गोपाल अपने माता पिता का एक बेटा था।परिवार में उसकी दो बहने रति और मणि थे।पिता श्यामलाल सीधे साधे व्यक्ति जितना उन्हें कहां जाता वो उतना ही काम करते ।उनकी बीमारी की वजह से उन्होंने जल्दी ही काम छोड़ दिया था।
उस समय गोपाल पढ़ रहा था।गोपाल का शिक्षण उसके मामा के यहां हुआ था या यूं कहे कि ईश्वर ने उसका भविष्य उज्वल बनाने के लिए उसे वहां भेज दिया था।रति और मणि मां सुशीला की कॉपी थी कामचोर तेजतर्रार आलसी।सुशीला सोती रहती
उसके पति श्यामलाल जब तक नौकरी पर जाते महीने के 20 दिन वही खाना बनाते अपना और बच्चों का खाना पैक कर के देते।और अगर सुशीला खाना बनाती तो वो इतना फीका और बदमजा होता कि कोई खाता ही नहीं।रति आठवीं में थी तभी एक लड़के के चक्कर में पड़ गई।
मुश्किल से दसवीं पास की उसके बाद एक दो कोर्स किए फिर जिद करके उसी लड़के से शादी की सबने घर में इतना समझाया पर मजाल जो किसी की बात मान जाए मां की पूरी सह थी।छोटी मणि पढ़ने में ठीक थी बारहवीं पास कर कॉलेज कोर्सपॉन्डेंस से कर वो स्कूल में पढ़ाने लगी
पर वो भी मुंहफट थी अपनी मां और बहन की तरह ।गोपाल भी पढ़ाई पूरी कर आ गया उसे भी नौकरी लग गई उससे घर के हालत थोड़े ठीक हुए।फिर मणि की भी पढ़ाई पूरी हो गई उसने बीएड में एडमिशन लिया उसके लिए सतीश का रिश्ता आया जो उन्हीं की जात बिरादरी का था।
तो उसका भी घर बस गया।वो स्कूल और घर में बिजी रहती तो कम ही आती पर रति तो पास रहती थी हर रोज वो वही धमक पड़ती।अब गोपाल के लिए भी लड़की देखी जाने लगी।रागिनी का गोपाल से रिश्ता हुआ एक हसमुख ,चुलबुली और मुस्कुराती हुई
लड़की जो गोपाल की जिंदगी में आई तो उसकी जिंदगी खुशियों से भर गई।पहले गोपाल के घर कुछ नहीं था क्योंकि मां सुघड़ नहीं थी।गोपाल और रागिनी ने घर जोड़ा ।सब रागिनी को अच्छा कहते ये बात सुशीला और रति को अच्छी नहीं लगती।
रिश्तेदार भी कहते रागिनी ने घर का नक्शा बदल दिया इस बात से वो चीड़ जाती ।रति उससे लड़ने के मौके ढूंढती और जब मणि भी आ जाती तो तिगड़ी उसका जीना दूभर कर देती।गोपाल पति अच्छा था पर वो एक श्रवण कुमार था जो गलत बात के लिए अपनी मां बहन को कुछ नहीं बोलता था।
वो जो मर्जी बोले वो चुप चाप सुनता रहता था। श्यामलाल भी कई बार समझ।ते वो घर की बहु है ऐसा व्यहवार मत करो एक दिन ऐसा ना हो तुम्हे पछताना पड़े।रति रोज किसी ना किसी बात पर रागिनी से लड़ती पर गोपाल रति को कुछ नहीं कहता।
सुशीला रागिनी के मां बाप का अपमान करती पर रागिनी की तरफ से कोई बोलने वाला नहीं था।समय बीता ससुर जी का देहांत हो गया l पर सुशीला का पुत्री प्रेम कुछ कम नहीं हुआ।इधर इस व्यवहार से रागिनी त्रस्त हो गई अब वो गुमसुम रहती थी कम बोलती थी।
फिर रागिनी दो बच्चों की मां बनी रेना और रेनी की ।दादी बुआ का मां के प्रति बर्ताव देखकर रेना भी वैसी ही हो गई थी मुंहफट वो भी मां की इज्जत नहीं करती थीं।दूसरों का व्यहवार आदमी बर्दाश्त कर लेता है पर अपनी सगी औलाद ऐसा करे तो दुख होता है।
रागिनी अब चुप थी वो किसी से नहीं बोलती थीं अपना दर्द अंदर ही अंदर पी रही थी।वो गोपाल को कहती थी कि ये सब लौट कर आएगा।और एक दिन वो चिर निद्रा में सो गई।गोपाल बिखर गया कुछ दिनों में सब अपने रूटीन पर आ गए।पर कहते है ना आदतें नहीं जाती
अब बेटी मां बहने जब गोपाल से उसी लहजे में बात करती तो गोपाल को रागिनी का दर्द समझ आता था।अब तक तो वो ऑफिस जाता था उसे घर से कोई सरोकार ही नहीं था।उसे रागिनी कितनी बार बोलती की इनका व्यहवार हमारे और हमारे बच्चों के लिए अच्छा नहीं है।
अब गोपाल घर में बैठा सब देख रहा था।दो रोटी के लिए भी तरसना पड़ता कहा रागिनी के टाइम में उसे सबसे पहले गरम खाना प्रेस कपड़े ।अब तो कपड़े धुलते भी नहीं थे।रेनी अपनी मां की प्रतिच्छवि थी वो अपनी तरफ से कोशिश करती पर अभी वो छोटी थी।
