कारगिल एक प्रेमकथा (भाग-19) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा- उर्वशी जिसकी सगाई मेज़र बृजभूषण पाण्डे के साथ हो चुकी थी, मेज़र बृजभूषण पांडे की शहादत के बाद क्रोनिक डिप्रेशन का शिकार हो जाती है, जिससे उबरने के बाद परिजनों के दबाब के कारण उसका विवाह प्रसिद्ध व्यवसायी उमेश त्रिपाठी के इकलौते बेटे विनोद त्रिपाठी से हो जाता है। विवाह के कुछ समय बाद जब उसे पता चलता है कि विनोद त्रिपाठी नपुंसक है, तो वह टूट जाती है।इसके बाद विनोद त्रिपाठी द्वारा उर्वशी पर यातनाओं का अनवरत दौर शुरू हो जाता है।

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अब आगे..

प्रतिदिन विनोद त्रिपाठी की भद्दी गालियों और बात-बात मारपीट से उर्वशी जितना आहत नहीं हो रही थी, उससे भी ज्यादा उसे अपने सास और ससुर के विनोद त्रिपाठी को इस प्रताड़ना हेतु मिल रहे मौन समर्थन से मानसिक त्रास हो रहा था।उमेश त्रिपाठी चाहते थे कि या तो उर्वशी ख़ुद ही त्रस्त होकर घर छोड़कर चली जाय, या फ़िर बिना अपना हिस्सा माँगे विनोद से तलाक लेकर चली जाये, ताकि उसके जाने के बाद विनोद को कोई संतान न होने की वज़ह उर्वशी पर डालकर अपनी इमेज में लग रहे धब्बे को मिटा सकें।

उर्वशी के पिता होते तो उर्वशी के बिना कहे भी उसकी तकलीफ़ समझ जाते थे, मगर उसकी आदत नहीं थी कि अपना दुःख किसी से भी साझा करे।वंदना दीदी और पंकज जीजीजी की खुशहाल ज़िंदगी में अपने दुःखों की वह परछाई भी नहीं पड़ने देना चाहती थी।उन दोनों का बेटा लक्ष्य भी अब चार वर्ष का हो गया था।वह नर्सरी स्कूल जाने लगा था। उर्वशी उसकी एक भोली सी मुस्कान और नटखटपन देखकर अपने सारे दुख दर्द भूल जाती थी। परन्तु जैसे ही उर्वशी अपने घर वापस आती तो उसे फिर उसी यातना भरे माहौल में घुट-घुटकर जीवन व्यतीत करना पड़ता।

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आख़िरकार कब तक सहती उर्वशी…एक दिन वह इन सबसे त्रस्त होकर बिना किसी को कुछ कहे विनोद त्रिपाठी के घर से निकल आई। उसने सीधा अपने पिताजी के झिरपा गाँव जाकर वहाँ से वन्दना दीदी को फ़ोन करके अपने वैवाहिक जीवन की सारी बातें विस्तार से बताईं, और कहा कि वह किसी पर भी बोझ बनकर नहीं रहना चाहती, इसलिए उसने अपने पिताजी की जमीन पर ही खेती बाड़ी करने का निश्चय किया है।

वन्दना दीदी और पंकज जीजाजी उर्वशी के असफल वैवाहिक जीवन से बहुत व्यथित हुए, लेकिन उसके गाँव में रहकर अपनी पैतृक कृषि सम्हालने के निर्णय से वह बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उर्वशी को हर प्रकार से सहयोग करने का आश्वासन दिया। उर्वशी अब अपने पिताजी जी की जमीन पर आधुनिक तरीके से खेती करके आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही थी।

उसका विनोद से न तो “तन का रिश्ता” था और न ही “मन से रिश्ता”। एक दिन उसने किसी वकील से सलाह लेकर विनोद को तलाक के लिए कानूनी नोटिस भेजकर कोर्ट में उसकी “नपुंसकता” के आधार पर तलाक लेने की अर्जी दी।

“नपुंसकता के आधार पर किये दावे ” की पुष्टि के लिए कोर्ट ने विनोद की “मेडिकल जांच” करवाई।उर्वशी का दावा सही होने की वजह से कोर्ट के जज ने 6 महीने के अंदर ही विनोद और उर्वशी के तलाक पर अपनी मंजूरी देकर इस उन दोनों के रिश्ते को सदा के लिए समाप्त कर दिया।

उर्वशी पहले ही उस भरे पूरे घर में

अकेली ही थी, अब कानूनी तौर पर भी अपने जीवन में नितांत अकेली हो गई।

उर्वशी को अपने गाँव में खेतीबाड़ी करते लगभग दो वर्ष हो चुके थे, उसने धीरे धीरे मिट्टी परीक्षण करके उसके अनुरूप फसलों एवम फलदार वृक्षों को लगाकर उपज बढ़ाना प्रारंभ कर दिया था। पूर्व ग्राम प्रधान की बेटी होने से उस गाँव मे उर्वशी का दबदबा अब पूरी तरह से बन चुका था, “आत्मनिर्भर” उर्वशी अब “एकाकी जीवन” की आदी हो चुकी थी।

बीच-बीच में वह उमरिया जाकर मेज़र पांडे के माता-पिता से मिलकर उनके हाल चाल पूछती रहती थी। मेज़र पांडे के पिता को उर्वशी अपने पितातुल्य मानती थी।उन्होंने उर्वशी को आग्रह किया कि उसकी उम्र बहुत कम है, वह पुनर्विवाह करके नई गृहस्थी बसा ले।

मग़र उर्वशी ने साफ़ मना कर दिया।उसने कहा कि उसे अपने जीवन का उद्देश्य मिल चुका है, अब वह आजीवन विवाह नहीं करेगी।वह चाहती है कि मेज़र पांडे के माता-पिता उसके साथ रहें।हालांकि मेज़र पांडे के पिताजी के पास भी ख़ुद की खेतीबाड़ी थी.. परन्तु उर्वशी की जिद और सुरक्षा के लिए उन्होंने अपने बड़े बेटे को वह खेतीबाड़ी सौंप दी और उर्वशी के साथ पंचमढ़ी के झिरपा गाँव मे रहने लगे।

अब मेज़र पांडे के पिताजी का अनुभव और उर्वशी की मेहनत ने रंग लाना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपने खेतों से इतना उत्पादन करना शुरू कर दिया जितना कि उर्वशी के पिताजी के समय भी नहीं उत्पन्न होता था।

पूरे जिले में उर्वशी का नाम सफ़ल आधुनिक किसान के रूप में लिया जाने लगा। वह मुख्यमंत्री द्वारा भी उन्नत किसान के रूप में पुरस्कृत हो चुकी थी।

एक बार फ़िर से उर्वशी का जीवन पटरी पर आ चुका था।

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अविनाश स आठल्ये

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