अब तक आपने पढ़ा- उवर्शी जो कि मेजर पांडे से प्रेम करती थी, उससे सगाई भी हो चुकी थी, उनके करगिल युद्ध में शहीद हो जाने के बाद गुड़गांव के व्यवसायी विनोद त्रिपाठी से विवाह करती है, यह विवाह असफल होने के बाद वह अपने पैतृक गाँव झिरपा में खेती-बाड़ी करने लगती है।उसने अपनी मदद के लिए मेजर पांडे के पिता को भी अपने साथ ही बुला लिया था। कुछ वर्षों के संघर्ष एवम परिश्रम के बाद ही उर्वशी की गिनती उस जिले के समृद्ध किसानों में हो चुकी थी। इस बाबत उसे मुख्यमंत्री से भी पुरस्कार मिल चुका था।
====================
अब आगे…
इधर कारगिल युद्ध में अपने मंगेतर मेज़र पांडे को खोने के बाद उर्वशी को लगभग 8 वर्ष लग गये, अपने दुःखद जीवन से उबरकर, “आत्मनिर्भर” बनने में….
औऱ उधर पाकिस्तान में “कारगिल युद्ध ” में हुई “करारी हार का सारा ठीकरा” पाक सेना ने निवर्तमान प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ पर फोड़ दिया।
सन 2001 में जब प्रधान मंत्री नवाज शरीफ श्रीलंका दौरे पर गये थे तो पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने सेना की मदद से उन्हें और तत्कालीन राष्ट्रपति रफीक तरार का तख्तापलट करके स्वयं को पाकिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर दिया ।
जनवरी 2004 में, निर्वाचक मण्डल ने उन्हें राष्ट्रपति में रूप में सहमति प्रदान कर दी ..परिणामस्वरूप, पाकिस्तानी संविधान के अनुसार, उन्हें “निर्वाचित राष्ट्रपति” माना गया था।
राष्ट्रपति मुशर्रफ के बार-बार असंवैधानिक हस्तक्षेप के कारण उनका न्यायपालिका के साथ गतिरोध उत्पन्न हुआ और उन्होंने इस गतिरोध से बचने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों को बर्खास्त कर दिया जिससे 2007 में आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई थी ।
हालांकि मुशर्रफ पुनः 2007 में चुने गए थे , लेकिन मुशर्रफ के शासन की संवैधानिक वैधता संदिग्ध पाई गई थी। पाकिस्तान की न्यायपालिका और चुनाव आयोग ने 22 अगस्त 2008 को जनतांत्रिक तरीके से राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा कर दी।
परवेज मुशर्रफ जानते थे कि यदि पाकिस्तान में चुनाव जीतना है तो भारत के साथ क्रिकेट और राजनैतिक सम्बंध सुधारने होंगे..
लिहाज़ा वर्ष 2007-08 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम भारत में क्रिकेट खेलने आई। कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए वन डे एवम अन्य टेस्ट मैचों की सीरीज जीत ली। क्रिकेट डिप्लोमेसी कारगर रही। भारत और पाकिस्तान “कारगिल वॉर” के जख्मों को भूलकर “शांति” की बातें करनें लगे थे।
इस क्रिकेट दौरे के बाद भारतीय टीम को भी पाकिस्तान जाकर क्रिकेट खेलने को आमंत्रित किया गया।
पाकिस्तान में राष्ट्रपति के चुनाव से ठीक पहले दोनों ही देशों में अमन चैन की बयार बहने लगी थी।पत्रकारों ने पुराने जख्मों को भुलाकर नये बदलते भारत और पाक के प्रेम भरे रिश्तों की फसलें बो दी थी।
★
ऐसे में परवेज़ मुशर्रफ ने एक मास्टरस्ट्रोक खेला.. जब 15 अगस्त को भारत आजादी के 61 वें वर्ष को उल्लासपूर्वक मना रहा था..
“परवेज़ मुशर्रफ ने पाक की लाहौर जेल में 8 वर्षों से कैद एक “कारगिल युद्ध बन्दी सैनिक” को रिहा करने की घोषणा की,जिसे उन्होंने द्रास में 6 सैनिकों की एक टुकड़ी समेत गिरफ्तार किया था।
मुशर्रफ की इस ख़बर से भारत में “सेना और रॉ” सहित हर तरफ़ हड़कंप मच गया। कारगिल युद्ध के शहीदों की सूची में द्रास में पाकिस्तान द्वारा गिरफ्तार की गई उस टुकड़ी में मेज़र बृजभूषण पांडे सहित सभी 6 सैनिको के नाम थे, फिर उनकी शिनाख्ती के बाद दाहसंस्कार भी हुआ। ऐसे में पाकिस्तान किसे “युद्धबंदी भारतीय सैनिक” के नाम से प्रस्तुत कर रहा था.. कहीं यह उसकी कोई नई चाल तो नहीं?
रॉ और सेना के अधिकारियों ने पुराने रिकॉर्ड खंगाले तो उन्हें पता चला कि तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर महेंद्र सोलंकी के नेतृत्व में द्रास सेक्टर के “पॉइंट 5142” पर कब्जा करने गई अल्फ़ा टीम ने तो कैप्टन अजय शर्मा के नेतृत्व में उस पॉइंट पर सफलतापूर्वक कब्ज़ा कर लिया था, मगर वह बेक-अप वाली “बीटा टीम” जिसका नेतृत्व “मेज़र बृजभूषण पांडे” कर रहे थे वह पूरी की पूरी टीम पाकिस्तान सेना द्वारा अगवा कर ली गई थी।
दो दिन बाद इस टीम के 6 में से 5 सदस्यों के क्षत-विक्षत शव नीचे पहाड़ी पर मिले थे, पाकिस्तानी सैनिकों ने इनकी निर्मम हत्या करके पहाड़ी से नीचे फ़ेक दिया था। उन सैनिकों के साथ इतनी बर्बरता की गई थी कि उनकी पहचान करना भी मुश्किल था।
लिहाजा सेना ने 5 सैनिकों के शव मिलने के बाद पूरे जोर शोर से छठवें सैनिक की तलाश शुरू की , परन्तु जब 2 सप्ताह के सर्च ऑपरेशन में भी न मिलने पर यह सोचकर कि एक सैनिक का शव कहीं बर्फ में या किसी घाटी में दब गया होगा इसलिए नहीं मिला सभी 6 सैनिकों को मृत घोषित कर दिया था।
इसका मतलब पाकिस्तान सही कह रहा था, सम्भवतः वह गिरफ्तार युद्धबंदी भारतीय सैनिक इसी “बीटा टीम” का सदस्य था।
★
रॉ की 6 टीमें बृजभूषण पांडे सहित उन सभी बीटा टीम के शहीद घोषित सदस्यों के रक्त सम्बन्धियों से मिलकर उनके रक्त के डी एन ए के नमूने से उस सैनिक के डी एन ए को मैच कराकर उसके कथन की सत्यता की जाँच की जायेगी।
रॉ की एक टीम बृजभूषण पांडे के माता-पिता को उमरिया से ढूंढते ढूंढते, पंचमढ़ी के झिरपा गाँव तक आ गई थी। वह मेज़र बृजभूषण पांडे के रक्त के डी एन ए की जांच उसके माता पिता से मिलाकर मेज़र बृजभूषण पांडे के मेज़र “बृजभूषण पांडे” होने का सत्यापन करना चाहते थे।
लिहाजा गृहमंत्रालय के कहने पर मेज़र बृजभूषण पांडे के माता-पिता समेत और उर्वशी समेत उन सभी बीटा टीम के शहीदों के परिजन भी अपने स्वजन की शिनाख्त के लिए वाघा बॉर्डर समीप पहुँचते हैं।
मेज़र पांडे के माता-पिता और उर्वशी, एवम बीटा टीम के सैनिकों के स्वजनों को वाघा बॉर्डर से पहले की सेना की चौकी में बिठा दिया गया था।
उस सैनिक को लाहौर से सड़क मार्ग से वाघा बॉर्डर तक पाकिस्तान की सेना छोड़कर वहाँ से भारतीय सेना के सुपुर्द करने वाली थी।