एक दिन सुशीला बोली गोपाल तू ऐसा कर ये घर रति के नाम करदे मणि के पास तो पैसा घर सब है पर रति के पास कुछ नहीं है उसका घर हो जाएगा। आज पहली बार गोपाल बोला मां तुम कितनी स्वार्थी हो मेरी रागिनी तुम्हारी वजह से चली गई।मैं गलत था जो मैंने कभी मुंह नहीं खोला ।
ये घर मेरा और मेरे बच्चों का है जो मैने और रागिनी ने मेहनत से बनाया है तो मां आप ये भूल जाइए।और इसकी शादी को 25 साल हो गए ये आज भी मायके पड़ी रहती हैं भाई का घर खराब कर दिया अब क्या चाहती हैं कि मै भी मर जाऊ।
रति बोली ये क्या कह रहा है।तेरी बीवी मर गई तो अब घर का क्या काम कल को मेरी भी बेटी की शादी होगी तू मामा है तो उसके लिए कुछ तो करेगा।गोपाल बोला छी तुम्हे मां बहन कहते मुझे शर्म आती हैं। गोपाल वहां से चला गया।
कुछ दिन बाद उसे अच्छी नौकरी मिल गई तो वो अपने बच्चों के साथ बैंगलोर चला गया।अब घर में मां बेटी दामाद और नातिन थे।पर कहते है ना कर्मों का चक्र चलता रहता है जैसा करोगे वैसा भरोगे।रागिनी चली गई पर उसके जाने के बाद बुआ
और दादी का व्यहवार देख रेना बहुत पछताई की मैने अपनी मां का दिल क्यों दिखाया मैंने उनका कितना अपमान किया ।उधर अब सारा काम रति को और उसकी बेटी आंचल को करना पड़ता वो चिक चिक करती आंचल तो यह तक कहती इस बुढ़िया का ठेका ले लिया क्या हमने।
रति कहती अगर इस बूढ़ी का नहीं करेंगे तो रहेंगे कहा इतनी मुश्किल तो रहने का जुगाड किया है और तीनों पति पत्नी हंसने लगते है।अपनी बेटी के मुंह से ऐसी बात सुन सुशीला के पैरों तले जमीन निकल गई।
बहु के राज में अच्छे से अच्छा खाना फल फ्रूट सब होता अब घर में कुछ नहीं होता। रागिनी छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखती थीं अब समय पर खाना बना तो बना नहीं तो मैगी खाली।सुशीला प्याज लहसुन नहीं खाती थी इसलिए उसे परेशानी होती या तो खुद बनाओ या फिर भूखे सो।
उसने मणि को भी फोन कर बताया।मणि बोली में क्या कर सकती हूं ये तो तुम्हे सोचना चाहिए था हा इस घर में मैं भी हिस्सा लूंगी।अब सुशीला को रागिनी और गोपाल की बड़ी याद आती।उसने गोपाल को फोन किया बेटा लौट आ मुझे माफ करदे आज जब जो मै रागिनी के साथ करती थी
मेरे साथ हो रहा है तो उसका दर्द समझ आया। गोपाल बोला मां सबको कर्मों का फल यही मिलता है मैं यहां भोग रहा हूं तुम वहां ।अगले हफ्ते में आ रहा हूं घर बेच दिया है मैने तुम अपना और रति का इतंजाम कर लेना ।
तुम मां हो इसलिए तुम्हारे अकाउंट में तीन लाख और रति और मणि को 1- 1 लाख रुपए दूंगा।सुशीला ने ये बात रति को बताई रति बोली हम तो अपने घर चले जाएंगे।मां तुम अपना देख लो।तब तक सुशीला ने पैसों की बात नहीं बताई थी।
सुशीला बस इतना बोली तुम बहनों को 1 लाख देगा।रति और मणि शोर मचाने लगी इतना बड़ा घर बेच कर 1 लाख देगा।जब गोपाल आया तो वो उससे भी लड़ी ।गोपाल बोला आप तीनों को मैंने हिस्सा दिया ना जबकि ये पूरा घर मेरे और रागिनी के पैसों से आया है।
मैं अपना लोन उतारूंगा और अपने बच्चों की शादी करूंगा।गोपाल सब डील करके चला गया।सुशीला कहती रही मुझे भी ले चल पर शायद आज पहली बार गोपाल अपने परिवार के साथ इंसाफ करने जा रहा था।
उसे पता था कि उसकी बहने मतलबी है वो मां को नहीं रखेंगी इसलिए वो सुशीला की व्यवस्था अपने मित्र के वृद्धाश्रम में कर गया था।अगले दिन पूरा घर खाली हो गया दोनों बहने अपने मतलब का सामान ले गई और बाकी बेच दिया पर एक ने भी मां को ना पूछा उलट बोली
हम ससुराल में तुम्हे कैसे लेकर जाएगी ये तो तुम्हारे बेटे का फर्ज था।सुशीला बंद घर के दरवाजे पर बैठी थीं तभी एक गाड़ी आई उसमें से निकेतन उतरा जो उसे वृद्धाश्रम ले जाने आया था।
गाड़ी में बैठी सुशीला सोच रही थीं कर्मा वापिस आता है जो मैने किया वही मैं भुगत रही हूं।आज वो ईश्वर से और रागिनी से माफी मांग रही थी पर सब व्यर्थ था।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी