बात उस समय की है जब मैं अपने गाँव के आस पास में छोटी-मोटी मजदूरी करता था। मै पढ़ा लिखा बिलकुल नहीं हू ना उस समय पढ़ाई लिखाई पर इतना जोर दिया जाता था। जीविका चलाने का मेरे पास बस एक यही जरिया था।
पहले टाइम मे शादी जल्दी ही कर दी जाती थी।तो मेरी शादी हो चुकी थी।और मैं हमेशा थोड़ा खुद्दार किस्म का व्यक्ति रहा हूं तो अपने मां बाप से खुद कमाओ खुद खाओ की तर्ज पर अलग हो गया।
और उस समय में मजदूर को मजदूरी सिर्फ अठन्नी मिलती थी। पैसे की अकसर काफी परेशानी रहती थी।और मुझे मेरा स्वाभिमान भी बहुत प्यार था। तो माँ -बाप से कोई मदद भी नहीं लेनी थी।
धर्मपत्नी को खासतौर पर समझाया गया।मां बाप को कुछ नहीं बोलना है। जो भी है इसी में ही गुजारा करना है । मेहनत मैं करुंगा बाकी भगवान जाने।
मैने अपनी धर्मपत्नी को बोल दिया सुबह उठकर चूल्हे में धुआ कर दिया करो। ताकि मोहल्ले वाले और घरवालों ये ना कहे की इनके घर खाना नहीं बना। हम दोनो पति पत्नि जो रूखा सूखा खा के खुश और संतोष में थे।
मैं रोज सुबह खाली टिफिन लेकर अपने काम पर आ जाता। अधिकतर ऐसा ही होता था। दैनिक दिहाड़ी का काम था कभी मिलता कभी नहीं भी मिलता लेकिन भगवान की कुछ कृपा ऐसी थी की ज्यादातर काम मिल ही जाता था।
उस समय में मजदूर को मालिक जो मकान बनावाता था। या काम करवाता था। मजदूरी अठन्नी के साथ साथ एक समय का खाना भी देता था
मैं आधा खाना खुद खाता, और आधा खाना अपनी धर्म पत्नी के लिए लेकर आता हम दोनों 24 घंटे में एक बार ही खाना खाकर गुजारा करते थे ।
मैं सुबह खाली पेट,खाली टिफिन लेकर घर से काम पर आ जाता।
जब सब मजदूर,मिस्त्री खाना खाने बैठते तो मैं अपना खाली टिफिन लेके अलग बैठ जाता।ताकि किसी को पता ना चले कि मेरा टिफिन खाली हैं।
एक दिन मकान मालकिन जो मकान बनवा रही थी। हमारे खाना खाने के समय पर वहाँ आकर खड़ी हो गई। और हमारे ठेकेदार से बोली। यह मजदूर अकेला क्यों बैठा है?
ठेकेदार ने कहा मजदूर आदमी हैं। अब खाना खाएगा ।मकान मालकिन ने मुझसे बोला खाना खा लिया? मैं ने बोला नहीं अभी नही खाया , थोड़ी देर में खाऊंगा।
मकान मालकिन बहुत देर तक इधर-उधर टहलने के बहाने मुझे देखती रही। मैं आराम से बैठा हुआ बीडी पी रहा था।
उसने फिर आकर मुझसे खाना खाने को कहा । मैंने बोला मैने खाना खा लिया खाना।
मकान मालकिन ने बिना कुछ बोले अचानक से मेरा टिफिन उठा लिया ।लेकिन टिफिन में तो कुछ था ही नहीं । खाली टिफिन को देखकर मकान मालकिन की आंखों में आंसू आ गए।
मकान मालकिन बोली, वाह रे छोरे बड़ा सब्र है, तुझ में ।देखिए ,एक दिन तेरा यह सब्र तेरा संतोष तुझे
बहुत आगे लेकर जाएगा ।
उस मकान मालकिन ने कहा आज के बाद तू भूखा नहीं रहेगा ,पहले तू खाना खाएगा उसके बाद सब को खाना मिलेगा,
आज भगवान का दिया हुआ सब कुछ है मेरे पास, लेकिन मैं उस मकान मालकिन को कभी नहीं भूलता।और ना कभी अपने उस समय को भूलता। जब भी अपने ऊपर घमंड होता है ।उस टाइम को याद कर लेता हूं उस खाली टिफिन को याद कर लेता हूं। वो टिफिन आज भी मेरे पास है ।क्योंकि वही मेरी असली औकात है।
#स्वाभिमान
(सपना शर्मा काव्या)