15 अगस्त 2008 की वह सुबह खुशियों से भरी हुई थी,भारतीय सेना के पास जब वह युद्ध बंदी सैनिक सकुशल पहुँच गया तो उनकी मेडिकल जांच एवम जरूरी पूछताछ की गई।सर्वप्रथम उनके तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर महेंद्र सोलंकी ने ही उस सैनिक के “मेज़र पांडे” ही होने की शिनाख्त की, मेडिकल टीम ने प्रारंभिक जांच में ही पाया कि मेज़र पांडे के साथ भी भीषण क्रूरता की गई थी, हाथों, पैरों, छाती, पीठ एवम चेहरे पर अब भी जख्मों के निशान थे.. हालांकि घाव भर चुके थे।
मेज़र पांडे के द्वारा “डी एन ए जांच” की सहमति मिलने के बाद सेना के मेडिकल ऑफिसर ने उनके रक्त का नमूना और मेज़र पांडे के पिता के रक्त के नमूने को लेकर अपने दिल्ली मुख्यालय भेज दिया।
अब सेना की इंट्रोगेशन टीम, रॉ के साथ मिलकर मेज़र पांडे से संयुक्त रूप से पूछताछ शुरू करती है..
मेज़र पांडे बहुत खुशी की बात है कि आप सकुशल वतन वापस आ चुके हैं, मगर आपको अपनी “ड्यूटी जॉइन” करने और अपने परिवार से मिलने के पूर्व हमारे प्रश्नों के उत्तर देना होंगे।
मेज़र पांडे से उसकी रैंक, पिता, माँ, भाई-भाभी भतीजों के नाम पूछने के बाद उससे पूछा गया कि आप उस दिन जब बीटा टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे थे तो आप और आपकी टीम ने बिना लड़े ही पाकिस्तान की सेना के सामने हथियार क्यों डाल दिये.. ऐसी क्या वज़ह थी कि सिर्फ़ आपको छोड़कर आपकी टीम के बाकी सभी 5 सदस्यों की पाकिस्तान की फ़ौज ने बुरी तरह से हत्या कर दी .. जबकि आपको जीवित छोड़ दिया..??
कहीं आपने पाकिस्तान के टार्चर के डर से भारतीय फौज के महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया राज तो नहीं उगल दिये ??
आपके अलावा और कौन कौन है पाकिस्तान की जेलों में बंद??
मेज़र पांडे जानते थे कि आर्मी में इस तरह के झुंझलाने वाले ही सवाल किये जाते हैं ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके, अन्यथा पाकिस्तान द्वारा भेजा कोई बहरूपिया भी इस दशा का फ़ायदा उठाकर मेज़र पांडे के नाम से सेना में घुसकर, सेना की ख़ुफ़िया जानकारी पाकिस्तान तक पहुंचा सकता था, इसलिए उन्होंने मुस्कराते हुये शांतिपूर्वक उत्तर दिये।
सबसे पहले तो उन्होंने अपनी रैंक, परिवार के बारे में सबकुछ विस्तृत रूप से बताया जिससे कि उनके ही मेज़र पांडे होने की पुष्टि और सही पहचान उजागर हुई।
दूसरा प्रश्न सीधा सीधा उनकी “निष्ठा” से सम्बंधित था, और उस प्रश्न का जवाब सिर्फ़ वही जानते थे इसलिए उन्होंने कहा मेरे कमांडिंग ऑफिसर महेंद्र सोलंकी सर ने मुझे और मेरी टीम को द्रास सेक्टर के पॉइंट 5142 को वापस कब्जा करने के लिए बनी टीम में रखा था.. 18 लोगों की इस टीम को पुनः 6- 6 लोगों की टीम अल्फा, चार्ली और बीटा नाम से बांटकर एक दूसरे के बैकअप प्लान के रूप में काम करने की जवाबदेही दी गई थी। अल्फा टीम की जवाबदेही कैप्टन अजय शर्मा को, बीटा टीम की जवाबदेही मुझ पर और चार्ली टीम की जवाबदेही कैप्टन आनंद राठौड़ को दी गई थी..
प्लानिंग के हिसाब से रात में ही हमारी तीनों टीमों ने 100 मीटर के अंतराल की दूरी बनाते हुए पहाड़ी पर चढ़ना शुरू कर दिया था।
मैं और मेरी “बीटा” टीम , कैप्टन अजय शर्मा की अल्फा टीम से 100 मीटर की दूरी पर चल रही थी.. उसके पीछे 100 मीटर की दूरी पर कैप्टन आनंद राठौड़ की चार्ली टीम चल रहीं थी..
चूंकि यह सीधी पहाड़ी चढ़ाई थी, हथियार लेकर सीधी चढ़ाई चढ़ने पर गिरने का डर था, इसलिए अल्फा टीम ने अपने सारे हथियारों को नीचे ही छोड़कर धीरे-धीरे रस्सी के सहारे पहाड़ी चढ़ना शुरू कर दिया। ऊपर सुरक्षित स्थान पहुँचने के बाद उनके द्वारा फेंकी रस्सी पर अल्फ़ा टीम के हथियारों को नीचे हमारी बीटा टीम के सदस्यों ने बांध दिया जो कि अल्फ़ा टीम द्वारा ऊपर खींच लिये गये।
इसके बाद अल्फ़ा टीम ने हमारी बीटा टीम के भी सारे हथियार ऊपर रस्सी के सहारे खींचकर, उसी सुरक्षित स्थान पर रखकर रस्सियों को बीटा टीम के चढ़ने के लिए छोड़कर अल्फ़ा टीम ऊपर अगली चढ़ाई चढ़ने में लग गई।
अभी हम उस रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ने की तैयारी कर ही रहे थे कि अचानक पाकिस्तान सेना की एक टुकड़ी जिसे शायद हमारे ऑपरेशन की भनक लग गई थी, हमारी फ़ौज की “टोह” लेने के लिए बिल्कुल नज़दीक से गुजरी। उनके पास अत्याधुनिक हथियार और रेडियो सेट था।
वह टॉर्च लाइट लिए हमारी ही तरफ़ आ रहें थे, हमारे चाक़ू के अलावा सारे हथियार उस रस्सी के सहारे अल्फा टीम द्वारा पहले ही ऊपर खींचे जा चुके थे.. इसलिए हम उनपर सीधा हमला नहीं कर सकते थे..
