नवविवाहित रुचि सकुचाई सी एक कोने मे बैठी थी। घर मे बहुत से रिश्तेदार थे। कुछ अपने अपने जाने की तैयारी कर रहे थे कुछ विदा ले रहे थे और कुछ अभी रुकने वाले थे। रुचि की सासू माँ वीना जी सबको विदा कर रही थी । तभी बाहर कुछ शोर सा उभरा रुचि अपने कमरे मे सहम सी गई। उसने अपनी सहेलियों से सुना था कि ससुराल मे बहू द्वारा लाये सामान को एक दो नही कई जोड़ी आँखे तोलती है और फिर शुरु होता है उनमे कमी निकालने का सिलसिला और बहू को सुनाये जाने का दौर । उसकी कितनी सहेलियों के मातापिता ने सबकुछ दिया उन्हे तब भी उनको सुनना ही पड़ा । जबकि यहाँ तो उसके माता पिता के ना रहने पर चाचा चाची ने किसी तरह उसे पढ़ा लिखा कर ब्याह किया है उसका।
” अब क्या होगा !” रुचि के मन मे यही चल रहा था वो कान लगा बाहर की आवाजे सुनने की कोशिश करने लगी।
” नही भाभी मैं ये साड़ी नही लूंगी मेरा भी अपना स्टैण्डर्ड है तुम्हे बहू के मायके मे पहले ही कह देना चाहिए था कि सबकी साड़िया अच्छी होनी चाहिए !” ये शायद बुआ सास की आवाज़ थी।
” और नही तो क्या अरे ताई , बुआ को कौन सा रोज रोज कुछ दे रहे है जो ये सस्ती सी साडी मे टरका दिया अरे लड़की ब्याही है मजाक थोड़ी किया है जो यूँही सस्ते सामान के साथ विदा कर दिया !” ये ताई सास की आवाज़ थी । रुचि उनकी बात सुन सोचने लगी अब सासू माँ भी चार बात बोलेंगी और फिर उसे इस बात का एहसास करवाया जायेगा कि वो उनसे कम हैसियत के खानदान की है। वो सोचने लगी चाची ने अपनी हैसियत के हिसाब से ठीक ही साड़ियाँ ली थी अब उन्हे भी तो आगे अपने बच्चो का देखना है। हे भगवान लड़की होना सजा क्यो होता है। बहुओं के मायके से इतनी अपेक्षा क्यो होती है।
” अरे भाभी , जीजी धीरे बोलो बहू सुन लेगी । आप तो जानती हो उसके माँ बाप नही है तो चाचा चाची से जितना हुआ उन्होंने किया है !” वीना जी की आवाज़ आई।
” अरे माँ बाप नही है पर छोड़ के तो गये होंगे ना उसके लिए बेटी के जन्म से ही माँ बाप उसकी शादी को जोड़ना शूरू कर देते है। लगता है चाचा चाची हजम कर गये सब !” बुआ बोली।
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” जीजी ऐसा नही उनके खुद भी दो बेटियां है हमने तो उन्हे कुछ भी देने को मना किया था क्योकि हमें तो संस्कारी लड़की चाहिए थी बस। ये सामान का क्या है कितने दिन इसे इस्तेमाल कर खुश होंगे हम पर बहू अच्छी होगी तो सारी उम्र की खुशियाँ लाएगी हमारे घर मे भी जीवन मे भी !” वीना जी की ये आवाज़ सुन रुचि सोच के पड़ गई ये सासू मा ही है जो उसका पक्ष ले रही है ।
” अरे वीना तू तो रहने दे बस वो कल की आई लड़की को अभी से सिर चढ़ायेगी तो आगे क्या खुशियाँ लाएगी वो घर मे । चार ढंग के कपड़े तो लाई ना जो हमारा अपमान करने को ये साडी ले आई इसे हम ना पहनेंगे !” ताई सास बोली।
