कौन बड़ा कौन छोटा – नीरजा कृष्णा

आज बीच रास्ते में कार खराब हो जाने से उन्हें एक ऑटो लेना पड़ा। उसमें बैठते ही मंद मंद संगीत लहरियों ने उनका स्वागत किया। उस ऑटोरिक्शा की भीतरी सजावट भी नयनाभिराम थी। उत्सुकता से पूछ बैठीं,

“अरे भैया, तुम्हारा रिक्शा तो बहुत साफ़सुथरा और चकाचक है। ज्यादातर तो फटेहाल होते हैं। इसमें बैठ कर वी.आई.पी वाली फीलिंग हो रही है।”

वो बहुत खुश होकर बोला,”ये हमें अपनी अम्मा की तरह प्यारी है। हम अधिक  पढ़लिख नहीं सके तो हमारी अम्मा ने अपना बचाखुचा गहना बेच कर इसे खरीदवाया था। इज्जत से रोटी चल जाती है।”

उन्हें आनंद आने लगा था। पूछ बैठीं,”तुम कहाँ रहते हो? तुम्हारे परिवार में कौन कौन है?”

वो सरल भाव से गुनगुनाते हुए बोला,”जी मैं मालसलामी एरिया में रहता हूँ। साथ में मेरी पत्नी, बेटी और मेरे माता पिता का आशीर्वाद रहता है।”

वो बहुत आकृष्ट होकर कुछ पूछना चाह रही थी…तभी वो बोल पड़ा,

“मेरी पत्नी थोड़ी पढ़ी लिखी है । हिंदी में कुछ कुछ लिखती है। ”

मालसलामी नाम से ही वो चौंकी थीं। अब उसकी लेखिका पत्नी के विषय में जानकर उनका कौतुहल सातवें आसमान पर पहुँच गया था। वो स्वयं एक लेखिका थीं। पिछले दिनों वो लेखनजगत से जुड़ी कुछ महिला मित्रों को अपने घर बुला रही थीं। मालसलामी में रहने वाली रेखा का नाम उनकी बहू ने एक सिरे से खारिज कर दिया था। कहा था…उस एरिया में तो लो क्लास के लोग रहते हैं। वो बुझे मन से चुप रह गई थीं।

आज अचानक सब याद आ गया और पूछ बैठीं,”तुम्हारी पत्नी का नाम रेखा है?”




वो ऐसे चौंका मानो बिच्छू ने काट लिया हो। रिक्शा रोक कर पूछ बैठा था,”आप जानती हैं उसे?”

वो बोलीं,”अब और सवाल नहीं। बस अपने घर ले चलो। और हाँ भाड़ा यहाँ से वहाँ तक का पूरा लेना होगा।”

वो तत्परता से अपने घर  की तरफ़ ले गया। रेखा ने पहचान कर गर्मजोशी से स्वागत किया था। उसका वो एक कमरे का घर भी उसके ऑटोरिक्शा की तरह चमचम कर रहा था। उसने वहाँ पड़ी एकमात्र कुर्सी पर उन्हें बैठा कर फटाफट गर्मागर्म उपमा बना कर खिलाया। उसकी गर्माहट से  उनकी रग रग की सिकाई हो गई थी। वो जल्दी में थीं। घर से फोन आ रहे थे।

वो विदाई लेकर पुनः ऑटो में बैठ गई। रेखा ने हाथ पकड़ कर कहा था,”सब कुछ इतना आचानक हुआ। आपकी कुछ खातिर नहीं कर पाई। आप इतनी बड़ी लेखिका मेरे घर पर…।”

उसे शायद अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। तभी उसकी बिटिया एक थैली में दो कद्दू लेकर आई और उनके हाथ में थमा दिए। रेखा आदर से बोली,”मैम ,हमारी छोटी सी बगिया की भेंट है।”

वो तड़प गईं…ओह रेखा,आज तुमने फिर हमें बौना साबित कर दिया।उन्होने झट से पाँच सौ का नोट बच्ची के हाथ पर रख दिया।

अब ऑटो में आँखें बंद कर वो आराम से बैठ गईं और उस थैली को प्यार से सीने से लगा लिया।

नीरजा कृष्णा

पटना

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