Moral Stories in Hindi : दरवाज़े पर लगी घंटी बजी… सुनते ही रसोई में काम करती प्रज्ञा ने ननद राशि को दरवाज़ा खोलने को कहा जो वही सोफे पर बैठ मजे से टीवी देख रही थी ।
“ क्या भाभी मेरा इतना अच्छा प्रोग्राम चल रहा है और…. ।” भुनभुनाती हुई राशि दरवाज़ा खोल कर आश्चर्य से खड़ी हो गई
“ अरे बुआ जी आप…. वो भी एक बैग लेकर आई हैं रहने का इरादा है क्या?” पटर पटर बोलने की आदत से लाचार राशि बोल पड़ी
“ अरे अरे अंदर आओ ना शुभी…. चल दरवाज़े से हट बुआ को अंदर आने दे ।”घंटी की आवाज़ सुन अपनी सिलाई मशीन पर काम छोड़ सुभद्रा जी बाहर आ ननद को देख ख़ुशी से बोली
“ कैसी हो भाभी… बहुत दिनों से माँ बाबूजी की याद सता रही थी सोचा आप से मिल आऊँ तो मायके की महक मिल जाएगी…. और हाँ दो दिन के लिए आई हूँ कोई दिक़्क़त तो नहीं है ना…?” शुभी बुआ ने पूछा
“ ना शुभी कैसी बात करती है तेरे आने से मुझे क्या दिक़्क़त हो सकती…. बेटा जा बुआ के लिए शरबत तो ले कर आ ….. ।” सुभद्रा जी राशि से बोली
“ हाँ रे राशि तनिक बर्फ़ ज़्यादा डाल देना रे…. ये जून का महीना जेठ की गर्मी देह झुलसा दिया हमार….।”शुभी बुआ ने बड़े रौब से कहा
राशि रसोई में जाने लगी तो प्रज्ञा पहले ही बना कर रखी शरबत गिलास में डालकर ला ही रही थी ..
“ प्रणाम बुआ जी कैसी है…।” शालीन स्वभाव की प्रज्ञा ने पूछा
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“ सब ठीक है बहू… बस कुछ दिन तेरी सेवा लेने आ गई हूँ…।” हँसते हुए कह शुभी बुआ ने दो गिलास शरबत गटक लिए
दोपहर का समय हो रहा था खाना खा कर बुआ जी सोने चली गई ।
“ माँ ये बुआ का कुछ समझ नहीं आता… बताओ भला यहाँ ही उनका पूरा परिवार रहता फिर अपना घर छोड़कर कैसे यहाँ हमारे घर रहने चली आती हैं…. इनकी बहू सेवा नहीं करती क्या…. जो ये तुम्हारी बहू यानि मेरी भाभी से सेवा करवाने आती हैं….।” राशि ठठाकर हँसते हुए बोली
“हाँ मम्मी जी मुझे भी कभी-कभी ये बात अटपटी सी लगती हैं वैसे मुझे उनके आने से कोई दिक़्क़त नहीं होती पर लगता जितना आराम अपने घर में लगता है कहीं और कैसे लग सकता?” प्रज्ञा भी आश्चर्य करते हुए बोली
“धीरे बोलो बेटा बुआ जी सुन लेंगी तो कितना बुरा लगेगा…. बहू राशि के पापा पाँच भाई और ये इकलौती बहन …. जब तक माँ बाबूजी रहे शुभी को सब सिर माथे पर रखें… माँ जी शुभी की शादी के कुछ साल बाद चल बसी …फिर तो बाबूजी शुभी का और ज़्यादा ध्यान रखने लगे….. बाबूजी को पेंशन मिलता था… इसलिए वो हम सबको बोल रखे थे मेरी बेटी आए तो उसे एहसास ना होने दिया जाए माँ नहीं है…. आप सब शुभी का ज़्यादा ध्यान रखिएगा ……
तेरे पापा दूसरे नम्बर पर थे वो बुआ से बहुत स्नेह करते थे….. उसी वजह से बुआ का लगाव मुझसे होता गया बाक़ी कोई भाई भाभी शुभी को ना मानते थे….. एक दिन सड़क दुर्घटना में तेरे दादा और पापा हमें छोड़ चले गए…. तब पता तेरी बुआ ने जितना हो सकता था तुम दोनों भाई बहन का ध्यान रखा मैं तो बस रोती रहती थी…… वक़्त गुज़रता गया तेरा भाई बड़ा हो गया और उसकी नौकरी उसी शहर में लगी जहाँ तेरी बुआ रहती है मतलब यहाँ….