यदि वह हमारी लोकेशन तक आ गये और उन्होंने यह लटकी रस्सियां और क्लाइम्बिंग के सामान को देखकर वह हमारे “हमले की प्लानिंग” समझ जाते और रेडियो सेट से ऊपर बैठी उनकी फ़ौज को अलर्ट कर देते, जिससे कैप्टन अजय शर्मा और उनकी पूरी टीम चढ़ाई चढ़ते ही मारी जाती और हमारा मिशन फ़ेल हो जाता। इतना ही नहीं यदि वह कुछ देर और वहाँ रूकते तो उनकी मौजूदगी से बेखबर कैप्टन आनंद राठौड़ की चार्ली टीम भी ऊपर पहुँचते ही मारी जाती।
हमारे लिए देश से बढ़कर कुछ भी नहीं, हमारी जान तो छोटी सी चीज थी। मैंने अपनी टीम के साथ पाकिस्तान की टोही टीम का ध्यान भटकाने का निश्चय किया। हम जानबूझकर थोड़ा-थोड़ा “आहट” करते हुए पास की दूसरी चोटी तक भागने लगे ताकि पाकिस्तान की टुकड़ी हमारा पीछा करे।
हमारी चाल कामयाब रही.. हमने उस पाकिस्तानी सेना की टुकड़ी को लगभग दो घण्टे तक अपने पीछे उलझाए रखा..परन्तु अब तक हमें कैप्टन अजय शर्मा की टीम की तरफ़ से गोलीबारी की आवाज़ नहीं सुनाई दी थी।बाद में जब चारों ओर से पाकिस्तान की टुकड़ी ने हमें घेर लिया तो हमने यह सोचकर आत्मसर्मपण कर दिया कि हमारे आत्मसर्मपण करने से पाकिस्तान की ऊपर बैठी टुकड़ी निश्चिंत हो जायेगी। कैप्टन शर्मा को हमला करनें में आसानी रहेगी।
हमने आत्मसमर्पण करने के पूर्व ही अपनी पहचान ज़ाहिर हो सकने वाले सारे दस्तावेज वहीं नष्ट कर दिये और पहचान पत्र, सैनिक रेंक वर्दी बैच समेत निजी वस्तुओं जैसे अंगूठी, लॉकेट या पर्स आदि एकदूसरे से बदल लिए थे, ताकि दुश्मन द्वारा कितना भी टॉर्चर हो उनकों हमारे बारे में कोई सुराग न मिल सके।
जब हम सभी 6 लोगों ने जब हाथ उठाकर पाकिस्तान की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया तो उनकी खुशी देखने लायक थी।
उन्होंने रेडियो से ऊपर बैठी पाकिस्तान की फौज को कहा.. ज़नाब ख़बर पक्की थी।हमने 6 हिंदुस्तानी कुत्तों को जिंदा पकड़ लिया है.. यह सुनते ही ऊपर बैठी पाकिस्तान की फौज में जश्न का माहौल हो गया.. अब वह कैप्टन अजय शर्मा की टीम के हमले से बेखबर थे।
हमें बन्दी बनाकर पाक सिपाही ऊपर की तरफ ले जा रहे थे।वह यह नहीं समझ पाये कि यदि हम ऊपर न चढ़ते तो वह हमें उठाकर तो नहीं ले जा सकतें थे।
पाकिस्तान की फौज के हाथ जिंदा पड़कर उनके ख़ौफ़नाक तरीकों से पूछताछ करने से “मर जाना ज्यादा” आसान लगता है मगर तब तक हमारा मिशन कामयाब नहीं हुआ था।
वह हमसे हमारा प्लान पूछ रहे थे, और हम पक्का इरादा करके आये थे कि वे कितने भी जुल्म करें,हम अपना मुँह नहीं खोलेंगे।
उन्होंने एक-एक करके हम सभी की उंगलियों के नाखूनों को पिलास से खींचना शुरू कर दिया, सिगरेट दागने लगे, नंगा करके बर्फीली पहाड़ी पर बिठा दिया।इतना ज्यादा लात घूँसे मारे कि हमारे मुँह और नाक से खून निलकने लग गया।
हमारे कपड़ों की तलाशी और सिपाही मुकेश पटेल की वर्दी से उन्हें लगता है वह ही मेज़र है, इसलिए उन्होंने उसे हम सब साथियों से अलग रखकर थोड़ी नरमी से पूछताछ की, मग़र जब वह नहीं टूटा तो हमारे ही सामने वह उसे तब तक मारते रहे, जब तक कि उसकी जान नहीं चली गई…बावजूद इसके हममे से किसी ने भी मुँह नहीं खोला।
★
अबतक हमें ऊपर पहाड़ी पर गोलीबारी की आवाजें सुनाई देने लगीं थीं।लगभग घण्टे भर बाद पाकिस्तान की उसी टुकड़ी को आये रेडियो सन्देश से हमें पता चल चुका था कि हमारी फ़ौज कामयाब हो गई है और हमने पॉइन्ट 5142 पर कब्ज़ा वापस पा लिया है। अब हमारा काम हो चुका था, पाकिस्तान की सेना हमें जीवित रखे या मार दे उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ना था।
पाकिस्तानी सेना की उस टुकड़ी ने गुस्से से भरकर मेरे बाक़ी के 4 साथियों पर भी गोलियां चलाकर मार डाला और ऊपर पहाड़ी से नीचे फेंक दिया।
जैसे ही उन्होंने मुझे मारने के लिए बंदूक उठाई उनकी सेना के एक ऑफ़िसर ने उसे रोक दिया कि यह भले ही अपना नाम और पहचान न बताये मग़र कल जब हिंदुस्तानी न्यूज में 6 में से 5 फौजियों की लाशें नाम के साथ शहीद बताकर अपने चैनल में दिखाएंगे तो हमें इसका भी नाम, रैंक और पता चल जायेगा।बाद में इसे अपने तरीके से टॉर्चर करके हम इससे हिंदुस्तानी फ़ौज का पूरा प्लान पता कर ही लेंगे,इसलिए वह मुझे गिरफ्तार करके इस्लामाबाद ले आयें।उनकी उम्मीदों के अनुसार ही जब न्यूज़ चैनल ने 6 में से 5 जवानों के नाम और रैंक बताकर छठवें जवान “सिपाही मांगीलाल बिसेन” के लापता होने की खबर न्यूज़ में चलवाई तो यह समझ गये कि मैं मामूली सिपाही हूँ, मेरे पास कोई ज्यादा युद्ध सम्बंधित खबरें नहीं होंगी, फिर भी उन्होंने हर तरीके से मुझसे हमारी सेना की जानकारी लेने की कोशिश की मगर मैने मुँह नहीं खोला।
उस समय परवेज़ मुशर्रफ कोई बड़ा हमला करने की फ़िराक़ में थे परंतु अमेरिका के दबाव में नवाज शरीफ ने हथियार डाल दिये थे। हमारी फ़ौज ने उनकी उम्मीद से कहीं जल्दी अपने हिस्सों पर कब्ज़ा वापस पा लिया था।
कई दिनों तक मुझसे हर तरीके से पूछताछ करने के बाद उन्होंने मुझे ज्यादा और ज्यादा टॉर्चर न करके युद्धबंदी की तरह ही रखा, बाद में जब आप लोगों ने सभी 6 सैनिकों को शहीद घोषित कर दिया तो मैं उनके लिए गले की हड्डी बन गया था।
मुझसे कोई भी जानकारी न मिलने पर उन्होंने मुझे लाहौर जेल में भेज दिया था.. वह शायद मेरे बदलें में भारत सरकार से किसी अन्य की रिहाई करवाना चाहते थे।
मगर पाकिस्तान में तख्तापलट होते ही सारा मामला शांत हो गया।मुशर्रफ का हमसे फ़ोकस हटकर पाकिस्तान में सत्ता पर पकड़ बनाये रखने में ज्यादा हो गया।
इसी बीच अमरीका ने अफगानिस्तान पर हमला करके “तालिबान” को वहां से खदेड़ना शुरू कर दिया। सामयिक रूप से इस युद्ध में अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत थी, अमेरिकी फ़ौज ने पाकिस्तान में ही ईंधन भरने जंगी सामान उतारने शुरू कर दिये थे।
तभी अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी.आई .ए. को मेरे लाहौर जेल में जिंदा होने की खबर मिल चुकी थी.. अब पाकिस्तान यदि मुझे मारने की कोशिश भी करता तो यह “जिनेवा समझौते” का उल्लंघन होता, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि को बहुत नुकसान पहुंचता, इसलिए मैं अब तक जीवित रहा।अभी हाल के चुनावों में राजनीतिक फ़ायदा लेने की दृष्टि से परवेज मुशर्रफ ने मुझे रिहा करवाने के आदेश दिये। मेरे अलावा वहां और कोई भारतीय कैदी जीवित नहीं है।
रॉ के अधिकारी और सेना के अधिकारी मेज़र पांडे के जवाब से संतुष्ट हो चुके थे.. फिर भी उन्होंने मेज़र पांडे की डीएनए रिपोर्ट औऱ अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के मेज़र पांडे के बारे में उत्तर आने तक मेज़र पांडे को अवकाश पर रहने का आदेश दिया।
★
इस पूछताछ के बाद जब मेज़र पांडे को उन सभी बीटा टीम के स्वजनों के पास शिनाख्त के लिये ले जाया गया तो अपने सामने जीवित पाकर उर्वशी की आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।अपने पिता और माँ को सामने पाकर मेज़र बृजभूषण पांडे उनसे लिपट गया। वहीं बीटा टीम के दूसरे सैनिकों के स्वजन अपने दिवंगत घोषित परिजन सैनिक के जीवित होने की अंतिम किरण भी बुझती हुई देखकर निराशा से सिसक पड़े।
सेना की जीप से मेज़र पांडे, उसके माता-पिता और उर्वशी सभी वाघा बॉर्डर की उस चौकी से अम्बाला तक जा रहे होते है। उसी रात की ट्रेन से वह सब पंचमढ़ी के लिए निकलने वाले थे।
सारे रास्ते रिमझिम बारिश होती रही.. उर्वशी मेज़र पांडे की बाँह कसकर पकड़े हुई थी मानो उसने निश्चय कर लिया हो कि वह अब मेज़र पांडे को कभी नहीं छोड़ेगी।
अम्बाला से ट्रेन पकड़कर मेज़र पांडे पंचमढ़ी पहुंच गये।लगभग 15 दिन में डी एन ए रिपोर्ट से मेज़र पांडे के असली मेज़र पांडे होने की पुष्टि हो जाती है।अब तक सी आई ए ने भी रॉ को मेज़र पांडे की कही बातों पर औपचारिक रूप से पुष्टि कर दी थी।
कुछ दिन बाद सेना के” उच्चाधिकारियों की कमिटी” माननीय राष्ट्रपति से राजपुत रेजिमेंट के बीटा टीम के 5 सदस्यों के लिए मरणोपरांत शौर्य चक्र, और मेज़र पांडे को महावीर चक्र के लिए अनुशंसित करती है और सेना की उसी कमीशन में पदोन्नति देकर “लेफ्टिनेंट कर्नल” के पद पर सेवा पुनः आरंभ करने का आदेश देती है ।
अपनी डयूटी जॉइन करने से पहले लेफ्टिनेंट कर्नल पांडे ने अपने मित्रों और परिवार के सदस्यों पंकज गौतम, वंदना दीदी, उसके भाई भाभी की मौजूदगी में एक सादे समारोह में उर्वशी से विवाह किया और हनीमून मनाने फिर से शिमला की उन्हीं वादियों और झील की सैर करने चल पड़े जहाँ से उनका रोमांस शुरू हुआ था।
उर्वशी अपने प्रिय बृज के साथ उछलते कूदते “गाइड फ़िल्म” की वहीदा रहमान के तरह गीत गा रही थी..
“अपने ही बस मैं नहीं मैं
दिल हैं कही तो हू कही में
हाँ…अपने ही बस मैं नहीं मैं
दिल हैं कंही, तो हूँ मैं…
दिल हैं कंही, तो हूँ मैं…
जाने क्या पा के मेरी ज़िंदगी ने
हंस कर कहा हा हा हा हा हा
आज फिर जीने की तमन्ना है
आज फिर मरने का इरादा हैं
आज फिर जीने की तमन्ना है
आज फिर मरने का इरादा हैं
===================
अविनाश स आठल्ये
स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित
(पूर्णतया मौलिक)