” भाभी जो लड़की खुद अपमान के घूंट पी रही है चुपचाप वो बेचारी वो भी बिना किसी गलती के वो क्या किसी का अपमान करेगी। आपका हर सम्मान मैं करूंगी शादी मेरे बेटे बहू की हुई है । मुझे बहू के मायके से एक सुशील लड़की चाहिए थी जो मुझे मिल गई बाकी चीज की ख्वाहिश नही इसलिए मैं अपनी बहू का अपमान नही होने दूंगी !” ये बोल वीना जी ने साड़ियों के ढेर लगा दिये। बुआ सास और ताई सास को ये सब पसंद तो ना आया पर ज्यादा बोलना अपना अपमान करवाना होता इसलिए चुप रह गई।
” बेटा लो ये फल खा लो भूख लगी होगी । फिर थोड़ा आराम कर लेना क्योकि शाम को मुंह दिखाई की रस्म है आस पड़ोस की औरते आएँगी !” थोड़ी देर बाद वीना जी बहू के कमरे मे आ बोली।
” जी मम्मीजी !” सिर झुकाये बैठी रुचि केवल इतना बोली।
” क्या हुआ बेटा तुम रो रही हो ? देखो बेटा बाहर जो हुआ वो गलत था पर उसके लिए तुम खुद को दुखी मत करो हर घर मे शादी मे कुछ ऐसे लोग होते है जो खुद खुश नही होते बल्कि कमी निकाल दूसरो को दुखी कर देते है !” वीना जी रुचि के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली।
” मम्मी जी ये आँसू उनके द्वारा कहे शब्दों से नही आये मैं जानती हूँ शादी के बाद ऐसा तो हर लड़की को सुनना ही पड़ता है मैं इसके लिए तैयार होकर आई थी पहले से !” रुचि बोली।
” फिर क्यो रो रही हो !” वीना जी हैरानी से बोली।
” मम्मी जी ये आँसू तो खुशी के है कौन कहता है मां केवल एक बार मिलती है अगर सास आप जैसी हो तो ससुराल मे भी बहू की रक्षा को एक सास नही माँ ही होती है मैं सोचती थी मेरी माँ मुझे छोड़ गई मुझे क्या पता था सास के रूप मे फिर से माँ मिल जाएगी मुझे !” रुचि भरे गले से बोली।
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” ओह्ह बेटा … तो यही माँ कहती है कि वो नही चाहती उसकी प्यारी सी बहू की आँख मे आंसू आये भले खुशी के हो ..चलो अभी ये खाकर आराम करो तुम जिससे शाम को खिली खिली नज़र आओ और सब रश्क करे मेरी बहू को देख !” वीना जी उसके आंसू पोंछती हुई बोली। रुचि वीना जी के गले लग गई और वीना जी ने भी उसे कस कर सीने से लगा लिया। मानो उसके चारो तरफ एक सुरक्षा घेरा बना रही हो जो उसे ससुराल मे हर परेशानी से बचाएगा।
दोस्तों मैं जानती हूँ सास बहू का रिश्ता जो बहुत खूबसूरत बन सकता था वही सबसे बदसूरत बन गया है और कुछ लोगो को मेरी कहानी सिर्फ कहानी लगेगी। पर ये भी सच है ऐसी सास बहू की जोड़ी भी है हमारे समाज मे और अगर नही भी है तो बन तो सकती है ना क्योकि आज की बहू कल की सास भी तो बनेगी तो क्यो ना बदलाव की शुरुआत खुद से करे जिससे हमारी भावी बहू भी बोल सके कौन कहता है माँ केवल एक बार मिलती है।आपकी दोस्त
संगीता ( स्वरचित)
bahut hi nek vichar hai…saas bahu maa beti ban jaaye to dharti per hi swarg dekh sakte hai..
Absolutely
संगीता जी, बहुत ही हृदयस्पर्श रचना, आपका दिल से धन्यवाद