जबसे हम यहाँ आए हैं बुआ कभी कभी आती रहती हैं ….. प्रज्ञा को तो दो साल ही हुआ है पर राशि तू बुआ से ऐसे कैसे बोल गई बेटा रहने का इरादा है…. बेटा शुभी के बच्चे जब छोटे थे वो गर्मी की छुट्टियों में मायके ही आती थी जून का महीना और हमारे बगीचे के आम उसे हमेशा भाते थे…. अब माँ बाबूजी नहीं रहे उस घर में बस अब एक चाचा जी रहते हैं….. पर वो कभी शुभी को नहीं बुलाते….. इसलिए हर साल जून के आते मैं शुभी को बोल देती हूँ जब मन करे आ ज़ाया करो… अब तुम लोग बताओ ….. क्या माँ बाबूजी नहीं है तो शुभी का मायका उनके भाई भाभी के रहते ख़त्म कर दिया जाए…. कोई नहीं बुलाता तो मैं भी नहीं बुलाऊँ…….?” सुभद्रा जी ने पूछा
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“ नहीं माँ हम समझ नहीं पाए …. सच में बुआ जी को कैसा लगता होगा ना उनके माँ बाबूजी दोनों नहीं है और कोई भाई भी नहीं पूछता…. तुम पापा के नहीं रहने पर भी बुआ का मायका सलामत रखी हुई हो ये बहुत बड़ी बात है ।”राशि माँ से चिपक कर बोली
“ माँ कल को तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा मायका…?” कहकर राशि रोने लगी
“ ऐसे क्यों बोल रही है राशि आपके भाई भाभी है ना…… !” प्रज्ञा राशि के सिर को सहलाते हुए बोली
“ सच में भाभी आप हमेशा मुझे ऐसे ही प्यार करोगी…?” राशि आश्चर्य से पूछी
“ क्या अनाप-शनाप बोल रही है राशि…. इतना नहीं सोचते….. बस ध्यान रखना कोई ऐसी बात अब मत करना जो बुआ को बुरा लग जाए।” सुभद्रा जी बात को वही ख़त्म करते हुए बोली
दोनों हामी में सिर हिलाकर चली गई सुभद्रा जी फिर से लग गई सिलाई मशीन में अपनी ननद के लिए कशीदाकारी वाले चादर तकिये की सिलाई करने ।
बुआ जी दो दिन रहकर जाने लगी तो राशि को पास बुलाकर बोली,“ राशि कल को तेरी भी शादी हो जाएगी…. बेटा एक बात गाँठ बाँध ले मायके में माँ बाबूजी हमेशा नहीं मिलेंगे इसलिए अपने भाई भाभी से रिश्ता प्रगाढ़ रखना….. मुझे तो भाभी के रूप में माँ मिल गई ….. जब तक बाबूजी रहे माँ की कमी ना खली पर जब बाबूजी भी चले गए ऐसा लगता काश ! माँ बाबूजी ज़िन्दा होते …. पर तेरी माँ ने मेरा मायका बनाए रखा माँ बाबूजी के रूप में मुझे वो मिल गई….. कल को तेरा मायका तेरे भाई भाभी से रहेगा बस इस बात का ध्यान रख अभी से रिश्ते को सुधारती रहना।”
राशि बुआ की बड़ी बड़ी बातें सुन सिर हिला रही थी पर अंतर्मन में द्वन्द्व सा चल रहा था….. क्या सच में माँ नहीं रहेंगी तो मेरा मायका….. नहीं नहीं मुझे अपने माँ बाबूजी को ज़िन्दा रखना है अपने भाई भाभी के रूप में…… मुझे प्यार से अपनेपन से मायका बनाएँ रखना है ।
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बुआ को विदा करने के बाद अल्हड़ और पटर पटर करने वाली राशि अब भाभी के साथ मिलकर उनकी मदद करने लगी ….ताकि उसका मायका माँ बाबूजी के बाद भी बना रहे उसके सद व्यवहार से।
शुभी बुआ की तरह बहुत बेटियों के मायके यूँ ही छूट जाते है ना जाने ऐसा क्यों होता है कल तक मान मनौवल करने वाले भाई भी एक समय बाद बहन का आना, रहना बर्दाश्त नहीं कर पाते….. सच यही है रिश्ते के लिए प्रेम बहुत ज़रूरी है जहाँ वही नहीं होगा रिश्ता भी नहीं के बराबर रहेगा…।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश