, तीनों ने मिताली के लिए कहा,,, मिताली/भाभी, एकदम सही कह रही हैं, कुसुम/माँ को, हम सब भी यही समझाते हैं लेकिन यह बात उनके समझ में ही नहीं आती है।
रूपल भी अपनी जेठानी को प्यार से निहार कर मुस्कुरा रही थी।
कुसुम जी, सबका पलड़ा भारी देखकर चुपचाप थीं। क्योंकि आज सब एक तरफ थे और वे अकेली।
लेकिन इसके बाद कुसुम जी का खानदान का भूत उतर गया था। उन्होंने अपने खानदान की झूठी वाहवाही फिर कभी नहीं की।
स्वरचित
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश